प्रभाष गुप्ता
दिल्ली का शहर हमेशा से ही अपनी चमक, भीड़ और बेइंतहा रफ़्तार के लिए जाना जाता है। सुबह होते ही यहाँ की सड़कों पर गाड़ियों का शोर, हॉर्न की गूंज और जल्दी में भागते लोगों की भीड़ हर तरफ दिखाई देती है। आरव भी इस दौड़ में शामिल एक साधारण इंसान था, जिसके जीवन का अधिकांश हिस्सा दफ़्तर और घर के बीच फँसकर रह गया था। सुबह अलार्म की आवाज़ के साथ उसकी आँख खुलती, और बिना सोचे-समझे वह दिन की शुरुआत करता। ऑफिस पहुँचने के लिए उसे मेट्रो या कैब में लंबा सफ़र तय करना पड़ता, जहाँ हर किसी के चेहरे पर एक ही हड़बड़ी झलकती—जैसे हर इंसान किसी अदृश्य प्रतियोगिता में भाग ले रहा हो। खिड़की से झांकते हुए वह कई बार सोचता कि क्या जीवन सिर्फ़ इसी मशीन जैसी दिनचर्या का नाम है—नींद, काम, ट्रैफ़िक और फिर वही थकान?
दफ़्तर का माहौल भी तनाव से भरा रहता। हर प्रोजेक्ट की समय-सीमा, हर बैठक की तैयारियाँ, बॉस की अपेक्षाएँ और सहकर्मियों की राजनीति—सबने मिलकर उसकी ऊर्जा को चूस लिया था। आरव एक मेहनती इंसान था, पर काम की अधिकता और तनाव ने उसके भीतर का संतुलन बिगाड़ दिया। दिनभर कंप्यूटर स्क्रीन पर टकटकी लगाए काम करना, फाइलों और मेल्स में उलझना, और देर रात घर लौटकर थका-हारा सो जाना उसकी आदत बन चुकी थी। धीरे-धीरे उसने महसूस किया कि वह सिर्फ़ जीने के लिए जी रहा है, उसमें कोई ताजगी, कोई उत्साह नहीं बचा। उसका मन अक्सर बाहर की दुनिया देखने को तड़पता, पर छुट्टियाँ लेने का ख्याल भी उसे बोझिल लगता, जैसे ज़िम्मेदारियों की जंजीरें उसके पैरों से बंधी हों।
आरव का घर शहर के एक व्यस्त इलाके में था, जहाँ हर वक्त शोरगुल और हलचल बनी रहती। खिड़की खोलते ही उसे हॉर्न की आवाज़ें और धुएँ की गंध मिलती। कभी-कभी वह सोचता कि इस सब में उसका अपना अस्तित्व कहाँ है। कमरे की चार दीवारें उसे और भी घेर लेतीं, जैसे कोई अदृश्य कैदखाना हो। किताबें और गिटार, जो कभी उसके शौक़ थे, अब कोनों में धूल खा रहे थे। उसे एहसास हुआ कि वह अपने सपनों और रुचियों से बहुत दूर चला गया है। दोस्तों से मिलना-जुलना भी कम हो गया था क्योंकि सब उसी की तरह व्यस्त और थके हुए थे। ऐसे में, अकेलापन और भी गहरा जाता। उसे लगता जैसे शहर ने उसकी आत्मा को दबा दिया है और वह बस एक चलती-फिरती परछाईं बनकर रह गया है।
इसी उलझन और बेचैनी के बीच एक दिन, जब वह देर रात ऑफिस से घर लौट रहा था, अचानक उसके मन में एक तीव्र विचार आया—क्यों न इस मशीन जैसी जिंदगी से थोड़ा विराम लिया जाए? क्यों न कहीं दूर चला जाए, जहाँ शांति हो, प्रकृति हो और एक पल के लिए ही सही, पर सच्ची साँस ली जा सके? उसी क्षण उसने ठान लिया कि अब उसे ब्रेक लेना ही होगा। अगले कुछ दिनों में उसने काम से छुट्टी लेने की योजना बनाई और गूगल पर जगहें खोजनी शुरू कीं। तभी उसकी नज़र हिमाचल प्रदेश की वादियों पर पड़ी—बर्फ़ से ढकी चोटियाँ, हरे-भरे जंगल और पहाड़ों की गोद में बसा मनाली। तस्वीरें देखते ही उसके भीतर एक अजीब-सी उत्तेजना भर गई। लंबे समय बाद उसने खुद को मुस्कुराते हुए पाया। दिल्ली की भागदौड़ भरी ज़िंदगी से थककर आरव ने तय कर लिया कि अब वह पहाड़ों की ओर निकल पड़ेगा, जहाँ उसे शायद खोई हुई शांति और खुद से मिलने का अवसर मिलेगा।
***
रात गहराने लगी थी, जब आरव अपने छोटे-से बैग के साथ बस अड्डे पहुँचा। दिल्ली का भीड़भाड़ वाला बस टर्मिनल अपने शोरगुल और हलचल के बावजूद उसे आज अलग-सा लग रहा था, मानो यह जगह किसी नए अध्याय की शुरुआत का द्वार हो। टिकट चेक कराते हुए और बस में बैठते समय उसे एक अजीब-सा उत्साह और हल्की-सी घबराहट महसूस हो रही थी। सालों से वह अपने लिए इस तरह का समय नहीं निकाल पाया था, और अब अचानक एक लंबे सफ़र पर निकलना उसे किसी सपने जैसा प्रतीत हो रहा था। सीट पर बैठकर उसने खिड़की के बाहर देखा—लाल-पीली रोशनी से भरी सड़कें, भागती-सी गाड़ियाँ, और तेज़ी से चल रहे लोग, सब जैसे धीरे-धीरे पीछे छूट रहे थे। बस जैसे ही आगे बढ़ी, उसे लगा कि वह न केवल शहर से दूर जा रहा है, बल्कि अपनी थकी-हारी आत्मा को भी पीछे छोड़ आया है। पहली बार लंबे समय बाद उसने महसूस किया कि वह आज़ाद है, किसी बंधन में नहीं।
जैसे-जैसे बस शहर से निकलकर हाईवे पर आगे बढ़ी, रात की नीरवता ने सफ़र को एक अलग ही रंग दे दिया। खिड़की से बाहर झाँकते हुए आरव ने देखा—चारों ओर फैला अँधेरा, बीच-बीच में चमकती स्ट्रीटलाइट्स और दूर कहीं खेतों के बीच टिमटिमाती रोशनी, सब एक रहस्यमयी दृश्य बना रहे थे। सड़क किनारे ढाबों पर जलते बल्ब और चूल्हे की लौ उसे किसी पुराने किस्से की याद दिला रहे थे। बस के भीतर हल्की-सी गुनगुनाहट थी—कहीं कोई धीमी आवाज़ में बात कर रहा था, तो कोई सीट पर सिर टिकाकर सो चुका था। आरव ने अपनी जैकेट के कॉलर को ठीक किया और बैग से पानी निकालकर एक घूँट लिया। उस घड़ी उसे ऐसा लगा जैसे यह सफ़र न केवल उसे पहाड़ों तक ले जा रहा है, बल्कि उसके भीतर दबे सवालों और बेचैनियों का जवाब भी ढूँढने निकला है। हर गुजरते किलोमीटर के साथ उसकी सांसें हल्की होती जा रही थीं, मानो शहर का बोझ धीरे-धीरे उतर रहा हो।
बस की खिड़की से बाहर देखते हुए उसे याद आया कि बचपन में जब वह अपने माता-पिता के साथ छुट्टियों पर जाता था, तो हर सफ़र उसके लिए एक रोमांचक यात्रा होती थी। अब वही रोमांच दोबारा लौटता-सा महसूस हो रहा था। बाहर का आसमान गहरा नीला और तारे भरा था। हर बार जब सड़क पर कोई मोड़ आता, तो बस के झटके के साथ उसका दिल भी हल्का-सा धड़क उठता। बीच-बीच में जब बस किसी छोटे कस्बे से गुज़रती, तो सुनसान सड़कों पर पड़ी ठंडी हवा के झोंके अंदर तक आ जाते और वह खुद को ताज़गी से भरा पाता। उसने खिड़की थोड़ी और खोल दी, ताकि चेहरे पर लगती ठंडी हवा उसकी थकान को पूरी तरह मिटा सके। वह समझ रहा था कि सफ़र के ये शुरुआती पल ही उसकी आत्मा को सुकून देने लगे हैं। उसके मन में कोई जल्दी नहीं थी, न मंज़िल की चिंता थी; बस यही ख्वाहिश थी कि यह सफ़र लंबा चले और वह यूँ ही खिड़की से बाहर झाँकता रहे।
धीरे-धीरे रात गहराती गई और बस पहाड़ी रास्तों की ओर बढ़ने लगी। आरव ने महसूस किया कि रास्ते का माहौल बदल रहा है—सीधी चौड़ी सड़कें अब टेढ़ी-मेढ़ी घाटियों में बदल चुकी थीं। बाहर चाँदनी की हल्की रोशनी में पहाड़ों की परछाइयाँ दिखाई देने लगीं, और नीचे कहीं गहरी खाई से बहते झरनों की आवाज़ सुनाई देने लगी। वह मंत्रमुग्ध होकर इस दृश्य को देख रहा था। अचानक उसे एहसास हुआ कि यही तो वह तलाश रहा था—शांति, सुकून और प्रकृति की गोद में बसी एक सच्चाई। उसने अपनी आँखें बंद कीं और सीट पर सिर टिकाया। उसे लगा जैसे हवा के हर झोंके के साथ उसका मन हल्का हो रहा है और भीतर कोई नया उत्साह जन्म ले रहा है। रात की इस यात्रा में, खिड़की से बाहर झाँकते हुए, आरव ने पहली बार सचमुच चैन की साँस ली—वह साँस जो उसे शहर में सालों से नसीब नहीं हुई थी। इस यात्रा की शुरुआत ने ही उसे यह यक़ीन दिला दिया कि आने वाले दिन उसकी ज़िंदगी को एक नई दिशा देंगे।
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सुबह की पहली किरण जैसे ही पहाड़ों की चोटियों से झाँककर नीचे घाटियों तक पहुँची, आरव ने आँखें खोलीं। रात की नींद अधूरी थी, लेकिन सामने फैले नज़ारे ने उसकी सारी थकान पलभर में मिटा दी। बस अब ऊँचे-नीचे पहाड़ी रास्तों पर धीरे-धीरे घूम रही थी, और हर मोड़ पर एक नया दृश्य सामने आ जाता था। कभी बर्फ़ से ढकी चोटियाँ दिखाई देतीं, तो कभी गहरी घाटियों में बहती नदियाँ। पहाड़ों पर उगते सूरज की सुनहरी रोशनी देवदार के ऊँचे-ऊँचे पेड़ों पर पड़ती, तो लगता मानो प्रकृति ने खुद अपने हाथों से इन्हें सजाया हो। आरव मंत्रमुग्ध होकर खिड़की से बाहर देखता रहा। दिल्ली का धुआँ और भीड़भाड़ जैसे अब किसी और दुनिया की बातें लग रही थीं। यहाँ बस शांति थी, ताज़गी थी और हवा में घुली एक अनोखी ख़ुशबू थी, जो उसके भीतर तक उतर रही थी।
रास्ते में छोटे-छोटे गाँव भी दिखाई देते थे। कच्चे मकानों की छतों पर रखे लकड़ी के गट्ठर, घर के सामने खेलते बच्चे, और खेतों में काम करती महिलाएँ—यह सब देखकर आरव के मन में एक अजीब-सी सुकूनभरी भावना उठी। शहर की तेज़ रफ़्तार से अलग, यहाँ जीवन धीमी चाल से बह रहा था, लेकिन उसी में एक सच्चाई थी, एक अपनापन था। बीच-बीच में जब बस किसी ढाबे पर रुकती, तो आरव जल्दी से बाहर निकलकर ताज़ी हवा में गहरी साँस लेता। वहाँ मिट्टी के चूल्हे पर बनी गरमा-गरम चाय और आलू पराठे की खुशबू उसे खींच लेती। उसने एक कप चाय ऑर्डर की। मिट्टी की प्याली में भरी वह गर्म चाय और पहाड़ों की ठंडी हवा—दोनों का संगम मानो जीवन की सबसे बड़ी विलासिता लग रहा था। हर घूँट में उसे ताजगी का स्वाद मिलता और दिल से अनजाने में यह आवाज़ निकलती—“यही तो है असली सफ़र।”
जैसे-जैसे बस ऊँचाई की ओर बढ़ती, नज़ारे और भी भव्य होते जाते। कहीं पहाड़ी ढलानों से दूधिया झरने गिरते, जिनकी आवाज़ दूर से ही कानों में संगीत भर देती। कहीं हरे-भरे देवदार और चीड़ के जंगल इतने घने दिखते कि उनमें छुपे रहस्यों की कल्पना मात्र ही रोमांचक लगती। सड़क के किनारे खड़े जंगली फूलों की कतारें रंग-बिरंगे पैटर्न बना रही थीं। कभी-कभी आरव सोचता कि क्या यह सब सच है, या वह किसी चित्रकार की बनाई पेंटिंग देख रहा है। रास्ते में आते मोड़ पर जब बस घूमती, तो नीचे गहरी घाटियाँ दिखाई देतीं, जिनमें बहती नदी सूरज की रोशनी में चाँदी-सी चमक रही थी। उस दृश्य ने आरव के मन को इस कदर छुआ कि उसकी आँखें बरबस ही बंद हो गईं। उसे लगा जैसे प्रकृति ने उसके सामने अपनी किताब खोल दी है, जिसमें हर पन्ना एक नया चमत्कार है।
सुबह का यह सफ़र आरव के लिए केवल एक दृश्यात्मक अनुभव नहीं था, बल्कि आत्मा को छू लेने वाला एहसास था। हर पहाड़, हर पेड़, हर झरना उसे एक नई सीख देता प्रतीत होता। उसे लगा मानो वह अपने भीतर भरे बोझ को यहीं कहीं घाटियों में छोड़ आया है। पहाड़ों की गोद में बैठकर मनुष्य कितनी आसानी से अपने आप को पा सकता है—यह उसने पहली बार समझा। बस के भीतर बैठे अन्य यात्री भी इस सुंदरता में खोए हुए थे; कोई तस्वीरें खींच रहा था, कोई संगीत सुन रहा था, और कोई खामोशी से बाहर झाँकते हुए मुस्कुरा रहा था। आरव भी उन सबमें शामिल था, लेकिन उसके चेहरे पर एक अलग ही चमक थी—वह चमक जो लंबे समय बाद भीतर से उपजी थी। उसे विश्वास हो गया कि यह सफ़र उसकी ज़िंदगी का मोड़ साबित होगा। अब तक का बोझिल जीवन मानो दूर छूट चुका था और सामने बस एक खुला आसमान था, जो उसे अपनी बाँहों में समेटने के लिए तैयार खड़ा था।
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सुबह का सूरज जब पहाड़ों की चोटियों को सुनहरी रंगत दे रहा था, तभी बस धीरे-धीरे मनाली के बस अड्डे में दाख़िल हुई। आरव ने खिड़की से बाहर झाँका, तो उसे एक बिल्कुल अलग ही दुनिया दिखाई दी—चारों ओर फैली ठंडी हवा, सड़कों पर चलते स्थानीय लोग, और दुकानों से आती ताज़ा बेकरी की ख़ुशबू। लंबे सफ़र के बाद यहाँ पहुँचते ही उसका मन हल्का और उत्साहित हो उठा। उसने अपना बैग उठाया और बस से उतरते ही महसूस किया कि यह जगह सचमुच अलग है—यहाँ की हवा में शहर जैसा बोझिलपन नहीं था, बल्कि ताज़गी और अपनापन था। बस अड्डे के पास ही टैक्सी वाले यात्रियों को आवाज़ दे रहे थे, छोटे-छोटे ढाबों पर गरमा-गरम समोसे और चाय बिक रही थी, और पर्यटकों की भीड़ में एक तरह का उत्साह छिपा था। आरव ने नज़रें उठाकर सामने फैली बर्फ़ से ढकी चोटियों को देखा और मन ही मन कहा—“यही है वह जगह, जहाँ मैं सचमुच जीना चाहता हूँ।”
आरव ने सबसे पहले होटल में जाकर सामान रखा और थोड़ा आराम किया। इसके बाद उसने तय किया कि पहला पड़ाव होगा हिडिम्बा मंदिर। टैक्सी से जब वह मंदिर की ओर बढ़ा, तो रास्ते में चारों ओर देवदार के घने जंगल थे। ठंडी हवा पेड़ों के बीच सरसराती हुई बह रही थी, और कहीं-कहीं से पक्षियों की चहचहाहट सुनाई दे रही थी। मंदिर पहुँचकर आरव मंत्रमुग्ध रह गया। लकड़ी और पत्थर से बना यह प्राचीन मंदिर न केवल स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना था, बल्कि उसमें एक दिव्य शांति भी छिपी थी। मंदिर के चारों ओर फैले ऊँचे-ऊँचे पेड़ और भीतर की गूंजती हुई प्रार्थनाओं ने उसके मन को गहराई तक छू लिया। उसने हाथ जोड़कर आँखें बंद कीं और एक पल के लिए खुद को बिल्कुल शांत महसूस किया। ऐसा लगा जैसे यह मंदिर केवल ईश्वर का ही नहीं, बल्कि उसकी थकी हुई आत्मा का भी आश्रय है।
मंदिर से निकलने के बाद आरव ने तय किया कि अब वह स्थानीय बाज़ार की सैर करेगा। माल रोड पर पहुँचते ही उसका सामना एक बिल्कुल अलग ही दुनिया से हुआ। सड़क के दोनों ओर रंग-बिरंगी दुकानें थीं—कहीं ऊनी शॉल और स्वेटर टंगे थे, तो कहीं हाथ से बने काष्ठ शिल्प बिक रहे थे। छोटे-छोटे कैफ़े और रेस्टोरेंट्स से आती कॉफ़ी और मोमोज़ की ख़ुशबू हवा में घुल गई थी। पर्यटक यहाँ-वहाँ घूम रहे थे, कुछ स्थानीय लोग दुकान चलाते हुए मुस्कुराकर उनका स्वागत कर रहे थे। आरव ने भी एक दुकान से एक ऊनी टोपी और दस्ताने खरीदे। दुकानदार ने मुस्कुराते हुए कहा—“भाई साहब, अब आपको ठंड कम लगेगी।” उस मुस्कान में इतनी आत्मीयता थी कि आरव को लगा जैसे वह यहाँ का ही हिस्सा है। थोड़ी देर बाद उसने सड़क किनारे एक छोटे कैफ़े में बैठकर अदरक वाली चाय और पकौड़ों का मज़ा लिया। खिड़की से बाहर देखते हुए उसे लगा कि वह किसी कहानी की किताब का पात्र बन गया है, जहाँ हर पन्ना नए रंग और खुशबू से भरा है।
जैसे-जैसे शाम ढलने लगी, मनाली की ठंडी हवा और भी तीखी हो गई, लेकिन उसी के साथ वातावरण और भी मोहक हो उठा। सड़क पर टंगे बल्बों की रोशनी और दुकानों से आती आवाज़ें पूरे बाज़ार को एक जादुई रूप देने लगीं। आरव लोगों को देखकर सोच रहा था कि किस तरह यहाँ हर चेहरा खुश और संतुष्ट दिखाई देता है, मानो इस जगह की हवा ही इंसान को मुस्कुराना सिखा देती है। दिनभर की यात्रा और अनुभवों के बाद जब वह वापस होटल लौटा, तो उसके दिल में एक अजीब-सा अपनापन और सुकून था। उसे महसूस हुआ कि मनाली ने न केवल उसका स्वागत किया है, बल्कि उसे अपनी गोद में जगह भी दी है। कमरे की खिड़की से बाहर झाँकते हुए उसने दूर पहाड़ों की ओर देखा और मन ही मन ठान लिया कि यह यात्रा केवल एक सफ़र नहीं, बल्कि जीवनभर की याद बन जाएगी।
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सुबह की हल्की ठंड और पहाड़ों से आती ताज़ी हवा ने आरव को जल्दी उठा दिया। होटल की खिड़की से बाहर झाँकते हुए उसने देखा कि सूरज की सुनहरी किरणें धीरे-धीरे बर्फ़ से ढकी चोटियों को चमकाने लगी थीं। आज का दिन उसके लिए खास था, क्योंकि उसने तय किया था कि वह वशिष्ठ के गरम पानी के झरनों का अनुभव करेगा। स्थानीय लोगों से उसने इन झरनों के बारे में बहुत सुना था—कहा जाता है कि यहाँ स्नान करने से न केवल शरीर की थकान मिटती है, बल्कि मन को भी एक गहरी शांति मिलती है। बैग में तौलिया और कपड़े डालकर वह टैक्सी से वशिष्ठ गाँव की ओर निकल पड़ा। रास्ते में छोटे-छोटे घर, संकरी गलियाँ और छतों पर सूखते मक्के के भुट्टे देखकर उसे एक अलग ही अपनापन महसूस हुआ। गाँव के बीचोंबीच बने मंदिर और उसके पास स्थित गर्म पानी के झरनों ने उसका स्वागत किया।
आरव जब स्नानागार की ओर पहुँचा, तो वहाँ पहले से ही कुछ लोग स्नान कर रहे थे। पत्थरों से बनी सीढ़ियाँ और चारों ओर उठती भाप का दृश्य किसी जादुई संसार जैसा था। पानी से उठती हल्की गर्माहट ठंडी हवा के विपरीत एक अनोखा संतुलन बना रही थी। उसने जल्दी से कपड़े बदले और झरने के गरम पानी में उतर गया। जैसे ही उसका शरीर पानी में डूबा, उसे लगा मानो उसकी सारी थकान और तनाव पिघलकर पानी में घुल गए हों। गर्म पानी की छुअन इतनी सुकून देने वाली थी कि उसने आँखें बंद कर लीं और बस उस पल को जीने लगा। आसपास लोग धीमी आवाज़ में बातें कर रहे थे, कुछ ध्यान में बैठे थे और कुछ बच्चे पानी में खेल रहे थे। यह माहौल शहर के स्पा या स्विमिंग पूल जैसा नहीं था—यहाँ प्रकृति की गोद में बसी एक सच्ची और पवित्र अनुभूति थी।
कुछ देर तक चुपचाप बैठे-बैठे आरव के मन में अनेक विचार उमड़ने लगे। उसे लगा जैसे पहाड़ों ने सचमुच उसकी आत्मा को साफ़ करना शुरू कर दिया है। शहर का बोझ, काम का तनाव और रोज़मर्रा की भागदौड़ मानो धीरे-धीरे बहकर निकल रहे हों। पानी की हर लहर उसके भीतर के बोझ को हल्का कर रही थी। उसे ऐसा महसूस हुआ कि वह खुद से जुड़ रहा है—वो खुद जिसे उसने सालों पहले कहीं खो दिया था। झरने की गहराई और उसकी गर्माहट ने उसे एक नई ऊर्जा दी। वह सोचने लगा कि प्रकृति में ऐसी अद्भुत शक्ति है जो इंसान को न केवल तन से बल्कि मन से भी ठीक कर सकती है। यह अनुभव इतना गहरा था कि उसे लगा जैसे समय थम गया हो, और वह बस इसी पल में हमेशा के लिए ठहर जाए।
जब वह पानी से बाहर निकला, तो उसका शरीर हल्का और मन ताज़गी से भरा हुआ था। ठंडी हवा अब उसे चुभने के बजाय प्यारी लग रही थी, जैसे पहाड़ उसे अपने आंचल में समेटना चाहते हों। आरव ने कपड़े बदले और मंदिर के प्रांगण में कुछ देर बैठ गया। वहाँ से घाटियों का दृश्य अद्भुत था—नीचे बहती ब्यास नदी, चारों ओर देवदार के जंगल और दूर तक फैली चोटियाँ। उसने महसूस किया कि इस यात्रा का यह अनुभव उसके लिए केवल एक स्नान नहीं था, बल्कि आत्मा का शुद्धिकरण था। लौटते समय उसने तय किया कि वह इन पलों को कभी नहीं भूलेगा, क्योंकि यह वे क्षण थे जब उसने सचमुच अपने भीतर शांति को महसूस किया। मनाली का यह पड़ाव उसकी स्मृतियों में सदा के लिए अंकित हो गया, और उसने सोचा—“अगर जीवन की सारी थकान मिटानी हो, तो बस प्रकृति की गोद में लौट आओ।”
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सुबह जब आरव होटल से निकला, तो ठंडी हवा के झोंके और हल्की धूप ने उसका स्वागत किया। आज का दिन उसके लिए खास था—वह सोलंग घाटी की ओर जा रहा था, जो मनाली के सबसे रोमांचक स्थलों में से एक मानी जाती है। टैक्सी में बैठते ही रास्ते भर वह उत्साहित बच्चे की तरह खिड़की से बाहर झाँकता रहा। जैसे-जैसे गाड़ी घाटियों में ऊपर चढ़ती गई, नज़ारे और मोहक होते गए। चारों ओर बर्फ़ से ढकी पहाड़ियाँ, देवदार के घने जंगल और बीच-बीच में बहते छोटे झरने मानो उसे हर पल चकित कर रहे थे। सोलंग पहुँचकर उसने देखा कि घाटी पहले से ही पर्यटकों से भरी थी—कहीं लोग स्कीइंग कर रहे थे, तो कहीं बर्फ़ पर खेलते बच्चे हँसी-खुशी से माहौल को जीवंत बना रहे थे। हवा में उत्साह का शोर था, और उसी में आरव का दिल भी तेजी से धड़कने लगा, क्योंकि आज वह अपने जीवन का पहला पैराग्लाइडिंग अनुभव करने वाला था।
गाइड ने उसे सुरक्षा उपकरण पहनाते हुए हिदायतें दीं—कैसे टेकऑफ़ करना है, कैसे बैलेंस बनाना है, और लैंडिंग के समय किन बातों का ध्यान रखना है। आरव ध्यान से हर शब्द सुन रहा था, पर उसके भीतर का रोमांच किसी भी डर से बड़ा था। टेकऑफ़ पॉइंट पर खड़े होकर उसने नीचे फैली बर्फ़ीली वादियों को देखा, तो एक क्षण के लिए साँस थम-सी गई। सामने नीला आसमान, चारों ओर सफ़ेद बर्फ़ और उसके बीच खड़ा वह—यह दृश्य किसी सपने से कम नहीं था। गाइड ने संकेत दिया और दौड़ते हुए जैसे ही उन्होंने छलाँग लगाई, अचानक पैराशूट हवा में फैल गया और आरव ने खुद को उड़ता हुआ पाया। उस पल उसकी धड़कनें इतनी तेज़ थीं कि उसे लगा जैसे दिल बाहर निकल आएगा, लेकिन अगले ही क्षण यह अनुभव उसे अद्भुत आज़ादी का अहसास देने लगा।
आसमान में उड़ते हुए उसने नीचे झाँका—नीचे बर्फ़ीली घाटियाँ खिलखिलाते हुए बच्चों की तरह चमक रही थीं, नदियाँ चाँदी की लकीरों की तरह बह रही थीं और दूर-दूर तक फैले जंगल किसी हरे गलीचे जैसे प्रतीत हो रहे थे। ऊपर आसमान इतना नीला और विस्तृत था कि उसे लगा मानो वह ब्रह्मांड की गोद में समा गया है। हवा उसके चेहरे से टकरा रही थी, बाल उड़ रहे थे और दिल में केवल एक ही भावना उमड़ रही थी—आज़ादी। वह सोचने लगा कि शायद पक्षी उड़ते समय यही महसूस करते होंगे। यह उड़ान केवल शारीरिक अनुभव नहीं था, बल्कि उसके भीतर गहरे तक उतरने वाला अहसास था, जिसने उसे खुद से जोड़ दिया। शहर की सारी चिंताएँ, भागदौड़ और तनाव उस पल कहीं गायब हो गए थे। अब बस वह था, आसमान था और उसकी आत्मा का गीत।
कुछ देर बाद गाइड ने उसे लैंडिंग के लिए तैयार किया। धीरे-धीरे वे नीचे उतरने लगे और घाटी का दृश्य और भी साफ़ दिखाई देने लगा। ज़मीन पर पहुँचते ही आरव के चेहरे पर ऐसी मुस्कान थी, जैसी उसने बरसों से महसूस नहीं की थी। उसका दिल अब भी तेज़ धड़क रहा था, लेकिन उस धड़कन में डर नहीं, बल्कि रोमांच और संतोष छिपा था। उसने पैराशूट उतारा और आकाश की ओर देखा—मानो उसे धन्यवाद कह रहा हो कि उसने आज उसकी आत्मा को उड़ना सिखाया। घाटी में खड़े होकर उसने गहरी साँस ली और सोचा कि यह अनुभव उसकी ज़िंदगी का सबसे अनमोल क्षण बन गया है। उसे अब विश्वास हो गया था कि यात्रा का असली सुख केवल जगहें देखने में नहीं, बल्कि उन अनुभवों को जीने में है जो हमें भीतर से बदल देते हैं। सोलंग घाटी का यह रोमांच हमेशा उसकी स्मृतियों में एक सुनहरी तस्वीर की तरह अंकित रहेगा।
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सोलंग घाटी के रोमांचक अनुभव के बाद आरव जब वापस मनाली लौटा, तो शाम धीरे-धीरे ढल रही थी। आसमान गुलाबी और सुनहरे रंगों में रंगा हुआ था, और पहाड़ों की चोटियों पर बिखरी धूप किसी जादुई रोशनी जैसी लग रही थी। दिनभर की थकान के बावजूद उसके भीतर ऊर्जा भरी हुई थी। उसने तय किया कि आज की शाम वह माल रोड पर बिताएगा, जो मनाली का सबसे जीवंत और रंगीन हिस्सा माना जाता है। होटल से बाहर निकलते ही ठंडी हवा के झोंके और हल्की-सी नमी ने उसे घेर लिया। सड़कों पर पर्यटकों की भीड़ थी, कोई परिवार के साथ टहल रहा था, कोई दोस्ती के ठहाके लगा रहा था, और कोई हाथों में गरमा-गरम कॉर्न पकड़े चलते-चलते तस्वीरें खींच रहा था। इस भीड़ में शामिल होकर आरव ने खुद को हल्का और खुश महसूस किया, जैसे वह भी अब इस जीवन्त लय का हिस्सा बन चुका हो।
माल रोड की दुकानों ने उसकी जिज्ञासा को तुरंत खींच लिया। सड़क के दोनों ओर कतार से लगी दुकानों में रंग-बिरंगे हस्तशिल्प, ऊनी कपड़े, तिब्बती आभूषण और लकड़ी की नक्काशीदार वस्तुएँ सजी थीं। आरव एक दुकान में गया, जहाँ शॉल और स्टोल इतने नर्म और गर्म थे कि उन्हें छूते ही उसे बचपन की दादी की याद आ गई। उसने एक सुंदर शॉल अपनी माँ के लिए खरीदी और दुकानदार से कुछ देर बातचीत की। दुकानदार ने मुस्कुराते हुए बताया कि ये शॉल स्थानीय महिलाओं के हाथों से बुनी जाती हैं और हर धागे में उनकी मेहनत और कला छिपी होती है। उस पल आरव को एहसास हुआ कि हर खरीददारी केवल एक वस्तु लेना नहीं, बल्कि उस जगह की आत्मा को अपने साथ ले जाना है। इसके बाद उसने लकड़ी से बने छोटे-छोटे शोपीस भी खरीदे—कभी देवदार की नक्काशीदार मूर्तियाँ, तो कभी पारंपरिक वाद्ययंत्र के मिनी मॉडल। हर वस्तु उसकी “यादों की टोकरी” में जुड़ती जा रही थी।
घूमते-घूमते उसके कदम एक छोटे-से रेस्टोरेंट की ओर बढ़े, जहाँ से तिब्बती खाने की महक आ रही थी। अंदर बैठकर उसने मोमोज़ और थुकपा का ऑर्डर दिया। जब गरमागरम मोमोज़ उसकी प्लेट में आए और भाप से उठती खुशबू उसके चेहरे तक पहुँची, तो उसने बड़े चाव से पहला कौर लिया। स्वाद इतना लाजवाब था कि उसकी थकान पलभर में गायब हो गई। थुकपा की गर्मागर्म सूप जैसी डिश ने उसे ठंडी शाम में और भी आराम दिया। खाने के बाद वह बाहर निकला और सड़क किनारे बिक रही भुनी हुई मूँगफली और कॉर्न भी चखा। हर कौर के साथ उसे लगा जैसे वह इस जगह की आत्मा को अपने भीतर समेट रहा है। लोकल खाने का यह अनुभव उसे शहर के किसी बड़े रेस्तराँ से कहीं ज़्यादा सच्चा और आत्मीय लगा। यहाँ के स्वाद में न केवल मसालों की महक थी, बल्कि लोगों की सादगी और मेहमाननवाज़ी का भी एहसास था।
जैसे-जैसे रात गहराने लगी, माल रोड की चमक और भी बढ़ गई। दुकानों की रोशनी, सड़कों पर गूंजती हँसी, और ठंडी हवा में घुली कॉफ़ी की ख़ुशबू ने एक जादुई माहौल बना दिया। आरव ने धीरे-धीरे चलते हुए चारों ओर देखा—पर्यटक तस्वीरें खींच रहे थे, कुछ गायक गिटार बजाकर लोकगीत सुना रहे थे, और बच्चे गुब्बारे और खिलौनों के साथ इधर-उधर भाग रहे थे। इस सारे शोरगुल में भी उसे एक गहरी शांति महसूस हो रही थी। उसने महसूस किया कि यात्रा का असली सुख केवल रोमांच या दृश्य देखने में नहीं है, बल्कि उन छोटी-छोटी बातों में है जिन्हें हम दिल से जीते हैं। होटल लौटते समय उसके हाथ में पैकेट थे, जिनमें खरीदी गई चीज़ें थीं, और उसके दिल में वे यादें थीं जो हमेशा के लिए अमर हो जाएँगी। उसने सोचा—“शायद जिंदगी की सबसे बड़ी दौलत यही होती है, कि हम अपने सफ़र से कितनी सच्ची और खूबसूरत यादें लेकर लौटते हैं।” उस रात जब उसने खिड़की से बाहर झाँका, तो दूर बर्फ़ से ढकी चोटियों पर चमकते चाँद को देखकर मुस्कुराया और मन ही मन कहा—“यह यात्रा मेरी आत्मा की सबसे अनमोल टोकरी है।”
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सुबह की ठंडी हवा और पहाड़ों पर बिखरी हल्की धूप ने उस दिन को विदाई का रंग दे दिया था। आरव होटल से सामान लेकर जब बस अड्डे की ओर निकला, तो उसके कदम धीमे और भारी लग रहे थे। दिल तो चाहता था कि वह कुछ और दिन यहाँ रुके, इन वादियों, इन हवाओं और इन मुस्कुराते चेहरों का साथ न छोड़े, लेकिन ज़िम्मेदारियाँ और शहर की पुकार उसे वापस खींच रही थीं। बस अड्डे पर पहले से ही यात्रियों की भीड़ थी, हर किसी के चेहरे पर अलग-अलग भाव—किसी में थकान, किसी में उत्साह और किसी में उदासी। अपनी सीट पर बैठते हुए आरव ने खिड़की से बाहर झाँका और मनाली के उस दृश्य को आख़िरी बार आत्मा में समेट लिया—चारों ओर फैले देवदार के पेड़, छोटे-छोटे घरों की कतारें और ऊपर नीला आसमान। बस जैसे ही आगे बढ़ी, उसने महसूस किया कि यह विदाई केवल एक जगह से नहीं, बल्कि उन अनुभवों से भी है, जो उसके दिल में अब हमेशा के लिए बस गए हैं।
रास्ते में चलते पहाड़ी मार्ग अब उसे अलग तरह से दिखाई दे रहे थे। आने के समय जहाँ हर मोड़ नया उत्साह भर देता था, वहीं अब वही मोड़ उसे भावुक बना रहे थे। झरनों की आवाज़, घाटियों का विस्तार और देवदार की खुशबू—सब जैसे उसे रोकने की कोशिश कर रहे हों। लेकिन उसी के साथ यह भी साफ़ था कि यह यात्रा पूरी हो चुकी है, और अब इसे यादों में सहेजकर आगे बढ़ना ही सही है। उसने सोचा कि जिंदगी भी एक यात्रा ही तो है—हर पड़ाव पर कुछ नया देखने, कुछ नया सीखने को मिलता है, और फिर हमें अगले पड़ाव की ओर बढ़ना होता है। पहाड़ों की गोद में बिताए गए ये दिन उसके लिए केवल छुट्टियाँ नहीं थे, बल्कि आत्मा का उपचार थे। हर अनुभव—हिडिम्बा मंदिर की शांति, वशिष्ठ के झरनों की ताजगी, सोलंग घाटी का रोमांच और माल रोड की चहल-पहल—सबने मिलकर उसे अंदर से बदल दिया था।
बस की खिड़की से बाहर देखते हुए आरव अपने भीतर की उस शांति को महसूस कर रहा था, जो लंबे समय से ग़ायब थी। उसने सोचा कि शहर लौटकर भी वह इस बदलाव को ज़िंदा रखेगा। अब वह केवल मशीन की तरह जीने वाला इंसान नहीं रहेगा, बल्कि हर दिन को जीते हुए महसूस करेगा। उसे एहसास हुआ कि असली खुशी महंगे सामान या बड़ी उपलब्धियों में नहीं, बल्कि उन पलों में छिपी होती है जो हमें भीतर से सुकून देते हैं। पहाड़ों ने उसे सिखाया कि जीवन की सुंदरता उसकी सरलता में है—चाहे वह सुबह की ताज़ी हवा हो, चाहे गरमा-गरम चाय का स्वाद, या फिर किसी अजनबी की सच्ची मुस्कान। उसने तय किया कि अब से वह अपने लिए समय निकालेगा, अपने शौक़ों को दोबारा अपनाएगा और ज़िंदगी को उसी आज़ादी से जिएगा, जैसा उसने आसमान में उड़ते हुए महसूस किया था।
जब बस मैदानों की ओर उतरने लगी और पहाड़ पीछे छूटने लगे, तो आरव के दिल में हल्की उदासी और गहरी तृप्ति एक साथ उमड़ी। उसने महसूस किया कि यह यात्रा केवल जगह देखने का अनुभव नहीं थी, बल्कि आत्मा के भीतर झाँकने का मौका भी थी। उसे लगा जैसे वह खुद से दोबारा जुड़ गया है, वह खुद जिसे शहर की दौड़-भाग में कहीं खो दिया था। अब उसके पास कहानियाँ थीं, अनुभव थे और सबसे बड़ी बात—एक नई दृष्टि थी। वापसी की इस यात्रा ने उसे यह एहसास कराया कि हर इंसान को कभी न कभी अपनी दिनचर्या से विराम लेकर प्रकृति की ओर लौटना चाहिए, ताकि वह खुद को पा सके। बस की सीट पर टिककर आँखें बंद करते हुए आरव ने मन ही मन कहा—“धन्यवाद मनाली, तुमने मुझे मेरा असली चेहरा दिखा दिया।” उसके होंठों पर मुस्कान थी और दिल में संतोष—वही संतोष, जो किसी भी यात्रा की सबसे बड़ी कमाई होती है।
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