राजेश कुमार दास
2094 की वह शाम बाकी शामों से अलग थी। सूरज का अस्तित्व अब प्रतीकात्मक रह गया था—आकाश में केवल राखी धुंध थी और हवा में जलती हुई धातु की गंध। गंगा के घाट सूख चुके थे, हिमालय की बर्फ पिघल चुकी थी, और समुद्रों ने अपनी सीमाएँ लांघ दी थीं। भारत समेत सम्पूर्ण पृथ्वी अब जीवन के योग्य नहीं रही थी। वैश्विक वैज्ञानिक परिषदों, जलवायु आयोगों और पृथ्वी बचाओ संगठनों ने वर्षों तक चेतावनी दी थी, लेकिन देर हो चुकी थी। अब एक ही विकल्प बचा था—पृथ्वी 2.0। भारत ने “सम्भव-1” नामक इंटरप्लैनेटरी मिशन की योजना वर्षों पहले बनाई थी। पाँच हजार लोगों का चयन किया गया—नस्ल, जाति, भाषा, धर्म, या सामाजिक स्थिति के आधार पर नहीं, बल्कि उनके मानसिक संतुलन, व्यावसायिक क्षमता, और सामूहिक अस्तित्व को आगे बढ़ाने की संभाव्यता के आधार पर। ISRO के वैज्ञानिक, भारतीय सेना के रणनीतिकार, और अनेक वैश्विक संस्थानों के विशेषज्ञ मिलकर इस मिशन की नींव रख चुके थे। अंततः, प्रस्थान का दिन आ चुका था। मानव इतिहास में पहली बार भारत अपने नागरिकों को पृथ्वी छोड़कर एक नए ग्रह की ओर भेजने जा रहा था। इस दिन के लिए डॉ. अदिति राव ने वर्षों तक बायो-डोम रिसर्च की थी, ताकि नए ग्रह पर पौधों की बुआई संभव हो। कैप्टन राघव मेहरा, भारतीय वायुसेना का सबसे अनुशासित और निडर अधिकारी, अब इस मिशन का नेतृत्व कर रहा था। सामाजिक ढांचे की जिम्मेदारी अमृता सेन के कंधों पर थी, जिन्होंने एक न्यूनतम लेकिन लचीले संविधान की रूपरेखा तैयार की थी। मानसिक और भावनात्मक संतुलन का दायित्व अन्वी नायर को सौंपा गया था, जो मिशन की मनोवैज्ञानिक थीं। पत्रकार सायरा खान को इस मिशन की हर गतिविधि का रिकॉर्ड रखने के लिए चुना गया था। और तकनीकी नवाचारों की निगरानी कर रहे थे इशान कपूर, एक युवा लेकिन असाधारण इंजीनियर। ये सभी अपने-अपने परिवारों को पीछे छोड़ आए थे, एक ऐसे भविष्य की तलाश में जिसकी रूपरेखा अज्ञात थी।
“सम्भव-1” को सतारा स्पेस सेंटर से लॉन्च किया जाना था—एक गुप्त स्थल जो महाराष्ट्र की पहाड़ियों के बीच था, जहाँ अंतिम बचे हुए संसाधनों को बचा कर रखा गया था। वहाँ पहुँचते ही सबको अपनी पहचान कोड, मानसिक स्थिरता की पुष्टि और बायो-सिग्नेचर देना होता था। अंतिम चार दिन केवल “डिप्रेशन कॉन्ट्रोल” और “मनोभाव परीक्षण” के लिए थे। इन चार दिनों में कोई भी मिशन से हटाया जा सकता था—क्योंकि नया ग्रह भावनात्मक अस्थिरता नहीं झेल पाएगा। इन दिनों में हर कोई टूटने के कगार पर था—अदिति को अपनी बेटी के एक आखिरी वीडियो मैसेज ने बेचैन कर दिया था, राघव चुपचाप अपने पिता की अंतिम तस्वीर को देखता रहा, और अन्वी को कई लोगों को दिन-रात सहारा देना पड़ा। इशान बार-बार सिग्नल चेक करता रहा, शायद कोई संदेश आए, लेकिन सिग्नल बंद हो चुके थे। सायरा ने अकेले एक वीडियो रिकॉर्ड किया जिसमें उसने कहा—”अगर कोई इसे कभी देखे तो जान ले, इंसान ने कोशिश की थी, हार नहीं मानी थी।” अमृता चुपचाप अंतिम संविधान के बिंदुओं को संशोधित करती रही, लेकिन भीतर उसे डर था—क्या समाज वाकई नए सिरे से शुरू हो सकता है, या वही पुराना वर्ग, सत्ता, और स्वार्थ फिर जन्म लेगा? 5000 में से हर व्यक्ति का दिल भारी था, लेकिन उम्मीद की एक हल्की किरण उनमें जल रही थी। “सम्भव-1” को अगले दिन प्रातः 4:00 बजे लॉन्च किया जाना था। इसके बाद पृथ्वी पर उनका कोई अस्तित्व नहीं रह जाएगा—न नाम, न घर, न इतिहास—सिर्फ पृथ्वी 2.0 की नई पहचान।
लॉन्च की रात, आकाश में गहराई तक फैली चुप्पी को केवल मशीनों की गूंज और दिलों की धड़कनों ने तोड़ा। यान के भीतर एक कृत्रिम बर्फीली नींद जैसा माहौल था—सबको क्रायो-स्लीप में जाना था, जिसमें महीनों की यात्रा बिना उम्र बढ़ाए पूरी होती थी। अदिति ने बायो-डोम डेटा फिर से चेक किया, राघव ने अंतिम कमांड इंसर्ट की, अमृता ने “नवग्रह संविधान” नामक फाइल लॉक की, और अन्वी ने नींद से पहले यात्रियों के EEG स्कैन पर एक आखिरी नजर डाली। इशान ने अपना फ्लाइट कोड अपलोड कर दिया था, लेकिन सायरा ने चुपचाप अपने कैमरे से अंतिम क्लिप रिकॉर्ड की—”यह वह क्षण है जब हम इतिहास से बाहर, अनंत में प्रवेश कर रहे हैं। क्या हम खुद को फिर से गढ़ पाएंगे? या नई धरती पर वही पुराने पाँव के निशान छोड़ेंगे?”… जैसे ही काउंटडाउन शुरू हुआ, हर किसी की आंखों में आँसू थे, होंठ मौन थे, लेकिन भीतर एक क्रांति की चेतना थी। जब “सम्भव-1” ने आकाश की राखी परतों को चीरते हुए पृथ्वी को छोड़ा, तो एक सभ्यता का अंत हुआ और एक नई संभाव्यता की शुरुआत। पर यह शुरुआत थी एक ऐसे प्रश्न की यात्रा की, जिसका उत्तर उन्हें एक नए ग्रह पर मिलना था—क्या इंसान वाकई खुद को बदल सकता है?
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चार महीने बीत चुके थे—समय की परिभाषा अब घुल चुकी थी। अन्तरिक्ष में दिन और रात नहीं होते, सिर्फ मशीनों की बीप, कंट्रोल पैनल की नीली रोशनी और उस अनंत अंधकार का मौन जो खिड़की के पार पसरा था। “सम्भव-1” अब पृथ्वी से कई करोड़ किलोमीटर दूर एक निश्चित मार्ग पर, ZR-17b (जिसे अब ‘नवग्रह’ कहा जा रहा था) की ओर अग्रसर था। अधिकांश यात्री क्रायो-स्लीप में थे, पर हर महीने कुछ विशेष सदस्य जागते थे—मिशन की निगरानी, सिस्टम की जाँच, और मानव मन की स्थितियों का मूल्यांकन करने के लिए। इस शिफ्ट में डॉ. अदिति राव, कैप्टन राघव मेहरा, सायरा खान, अन्वी नायर, इशान कपूर, और एक दर्जन अन्य विशेषज्ञ सक्रिय थे। यद्यपि उनके शरीर कार्यरत थे, पर अंतरिक्ष का प्रभाव उनके मन पर गहराई से पड़ने लगा था। अंतरिक्ष की नीरवता में मानव का मन अपने सबसे अंतरंग भय और इच्छाओं से टकराता है। एक बार, अदिति ने गलती से पृथ्वी की एक पुरानी तस्वीर को सिस्टम स्क्रीन पर देख लिया—जलते हुए अमेज़न, सूखते गंगा डेल्टा, और धूल में घिरे ताजमहल। उसकी आंखें डबडबा गईं। वहीं दूसरी ओर, राघव हर सुबह जॉगिंग ट्रैक पर दौड़ लगाता, सख्ती से रोज़ का टाइमटेबल फॉलो करता—शायद वह उस मानसिक अस्थिरता से बचना चाहता था जो धीरे-धीरे क्रू को घेर रही थी। अन्वी को प्रतिदिन बढ़ते चिंता और नींद के विकार के मामले देखने पड़े। यहाँ तक कि कुछ लोग उठते ही यह भूल जाते कि वे कौन हैं, कहाँ हैं। इशान, जो सबसे युवा और उत्साही था, अब मशीनों से ज़्यादा बातें करता था इंसानों से। और सायरा, जिसने सब कुछ दर्ज करने की शपथ ली थी, अब खुद को ही कैमरे से छुपाने लगी थी। हर कोई धीरे-धीरे अपनी पहचान के किनारों से मिटने लगा था—और अनंत की इस यात्रा में यही सबसे बड़ा संकट था।
एक दिन मिशन में पहली बार गंभीर तकनीकी समस्या उत्पन्न हुई। ऑक्सीजन पुनर्चक्रण प्रणाली में एक बायो-फिल्टर फेल हो गया, जिससे CO₂ स्तर अचानक बढ़ने लगा। कैप्टन राघव ने फौरन लॉकडाउन प्रोटोकॉल लागू किया। क्रायो-टैंक बंद कर दिए गए, और सक्रिय क्रू को जीवन रक्षक मास्क पहनने पड़े। अदिति और इशान ने मिलकर फेल्ड यूनिट की डायग्नोस्टिक्स रिपोर्ट निकाली। समस्या का मूल कारण एक पुराने सेंसर का क्षरण था—लेकिन यह सेंसर “प्रारंभिक चेकलिस्ट” में पास हुआ था। इशान को खुद पर गुस्सा आया, उसकी आंखों में आत्मग्लानि थी, लेकिन अदिति ने शांत स्वर में कहा, “तुम्हारे जैसा ही कोई इसे ठीक भी कर सकता है।” छह घंटे के अथक परिश्रम के बाद प्रणाली फिर से स्थिर हुई, लेकिन इसने सभी को यह जता दिया कि यह यात्रा उतनी ‘सुनियोजित’ नहीं है जितनी वे मानते थे। इस घटना के बाद अन्वी ने समूह-सत्र शुरू किए, जहाँ हर व्यक्ति से उसकी सबसे बड़ी ‘भीतरी डर’ को साझा करने के लिए कहा गया। वहाँ किसी ने कहा, “मुझे डर है कि हम वहाँ पहुँच ही नहीं पाएंगे,” किसी ने कहा, “मुझे डर है कि पहुँचकर भी सब कुछ वैसा ही होगा जैसा हमने छोड़ा।” और राघव? उसने केवल एक वाक्य कहा—“मुझे डर है कि हम फिर हार जाएंगे।” अमृता, जो इन सत्रों में वर्चुअल रूप से जुड़ी थीं, उन्होंने कहा, “सभ्यता सिर्फ संरचना से नहीं बनती—यह विश्वास और विवेक से बनती है।” लेकिन सच्चाई यह थी कि यह पूरा मिशन अब धीरे-धीरे सिर्फ तकनीकी ही नहीं, बल्कि मानसिक सहनशीलता की अंतिम परीक्षा में बदलने लगा था।
सायरा अब अपने रिकॉर्डिंग्स को मिशन लॉग में नहीं, बल्कि एक निजी फोल्डर में सेव करने लगी थी—”मानव वृत्तांत”, उसने फोल्डर का नाम रखा था। उसमें उसने लिखा: “हम एक नई दुनिया में जा रहे हैं, लेकिन अपने भीतर पुरानी दुनिया को लेकर। क्या हम सचमुच नया जीवन शुरू कर सकते हैं, जब भीतर वही डर, वही लालच, वही पहचानें अभी तक जीवित हैं?” इन चार महीनों में कई रिश्ते उभरे—इशान और सायरा के बीच एक कोमल मित्रता, जो कभी-कभी साइलेंस में संवाद ढूंढ़ती थी। अन्वी ने राघव के भीतर छुपे भय को पहचान लिया, लेकिन उसे उजागर करने से पहले ही वह दीवार खड़ी कर देता। अदिति अपनी बेटी की याद में एक वर्चुअल गार्डन डिजाइन कर रही थी, जहाँ हर फूल उसकी बेटी के पसंदीदा रंगों से मेल खाता था। और अमृता, हर सप्ताह एक नया सामाजिक परिदृश्य तैयार करती, जिसे ‘नवग्रह संविधान’ के संभावित खंडों में जोड़ा जाता। इस दौरान अंतरिक्ष यान के पैनल पर एक क्षीण सी नीली लकीर दिखाई देने लगी थी—ZR-17b का पहला प्रकाश संकेत। अब यात्रा समाप्ति के करीब थी। लेकिन किसी के चेहरे पर उत्साह नहीं था—बस एक मौन, जो या तो भय का था, या आत्मनिरीक्षण का। और शायद यह मौन ही था जो पृथ्वी से दूर, अनंत की ओर, मानवता को पुनः परिभाषित करने के लिए ले जा रहा था।
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ZR-17b, जिसे अब मिशन डॉक्युमेंट्स में “नवग्रह” कहा जाता था, अपनी अनोखी छवि में पहली बार “सम्भव-1” की मुख्य स्क्रीन पर उभरा—गुलाबी नीले बादलों से ढका एक गोलाकार ग्रह, जिसका वायुमंडल ऊर्जा तरंगों की हल्की चमक बिखेरता था। चार महीनों की अंतरिक्ष यात्रा के बाद, क्रायो-स्लीप से धीरे-धीरे बाहर निकलते लोग जैसे पुनर्जन्म से जाग रहे थे। यान के भीतर एक गूंजती घोषणा हुई—“यात्रा का अंतिम चरण प्रारंभ हो चुका है। कृपया तैयार हो जाइए।” डॉ. अदिति राव अपनी टीम के साथ नवग्रह के वातावरण से मेल खाने वाले बायो-डोम्स के एक्टिवेशन प्रोटोकॉल की तैयारी कर रही थीं। इशान कपूर सौर पैनलों और ऊर्जा कन्वर्ज़न सिस्टम्स को रीबूट कर रहा था। अमृता सेन ने संविधान की पहली प्रति को पासवर्ड से लॉक किया और फील्ड बस्तियों के सामाजिक खाके की स्कीम को सर्वर पर अपलोड किया। राघव मेहरा, जो अंतिम लैंडिंग का कमांड संभाल रहा था, उसकी आंखें स्क्रीन पर जमी थीं, जैसे इस ग्रह पर जीवन का बोझ उसी के कंधों पर हो। जैसे ही “सम्भव-1” नवग्रह की सतह के ऊपरी वातावरण में दाखिल हुआ, यान के कंपार्टमेंट्स में कंपन हुआ। सब कुछ मानक के अनुसार था, पर हर आंख में एक अनकही आशंका तैर रही थी। नवग्रह ने पृथ्वी के आखिरी लोगों का स्वागत किया था, लेकिन किस रूप में—यह अभी अज्ञात था।
लैंडिंग स्थल को “नवजीवन क्षेत्र” नाम दिया गया था—यह एक समतल पठारी भाग था, जिसके चारों ओर नीले रंग के पेड़ों का एक रहस्यमयी जंगल फैला था। जैसे ही “सम्भव-1” ने सतह को छुआ, यान की सुरक्षा ढालें धीरे-धीरे खुलीं, और सबसे पहले अदिति, इशान, और एक बायो-साइंस टीम बाहर निकली। वातावरण में सांस लेना संभव था, पर वह पृथ्वी जैसी सहजता नहीं थी—यहाँ की हवा में एक विचित्र गंध थी, और नमी अत्यधिक थी। एक बार जब अदिति ने अपने उपकरणों से वायुमंडल, गुरुत्वाकर्षण और जैविक तत्वों का परीक्षण कर लिया, तो कैप्टन राघव ने हरी झंडी दी—“हम अब इस ग्रह के नागरिक हैं।” पहला टेंट, पहला सौर जनरेटर, और पहला जल पुनःसंवहन तंत्र स्थापित किया गया। 5000 में से हर समूह को क्रमवार बाहर लाया गया, और उन्हें सेक्टरों में बांटा गया—शिक्षा, विज्ञान, निर्माण, सुरक्षा, और संस्कृति। अमृता ने एक अस्थायी ‘शांति सभा’ गठित की, जहाँ प्रत्येक क्षेत्र से एक प्रतिनिधि चुना गया। अन्वी नायर ने “मानव बस्तियों के प्रारंभिक तनाव” पर कार्यशाला शुरू की, क्योंकि नए वातावरण और अज्ञात परिस्थितियों में सामूहिक मानसिकता बहुत जल्दी टूट सकती थी। सायरा ने पहले दिन की डॉक्युमेंट्री रिकॉर्ड की—उसमें बच्चों की आश्चर्य से फैली आँखें थीं, एक बूढ़ी औरत की नम आँखें, और नए मिट्टी को पहली बार छूते हुए हाथ। उसने अपने रिकॉर्ड में लिखा: “हमने पृथ्वी की राख छोड़ दी है, पर क्या उस राख की गंध हमसे अब भी चिपकी हुई है?”
पहले सप्ताह में निर्माण तेज़ी से हुआ। टेम्पररी शेल्टर्स को मॉड्यूलर होम्स में बदला गया, एक छोटा जलाशय खोजा गया, और पहले बीज बोए गए। अदिति की प्रयोगशाला में नवग्रह की मिट्टी और पृथ्वी की फसलों के मेल का पहला प्रयोग सफल रहा—यह एक आशा का प्रतीक था। लेकिन साथ ही, मतभेद की पहली चिनगारी भी उसी समय लगी। नवग्रह के पश्चिमी छोर पर कुछ युवा स्वयंसेवकों ने खुद को “नवस्फूर्ति” नामक एक स्वतंत्र समूह में संगठित कर लिया—उनका कहना था कि उन्हें किसी भी प्रकार के प्रशासन, संविधान या “धरती की व्यवस्थाओं” की आवश्यकता नहीं। वे नवग्रह को नए नियमों के साथ जीना चाहते थे, बिना इतिहास, बिना अनुशासन। अमृता ने इसे “प्राकृतिक प्रतिक्रिया” कहा, पर राघव ने इसे “सिस्टम विरोधी गतिविधि” माना और निगरानी टीम गठित की। इसी बीच इशान, जो तकनीक और रचनात्मकता में विश्वास करता था, वह इन नवस्फूर्तिवादियों की कुछ बातों से सहमत हुआ। अन्वी ने दोनों पक्षों के बीच संवाद की कोशिश की, लेकिन यह स्पष्ट हो गया कि नवग्रह भी मानव स्वभाव के पुराने द्वंदों से मुक्त नहीं। समाज के भीतर एक सवाल उभरने लगा था—क्या हम वाकई नया जीवन शुरू कर रहे हैं, या सिर्फ धरती की चादर बदलकर उसी कहानी को दोहरा रहे हैं? सायरा ने उस रात रिकॉर्ड किया: “पहला सूरज यहाँ उगा—गुलाबी आकाश में नीली रेखाओं के साथ। सुंदर, लेकिन अनजाना। और अनजाने में ही मानवता सबसे ज़्यादा डरती है।”
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तीन महीने बीत चुके थे। “नवजीवन क्षेत्र” अब एक स्थायी बस्ती का रूप ले चुका था—पारदर्शी सौर गुंबदों के भीतर झिलमिलाते खेत, जल पुनर्चक्रण इकाइयों से जुड़े शुद्ध जल केंद्र, और हवा में झूलते बायो-पॉड्स जो ऊर्जा और ऑक्सीजन का प्रवाह संतुलित रखते थे। लेकिन जैसे-जैसे बुनियादी ज़रूरतें पूरी होने लगीं, बचे हुए सवाल उठने लगे—पहचान, स्वतंत्रता, आस्था, और सत्ता के। ओम त्रिपाठी, जो अब तक छाया में थे, उन्होंने नवग्रह की पहली आध्यात्मिक सभा का आयोजन किया। कोई मंदिर या मस्जिद नहीं, बस एक वृत्त—खुले आकाश के नीचे, नीले पेड़ों की छाया में, जहाँ उन्होंने सभी से पूछा, “जब सब कुछ पीछे छूट चुका है, तो हम कौन हैं?” सभा में सन्नाटा था। कुछ लोगों ने सिर झुकाया, कुछ ने आँखें बंद कीं, और कुछ हँसे—जैसे कि यह प्रश्न ही हास्यास्पद हो। राघव ने उस सभा में हिस्सा नहीं लिया। उसका मानना था कि “आस्था” वही रास्ता है जिससे धरती टूट गई थी। लेकिन अमृता वहाँ थीं—उन्होंने सभा के बाद ओम से कहा, “शायद लोगों को यह याद दिलाने की ज़रूरत है कि वे केवल उपभोक्ता या श्रमिक नहीं, भावनात्मक जीव हैं।” इधर सायरा खान ने इस सभा पर एक रिपोर्ट तैयार की—“नवग्रह की पहली प्रार्थना”—जिसमें उन्होंने लिखा: “हमारे पास शब्द नहीं हैं, लेकिन मौन में जो सवाल उठे, वे ही असली शुरुआत हैं।” उसी रात, युवा इंजीनियरों और कृषकों का एक समूह ‘नवस्फूर्ति’ क्षेत्र में अलग बस गया। वे खुद अपने नियम बना रहे थे—बिना संविधान, बिना निगरानी, बिना अनुमति।
यह अलगाव धीरे-धीरे “संप्रभुता बनाम नियंत्रण” की बहस में बदलने लगा। नवजीवन क्षेत्र में कैप्टन राघव ने “नवग्रह संरक्षा दल” की स्थापना की—जिसका उद्देश्य था क्षेत्रीय अखंडता बनाए रखना, लेकिन व्यवहार में यह एक प्रकार की निगरानी सेना बनती जा रही थी। अमृता ने इसका विरोध किया, लेकिन राघव का तर्क था: “यह सिर्फ एक ग्रह नहीं, एक मिशन है। अनुशासन के बिना, हम इतिहास दोहराएंगे।” इधर, सायरा ने नवस्फूर्ति क्षेत्र में जाकर वहाँ की जीवनशैली को डॉक्युमेंट करना शुरू किया—वहाँ लोग खुले में रहते थे, स्थानीय वनस्पतियों और जल स्रोतों का सतत उपयोग करते थे, और निर्णय सामूहिक बैठकों में होते थे। इशान, जो राघव के तकनीकी दल में था, अब अक्सर वहाँ जाने लगा—उसकी जिज्ञासा और नवाचार की लालसा को वहाँ की आज़ादी भा गई थी। जब यह बात सामने आई कि इशान ने बगैर अनुमति के ‘नवजीवन ऊर्जा प्रणाली’ के कुछ डिवाइस नवस्फूर्ति को दे दिए हैं, राघव भड़क उठा। उसने इशान को चेतावनी दी और नवस्फूर्ति क्षेत्र में आवश्यक संसाधनों की आपूर्ति रोक दी। अन्वी, जो दोनों क्षेत्रों में काउंसलिंग कर रही थी, ने कहा: “यह सिर्फ संसाधन नहीं, भरोसे की डोर है जिसे आप काट रहे हैं।” लेकिन राघव अब मिशन के प्रति इतना कटिबद्ध था कि मानवीय जटिलताओं को वह ‘कमज़ोरी’ समझने लगा था। इसके विपरीत, ओम त्रिपाठी ने नवस्फूर्ति में जाकर एक साझा ध्यान सत्र करवाया। उन्होंने कहा, “हमने पृथ्वी को इसलिए खोया क्योंकि हमने एक-दूसरे की बात सुनना बंद कर दिया था। यह ग्रह हमें फिर सुनने का अवसर दे रहा है—क्या हम तैयार हैं?”
अब स्पष्ट हो चला था कि नवग्रह पर दो दिशाएँ बन चुकी हैं—एक, जहाँ ‘प्रशासन’ है, और दूसरी, जहाँ ‘प्रयोग’। अमृता इन दोनों को एक साथ जोड़ने के लिए “नवग्रह संवाद सभा” प्रस्तावित करती हैं—एक ऐसा मंच जहाँ हर क्षेत्र, हर वर्ग, हर मत का प्रतिनिधित्व हो। लेकिन प्रस्ताव पर मतभेद शुरू हो जाते हैं। राघव को डर है कि यह “बातचीत का नाटक” नियंत्रण को कमजोर करेगा। वहीं, नवस्फूर्ति के कुछ युवा इसे “शहरीकरण की चाल” कहते हैं। इशान सैंडविच की तरह दोनों के बीच फंसा है—वह नवाचार चाहता है, पर उसके मूल्य राघव के प्रशिक्षण से जुड़े हैं। सायरा इन सभी घटनाओं को रिकॉर्ड कर रही है—लेकिन उसे अब लगने लगा है कि वह सिर्फ एक पत्रकार नहीं, एक गवाह है एक ऐसे ऐतिहासिक मोड़ की जहाँ या तो मानवता खुद को फिर से गढ़ेगी, या एक बार फिर—विघटन, बँटवारा और पतन के रास्ते जाएगी। अंत में, अन्वी सबको एक साथ एक ‘खुले संवाद वृत्त’ में बैठने के लिए मना लेती है—जहाँ कोई औपचारिक एजेंडा नहीं, कोई मंच नहीं। सिर्फ लोग, और उनके भीतर के प्रश्न। इस वृत्त में एक बच्चा पूछता है, “क्या हम यहाँ पैदा हुए थे?” और ओम जवाब देते हैं—“नहीं, लेकिन शायद यहाँ हम इंसान बनेंगे।” उस रात, सायरा ने कैमरा बंद किया और पहली बार चुपचाप बैठ गई—मानवता के भीतर उठते द्वंद की गूंज अब शब्दों से परे थी।
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“नवजीवन क्षेत्र” में जैसे-जैसे निर्माण पूर्णता की ओर बढ़ा, वैचारिक टकराव अब दरारों से निकलकर स्पष्ट रेखाओं में बदलने लगा था। राघव मेहरा का ‘संरक्षा मॉडल’ अब कठोर नियंत्रण और निगरानी की एक जटिल संरचना में तब्दील हो गया था—हर डोम में प्रवेश के लिए बायो-स्कैन, संवादों की रिकॉर्डिंग, और मीडिया रिपोर्टों का सेंसर परीक्षण। उसका तर्क स्पष्ट था: “हम कोई खुला प्रयोगशाला नहीं, एक मिशन हैं—इस ग्रह पर जीवन का बीज बो रहे हैं, और बीज तभी फलता है जब वह अनुशासन के घेरे में हो।” लेकिन इसी अनुशासन की जकड़ में कुछ आवाज़ें फूटने लगी थीं। सायरा खान, जो अब तक मिशन की स्वतंत्र पत्रकार थी, को एक रिपोर्ट को प्रकाशित करने से रोका गया—वह रिपोर्ट “नवस्फूर्ति बस्ती में आत्मनिर्भर जीवन” पर थी, जो राघव के नियंत्रण मॉडल पर सीधा सवाल उठाती थी। उसने इस सेंसरशिप का विरोध किया, लेकिन उसे ‘मनोवैज्ञानिक तनाव’ के आधार पर अस्थायी रूप से रिपोर्टिंग से हटाने का आदेश मिला। इस निर्णय के विरोध में अन्वी नायर ने मिशन प्रशासन को पत्र लिखा, जिसमें लिखा था, “जो व्यवस्था सवालों से डरती है, वह टूटने के लिए अभिशप्त होती है।” इस बीच इशान कपूर, जो राघव की निगरानी टीम में तकनीकी सलाहकार था, धीरे-धीरे नवस्फूर्ति बस्ती में अधिक समय बिताने लगा। वह वहाँ की ऊर्जा प्रणाली को सुधार रहा था, स्थानीय जल स्त्रोत से पानी शुद्ध करने के लिए एक नए फिल्टर सिस्टम का प्रयोग कर रहा था। लेकिन जब उसे बिना अनुमति वहां जाने पर चेतावनी दी गई, तो उसने पहली बार मिशन के आदेशों को ‘नहीं’ कहा—एक छोटा ‘नहीं’, लेकिन इतना बड़ा कि पूरा नवजीवन क्षेत्र थम सा गया।
अगले कुछ सप्ताहों में नवस्फूर्ति और नवजीवन के बीच का मतभेद खुला टकराव बन गया। नवस्फूर्ति के लोगों ने अब ‘नवग्रह का घोषणापत्र’ जारी किया—जिसमें उनका मानना था कि इस ग्रह पर हर मनुष्य को अपनी इच्छा से रहने, सोचने और समाज रचने की आज़ादी होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि संविधान, जो पृथ्वी की सामाजिक संरचना पर आधारित था, नवग्रह के लिए अनुपयुक्त है। यह घोषणापत्र अमृता सेन के लिए एक गहरी चुनौती बन गया। उन्होंने इसे ‘प्राकृतिक विद्रोह’ माना और संवाद के लिए मंच खोला। लेकिन राघव ने इस घोषणापत्र को ‘असहमति की आड़ में अराजकता’ करार देते हुए नवस्फूर्ति क्षेत्र की सप्लाई काट दी—पानी, औषधियाँ, और ऊर्जा। यह पहला मौका था जब नवग्रह पर “प्रतिबंध” शब्द अस्तित्व में आया। प्रतिक्रिया में, नवस्फूर्ति ने अपने बायोफिल्टर्स बनाए, जंगल से औषधियाँ खोजीं और एक “स्वशासन समिति” बना डाली, जिसमें कोई प्रमुख नहीं था—बस घूर्णन आधारित नेतृत्व। जब यह खबर सायरा के पास पहुँची, तो उसने अपने सेंसरशिप के विरुद्ध एक गुप्त रिपोर्ट तैयार की और एक पुराने सैटेलाइट चैनल के माध्यम से ‘धरती संपर्क शून्य’ नामक फोल्डर में अपलोड कर दी। रिपोर्ट का नाम था—“नवग्रह का पहला विद्रोह”। और जैसे ही यह रिपोर्ट कुछ आंतरिक नेटवर्क में लीक हुई, नवजीवन क्षेत्र में हड़कंप मच गया। अब राघव ने “संरक्षा दल” को नवस्फूर्ति की सीमा के आसपास गश्त के आदेश दिए। यह अब वैचारिक टकराव नहीं रहा—यह अब सत्ता बनाम स्वतंत्रता की लड़ाई थी।
एक रात, जब नवग्रह का नीला आकाश पूर्ण अंधकार में डूबा हुआ था, पहली बार एक झगड़े की सूचना मिली—नवजीवन के एक युवा स्वयंसेवक और नवस्फूर्ति के जल शोधक ऑपरेटर के बीच तीखी कहासुनी हुई, जो धक्का-मुक्की में बदल गई। दोनों घायल हुए, और उनकी स्थिति गंभीर थी। इस घटना ने आग में घी का काम किया। राघव ने ‘आपातकाल प्रोटोकॉल-3’ लागू कर दिया, जिसके तहत नवजीवन क्षेत्र में सभी बाहरी आवाजाही पर रोक लगा दी गई। लेकिन इसी के विरोध में नवस्फूर्ति ने ‘शांति मार्च’ आयोजित किया—बिना हथियार, बिना भाषण, सिर्फ हाथों में एक तख्ती: “हम तुम्हारे जैसे हैं, दुश्मन नहीं।” यह दृश्य अदिति राव ने अपने लैब से देखा—वह कई दिनों से चुप थीं, लेकिन अब उन्होंने मिशन निदेशक समिति को एक चिट्ठी भेजी, जिसमें उन्होंने लिखा: “हमने इस ग्रह पर जीवन के लिए बीज लाए थे, पर अगर वे बीज नियंत्रण, डर और बँटवारे की मिट्टी में बोए जाएंगे, तो क्या वे कभी फूल बन पाएंगे?” उसी रात, अन्वी, अदिति और अमृता ने एक त्रिपक्षीय प्रस्ताव रखा—नवग्रह सभा, एक खुला मंच, जहाँ दोनो बस्तियाँ, प्रतिनिधि, और नागरिक एक वृत्त में बैठें, अपनी बात रखें, और फैसला खुद करें—न आदेश, न डंडा, न प्रतिबंध। एक नई कोशिश—जो शायद अंतिम अवसर था इस ग्रह पर इंसान को एकजुट रखने का।
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नवग्रह सभा की योजना ने एक नया उत्साह तो जगाया, पर इसके साथ ही अविश्वास और संशय की हवा भी फैलने लगी थी। जहाँ नवस्फूर्ति बस्ती के लोग इसे ‘आख़िरी संवाद की आशा’ मान रहे थे, वहीं नवजीवन के भीतर कुछ वर्ग इसे एक राजनीतिक चाल समझने लगे। कैप्टन राघव मेहरा सभा के विचार से सहमत नहीं था, लेकिन अमृता सेन, डॉ. अदिति राव और अन्वी नायर के साझा प्रयासों के चलते अंततः राघव ने सशर्त सहमति दी—संवाद तो होगा, लेकिन संरक्षण बल के पहरे में। इस बीच, सायरा खान, जो अब मिशन की निगरानी से बाहर थीं, ने एक निर्णय लिया जो नवग्रह के इतिहास को बदल सकता था। उसके पास अब तक के सभी मिशन लॉग्स और डेटा थे—और इनमें एक ऐसा दस्तावेज़ था, जो अब तक किसी की नज़र से छिपा हुआ था। दस्तावेज़ में ZR-17b के शुरुआती वैज्ञानिक आकलन थे—वहाँ स्पष्ट लिखा था कि यह ग्रह दीर्घकालीन जीवन के लिए स्थायी नहीं है। इसके मौसम-चक्र अप्रत्याशित हैं, और ग्रह की चुंबकीय परतों में गड़बड़ी संभावित है। यह डेटा कैप्टन राघव और मिशन के शुरुआती संचालन दल के पास था, लेकिन जानबूझकर उसे मुख्य वैज्ञानिक समिति से छुपाया गया। सायरा को यह जानकर भीतर तक झटका लगा—क्या वे सभी जानबूझकर इस ग्रह पर फेंक दिए गए थे? क्या यह मिशन नहीं, एक परित्याग था?
सायरा ने यह दस्तावेज़ अन्वी, अदिति और अमृता के साथ साझा किया। एक छोटी बैठक हुई—चारों महिलाएं, एक ग्रह के भविष्य को लेकर, चार कोनों से जुड़ीं थीं। अन्वी ने फौरन कहा, “हमें इसे सार्वजनिक करना चाहिए—लोगों को सच जानने का हक़ है।” लेकिन अमृता हिचकी, “अगर हमने यह किया, तो पूरी सामाजिक संरचना बिखर सकती है। डर, अविश्वास और विद्रोह की लहर उठेगी।” अदिति मौन रहीं—उनका चेहरा पत्थर जैसा था, लेकिन भीतर ज्वालामुखी सा कुछ उफान ले रहा था। अंततः निर्णय हुआ: इस दस्तावेज़ को नवग्रह सभा के ठीक पहले सायरा द्वारा प्रस्तुत किया जाएगा, ताकि हर नागरिक के सामने मिशन का सच रखा जा सके—और वे खुद तय करें कि आगे कैसा भविष्य चाहिए। इस खबर के लीक होते ही मिशन कंट्रोल में उथल-पुथल मच गई। राघव ने सायरा को बुलाकर सीधा प्रश्न किया—”क्या तुम जानती हो इसका असर क्या होगा?” सायरा ने जवाब दिया: “सच कहने से अगर व्यवस्था टूटती है, तो वह व्यवस्था कभी टिकने लायक थी ही नहीं।” यह टकराव अब निजी हो चुका था—आदर्श बनाम रणनीति, आत्मा बनाम सत्ता। लेकिन इससे पहले कि कोई और निर्णय हो, सभा का दिन आ पहुंचा।
“नवग्रह संवाद सभा” नवजीवन और नवस्फूर्ति के मध्य एक विशाल वृत्ताकार खुले मैदान में आयोजित की गई। चारों ओर चमकते बायो-लैंप, नीले पेड़ों की छाया, और बीच में एक मुक्त मंच। कोई मंच नहीं, कोई पोडियम नहीं—बस चारों दिशाओं से बैठे लोग। सबसे पहले ओम त्रिपाठी ने मौन साधना की घोषणा की—तीन मिनट का मौन, जो शब्दों से अधिक गूंजता रहा। फिर अमृता ने सभा का उद्देश्य समझाया—“यह तय करने का समय है कि हम कौन हैं, और कहाँ जा रहे हैं।” इसके बाद, सायरा खान उठीं। उनके हाथ में वह टैबलेट थी जिसमें मिशन लॉग्स थे। उन्होंने सीधे, बिना लागलपेट के वह दस्तावेज़ पढ़ा—ZR-17b के अस्थायित्व के प्रमाण, जोखिम की चेतावनियाँ, और संचालन दल की चुप्पी। पूरे मैदान में सन्नाटा छा गया। कुछ लोगों ने एक-दूसरे की ओर देखा, कुछ ने सिर झुका लिया, और कुछ के चेहरों पर भय था। लेकिन सबसे अधिक हिल चुके थे वे लोग जिन्होंने अपना सब कुछ इस ग्रह में झोंक दिया था—नवस्फूर्ति के कारीगर, नवजीवन के कृषक, और वह अगली पीढ़ी, जो पहली बार इस ग्रह की मिट्टी में खेली थी। राघव कुछ क्षणों तक मौन रहे, फिर उठे और कहा, “हाँ, मैं जानता था। मैंने यह जानबूझकर छुपाया—क्योंकि मेरे पास कोई और विकल्प नहीं था। पृथ्वी पर कोई और जगह नहीं बची थी। और मैं तुम्हें उम्मीद देना चाहता था, ना कि एक और डर।” यह स्वीकारोक्ति ईमानदारी से भरी थी, लेकिन उसके स्वर में थकावट थी—जैसे वह अब लड़ने की ताकत खो चुका हो। सभा के अंतिम हिस्से में, एक वृद्ध किसान ने प्रश्न किया—”तो क्या हम यहाँ रह सकते हैं या नहीं?” और अदिति ने धीरे से जवाब दिया, “शायद… लेकिन अब हमें रहना नहीं, जुड़कर जीना सीखना होगा।” यही थी वह कीमत, जो सच्चाई ने ली—सब कुछ बदल देने की।
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सायरा की सार्वजनिक घोषणा और राघव की स्वीकारोक्ति के बाद नवग्रह पर जैसे तूफान से पहले की नीरवता छा गई थी। नवजीवन और नवस्फूर्ति—दोनों बस्तियों में लोग अपने-अपने तरीके से इस सच्चाई को आत्मसात कर रहे थे। कुछ ने इसे धोखा कहा, कुछ ने मान लिया कि राघव का निर्णय परिस्थिति की मजबूरी था, और कुछ… बस खामोश हो गए। लेकिन यह खामोशी अधिक देर तक नहीं टिक सकी। दो दिन बाद, नवजीवन बस्ती के भोजन वितरण केंद्र पर एक झड़प हुई। वहां कुछ नवस्फूर्ति के युवा आए थे—आपातकालीन खाद्य संग्रहण को साझा करने की मांग लेकर। सेंटर प्रभारी ने मना किया, क्योंकि आदेश था कि वितरण केवल ‘अधिकृत’ क्षेत्रों में हो। वाद-विवाद, फिर आरोप, फिर धक्का-मुक्की। जब संरक्षा दल के दो जवान वहां पहुँचे, उनमें से एक ने झुंझलाकर चेतावनी की गोली हवा में चलाई—लेकिन हवा में नहीं गई, किसी की बाँह चीर गई। उस घायल युवक का नाम था रेयांश सरीन—एक नवस्फूर्ति इंजीनियर, जो इशान कपूर के साथ ऊर्जा बूस्टर सिस्टम पर काम कर रहा था। जैसे ही यह खबर नवस्फूर्ति पहुँची, वहाँ आक्रोश फूट पड़ा। यह पहली बार था जब किसी को खून बहाकर चुप कराने की कोशिश की गई थी। अब तक जो असहमति शब्दों में थी, वह अब धूल और रक्त में उतर चुकी थी। नवग्रह, जो एक नई सभ्यता की आशा से जन्मा था, अब पृथ्वी की सबसे पुरानी विरासत—हिंसा—से लथपथ हो रहा था।
इस घटना के बाद, इशान ने साफ शब्दों में मिशन प्रशासन से इस्तीफा दे दिया। उसने एक खुला पत्र लिखा—“अगर नवग्रह भी हमें हिंसा में घसीट लाता है, तो हम कहीं भी नहीं बदल सकते। मैंने अपने सपने यहां बोए थे, लेकिन अब लगता है, ज़मीन वही है—केवल ग्रह बदला है।” अन्वी नायर ने मेडिकल सेंटर में रेयांश की मरहम-पट्टी की, पर उसके मन के घाव उससे भी गहरे थे। राघव ने घटना की जांच के आदेश दिए, लेकिन इस बार नवस्फूर्ति ने उसका आदेश मानने से इंकार कर दिया। अमृता सेन ने दोनों पक्षों के बीच मध्यस्थता की कोशिश की, पर जब तक शब्दों की नींव भरोसे पर नहीं हो, संवाद रेत पर दीवार जैसा होता है। इसी बीच, नवजीवन क्षेत्र के एक सुरक्षाकर्मी कृष्ण वर्धन ने गुप्त रूप से सायरा को संपर्क किया। उसने कहा, “मैंने उस दिन की रिकॉर्डिंग देखी है… गोली आदेश के बिना चली थी, पर बाद में रिपोर्ट में ‘सेल्फ-डिफेंस’ लिखा गया।” सायरा ने वह फुटेज निकाला, और फिर से एक रिपोर्ट तैयार की—”नवग्रह की पहली गोली”—जिसे उसने पुराने सैटेलाइट से पृथ्वी के ‘मृत नेटवर्क’ में अपलोड कर दिया, एक उम्मीद में कि कोई कभी देखे, समझे कि इंसान कैसे हर जगह एक जैसे घाव करता है। लेकिन अब सवाल यह नहीं था कि सच क्या है, बल्कि यह कि नवग्रह का भविष्य कैसा होगा—एक और पृथ्वी, या कोई नई राह?
अगली सुबह, नवग्रह के आकाश में हल्की धूल उठी—एक स्थानीय तूफ़ान का संकेत, लेकिन बस्तियों में जो उबाल था, वह उससे भी अधिक घातक था। नवस्फूर्ति ने अब स्पष्ट कर दिया कि वे “नवजीवन संरक्षा दल” को अपनी सीमा में नहीं घुसने देंगे। राघव ने जवाब में सेक्टर 4 और 5 की बिजली काट दी, जो नवस्फूर्ति को जोड़ती थी। इस बार अदिति चुप नहीं रहीं—उन्होंने कैप्टन के कक्ष में जाकर कहा, “आप जिस मिशन को बचाने की कोशिश कर रहे हैं, वह अब केवल इमारतों और टेंट्स का ढांचा है—उसमें अब जीवन नहीं रहा।” लेकिन राघव, जो कभी भारत का सबसे सजग और संयमी अफसर था, अब खोखले आदर्शों के खंडहर पर खड़ा दिख रहा था। उसी रात, एक और टकराव हुआ—इस बार हथियारों से नहीं, बल्कि शब्दों से। नवग्रह सभा का एक आपातकालीन अधिवेशन हुआ—जहाँ नवस्फूर्ति, नवजीवन और स्वतंत्र सदस्यों ने पहली बार एक प्रस्ताव रखा—कैप्टन राघव मेहरा को मिशन प्रमुख पद से हटाया जाए और एक सामूहिक नेतृत्व प्रणाली अपनाई जाए। प्रस्ताव पर मत विभाजन हुआ, लेकिन बहुमत नवस्फूर्ति और स्वतंत्र नागरिकों के पक्ष में था। राघव चुपचाप खड़ा रहा, उसकी आंखों में कोई आंसू नहीं था, पर एक भारी चुप्पी थी—जिसे सायरा ने अपने नोट्स में लिखा: “शायद यह किसी सेना प्रमुख की हार नहीं थी, बल्कि एक युग की विदाई थी।” और इसी के साथ, नवग्रह ने एक और जन्म लिया—जहाँ रक्त की कीमत पर, पर शायद पहली बार, इंसान ने सत्ता से सवाल पूछा था।
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राघव मेहरा के पदच्युत होने के बाद नवग्रह पर एक असहज शांति छा गई थी—जैसे किसी युद्ध के बाद की सुबह, जब धूप पहले से ज़्यादा चुभती है और हर आवाज़ भीतर गूंजती है। नवजीवन और नवस्फूर्ति—दोनों बस्तियाँ अब एक साझा मंच की तलाश में थीं, लेकिन पुरानी दरारें इतनी जल्दी नहीं मिटतीं। सामूहिक नेतृत्व की व्यवस्था लागू कर दी गई—छह सदस्यों की परिषद, जिसमें विज्ञान, कृषि, स्वास्थ्य, संचार, समाज और सुरक्षा—हर क्षेत्र का प्रतिनिधित्व था। परिषद के पहले निर्णयों में सबसे महत्त्वपूर्ण था—’पुनर्संरचना’, एक ऐसा कार्यक्रम जिसमें नवग्रह के प्रत्येक व्यक्ति को अपनी इच्छा से किसी भी बस्ती में रहने, काम करने और निर्णयों में भाग लेने का अधिकार था। अब कोई “नवजीवनवासी” या “नवस्फूर्तिवादी” नहीं—सिर्फ “नवग्रह नागरिक”। यह परिवर्तन धीरे-धीरे आया, लेकिन इसकी सबसे सुंदर अभिव्यक्ति एक छोटे-से खेत में देखने को मिली—जहाँ एक नवस्फूर्ति का किशोर, एक पूर्व संरक्षा अधिकारी और एक जैवविज्ञानी साथ मिलकर पहला स्थानीय बीज बो रहे थे। यह बीज न पृथ्वी से लाया गया था, न ही मिशन लैब में उत्पन्न हुआ था—यह नवग्रह की मिट्टी, हवा और जल के साथ प्रयोग से उगा एक नई प्रजाति का प्रतीक था। और सायरा ने इसे कैमरे में कैद करते हुए लिखा: “अगर कोई एक बीज पूरी सभ्यता को जोड़ सकता है, तो शायद हमें शुरुआत वहीं से करनी थी।”
इस पुनर्निर्माण की प्रक्रिया में, कुछ और नई पहलें हुईं—’शब्दवृत्त’, एक सांस्कृतिक मंडल बना, जहाँ हर सप्ताह लोग कविता, गीत, नाटक या मौन के ज़रिये अपनी बात रखते। अदिति राव ने ‘शिक्षा का बीज’ नामक योजना शुरू की, जिसमें बच्चों को न सिर्फ विज्ञान और गणित, बल्कि भावनात्मक समझ, ग्रह की प्रकृति और सामाजिक जिम्मेदारी भी सिखाई जाती थी। अमृता सेन ने नवग्रह संविधान का नया प्रारूप बनाया—अब यह कोई दस्तावेज़ नहीं था, बल्कि लोगों का जीवित संवाद। ओम त्रिपाठी, जिन्होंने कभी चुपचाप ध्यान सत्र शुरू किए थे, अब ‘संवेदना वृत्त’ का संचालन करते—एक ऐसा मंच जहाँ कोई भी, किसी भी समय अपने भय, आशा या अपराधबोध को साझा कर सकता था। इशान ने ऊर्जा-स्रोतों के स्थानीय समाधान खोज लिए थे, और अब वह नवग्रह के हर बस्ती को आत्मनिर्भर बनाने के अभियान में जुटा था। राघव—अब एक साधारण नागरिक, सबसे पीछे बैठे अपने ग्रीनहाउस में पौधों के बीच समय बिताता था। एक दिन सायरा वहाँ गई, कैमरा लेकर नहीं, बस एक दोस्त की तरह। राघव ने बिना देखे कहा, “शायद नेतृत्व मेरा नहीं था… लेकिन मैंने जो सपना देखा था, वह तुम सबने साकार किया।” और फिर एक लंबा मौन, जिसमें अतीत, पछतावा और क्षमा सब कुछ समा गया।
अंततः, नवग्रह पर पहली बार एक सामूहिक उत्सव मनाया गया—‘जन्मोत्सव’, जब स्थानीय बीज से उपजी पहली फसल काटी गई। हर बस्ती से लोग आए, बच्चों ने खेल प्रस्तुत किया, युवाओं ने ग्रह के संगीत में नया स्वर जोड़ा, और वृद्धों ने पहली बार खुलकर हँसी साझा की। यह कोई पारंपरिक त्यौहार नहीं था, न कोई धार्मिक अनुष्ठान—बस एक स्मरण, कि वे कहाँ से आए थे, और अब कहाँ खड़े हैं। उसी दिन, सायरा ने अपने अंतिम वृत्तांत की रिकॉर्डिंग की—“यह कहानी किसी एक देश, जाति या मिशन की नहीं, यह उस बीज की है जो मानवता के सबसे गहरे अंधकार में बोया गया था। उस बीज ने हमें यह नहीं सिखाया कि हम कौन हैं, बल्कि यह कि हम क्या बन सकते हैं, अगर हम डर के बजाय विश्वास बोएं।” और जब उस रात पूरा नवग्रह एक शांत नींद में डूबा, तब भी आकाश में एक छोटी-सी नीली लकीर चमक रही थी—कहीं दूर, कोई और ग्रह, कोई और खोज… लेकिन अब इंसान तैयार था। सच में तैयार।
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समाप्त




