Hindi - क्राइम कहानियाँ

धुएँ का रहस्य

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राघवेंद्र मिश्रा


रात के बारह बजे थे। शहर की गलियों में सन्नाटा पसरा हुआ था। लेकिन उस सन्नाटे को चीरती हुई हवेली नंबर २१ से एक अजीब सी आवाज़ आ रही थी—कभी दरवाज़े के चरमराने की, तो कभी किसी के कराहने की।

यह हवेली कभी मिश्रा परिवार की शान हुआ करती थी, लेकिन अब यह वीरान और खंडहर में तब्दील हो चुकी थी। हवेली के चारों ओर उग आए कंटीले पेड़ और सूखे पत्तों का ढेर उसे और डरावना बना देता था।

आज भी उसी हवेली से धुआँ उठता दिखाई दे रहा था। मोहल्ले वालों का कहना था कि कई बार रात के वक्त वहाँ से किसी औरत के रोने की आवाज़ आती है। पुलिस ने कई बार तलाशी ली, लेकिन उन्हें कुछ भी नहीं मिला।

इंस्पेक्टर अजय वर्मा को इस हवेली का नाम सुनते ही गुस्सा आ जाता था। पिछले एक महीने से वह इस केस में उलझा हुआ था, लेकिन कोई सुराग़ नहीं मिल रहा था। इस बार उसने ठान लिया था कि वह इस रहस्य को सुलझा कर ही रहेगा।

“चौकीदार श्यामू!” अजय ने गाड़ी से उतरते ही आवाज़ लगाई।

“जी हुज़ूर!” श्यामू हाथ जोड़कर सामने खड़ा हो गया। उसका चेहरा डर से पीला पड़ गया था।

“कितनी बार कहा है—कोई भी हलचल दिखे तो मुझे तुरंत बताओ। आज फिर यहाँ से धुआँ क्यों निकल रहा है?”

“हुज़ूर, मैंने देखा था एक आदमी काले कपड़े पहन कर अंदर गया। फिर अचानक वो गायब हो गया। मैंने तुरंत आपको फोन किया।”

अजय ने आँखें सिकोड़ कर हवेली को देखा। हवेली के खिड़कियाँ टूटी हुई थीं और दरवाज़ा आधा खुला था। अंदर से हल्की रोशनी झाँक रही थी।

“ठीक है, मैं अंदर जा रहा हूँ। तुम यहीं रहो।”

श्यामू ने काँपती आवाज़ में कहा, “हुज़ूर, अकेले मत जाइए। मैं भी चलूँ?”

“नहीं। मुझे अकेले ही देखना होगा कि यह सब क्या हो रहा है।”

अजय ने जेब से टॉर्च निकाली और धीरे-धीरे हवेली के अंदर कदम रखा। सीढ़ियाँ चढ़ते ही उसे एक अजीब सी गंध आई—जैसे किसी ने पुरानी लकड़ियाँ जलाई हों। दीवारों पर मकड़ी के जाले झूल रहे थे।

अचानक उसे सामने एक दरवाज़ा दिखा, जिसके नीचे से हल्की रोशनी आ रही थी। अजय ने साँस रोककर दरवाज़े की कुंडी पकड़ी और धीरे से खोला।

कमरे के अंदर का नज़ारा देखकर अजय हैरान रह गया। कमरे के बीचोंबीच एक लकड़ी की मेज़ थी, जिस पर कुछ काग़ज़ बिखरे हुए थे। मेज़ के पीछे एक आदमी बैठा था—उसका चेहरा आधा अंधेरे में और आधा रोशनी में था। उसके हाथ में एक फाइल थी, जिसे वह बड़े ध्यान से पढ़ रहा था।

अजय ने टॉर्च उस पर तानी, “तुम यहाँ क्या कर रहे हो?”

आदमी ने सिर उठाया और धीमे से मुस्कुराया, “इंस्पेक्टर साहब, आप ही को तो बुलाया था।”

“क्यों? कौन हो तुम?”

“मैं ही वह हूँ जिसे तुम पिछले एक महीने से ढूँढ रहे हो।”

अजय के होश उड़ गए। “रवि मिश्रा! तुम तो मर चुके हो!”

रवि मिश्रा ने गहरी हँसी हँसते हुए कहा, “मरा तो मैं दिखाया गया था, ताकि असली खेल खेला जा सके।”

अजय ने पिस्तौल निकाली और उस पर तान दी, “अब बहुत हो गया रवि! अपना खेल खत्म करो और पुलिस के हवाले हो जाओ।”

रवि मिश्रा ने ठंडी मुस्कान के साथ कहा, “तुम्हें क्या लगता है, ये खेल इतना आसान है? यहाँ सिर्फ मैं नहीं हूँ, बल्कि पूरा जाल बिछा है… और तुम भी उसी जाल का हिस्सा बन चुके हो।”

अचानक कमरे की लाइट गुल हो गई और चारों तरफ अँधेरा छा गया। अजय ने अपनी टॉर्च से इधर-उधर देखा लेकिन रवि गायब हो चुका था। तभी उसे पीछे से किसी ने जोर से धक्का दिया और वह बेहोश होकर ज़मीन पर गिर पड़ा।

कुछ घंटों बाद अजय की आँखें खुलीं तो उसने खुद को एक कुर्सी से बँधा पाया। उसके सामने रवि मिश्रा खड़ा था। उसके पीछे दो नकाबपोश लोग खड़े थे। कमरे में अब भी वही अजीब सी गंध आ रही थी।

रवि मिश्रा ने कहा, “इंस्पेक्टर साहब, अब तुम्हें सच्चाई बताने का वक्त आ गया है।”

अजय ने गुस्से से कहा, “तुम क्या चाहते हो?”

रवि ने अपनी आँखें सिकोड़ कर कहा, “बस एक छोटा सा काम। तुमने जो केस मेरे खिलाफ खोला है, उसे बंद कर दो और अपने अफसरों को कह दो कि हवेली के बारे में कोई जाँच न करें।”

अजय ने दाँत पीसते हुए कहा, “ये कभी नहीं होगा!”

रवि हँसा और एक इशारा किया। नकाबपोश लोगों ने अजय को और कस कर बाँध दिया। रवि ने कहा, “ठीक है। फिर तुम यहाँ से ज़िंदा नहीं निकलोगे।”

कमरे में चारों ओर धुआँ भरने लगा। अजय की साँस घुटने लगी। तभी कमरे का दरवाज़ा ज़ोर से खुला और एक और इंस्पेक्टर अपनी टीम के साथ अंदर घुस आया। गोलियों की आवाज़ गूँज उठी।

धुएँ के बीच रवि मिश्रा खून में लथपथ ज़मीन पर गिर पड़ा। नकाबपोश भागने की कोशिश में पकड़े गए।

अजय को आज़ाद कर पुलिस स्टेशन ले जाया गया।

बाहर निकलते हुए अजय ने आसमान की तरफ देखा। हवेली अब भी वीरान खड़ी थी, लेकिन अब उसके रहस्यों की परतें खुल चुकी थीं।

 २

पुलिस स्टेशन में हलचल मची हुई थी। इंस्पेक्टर अजय वर्मा को जैसे ही होश आया, उसने सबसे पहले वही सवाल पूछा: “रवि मिश्रा कहां है?”

सब-इंस्पेक्टर संजय ने कहा, “सर, रवि मिश्रा को हमने घायल हालत में गिरफ्तार कर लिया है। लेकिन उसकी हालत नाज़ुक है, उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया है।”

अजय ने गहरी साँस ली और अपने माथे पर हाथ रखा। पिछली रात का घटनाक्रम उसकी आँखों के सामने घूम गया। हवेली के तहखाने में बंदी बनकर रहस्यमयी धुएँ से घुटने की वह हालत, फिर पुलिस की टीम का आना और रवि मिश्रा का खून में लथपथ गिर जाना — यह सब किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं लग रहा था।

“उसके खिलाफ जो केस दर्ज है, वो पक्का करना होगा,” अजय ने ठान लिया। “ये हवेली वाला मामला साधारण चोरी या हत्या नहीं है — इसमें कोई बड़ा गैंग शामिल है।”

इसी बीच, नेहा शर्मा — वही पत्रकार जो इस केस में दिलचस्पी ले रही थी — थाने पहुँच गई। उसके हाथ में एक पुरानी डायरी थी।

“इंस्पेक्टर वर्मा!” नेहा ने ज़ोर से कहा।

अजय ने उसकी तरफ देखा, “नेहा जी, अब इस मामले में आपकी क्या भूमिका है?”

नेहा ने कहा, “ये देखिए।” उसने डायरी अजय को थमाई। “ये रवि मिश्रा के दादा जी की डायरी है। इसमें हवेली के बारे में कई बातें लिखी हैं — हवेली के तहखाने में जो सुरंग है, उसका नक्शा भी है। और इसमें साफ-साफ लिखा है कि रवि के परिवार का कनेक्शन एक बड़े तस्करी रैकेट से था।”

अजय ने डायरी के पन्ने पलटते हुए कहा, “तो इसका मतलब है, रवि सिर्फ मोहरा है। असली मास्टरमाइंड कोई और है।”

नेहा बोली, “जी हाँ। और इस तस्करी रैकेट का जाल शहर के कई रसूखदार लोगों तक फैला हुआ है। इस डायरी के मुताबिक हवेली के तहखाने से सुरंग सीधी शहर के पुराने गोदाम तक जाती है। वहाँ से हथियार और नशीले पदार्थों की तस्करी होती है।”

अजय के चेहरे पर चिंता की लकीरें खिंच गईं। “मतलब हमें हवेली को छोड़कर अब गोदाम तक जाना होगा।”

नेहा ने सहमति में सिर हिलाया। “लेकिन इंस्पेक्टर साहब, ये काम अकेले करना खतरनाक होगा। हमारे पास कोई सबूत भी नहीं है। हमें इस पूरे गिरोह को पकड़ने के लिए सबूत चाहिए। वरना ये लोग हमें मार भी सकते हैं।”

अजय ने एक गहरी साँस ली, “ठीक है। पहले रवि मिश्रा से मिलना होगा। शायद वो हमें कुछ और बता सके।”

अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में रवि मिश्रा बेहोश पड़ा था। उसके शरीर पर पट्टियाँ बँधी थीं। अजय ने डॉक्टर से कहा, “डॉक्टर, मुझे इस आदमी से कुछ सवाल पूछने हैं। उसकी हालत कैसी है?”

डॉक्टर ने गंभीर आवाज़ में कहा, “अभी कुछ भी कहा नहीं जा सकता। उसे होश आए तो आप पूछ सकते हैं।”

अजय ने खिड़की से बाहर देखा। बाहर बारिश हो रही थी। एक अजीब सी बेचैनी उसके दिल में घर कर गई थी।

रात के अंधेरे में हवेली का वही धुआँ एक बार फिर उठता दिखाई दिया। अजय को यकीन हो गया कि मामला वहीं से शुरू हुआ था और वहीं खत्म होगा।

अजय ने तुरंत टीम तैयार करने का आदेश दिया। “नेहा जी, क्या आप हमारे साथ चलेंगी?”

नेहा ने मुस्कुरा कर कहा, “इंस्पेक्टर साहब, मैं भी चाहती हूँ कि इस कहानी का सच सबके सामने आए।”

अजय ने कहा, “ठीक है, चलिए हवेली की ओर।”

टीम ने जीप में बैठ कर हवेली की तरफ कूच किया। रास्ते भर बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही थी। हवेली के करीब पहुँचते ही अजय ने ब्रेक मारा।

“सभी लोग तैयार रहें, किसी भी हालत में रवि मिश्रा के गैंग के लोग हमें मारने की कोशिश कर सकते हैं।”

अजय ने हथियार निकाला और दरवाज़ा खोला। हवेली अब पहले से भी ज़्यादा डरावनी लग रही थी। हवा में वही अजीब सी गंध फैली हुई थी।

अजय ने नेहा की तरफ देखा और धीरे से कहा, “अब ये खेल खत्म करने का वक्त आ गया है।”

बारिश की बूँदें हवेली की टूटी-फूटी खिड़कियों पर थप-थपाकर गिर रही थीं। हवेली के चारों ओर अजीब सी सन्नाटा पसरा था। इंस्पेक्टर अजय वर्मा ने अपनी टीम को इशारा किया और धीरे-धीरे हवेली में प्रवेश किया।

नेहा शर्मा उसके पीछे थी। उसके हाथ में डायरी कसकर पकड़ी हुई थी। उसकी धड़कनें तेज़ हो गई थीं, मानो हवेली की दीवारें उसके दिल की धड़कन सुन सकती थीं।

“सब लोग सावधान रहना,” अजय ने फुसफुसाते हुए कहा। “ये हवेली जितनी बाहर से वीरान दिखती है, अंदर से उतनी ही खतरनाक हो सकती है।”

हवेली के अंदर की हवा में वही धुएँ की गंध तैर रही थी। लकड़ी के फर्श पर धूल और जाले लटक रहे थे। अचानक एक दरवाज़ा चरमराया और सबकी नज़र उस तरफ घूम गई।

अजय ने टॉर्च की रोशनी उस दरवाज़े पर डाली। दरवाज़ा धीरे-धीरे खुला और एक गुप्त सीढ़ी दिखाई दी, जो तहखाने की तरफ जाती थी।

“यही है वो तहखाना, जिसका ज़िक्र नेहा ने डायरी में पढ़ा था,” अजय ने कहा।

नेहा ने सहमति में सिर हिलाया, “हाँ, इसी सुरंग के ज़रिए सारा अवैध कारोबार होता था। हथियार, नशा और इंसानों की तस्करी — सबकुछ।”

अजय ने पिस्तौल संभाली और धीरे-धीरे सीढ़ियाँ उतरने लगा। नीचे पहुँचते ही एक लंबा, संकरा गलियारा था। उस गलियारे के दोनों ओर छोटी-छोटी कोठरियाँ बनी थीं, जिनमें ताले जड़े हुए थे।

नेहा ने कहा, “शायद इन कोठरियों में तस्करी का माल रखा जाता होगा।”

अजय ने सर हिलाया। अचानक एक कोठरी के अंदर से किसी के कराहने की आवाज़ आई। अजय ने चौकन्ना होकर पिस्तौल तानी और ताला तोड़ कर दरवाज़ा खोला। अंदर एक आदमी जख्मी हालत में पड़ा था।

“कौन हो तुम?” अजय ने पूछा।

आदमी ने काँपती आवाज़ में कहा, “मेरा नाम अर्जुन है… मुझे इस गैंग ने कैद कर लिया था। मैं ही इस रैकेट का गवाह हूँ।”

नेहा ने हैरानी से पूछा, “गवाह? किस बात का गवाह?”

अर्जुन ने हिम्मत जुटाते हुए कहा, “मैंने अपनी आँखों से देखा है कि कैसे हवेली से गोदाम तक सुरंग के ज़रिए हथियार और नशा पहुँचाया जाता है। रवि मिश्रा तो सिर्फ मोहरा है, असली सरगना तो वही है जिसने मुझे बंदी बनाया।”

“कौन है वो?” अजय ने सवाल दागा।

अर्जुन ने काँपते होठों से कहा, “उसका नाम…वह नाम…।”

तभी अचानक पीछे से एक गोली चली और अर्जुन की आवाज़ हमेशा के लिए खामोश हो गई।

अजय ने तुरंत पलट कर गोली चलाने वाले पर निशाना साधा और फायर किया। कुछ ही सेकंड में गोली चलाने वाला गिर पड़ा। अजय ने दौड़ कर उसका नकाब हटाया तो वह हवेली का चौकीदार श्यामू निकला।

“श्यामू!” अजय ने गुस्से से कहा, “तुम? तुम भी इस गैंग के साथ हो?”

श्यामू ने हँसते हुए कहा, “हाँ इंस्पेक्टर साहब। पैसे के लिए कुछ भी कर सकता हूँ। अब तो आप भी यहाँ से ज़िंदा नहीं निकलेंगे।”

उसके हाथ में एक डिटोनेटर था। अजय ने तेजी से फायर किया लेकिन श्यामू ने पहले ही बटन दबा दिया। तहखाने में जोरदार धमाका हुआ और चारों ओर धुआँ भर गया।

नेहा ने चीखते हुए कहा, “इंस्पेक्टर साहब, जल्दी बाहर निकलिए!”

अजय ने उसका हाथ पकड़ा और दोनों तेजी से सीढ़ियाँ चढ़कर ऊपर भागे। लेकिन धमाके की वजह से हवेली की दीवारें गिरने लगीं। बाहर निकलते-निकलते एक भारी पत्थर अजय के पैर पर गिरा और वह वहीं गिर पड़ा।

नेहा ने हाथ बढ़ाकर उसे खींचा, “इंस्पेक्टर साहब, उठिए!”

अजय ने दर्द से कराहते हुए कहा, “नेहा…तुम भागो…मैं…।”

नेहा ने उसकी बात काटते हुए कहा, “नहीं! मैं आपको अकेला छोड़कर नहीं जाऊँगी।”

दोनों ने मिलकर आख़िरी ताक़त लगाई और बाहर निकलने में कामयाब हुए। बाहर आते ही देखा कि पुलिस की बाकी टीम भी पहुँच गई थी।

अजय ने गहरी साँस ली और कहा, “ये केस जितना हमें दिख रहा था, उससे कहीं बड़ा और खतरनाक है। असली मास्टरमाइंड अब भी हमारे सामने नहीं आया है।”

नेहा ने कहा, “तो अब क्या करेंगे?”

अजय ने आसमान की ओर देखते हुए कहा, “अब असली खेल शुरू होगा।”

 ४

पुलिस टीम ने हवेली को चारों ओर से घेर लिया था। बाहर भारी बारिश हो रही थी। इंस्पेक्टर अजय वर्मा ने अपने घायल पैर पर पट्टी बाँध ली थी और टीम के बाकी अफसरों के साथ खड़ा था। नेहा शर्मा भी उनके साथ थी, उसके चेहरे पर तनाव साफ झलक रहा था।

“इंस्पेक्टर साहब,” नेहा ने धीमी आवाज़ में कहा, “अब हमें सावधानी से काम लेना होगा। मास्टरमाइंड हम पर नज़र रखे हुए है, और वो बहुत चालाक है।”

अजय ने हामी में सिर हिलाया। “नेहा जी, अर्जुन की मौत से साबित हो गया कि यह गिरोह कितना खतरनाक है। हमें रवि मिश्रा को होश में लाकर पूछताछ करनी होगी।”

अस्पताल में रवि मिश्रा की हालत अब थोड़ी बेहतर थी। अजय उसके पास पहुँचा और धीरे से बोला, “रवि, तुम्हें सच बताना होगा। तुम्हारे पीछे कौन है? कौन इस धुएँ के खेल का मास्टरमाइंड है?”

रवि ने आँखें खोलीं और काँपती आवाज़ में कहा, “इंस्पेक्टर साहब…आप यकीन नहीं करेंगे, लेकिन यह सारा खेल…।”

उसने रुककर गहरी साँस ली, फिर कहा, “यह सब शहर के नामी कारोबारी सूरज खन्ना का काम है।”

“क्या?” अजय चौंक गया। “सूरज खन्ना? वही जो समाजसेवा के नाम पर लाखों का दान देता है? वही सूरज खन्ना जिसने पुलिस कमिश्नर से लेकर कई नेताओं तक से अच्छे रिश्ते बना रखे हैं?”

रवि ने हाँ में सिर हिलाया। “हाँ इंस्पेक्टर साहब, वही। उसके पास पैसों और पावर की कोई कमी नहीं। हवेली के तहखाने से सुरंग तक का नेटवर्क उसी का है। मैं तो बस उसका मोहरा था।”

अजय ने गुस्से में अपनी मुट्ठी भींच ली। “ये तो बहुत बड़ा जाल है। उसे पकड़ना आसान नहीं होगा।”

नेहा ने कहा, “लेकिन इंस्पेक्टर साहब, हमें सबूत चाहिए। सिर्फ रवि की गवाही से कुछ नहीं होगा।”

अजय ने कहा, “ठीक है। हमें सूरज खन्ना के ऑफिस और घर पर रेड करनी होगी। कोई भी सुराग हमारे काम आ सकता है।”

अगले दिन तड़के पुलिस की एक विशेष टीम सूरज खन्ना के आलीशान बंगले पर पहुँची। बंगले के बाहर कई सुरक्षा गार्ड तैनात थे। अजय ने वारंट दिखाकर उन्हें एक तरफ किया और अंदर घुसा।

बंगले के भीतर की भव्यता देखकर नेहा की आँखें फटी की फटी रह गईं। दीवारों पर महँगी पेंटिंग्स, इटली से मँगवाए गए झूमर और हर जगह सिक्योरिटी कैमरे।

अजय ने कहा, “यहाँ हर चीज़ की जाँच करो। कंप्यूटर, दस्तावेज़, हर चीज़।”

पुलिस की टीम ने बंगले का कोना-कोना खंगाल डाला। तभी नेहा ने एक अलमारी के पीछे छुपा हुआ एक गुप्त दरवाज़ा देखा। उसने अजय को इशारा किया।

अजय ने दरवाज़ा खोला तो सीढ़ियाँ नीचे तहखाने की तरफ जाती दिखीं।

“एक और तहखाना?” अजय ने दाँत भींचते हुए कहा।

सीढ़ियाँ उतरकर वे नीचे पहुँचे। वहाँ कई लैपटॉप और दस्तावेज़ रखे हुए थे। एक बड़ी स्क्रीन पर हवेली का लाइव फीड चल रहा था — जैसे किसी ने हर चीज़ पर नज़र रखी हो।

“ये देखो इंस्पेक्टर साहब!” नेहा ने एक फाइल उठाकर दिखाई। फाइल में हवेली से लेकर गोदाम तक के नक्शे, हथियारों के फोटो, और तस्करी के रूट तक दर्ज थे। साथ ही कई रसूखदार लोगों के नाम भी लिखे थे।

“ये हमारे लिए बड़ा सबूत है,” अजय ने कहा। “अब सूरज खन्ना कहीं नहीं बचेगा।”

तभी पीछे से तालियों की आवाज़ आई। अजय और नेहा ने पलटकर देखा — सूरज खन्ना खड़ा था, उसके चेहरे पर वही नकली मुस्कान।

“वाह इंस्पेक्टर वर्मा, क्या खोजी नाक है आपकी!” सूरज ने ताली बजाते हुए कहा। “मुझे पकड़ने आए हो, लेकिन तुम भूल गए कि कानून और नेता — सब मेरी जेब में हैं।”

अजय ने गुस्से से कहा, “अब तुम्हारी एक नहीं चलेगी। ये सबूत तुम्हें अंदर कराने के लिए काफी हैं।”

सूरज ने ठहाका लगाते हुए कहा, “हाहाहा! तुम्हें लगता है कि मैं इतना बेवकूफ हूँ जो खुद को फँसने दूँगा?”

अजय ने कहा, “हम देख लेंगे।”

लेकिन सूरज ने जेब से एक बटन निकाला और दबा दिया। अचानक तहखाने के दरवाज़े अपने आप लॉक हो गए।

“अब तुम दोनों यहीं सड़ोगे,” सूरज ने कहा और अँधेरे में गायब हो गया।

नेहा ने जल्दी से अपना फोन निकाला, लेकिन नेटवर्क गायब था। अजय ने चारों तरफ देखा, “हमें बाहर निकलना होगा, वरना हम भी रवि मिश्रा जैसे मोहरे बनकर रह जाएँगे।”

नेहा ने कहा, “इंस्पेक्टर साहब, हमें सूरज खन्ना को हर हाल में पकड़ना ही होगा।”

अजय ने कमर सीधी कर कहा, “हाँ नेहा जी, अब इस खेल का असली चेहरा सामने लाने का वक्त आ गया है।”

 ५

तहखाने के दरवाज़े पर ताले लग चुके थे। अंदर अंधेरा और घुटन का माहौल था। इंस्पेक्टर अजय वर्मा ने अपने चारों ओर देखा—एक भी खिड़की नहीं थी, और मोबाइल नेटवर्क तो जैसे गायब ही हो गया था।

नेहा शर्मा भी परेशान थी। “इंस्पेक्टर साहब, अब क्या करेंगे?”

अजय ने गहरी साँस ली, “हमें घबराना नहीं है। सूरज खन्ना ने हमें यहीं फँसाकर रखा है, लेकिन उसकी एक गलती ये है कि उसने हमें जिंदा छोड़ा। इसका मतलब है कि उसके पास अभी हमें खत्म करने की हिम्मत नहीं है। वो शायद पुलिस के दबाव से बचना चाहता है। इसलिए उसके पास अभी मौका है, हमारे पास भी।”

नेहा ने इधर-उधर देखा। “यहाँ कोई वेंटिलेशन या इमरजेंसी एग्जिट तो नहीं दिख रही।”

अजय ने मोबाइल की टॉर्च जलाई और दीवारों पर हाथ फेरा। तभी एक जगह उन्हें दीवार में हल्का सा झरोखा दिखा। उन्होंने झरोखे को धक्का दिया तो वो थोड़ा सा हिला।

“नेहा जी, शायद ये कोई सीक्रेट रास्ता हो सकता है,” अजय ने कहा।

दोनों ने मिलकर झरोखे को और धक्का दिया, तो दीवार का एक हिस्सा ढह गया। वहाँ एक संकरा रास्ता था, जो शायद बाहर की ओर जाता था।

“शायद यही मौका है,” नेहा ने कहा।

अजय ने मुस्कराते हुए कहा, “चलो, इस सुरंग से बाहर निकलने की कोशिश करते हैं।”

दोनों झरोखे से निकलकर उस संकरी सुरंग में घुस गए। सुरंग के भीतर अजीब सी बदबू थी। दीवारें नम थीं और कुछ जगहों पर कीड़े-मकोड़े रेंग रहे थे।

नेहा ने धीरे से कहा, “इंस्पेक्टर साहब, हमें सूरज खन्ना के सारे काले कारनामे उजागर करने होंगे। इतने रसूखदार लोगों के नाम उसके साथ जुड़े हैं कि अगर उसे पकड़ लिया तो पूरे शहर में तहलका मच जाएगा।”

अजय ने कहा, “तुम ठीक कह रही हो। लेकिन हमें सबूत इकट्ठा करने होंगे, और सूरज खन्ना को रंगे हाथों पकड़ना होगा। वरना वो फिर बच निकलेगा।”

चलते-चलते अचानक सुरंग दो हिस्सों में बँट गई। एक रास्ता दाईं ओर और एक बाईं ओर जा रहा था।

नेहा ने पूछा, “अब कौन सा रास्ता चुनें?”

अजय ने कुछ पल सोचा और कहा, “दायाँ रास्ता मुझे ज्यादा सुरक्षित लग रहा है। वो शायद हवेली के पिछवाड़े में जाकर खुलेगा।”

दोनों दाएँ रास्ते की तरफ बढ़े। थोड़ी दूर जाने पर सुरंग का रास्ता और भी सँकरा होता गया। अचानक अजय के कानों में कुछ आवाजें सुनाई दीं। उसने इशारा किया, “नेहा जी, कोई है वहाँ।”

नेहा ने कहा, “शायद सूरज खन्ना के आदमी होंगे।”

अजय ने धीरे से पिस्तौल निकाली और कदम दर कदम आगे बढ़ा। सामने एक बड़ा कमरा था, जिसमें सूरज खन्ना के आदमी हथियारों के साथ खड़े थे।

नेहा ने कहा, “इंस्पेक्टर साहब, हमें उनके हाथ लग गए तो फिर से फँस सकते हैं।”

अजय ने कहा, “चिंता मत करो, मैं यहाँ से बाहर निकलने का रास्ता ढूँढता हूँ।”

अजय ने नजर घुमाई तो कमरे के दूसरी तरफ एक सीढ़ी दिखाई दी, जो शायद ऊपर की ओर जाती थी।

“नेहा जी, वो सीढ़ी देखो! हमें वहीं से भागना होगा,” अजय ने कहा।

नेहा ने सहमति में सिर हिलाया। दोनों धीरे-धीरे आगे बढ़े। तभी सूरज खन्ना के एक आदमी की नजर उन पर पड़ गई।

“वो रहे!” उस आदमी ने चिल्लाया और बाकी सब हथियार उठाकर उनकी तरफ दौड़ पड़े।

अजय ने तेजी से पिस्तौल तानकर गोली चलाई।

धड़ाम! एक आदमी गिर पड़ा।

नेहा ने भी अपने बैग से पेपर स्प्रे निकालकर हमलावरों की आँखों में छिड़क दिया।

“भागो!” अजय ने कहा और नेहा का हाथ पकड़कर सीढ़ियों की तरफ दौड़ पड़ा।

सीढ़ियों से ऊपर पहुँचकर एक छोटा सा दरवाज़ा दिखाई दिया, जिसे धक्का देकर अजय ने खोल दिया। बाहर की ठंडी हवा और बारिश ने उनका स्वागत किया।

नेहा ने कहा, “हम बच गए इंस्पेक्टर साहब!”

अजय ने कहा, “हाँ नेहा जी, लेकिन असली जंग तो अब शुरू होगी। सूरज खन्ना को पकड़ना है और उसके रसूखदार लोगों की पोल खोलनी है।”

नेहा ने आँखों में चमक भरकर कहा, “अब रुकना नहीं है, इंस्पेक्टर साहब। हम सूरज खन्ना को जेल की सलाखों के पीछे पहुँचाकर ही दम लेंगे।”

बारिश अभी भी हो रही थी, लेकिन इंस्पेक्टर अजय वर्मा और नेहा शर्मा के लिए यह बारिश आज़ादी की बूँदों की तरह थी। हवेली के पिछवाड़े से बाहर निकलने के बाद दोनों ने एक क्षण के लिए राहत की साँस ली। लेकिन वक्त कम था — सूरज खन्ना के लोग हर जगह उनकी तलाश में थे।

अजय ने कहा, “नेहा जी, हमें सूरज खन्ना को सबक सिखाने के लिए मीडिया और कानून दोनों का सहारा लेना होगा। उसकी पहुँच बहुत ऊपर तक है, लेकिन अगर हम जनता के सामने सच ला सके, तो उसकी ताकत कमज़ोर हो जाएगी।”

नेहा ने हाँ में सिर हिलाया। “मैंने तहखाने से जो फाइलें निकाली थीं, उसमें उसके काले धंधों के सबूत हैं — हवेली के नक्शे, तस्करी के रूट, नेताओं के नाम… सब कुछ।”

अजय ने फाइलें लेकर देखा और कहा, “इन्हें लेकर सीधे पुलिस हेडक्वार्टर चलते हैं। वहाँ से हम मीडिया को भी बुला लेंगे और सूरज खन्ना की पोल खोल देंगे।”

नेहा ने कहा, “इंस्पेक्टर साहब, हमें सावधानी से चलना होगा। अगर सूरज खन्ना को भनक लग गई तो वो हमारी हत्या भी करवा सकता है।”

अजय ने दृढ़ आवाज़ में कहा, “अब डरने का वक्त नहीं है। चलो!”

हेडक्वार्टर पहुँचकर अजय ने सबसे पहले कमिश्नर को सारी बात बताई। कमिश्नर ने कहा, “अजय, तुम्हारी बहादुरी की दाद देता हूँ। लेकिन सूरज खन्ना को पकड़ना आसान नहीं है। उसके पास बड़े-बड़े नेताओं की शह है।”

अजय ने कहा, “सर, हमारे पास पुख्ता सबूत हैं। हम सूरज खन्ना को कोर्ट में पेश कर सकते हैं।”

नेहा ने फाइलें और लैपटॉप आगे बढ़ाते हुए कहा, “ये देखिए सर, इसके हर पन्ने पर सूरज खन्ना के गुनाहों के दस्तावेज़ हैं। इसे देखकर कोई भी समझ जाएगा कि वह कितना बड़ा अपराधी है।”

कमिश्नर ने फाइलें पलटते हुए कहा, “बहुत अच्छा काम किया तुम दोनों ने। मैं तुरंत क्राइम ब्रांच की टीम को सूरज खन्ना को पकड़ने भेजता हूँ। और मीडिया को भी बुलाकर प्रेस कॉन्फ्रेंस रखता हूँ ताकि पूरा शहर देख सके कि कानून के हाथ कितने लंबे हैं।”

अजय ने मुस्कराकर कहा, “यही तो हमारी जीत होगी।”

उधर, सूरज खन्ना अपने बंगले में बैठा व्हिस्की का गिलास हाथ में लिए टीवी देख रहा था। जैसे ही उसने ब्रेकिंग न्यूज़ देखी — “पुलिस ने सूरज खन्ना के खिलाफ सबूत जुटाए” — उसके चेहरे का रंग उड़ गया।

“ये कैसे हो सकता है!” सूरज ने गुस्से में गिलास तोड़ दिया। “मुझे गिरफ्तार करने कोई आएगा तो वो जिंदा नहीं लौटेगा।”

क्राइम ब्रांच की टीम ने सूरज खन्ना के बंगले को चारों तरफ से घेर लिया। अजय और नेहा भी मौके पर पहुँच गए। अजय ने माइक से कहा, “सूरज खन्ना, तुम्हें चारों तरफ से घेर लिया गया है। अपने गुनाह कबूल कर लो और बाहर आ जाओ।”

सूरज ने हथियारबंद गार्ड्स को इशारा किया, लेकिन पुलिस की भारी फोर्स देखकर उसके आदमी हथियार डालने लगे। सूरज ने भागने की कोशिश की, लेकिन अजय ने दौड़कर उसे पकड़ लिया और हथकड़ी पहनाते हुए कहा, “अब तुझे कानून के सामने हकीकत का सामना करना होगा।”

सूरज खन्ना ने गुस्से में कहा, “तुम्हें लगता है ये सिस्टम मुझे सजा दिला पाएगा? मेरे पास पैसे हैं, पावर है!”

अजय ने मुस्कराते हुए कहा, “लेकिन अब तुम्हारे खिलाफ पूरा शहर है, सूरज खन्ना। और जब जनता जागती है तो पावर भी नतमस्तक हो जाती है।”

अखबारों की सुर्खियों में अगले दिन यही था — “सूरज खन्ना गिरफ्तार, हवेली के तहखाने से कई अपराधों का खुलासा।”

नेहा ने चैन की साँस ली। “इंस्पेक्टर साहब, हमने कर दिखाया।”

अजय ने मुस्कराते हुए कहा, “हाँ नेहा जी, अब शहर को धुएँ के जाल से आज़ादी मिल गई।”

नेहा की आँखों में गर्व था। “सच की जीत हुई है।”

(समाप्त)

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