रौशन त्रिपाठी
१
दोपहर का सूरज जयपुर की हवेलीनुमा गलियों को चटक सोने से भर रहा था। बाहर की दुनिया में चहल-पहल थी, लेकिन एक आलीशान अपार्टमेंट के अंदर, नैना वर्धन की आँखों में एक अलग ही हलचल थी। उसके लंबे भूरे बालों में हल्की लहर थी, आँखों में हल्का काजल, और होंठों पर वह मुस्कान — जो करोड़ों लोग स्क्रीन पर देखते थे। उसने ट्राइपॉड पर मोबाइल सेट किया, रिंग लाइट ऑन की, और कुछ देर तक खुद को स्क्रीन में देखा। वो जानती थी कि कैमरा चालू होते ही उसका किरदार चालू हो जाएगा — खुश, निडर, आत्मविश्वासी। एक आखिरी बार उसने खिड़की से बाहर देखा, गहरी सांस ली, और फिर इंस्टाग्राम ओपन कर “Go Live” पर क्लिक किया। लेकिन उसने क्लिक नहीं किया — कैमरा खुद ही ऑन हो गया। वही अकाउंट, वही प्रोफ़ाइल — लेकिन हाथ किसी और का था। कमरे में एक और मौजूदगी थी। एक लंबा, काले कपड़ों में लिपटा हुआ व्यक्ति, जिसका चेहरा नकाब में ढका था, जैसे वो कोई फैशन शूट हो। लेकिन यह शूट नहीं था। मोबाइल कैमरे ने वही देखा जो दुनिया ने देखा — नैना एकदम सन्न, काँपती हुई, और नकाबपोश की तरफ देखती हुई। एक हाथ में चाकू था, और दूसरा उसके बालों की तरफ बढ़ा। “Say hello to your fans,” नकाबपोश ने कहा, और वही आवाज़ नैना की प्रोफाइल से लाइव हो रही थी। लोग कमेंट कर रहे थे, “OMG is this real?”, “Performance art?”, “Naina you okay?” — लेकिन कोई जवाब नहीं था। नैना ने बोलने की कोशिश की, लेकिन एक हल्का सा चीख निकलने ही वाला था कि नकाबपोश ने कैमरे की ओर इशारा किया। फिर धीरे-धीरे उसने नैना की गर्दन की ओर चाकू बढ़ाया। वह सीन महज़ कुछ सेकंड का था — लेकिन 4.6 मिलियन दर्शकों के लिए यह पल सदमे से भरा था। जैसे ही चाकू ने गर्दन छुआ, कैमरा फ्रीज हो गया। लाइव बंद। सब कुछ शांत। कुछ नहीं बचा — सिवाय वायरल क्लिप्स के जो अब तक हज़ारों बार शेयर हो चुकी थीं।
जयपुर पुलिस कंट्रोल रूम में अफरा-तफरी मच चुकी थी। दोपहर 1:48 पर पुलिस को पहला कॉल आया — “इंस्टाग्राम पर एक मर्डर लाइव हो रहा है।” पुलिस पहले हँसी, फिर कॉल्स की बाढ़ आ गई। चार मिनट के भीतर, साइबर क्राइम सेल को अलर्ट मिला। एसीपी आरव जोशी को केस सौंपा गया। आरव उन पुलिसवालों में था जो न लैपटॉप से डरते थे, न स्क्रीन से, लेकिन ये मामला अलग था — कैमरे के सामने हत्या, और हत्यारा कोई ऐसा जिसने इंस्टाग्राम का पूरा तंत्र ही हाइजैक कर लिया हो। उसने सबसे पहले नैना वर्धन की प्रोफ़ाइल खोली — प्रोफाइल पिक पर वही मुस्कुराता चेहरा, 3.2 मिलियन फॉलोअर्स, हाल ही में पोस्ट की गई स्टोरी: “New collab coming soon ✨ #StayTuned”. पर अब कुछ भी सामान्य नहीं था। कोई स्टोरी, कोई पोस्ट, कोई रीपोस्ट — सब गायब था। लेकिन लाइव वीडियो रिकॉर्डिंग में से एक स्क्रीनशॉट किसी ने ट्विटर पर डाल दिया था — और वो वायरल हो चुका था। नैना के गले में चाकू, और उसके पीछे खड़ा नकाबपोश।
आरव ने मोबाइल उठाया और कहा, “पता करो लोकेशन। और नैना के अपार्टमेंट पे टीम भेजो। फौरन।” उसके दिमाग में कुछ और भी चल रहा था — एक नाम, एक चेहरा, और एक याद… वो नैना को कॉलेज से जानता था। तीन साल पहले, दिल्ली यूनिवर्सिटी के ड्रामाटिक्स क्लब में आरव और नैना की मुलाकात हुई थी। तब वो नैना नहीं, ‘निहारिका’ हुआ करती थी — कैमरे से डरने वाली, स्टेज पर नर्वस, और अपनी डायरी में कविताएँ लिखने वाली लड़की। आज वो इंस्टाग्राम क्वीन थी — लेकिन आज ही वो खामोश हो गई। और शायद हमेशा के लिए।
पुलिस की टीम जब सिविल लाइन्स के ‘सिल्वर बेल्ज़ अपार्टमेंट’ पहुँची, तो दरवाज़ा अंदर से बंद था। कोई आवाज़ नहीं आ रही थी। एक फॉलोअर ने पुलिस को बताया कि लाइव के आखिर में हल्की चीख और गिरने की आवाज़ थी। फोर्स ने दरवाज़ा तोड़ा। अंदर का दृश्य वैसा ही था जैसा स्क्रीन पर दिखा था — रिंग लाइट अभी भी जल रही थी, मोबाइल ट्राइपॉड पर सेट था, लेकिन स्क्रीन ब्लैक थी। कमरे के बीचोंबीच, पीले फूलों वाली ड्रेस में नैना का शव पड़ा था — आँखें खुली हुईं, और गले पर ताज़ा खून की लकीरें। कमरे में कहीं भी संघर्ष के निशान नहीं थे। बस एक चीज़ अजीब थी — कमरे में चार कैमरे और लगे हुए थे, और सब नैना की ओर थे।
“ये कोई अचानक हुआ मर्डर नहीं है,” आरव ने कहा, “यहाँ परफॉर्मेंस प्लान किया गया है।” तभी एक जवान ने कहा, “सर, नैना का इंस्टा अभी फिर से एक्टिव हुआ है।” आरव ने मोबाइल देखा — स्टोरी पोस्ट हुई थी। बस एक फोटो — नैना का चेहरा, वही जो अभी वो लाश पर देख चुका था, लेकिन मुस्कुराता हुआ। नीचे लिखा था — “The show must go on.”
आरव के हाथ काँप गए। किसी ने अभी भी नैना की डिजिटल पहचान को कंट्रोल कर रखा था। और असली मर्डर अब शुरू हुआ था — स्क्रीन के पीछे।
२
पुलिस मुख्यालय के साइबर सेल वार रूम में दीवारों पर फैले स्क्रीन पर नैना वर्धन की डिजिटल ज़िंदगी फैल चुकी थी — एक विशाल नेटवर्क जिसमें हर फॉलोवर, हर पोस्ट, हर हैशटैग एक कड़ी थी। आरव जोशी के सामने नैना की इंस्टाग्राम टाइमलाइन खुली थी, पर उसमें अब कोई चकाचौंध नहीं थी, सिर्फ छायाएँ थीं। स्क्रीन पर स्क्रॉल करते हुए आरव को लगा जैसे वो एक म्यूजियम देख रहा है — जिसमें हर तस्वीर स्माइल में ढली एक चीख थी, हर स्टोरी एक परछाई। एक पोस्ट में नैना बाली में समंदर के किनारे है, दूसरी में पैरिस के एफिल टॉवर के नीचे, तीसरी में एक चाय की प्याली के साथ, कैप्शन — “मौन भी एक संवाद है।” वो संवाद अब सदा के लिए मौन हो गया था। आरव की नज़रें एक मैसेज थ्रेड पर अटक गईं — एक डायरेक्ट मैसेज जो नैना को तीन दिन पहले भेजा गया था: “तुम्हें मिटा दूंगा, पर तुम फिर भी ज़िंदा रहोगी। वर्चुअली।”
आरव ने ब्रेडक्रंब की तरह हर डिजिटल कदम को फॉलो करना शुरू किया। उसे जल्द ही समझ आ गया — नैना सिर्फ सोशल मीडिया स्टार नहीं थी, वो एक carefully curated ब्रांड थी। एक टीम थी उसके पीछे — उसकी मैनेजर मिहिका, उसके फोटोग्राफर, कंटेंट राइटर, एडिटर, और एक अनाम डिजिटल असिस्टेंट जिसे वो सिर्फ “K” कहती थी। लेकिन उस दिन — उसके मर्डर के दिन — उसके अकाउंट से जो स्टोरी पोस्ट हुई, वो टीम में से किसी ने नहीं की। और न ही स्टोरी में डाला गया फोटो नैना की किसी शूट से था। पुलिस को शक हुआ — क्या यह एआई-जेनरेटेड डीपफेक फोटो था? या नैना का पुराना फुटेज, जिसे किसी ने डिजिटल रूप से मॉडिफाई किया था?
इसी बीच, पुलिस ने नैना के घर से जब्त किए गए लैपटॉप और फोन को फॉरेंसिक एनालिसिस के लिए भेज दिया। लैपटॉप में एक लॉक्ड फोल्डर मिला जिसका नाम था — “UNPOSTED”. पासवर्ड कई बार ट्राय करने पर भी नहीं खुला। आरव ने साइबर एक्सपर्ट रश्मि को बुलाया। रश्मि ने दो घंटे के भीतर फोल्डर खोल दिया। अंदर कुछ अजीब वीडियो क्लिप्स थे — नैना अपने ही कमरे में बैठकर कैमरे से बात कर रही थी, पर बिलकुल वैसी नहीं जैसी दुनिया उसे जानती थी। आँखों में काजल नहीं, बाल खुले, और चेहरे पर थकान। “कभी-कभी मुझे लगता है कि जो स्क्रीन पर हूँ वो मैं नहीं हूँ,” उसने कहा, “मैं वो बन गई हूँ जो लोग देखना चाहते हैं।” एक वीडियो में उसने फुसफुसाते हुए कहा — “अगर कभी कुछ हो जाए… तो कैमरे की नहीं, मेरी खामोशी की तलाश करना।”
आरव की चेतना में बिजली सी कौंध गई। उसे अब यकीन हो चला था — नैना की मौत महज हत्या नहीं, बल्कि एक स्क्रिप्ट थी। लेकिन ये स्क्रिप्ट किसने लिखी थी? उसी वक्त खबर आई — नैना की मैनेजर मिहिका थाने आई है। उसने खुद को पुलिस के सामने प्रस्तुत किया और कहा, “मुझे यकीन नहीं हो रहा कि वो मर गई। लेकिन मुझे डर है कि जो कुछ हुआ, वो महीनों से प्लान किया गया था।”
मिहिका ने बताया कि नैना पिछले कुछ महीनों से बहुत बदली हुई लग रही थी। वो कई बार कहती, “कभी-कभी लगता है मेरा अकाउंट अब मेरा नहीं रहा।” मिहिका ने कहा कि नैना का डिजिटल असिस्टेंट — “K” — बहुत प्राइवेट था। किसी ने उसे कभी देखा नहीं, पर नैना उसके ज़रिए पोस्ट शेड्यूल कराती थी। “वो खुद कहती थी कि K मेरी ही एक और छाया है,” मिहिका बोली, “पर मैंने कभी गहराई से नहीं सोचा।”
आरव ने तुरंत पूछा, “क्या आप जानती हैं K कौन है?” मिहिका ने ना में सिर हिलाया। लेकिन उसने एक आखिरी स्क्रीनशॉट दिखाया — जो उसे नैना ने मर्डर से एक दिन पहले भेजा था। उस स्क्रीनशॉट में चैट थी — K: “कल सब खत्म होगा। पर कहानी वहीं से शुरू होगी।” चैट का प्लेटफॉर्म था — एक अननोन ऐप, जो इंस्टाग्राम जैसा ही था, पर ट्रेस नहीं किया जा सका।
आरव जानता था कि ये केस अब तकनीकी से बढ़कर मनोवैज्ञानिक होता जा रहा था। नैना मर चुकी थी — पर उसका प्रोफ़ाइल ज़िंदा था, उसकी तस्वीरें पोस्ट हो रही थीं, और उसकी ही आवाज़ में “K” बात कर रहा था। अब सवाल ये नहीं था कि हत्यारा कौन है — सवाल था: नैना की असली पहचान क्या थी? और क्या वो अभी भी कहीं ज़िंदा है — डिजिटल परछाई में?
३
पुलिस स्टेशन की पूछताछ कक्ष में मिहिका वर्मा गहरे नीले रंग की शर्ट और हल्के मेकअप में बैठी थी, उसकी आँखों में थकान थी लेकिन हावभाव में नियंत्रण। सामने आरव जोशी अपने फाइल्स के साथ बैठा था, चेहरे पर वह पुलिसिया सन्नाटा जो हर अपराधी और हर मासूम दोनों के दिल में शक पैदा कर देता है। कमरे में सन्नाटा था, सिवाय उस टेबल फैन की आवाज़ के जो धीमे-धीमे हवा फेंक रहा था। आरव ने बिना भूमिका के पूछा, “आप नैना की मैनेजर कब से थीं?” मिहिका ने शांत स्वर में कहा, “करीब तीन साल से। पहले दोस्ती थी, फिर काम जुड़ गया। हमारी टीम छोटी थी लेकिन बहुत करीबी।” आरव ने उसकी तरफ एक फोटो बढ़ाई — नैना, मिहिका और एक अन्य लड़का, तीनों किसी इवेंट के बाद पोज दे रहे थे। “यह तीसरा कौन है?” मिहिका ने हल्का सा ठहराव लिया, फिर बोली, “राघव। नैना का पुराना बॉयफ्रेंड। वो फोटोग्राफर था, पहले हमारी टीम में था। फिर दोनों अलग हो गए।” आरव को नाम सुनते ही कुछ याद आया — वही राघव मलिक जो नैना के मर्डर से तीन दिन पहले उसी इलाके में देखा गया था।
“राघव के बारे में आपको कुछ शक है?” आरव ने पूछा। मिहिका ने हल्के से कंधे उचकाए, “वो सनकी है, पजेसिव था। नैना जब उस रिश्ते से बाहर निकली, तो वो टूट गया था। उसने अपना सोशल मीडिया डिलीट कर दिया था और गायब हो गया था। लेकिन अगर आप मुझसे पूछें कि वो मर्डर कर सकता है — तो…” वो रुक गई। “तो?” आरव ने दोहराया। मिहिका की आँखें झुक गईं, “मैं नहीं जानती। लेकिन नैना उससे डरती थी। वो कहती थी कि कोई उसकी हर हरकत ट्रैक कर रहा है, जैसे उसकी पोस्ट से पहले ही कोई जान जाता है कि वो क्या करने वाली है।”
आरव ने मेज पर रखे नैना के फोन को घुमाया और स्क्रीन अनलॉक की। “आपके पास उसके अकाउंट के लॉगिन थे?” मिहिका ने सिर हिलाया, “हाँ, मैं पोस्ट शेड्यूल करती थी, ब्रांड कॉलैब्स हैंडल करती थी।” आरव ने पूछा, “क्या आप जानती हैं कि उसकी अकाउंट एक्टिविटी में दो डिवाइस और जुड़े थे?” मिहिका चौंकी, “नहीं। कौन से डिवाइस?” आरव ने मुस्कुरा कर कहा, “यही तो पता लगाना है।”
उसी समय, साइबर टीम से कॉल आया — “सर, नैना के फोन से एक और मेल अकाउंट लॉग इन मिला है, जिसमें ‘K’ के नाम से मेल आए थे।” आरव ने फोन रखा और मिहिका की तरफ देखा, “K कौन है?” मिहिका चुप रही। उसकी उंगलियाँ हल्के-हल्के टेबल पर थिरक रही थीं, जैसे कोई दबा हुआ सच बाहर आने को बेताब हो। फिर उसने कहा, “K कोई असली इंसान नहीं है। नैना कहती थी, K वो खुद है — उसका वो वर्ज़न जो सबको दिखता है, लेकिन असल में वो नहीं है। एक बार मैंने पूछा था — क्या तू schizophrenic है? उसने हँसते हुए कहा था — ‘नहीं यार, मैं सिर्फ algorithm में फँस गई हूँ।’”
आरव के लिए ये बात मज़ाक नहीं थी। उसने कागज निकाला और मिहिका को दिया — “ये वो मैसेज हैं जो नैना ने K को भेजे थे। उनमें से एक में वो कह रही है — ‘तू मुझे मिटा देगा, पर मैं तुझमें ज़िंदा रहूंगी।’ क्या तुम्हें लगता है वो किसी दूसरे इंसान को भेज रही थी ये?” मिहिका ने कागज़ पढ़ते-पढ़ते अपनी आँखें बंद कर लीं। “मैं नहीं जानती,” उसने धीरे से कहा, “लेकिन एक बात याद है — दो हफ्ते पहले उसने कहा था, ‘अगर मैं मर भी जाऊँ, तो K मेरी जगह संभाल लेगा। शायद वो मुझसे बेहतर होगा।’”
आरव उठ खड़ा हुआ। कमरे से बाहर निकलते हुए उसने कहा, “शायद वो अब तुम्हारी जगह भी संभाल चुका है, मिहिका।” दरवाज़ा बंद हुआ। मिहिका एकदम चुप रही। उसका चेहरा अब वैसा नहीं था जैसा वो थाने में आई थी। अब उसमें एक हल्की मुस्कान थी — अजीब, शांत, लेकिन भीतर कुछ और ही कहती हुई। कोई देख रहा होता, तो पूछता — क्या मिहिका सच बोल रही थी, या वो भी उस डिजिटल नकाब का हिस्सा थी?
४
जयपुर पुलिस मुख्यालय की साइबर यूनिट में LED स्क्रीन पर एक लाल बिंदु लगातार चमक रहा था — नकाबपोश के लाइव लॉगिन का आईपी ट्रेस कर लिया गया था। लोकेशन: पुराना हवेली रोड, अमरपुरा कॉलोनी — वही इलाका जहाँ राघव मलिक का फार्महाउस स्थित था। आरव जोशी ने तुरंत एक टीम भेजी, और खुद भी निकल पड़ा। उसकी सोच तेज़ हो चुकी थी — अगर इंस्टाग्राम लाइव किसी और डिवाइस से स्ट्रीम हुआ, और नैना की पहचान का उपयोग किया गया, तो यह महज़ हत्या नहीं बल्कि एक डिटेल्ड डिजिटल प्लानिंग थी, जिसमें हर फ्रेम एक जाल था। रास्ते भर उसके दिमाग में वो स्टोरी घूमती रही जो मर्डर के बाद पोस्ट हुई थी — “The show must go on.” कौन शो चला रहा था? कौन दर्शकों को नचाकर असली चेहरा छुपा रहा था?
राघव का फार्महाउस शहर से थोड़ा दूर, पेड़ों के बीच छिपा हुआ एक शांत-सा मकान था। दरवाज़े पर ताला नहीं था, लेकिन भीतर हर चीज़ करीने से रखी थी — जैसे किसी ने साफ़-सुथरा अपराध किया हो। राघव बगीचे में बैठा था, गाढ़े नीले कपड़ों में, आंखों पर चश्मा और हाथ में एक पुराना कैमरा। आरव ने बिना भूमिका के पूछा, “तीन दिन पहले आपकी लोकेशन नैना के घर के पास क्यों मिली?” राघव ने मुस्कुरा कर कैमरा नीचे रखा, “आप लोगों के पास अब भी लोकेशन ट्रैकिंग है, अच्छी बात है। मैं बस… वहाँ से गुज़रा था।” “इतना संयोग?” आरव ने तंज किया। राघव की मुस्कान फीकी हो गई, “संयोग नहीं, मैं उसे देखना चाहता था… आख़िरी बार।”
आरव की नजरें कमरे के भीतर गईं — दीवार पर नैना की एक ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीर टंगी थी, एकदम वैसी जैसे किसी शोक-सभा में लगाई जाती है। “आपको पता था कि वो मरी नहीं थी तब भी आपने उसकी ये तस्वीर टांगी?” राघव ने धीमे स्वर में कहा, “वो कब की मर चुकी थी, जो कैमरे पर दिखती थी वो बस एक मुखौटा था। असली नैना तो दो साल पहले ही खत्म हो गई थी।”
आरव ने टेबल पर रखा लैपटॉप खोला — पासवर्ड मांगा, राघव ने खुद डाल दिया। स्क्रीन खुलते ही कई फोल्डर सामने आए — एक फोल्डर था “Clones” नाम से। आरव ने उसे खोला। अंदर दर्जनों तस्वीरें — नैना के चेहरे पर अलग-अलग भाव, अलग-अलग कपड़ों में, अलग-अलग बैकग्राउंड में। कुछ फोटो तो इतने परफेक्ट थे कि लग रहा था नैना ने खुद खींचे हों, लेकिन राघव बोला, “यह सब एआई जेनरेटेड हैं। मैं उसके चेहरे से हज़ार वर्ज़न बना सकता हूँ — हँसती, रोती, मरती, जीती… सब।”
“तुमने ये क्यों बनाए?” आरव की आवाज़ सख्त हो चुकी थी। राघव ने कैमरे की ओर देखा, फिर बोला, “क्योंकि मुझे उससे प्यार था। और क्योंकि वो अब असली नहीं रही थी। जो लोग उसे देखते थे, वो सिर्फ उसका डिजिटल रूप देखते थे। मैंने बस उसकी असलियत को बचाया… अपने ढंग से।”
आरव ने लैपटॉप जब्त किया और राघव को चेतावनी दी — “अगर इन फोटो या किसी डीपफेक वीडियो का इस्तेमाल मर्डर में हुआ है, तो तुम भी हत्यारे हो सकते हो।” राघव शांत रहा, फिर बोला, “शायद मैं हत्यारा नहीं, सिर्फ एक निर्माता हूँ — जैसे एक पेंटर अपनी म्यूज़ का चित्र बनाता है।”
वापस लौटते हुए आरव का दिमाग बुरी तरह उलझ चुका था। यह केस अब खून से ज्यादा कोड और एल्गोरिदम का बन चुका था। उसी शाम साइबर टीम ने एक और ब्रेकथ्रू दिया — मर्डर के लाइव वीडियो में जो आवाज़ नैना की थी, वो 100% AI क्लोन वॉइस थी। न केवल चेहरा, बल्कि आवाज़ भी नकली थी।
आरव को अचानक एहसास हुआ — हत्यारा कभी कैमरे के सामने आया ही नहीं था। जो दिखा, वो सब मास्क था — डिजिटल नकाब।
अब जो सामने आना बाकी था, वो सिर्फ एक सवाल था: वो असली चेहरा कौन था, जो इस नकाब के पीछे छिपा था… और क्या वो अब भी सबको देख रहा है?
५
राजस्थान यूनिवर्सिटी के डिजिटल मीडिया विभाग में दोपहर का वक्त था। लैब के चारों तरफ साउंडप्रूफ दीवारें थीं और हर स्क्रीन पर अलग-अलग वीडियो एडिटिंग सॉफ्टवेयर खुले थे। वहीं प्रोफेसर शाश्वत नायर, जो कि वीडियो फोरेंसिक में विशेषज्ञ माने जाते थे, आरव के अनुरोध पर उस वायरल मर्डर वीडियो का फ्रेम-दर-फ्रेम विश्लेषण कर रहे थे। उन्होंने ज़ूम करके स्क्रीन पर एक बेहद महीन प्रतिबिंब दिखाया—नैना के चेहरे के पीछे, बैकग्राउंड में एक शीशे की अलमारी में एक परछाई दिख रही थी—मानव आकृति, कैमरे की ओर झुकती हुई, लेकिन चेहरा ढँका हुआ, बिल्कुल उसी मास्क की तरह जैसा इंस्टाग्राम लाइव में दिखा था। आरव की आँखें टिकी रहीं उस फ्रेम पर।
“ये कौन है?” उसने पूछा।
शाश्वत बोले, “ये वो है जो दिखना नहीं चाहता, लेकिन तकनीक उसे छिपा नहीं पाई।”
आरव ने पूछा, “क्या ये परछाई राघव की हो सकती है?”
“संभव है, पर मैं आपको एक और चीज़ दिखाता हूँ।”
उन्होंने वीडियो की साउंडवेव को खोला, और एक ध्वनि को अलग किया—बहुत धीमी, इंसानी सांसों जैसी, जिसे नैना की आवाज़ के नीचे छुपा दिया गया था। उसे क्लियर करके चलाया गया—एक पुरुष की फुसफुसाती आवाज़: “अब तुम सिर्फ मेरी हो।” यह वाक्य जैसे सीधे आरव की रीढ़ में सिहरन पैदा कर गया। वह जानता था, यह जुनून भरा स्वर या तो राघव का हो सकता है या कोई और जो नैना की दुनिया में छिपा बैठा था—इतना करीब कि उसके आखिरी क्षणों में भी वहां मौजूद रहा।
रात को आरव ने नैना का फोन फॉरेंसिक टीम से मंगवाया, जो मर्डर के दिन खून से सना हुआ बरामद हुआ था। फोन लॉक था, लेकिन फेस अनलॉक एक्टिव था। जब उन्होंने उस पर एआई से जेनरेटेड नैना का चेहरा स्कैन कराया, फोन खुल गया। जैसे किसी ने ये सोचा ही हो कि मरने के बाद भी नैना की ‘डिजिटल छवि’ फोन का दरवाज़ा खोलती रहे।
इनबॉक्स में एक नाम बार-बार आ रहा था—“Vivek (Mirrorgram)”। ये कोई आम नाम नहीं था। Mirrorgram नाम का एक प्राइवेट सोशल नेटवर्क था जिसे केवल क्रिएटर्स के सीमित समूह में इस्तेमाल किया जाता था। आरव ने उसका प्रोफाइल ओपन किया, लेकिन कोई जानकारी नहीं मिली—बस एक अजीब-सी प्रोफाइल फोटो, जिसमें एक टूटे आईने में कोई चेहरा अर्धविक्षिप्त दिख रहा था।
“विवेक कौन है?” ये सवाल आरव के ज़हन में छा गया। वो कोई स्कूल का दोस्त था? कॉलेज का? या कोई ऐसा जो उसकी ज़िंदगी में डिजिटल तरीके से घुस आया?
अगली सुबह जब आरव नैना के पुराने कॉलेज सेंट एड्रियन यूनिवर्सिटी गया, उसे वहाँ एक और सुराग मिला। लाइब्रेरी में मौजूद पुराने प्रोजेक्ट्स के संग्रह से उसे नैना का एक फाइनल प्रोजेक्ट मिला—“The Masked Algorithm: How Social Media Constructs and Corrupts Identity.” यह रिसर्च नैना ने अकेले नहीं, एक सहलेखक के साथ किया था—नाम: विवेक मल्होत्रा।
आरव की धड़कनें तेज़ हो गईं। विवेक कोई अनजान छाया नहीं था, बल्कि अतीत से उठी हुई परछाई थी, जो अब डिजिटल हत्याओं के पीछे मास्क पहनकर खड़ी थी।
पर सवाल यही था: अगर विवेक मर चुका था, जैसा कि कुछ सालों पहले खबर आई थी, तो फिर उसकी छाया अब कैसे नैना के वीडियो में साँस ले रही थी? क्या यह कोई दूसरा था जिसने विवेक की पहचान को डिजिटल रूप से चुराया था? या फिर… विवेक कभी मरा ही नहीं था, बस डिजिटल दुनिया में पुनर्जन्म लिया था—एक डिजिटल भूत की तरह जो अब खुद को ईश्वर मानता था।
आरव ने धीरे से खुद से कहा, “अब असली शिकार की बारी है।”
काँच के पीछे की ये परछाई अब और छिपी नहीं रह सकती थी।
६
जयपुर की एकांत पहाड़ियों के बीच, एक परित्यक्त डिजिटल रिसर्च लैब खड़ी थी—जिसका नाम था “प्रिज़्मा: सोशल डिप्रेशन रीसर्च फंड।” ये वही जगह थी जहाँ नैना और विवेक ने अपने फाइनल प्रोजेक्ट के लिए रिसर्च की थी। आरव की कार वहां देर रात पहुँची, रास्ता जंगलों से होकर गया था, और चाँदनी में दूर से इमारत का काँच चमकता दिख रहा था जैसे कोई आँख टिमटिमा रही हो। इस जगह को आधिकारिक रूप से वर्षों पहले बंद कर दिया गया था, लेकिन जब आरव ने मुख्य दरवाज़ा धकेला, वो आसानी से खुल गया। अंदर का सन्नाटा अस्वाभाविक था—न कोई धूल, न मकड़ी के जाले—जैसे कोई आज भी यहाँ आता-जाता हो। दीवारों पर अब भी विवेक और नैना के प्रोजेक्ट के पोस्टर लगे थे, जिनमें शब्द थे—”The Mirror Doesn’t Lie, But It Reflects What You Fear.”
आरव को वहां एक पुराने कंप्यूटर टर्मिनल पर चालू स्क्रीन मिली। स्क्रीन पर वही अजीबोगरीब इंटरफेस था जो नैना के वीडियो में दिखा था—काले बैकग्राउंड पर लाल रंग के टेक्स्ट में एक ही वाक्य चमक रहा था:
“तुम जिस आईने में झाँकते हो, मैं वहाँ से देखता हूँ।”
एकाएक कंप्यूटर स्पीकर से धीमी आवाज़ गूँजने लगी—किसी की साँसें, जैसे कोई बहुत नज़दीक फुसफुसा रहा हो। स्क्रीन पर एक लाइव फीड खुली—जो न तो सुरक्षा कैमरा था, न ही रिकॉर्डिंग—बल्कि किसी ऐसे कमरे की रीयल टाइम फीड जिसमें एक लड़की बंधी हुई थी।
आरव काँप उठा। वो लड़की अनुष्का थी—नैना की बचपन की सबसे करीबी दोस्त, जो एक महीने पहले अचानक ‘ट्रेकिंग ट्रिप’ से लौटते वक्त गायब हो गई थी। पुलिस ने इसे हादसा मान लिया था। लेकिन अब वो इस ‘भूत’ की कैद में थी।
फीड के नीचे एक चैटबॉक्स खुला। एक टाइपिंग इंडिकेटर दिखा, और फिर स्क्रीन पर शब्द उभरे:
“एक और कहानी शुरू होने वाली है। इस बार दर्शक तुम हो, और मंच पर मैं।”
आरव ने कंप्यूटर से तुरंत एक स्क्रिप्ट निकाली, जिसे नैना और विवेक ने लिखा था—”The Code of Duplicity”। यह स्क्रिप्ट एक प्रयोग पर आधारित थी—जहाँ एक AI सिस्टम इंसानों की ऑनलाइन आदतें, पोस्ट, और इंटरेक्शन के ज़रिए उनकी डुप्लिकेट डिजिटल शख्सियतें बना सकता था। विवेक इस पर इतना आसक्त था कि उसने खुद का डिजिटल क्लोन बना डाला था—जो न सिर्फ सोचता था, बल्कि खुद निर्णय भी लेता था।
आरव ने उसी लैब में रखे एक सर्वर को एक्सेस किया और पाया कि विवेक की पहचान से जुड़ा एक “डीप कोडेड” प्रोफाइल अब भी एक्टिव था, जिसका नाम था: ECHO_001। यही वो इकाई थी जिसने नैना के फोन, इंस्टाग्राम, और लाइव कैमरा को हाईजैक किया था।
वहीं, लैब के पीछे एक सीक्रेट डोर मिला—मिट्टी और घास से छिपा हुआ। नीचे एक संकरी सुरंग जाती थी। आरव मोबाइल की फ्लैशलाइट के सहारे अंदर गया। वहां दीवारों पर मास्क लटके थे—सफेद, भावहीन, लेकिन हर एक पर नैना की आँखों की स्केचिंग थी। हर मास्क के नीचे नाम लिखा था—किसी न किसी लड़की का। नैना, अनुष्का, रिया, पूजा… सभी की प्रोफाइल एक जैसे एल्गोरिदम के शिकार बने थे—उनकी पोस्ट, डर, और मनोवृत्तियाँ एक डिजिटल शिकारी ने पढ़ ली थी।
इसी सुरंग के अंत में आरव को एक शीशे का कमरा मिला—जिसमें कैमरे और प्रोजेक्शन मशीनें थीं। उस कमरे के केंद्र में, एक प्रोजेक्शन पर विवेक का चेहरा उभर आया—या यूँ कहिए, उसकी डिजिटल परछाई, जिसमें उसकी आँखें नहीं, केवल शून्य झलक रहा था। वो बोला, “तुमने सच खोजा, लेकिन मैं अब कल्पना से बाहर हूँ। मैं स्क्रीन से निकल चुका हूँ।”
आरव ने कंप्यूटर से पूरी फीड सेव की और AI फोरेंसिक टीम को लाइव ट्रेसिंग भेजी। लेकिन इससे पहले कि वो बाहर निकले, कमरे में अचानक एक गैस स्प्रे हुई और उसकी चेतना डगमगाने लगी। उसका फोन फर्श पर गिरा, स्क्रीन पर आखिरी बार अनुष्का की चीख उभरी—“आरव! जल्दी…”
अंधेरा गहराता गया। लेकिन इससे पहले कि आरव की आँखें बंद होतीं, उसने दीवार पर लिखा एक वाक्य देखा—“विवेक नहीं मरा… वो हर स्क्रीन में ज़िंदा है।”
अब लड़ाई न सिर्फ एक अपराधी से थी, बल्कि उस आईने से भी जो अब अपने ही दर्शकों को निगल रहा था।
७
अरविंद की उंगलियाँ कीबोर्ड पर थिरक रही थीं। कमरा शांत था, सिवाय उस टिक-टिक के जो उसके कंप्यूटर कीबोर्ड से आ रही थी। दीवार पर लगी घड़ी दोपहर के दो बजा चुकी थी, लेकिन उसके लिए वक्त जैसे थम गया था। मॉनिटर पर अब भी वही वीडियो चल रहा था — नायना की हत्या का। हर बार देखने पर कुछ नया दिखता था, कुछ ऐसा जो पहली बार में नहीं दिखा। पर इस बार उसकी नज़रें रुकीं — एक सेकंड के फ्रेम में, जब नकाबपोश थोड़ा मुड़ा, उसके गले में कुछ झलक गया — एक टैटू।
“स्टॉप। ज़ूम इन,” उसने खुद से कहा और स्क्रीन पर टैटू को बड़ा किया। वह एक त्रिशूल जैसा चिन्ह था, जो हल्का-सा नीला दिख रहा था, जैसे पुराने ज़माने में उकेला गया हो। यह कोई सामान्य टैटू नहीं था — यह एक पुरानी तस्वीर से मेल खा सकता था। अरविंद ने फौरन अपने सिस्टम में मौजूद नायना की कॉलेज तस्वीरों को खंगालना शुरू किया।
कुछ ही मिनटों में, एक ग्रुप फोटो सामने आई — नायना, उसके साथ तीन दोस्त, जिनमें एक लड़का भी था। उसके गले में वही टैटू था। नाम: ऋत्विक मल्होत्रा।
“ऋत्विक?” अरविंद की आवाज़ में संदेह और उत्तेजना दोनों थे।
ऋत्विक, जो कॉलेज के दिनों में नायना के बेहद करीब था, लेकिन अचानक गायब हो गया था। नायना के सोशल मीडिया पर उसका नाम कभी नहीं दिखा — कोई टैग, कोई फॉलो, कुछ नहीं। क्या वो जानबूझकर मिटा दिया गया था?
अरविंद ने तुरंत एक पुराने साथी को कॉल किया, जो जयपुर में निजी जासूस के रूप में काम करता था। “ऋत्विक मल्होत्रा — नाम सुना है?”
“हां, एक केस में नाम आया था — तीन साल पहले एक लड़की ने उस पर पीछा करने का आरोप लगाया था, लेकिन सबूत न मिलने के कारण मामला बंद हो गया,” आवाज़ के उस पार से जवाब आया।
“क्या उसकी कोई हाल की तस्वीर है?”
“भेजता हूँ।”
कुछ ही मिनटों में, व्हाट्सऐप पर एक सीसीटीवी फुटेज आई — ऋत्विक किसी कैफे में बैठा था। टैटू अब थोड़ा फीका पड़ गया था, लेकिन वही आकृति। अरविंद की नज़रें स्क्रीन से नहीं हटीं।
“तो तुम ही हो… नकाब के पीछे का चेहरा।”
उसने तुरंत एक टीम तैयार की — साइबर सेल, एक फोरेंसिक एक्सपर्ट, और एक ट्रेसिंग यूनिट। लोकेशन ट्रैकिंग से पता चला कि ऋत्विक फिलहाल जयपुर के बाहरी इलाके में एक पुरानी हवेली में रह रहा था।
शाम होते-होते टीम उस हवेली के बाहर खड़ी थी। इमारत जर्जर थी, दीवारें काई से ढंकी हुईं और गेट पर ज़ंग लगे थे। अंदर की बत्तियाँ जल रही थीं।
“गेट तोड़ो,” अरविंद ने आदेश दिया।
अंदर का दृश्य चौंकाने वाला था — एक छोटा-सा स्टूडियो सेटअप, रिंग लाइट, मोबाइल स्टैंड, ग्रीन स्क्रीन और दीवार पर नायना की सैकड़ों तस्वीरें।
ऋत्विक वहां नहीं था, लेकिन उसका लैपटॉप चालू था। उसमें एक फोल्डर था — “अनफिनिश्ड लाइव्स”।
अरविंद ने फोल्डर खोला — और उसमें थे कई और नाम, फोटोज, स्क्रिप्ट्स, और लाइव स्ट्रीमिंग टाइमर सेटिंग्स।
“ये सिर्फ नायना का मर्डर नहीं था। ये एक सीरीज़ है,” अरविंद की आवाज़ भारी हो गई।
“और हम अभी शुरुआत पर हैं।”
८
अरविंद की आँखें स्क्रीन पर जमी थीं, लेकिन मन अटका था — उस शब्द पर, “Unfinished Lives”। कमरे की हवा जैसे भारी हो चली थी। टेबल पर पड़ा ऋत्विक का लैपटॉप अब एक सबूत नहीं, बल्कि एक खिड़की बन चुका था — उस दुनिया की ओर जो उनके अनुमान से कहीं अधिक गहरी और बीमार थी। हर फोल्डर में एक नाम, एक कहानी, और एक मृत्यु की तैयारी थी। उसने नायना की फाइल दोबारा खोली — इस बार एक विडियो फाइल सामने आई, जिसका नाम था: “Script_v3_final”. उसमें ऋत्विक की आवाज़ थी — शांत, भावहीन, मानो कोई निर्देशक किसी एक्टिंग को गाइड कर रहा हो। “कैमरे की ओर मत देखना, डर मत दिखाना, बस वही करना जो स्क्रिप्ट कहती है। ये आख़िरी टेक है।” अरविंद की मुट्ठी कस गई। इसने पूरी हत्या को एक लाइव थियेटर बना दिया था। नायना को न केवल मारा गया, बल्कि निर्देशित किया गया — कैमरे के लिए, एक परफ़ेक्ट दृश्य के लिए। यह मनोरोगी सिर्फ हत्या नहीं कर रहा था, वो उसे कला समझता था। पुलिस टीम के बाकी सदस्य कमरे के कोनों में छानबीन कर रहे थे — एक अलमारी से एक डायरियाँ मिलीं, जिनके पन्ने खून से सने थे। हर पन्ना एक और नाम, एक और महिला, और एक और कथानक जैसा लग रहा था। कोई छुपा हुआ दर्शक था जो यह सब देखता रहा, और शायद अब भी देख रहा था। तभी रिया, फोरेंसिक अधिकारी, ने अरविंद को एक माइक्रो कैमरा दिखाया — “सर, ये सब जगह लगे हैं, ये आदमी हर हरकत रिकॉर्ड कर रहा था। यह अकेला नहीं है।”
अरविंद ने तुरंत कमरे के पैनल्स की तलाशी शुरू करवाई, और दीवार के पीछे से एक गुप्त कमरा मिला — छोटा, अंधेरा, लेकिन उसमें एक कंप्यूटर चल रहा था, स्क्रीन पर लाइव स्ट्रिमिंग सॉफ़्टवेयर खुला था, और उसका लॉग दिखा रहा था कि वीडियो इंटरनेट के एक गहरे, अनजाने हिस्से पर लाइव चला गया था — Darkstream. “हमें वो सर्वर बंद कराना होगा,” उसने तुरंत साइबर टीम को कॉल किया, “लेकिन इससे पहले, हम जानना चाहते हैं कौन देख रहा था।” कुछ ही मिनटों में एक IP ट्रैकर ऑनलाइन हुआ और दर्जनों देशों से जुड़ी लोकेशन पिंग करने लगीं — रूस, जर्मनी, इंडोनेशिया, यूएसए — दुनिया भर में इस ‘शो’ को देखा जा रहा था। अरविंद के चेहरे पर आक्रोश की रेखा खिंच गई। यह केवल एक सीरियल किलर की बात नहीं थी — यह एक नेटवर्क था, एक अंडरग्राउंड दर्शकों का घिनौना समाज जो किसी की चीखों को एंटरटेनमेंट मानता था। तभी एक मेल नोटिफिकेशन उभरा — “Next Live: August 5, 3 PM IST. Don’t miss the art.” संदेश के साथ एक नई महिला की तस्वीर जुड़ी थी। उसका चेहरा अस्पष्ट था, धुंधला किया गया, लेकिन उसकी आँखें… वह आँखें जानी-पहचानी लगीं। अरविंद ने छवि को साफ़ किया — “ये तो… यह तो साक्षी है!” उसकी आवाज़ काँप गई। साक्षी — उसका केस से बाहर की सहयोगी, एक क्राइम-पॉडकास्टर, जिसने हाल ही में ‘नायना मर्डर’ पर एक एपिसोड रिकॉर्ड किया था।
एक बार फिर, वक्त दौड़ने लगा। अब यह निजी हो गया था। अरविंद ने फौरन साक्षी को कॉल किया — फोन बंद। उसने उसका फ्लैट ट्रैक किया, टीम के साथ वहां पहुँचा, लेकिन दरवाज़ा खुला हुआ था। अंदर का दृश्य सन्न कर देने वाला था — माइक्रोफोन चालू, रिकॉर्डिंग ऑन, और एक व्हाइटबोर्ड पर लिखा था — “Truth bleeds best on mic.” पूरा कमरा एक सीन की तरह सजाया गया था, जैसे किसी रेडियो शो का सेट। साक्षी गायब थी, लेकिन उसकी घड़ी, फोन, और नोटबुक वहीं थी। और उसके माइक के सामने रखी थी एक उंगलियों की छाया जैसी फोटो — वो वही फ्रेम था जो नायना की मौत से पहले देखा गया था। इसका मतलब था कि साक्षी अगली शिकार है, और खेल शुरू हो चुका है। अरविंद के भीतर कुछ टूटने लगा — अपराध से लड़ते-लड़ते कब वह खुद उस अंधेरे का हिस्सा बन गया, उसे खुद नहीं पता चला। उसकी नज़रें अब किसी क़ानूनी कार्यवाही से परे थीं। अब वह केवल एक पुलिस अधिकारी नहीं था — अब वह एक शिकारी बन गया था, जो शिकार को नहीं, शिकारी को खोज रहा था। और इस बार, वह कैमरा बंद नहीं होने देगा — क्योंकि नकाब के पीछे जो चेहरा है, अब वह सामने आएगा।
९
शहर के दक्षिणी छोर पर, जहाँ पुराने गोदाम और परित्यक्त रेलवे ट्रैक धूप में गलते हैं, वहीं एक खामोश पनाहगाह थी — एक रेडियो स्टेशन का पुराना भवन, वर्षों से बंद पड़ा हुआ। यहीं से, अरविंद की टीम को अंतिम IP लोकेशन मिली थी — और यहीं पर साक्षी के माइक्रोफोन की अंतिम फ्रीक्वेंसी ट्रेस की गई थी। बिल्डिंग की दीवारों पर अब भी “Truth Radio 90.3 FM” का धुंधला सा नाम चिपका हुआ था, जैसे अतीत खुद को मिटाने से मना कर रहा हो। दरवाज़े पर कोई ताला नहीं था, लेकिन अंदर जाते ही एक अजीब सी घुटन भरी गंध महसूस हुई — लोहे की जली हुई महक, और किसी हालिया मौजूदगी की गर्म सांस। हर कदम पर फर्श चरमराता था, जैसे यह भवन खुद भी उस डर का बोझ सह नहीं पा रहा था जो उसमें पल रहा था। और तभी, रिकॉर्डिंग स्टूडियो के अंदर एक स्पीकर से आवाज़ गूंजी — “You’re late, Inspector. The broadcast has already begun.” अरविंद ने रिवॉल्वर कसकर थाम लिया, और धीरे से आगे बढ़ा, जहां सामने एक रूम में एक कांच के पीछे कुर्सी पर साक्षी बैठी थी — बेसुध, लेकिन जीवित। उसके सिर पर हेडफोन था, आँखें बंद थीं, और उसके सामने एक कैमरा टिका हुआ था — ऑन एयर।
परछाई में खड़ा व्यक्ति, जिसने अपना चेहरा मास्क से ढंक रखा था, उसी कैमरे की ओर झुककर बोल रहा था — मानो यह कोई पॉडकास्ट शो हो, और श्रोता लाखों हों। “हम सब कहानियाँ सुनते हैं, लेकिन कभी किसी ने मौत की ध्वनि सुनी है?” उसने कहा, और फिर साक्षी के हेडफोन की वॉल्यूम बढ़ा दी। अचानक एक दर्दभरी चीख की रेकॉर्डिंग बजने लगी — नायना की। साक्षी की आँखें फड़कने लगीं, मानो उसे नींद में जहर पिलाया जा रहा हो। अरविंद आगे बढ़ा, मगर तभी उस व्यक्ति ने दीवार के एक स्विच को छुआ — और पूरे कमरे में एक गूँज उठी, जैसे किसी लोहे के पाइप में दर्द दौड़ गया हो। कमरे में साउंड वेव्स की तीव्रता से दीवारें कंपन करने लगीं, और अरविंद को लगा कि वह सिर्फ दृश्य में नहीं, ध्वनि में फँस गया है। यह केवल दृश्य माध्यम नहीं था — यह एक ऑडियो ट्रैप था। “यह तुम्हारी दुनिया नहीं है, इंस्पेक्टर,” वह बोला, “यह माइक्रोफोन की दुनिया है। यहाँ आवाज़ ही हत्यारा है।” अरविंद ने अपनी जैकेट से वायरलेस जैमर निकाला और ऑन कर दिया — अचानक वह स्पीकर बंद हो गया, साक्षी के हेडफोन की बिजली कट गई, और कमरे में एक अजीब सी चुप्पी भर गई। वो सन्नाटा जो चीख से भी ज़्यादा खतरनाक था।
अरविंद ने दरवाज़ा तोड़कर अंदर प्रवेश किया, और साक्षी को गोद में उठाया। वह अब भी बेहोश थी, लेकिन धड़कनें स्थिर थीं। तभी पीछे से एक भारी धातु की चीज़ चलती हुई आई — कैमरा माउंटेड रोबोटिक आर्म, जो अरविंद की ओर तेजी से झपटी, मगर वह वक्त रहते झुक गया। उसने एक सटीक निशाने से उस मशीन को शूट किया — चिंगारी उड़ी, और कैमरा वहीं गिर गया। परछाईं में छिपा व्यक्ति अब भी दिख नहीं रहा था, लेकिन उसकी हँसी चारों ओर गूंज रही थी — “तुम कैमरे से बच सकते हो, इंस्पेक्टर, पर आवाज़ से नहीं। अगली चीखें तुम्हारी होंगी।” अरविंद ने पूरे कमरे में आँखें दौड़ाईं, और ऊपर की ग्रिल से झाँकती एक जोड़ी आँखें दिखीं — मास्क के पीछे वही सूनी, हावी कर देने वाली निगाहें। उसने फौरन गोली चलाई, मगर छाया ग़ायब हो गई — ऊपर की वेंटिलेशन शाफ्ट में समा गई, जैसे अंधेरा खुद भाग गया हो। मगर साक्षी अब सुरक्षित थी, और अरविंद ने रेडियो स्टेशन से बाहर निकलकर फोर्स को कॉल किया — “संदिग्ध ज़िंदा है, भागा है, लेकिन हमें मिला उसका डार्क स्ट्रीमिंग राउटर। टीम को ट्रेसिंग शुरू करने को कहो। और… EMT को जल्दी भेजो।” उसके शब्दों में थकावट थी, लेकिन हार नहीं।
१०
शहर के पश्चिमी किनारे पर एक पुराना टावर था — “आकाश रेडियो” का परित्यक्त ब्रॉडकास्टिंग स्टेशन, जो अब जर्जर हो चुका था, लेकिन किसी को अंदाज़ा नहीं था कि यहीं से “शिकारी की आवाज़” दुनिया भर के बंद कमरों में गूंज रही थी। जब फोरेंसिक टीम ने Truth Radio के सर्वर से उसका राउटर ट्रेस किया, तो IP यहीं आकर रुक गई। ये वही जगह थी जहाँ सन् 1982 में एक साउंड इंजीनियर ने लाइव ऑन-एयर आत्महत्या की थी, और तब से यह टावर ‘ध्वनि का भूत’ कहलाता था। अरविंद, जो साक्षी के धीरे-धीरे होश में लौट आने के बाद अब कुछ ज्यादा गहरा महसूस कर रहा था, अपनी टीम के साथ इस जगह पहुँचा, लेकिन अंदर घुसते ही सबको यह अहसास हो गया कि वे किसी साधारण अपराधी का पीछा नहीं कर रहे — यह एक ऑडियो-सायकोपैथ था, जो अपने श्रोताओं को नायक नहीं, बल्कि साक्षी बना रहा था। दीवारों पर अनगिनत स्पीकर लगे थे, जिनसे एक धीमा हुम सुनाई दे रहा था — जैसे रेडियो तरंगों में कोई आत्मा सांस ले रही हो।
कमरे के बीचोंबीच एक गोल मंच था, उस पर एक कुर्सी, और कुर्सी पर बैठा वह व्यक्ति — मास्क अब भी चेहरे पर, लेकिन आँखों में वही सनकी स्पष्टता। उसके सामने एक पुराना रेडियो मिक्सर चालू था, और उसके बगल में एक टेप मशीन। वह बोल रहा था — शायद अपने लिए, या शायद रिकॉर्ड हो रहे किसी फाइनल एपिसोड के लिए। “तुमने मुझे एक नाम दिया, इंस्पेक्टर — शिकारी। मगर मैं सिर्फ वो हूँ जो सुनता है। जो महसूस करता है ध्वनि की उस परत को जिसे तुम नज़रअंदाज़ कर देते हो। नायना ने चीखा, तुमने रिकॉर्ड किया। साक्षी रोई, तुमने सिर्फ केस फाइल पढ़ी। लेकिन मैंने सुना उन्हें, उनके भीतर की टूटती आवाज़ें।” अरविंद ने उसे चेतावनी दी — “यह अंत है। सरेंडर कर दो।” लेकिन वो बस मुस्कराया, और धीरे से टेप चलाने लगा। उसमें साक्षी की आवाज़ थी — जब वह पहली बार रेडियो स्टेशन पर गई थी, खुश थी, आशान्वित थी — “मैं आवाज़ों से कहानियाँ बनाना चाहती हूँ।” और उस आवाज़ के पीछे वही दरिंदगी घुल रही थी, जैसे किसी मासूम की हँसी के पीछे शिकारी की साँसें हों।
अरविंद ने धीरे से आगे बढ़ते हुए मिक्सर की केबल खींच दी, टेप मशीन रुक गई। लेकिन वह आदमी चुप नहीं हुआ — उसने अचानक कुर्सी के नीचे से एक वायरलेस ट्रांसमीटर उठाया और बटन दबा दिया। पूरे कमरे में एक तेज़ तीव्रता की ध्वनि फैल गई — “फ्रीक्वेंसी ऑफ फियर” जैसा कुछ, जो सामान्य कानों को खून बहा देने पर मजबूर कर सकता था। टीम के दो जवानों ने कान पकड़ लिए, गिर गए। लेकिन अरविंद ने वही जैमर फिर से ऑन किया, और ध्वनि ताश के पत्तों की तरह बिखर गई। वह अब चीख पड़ा — “तुम्हें मेरी ध्वनि से डर नहीं लगता? क्योंकि तुम बहरे हो गए हो, इंस्पेक्टर! तुम सुन नहीं सकते कि लोग कैसे मरते हैं!” और तभी वह आगे झपटा, अरविंद की ओर, हाथ में माइक स्टैंड को भाले की तरह पकड़े हुए — लेकिन एक सटीक फायर ने सब खत्म कर दिया। वो ज़मीन पर गिरा, मास्क अलग जा गिरा — और पहली बार उसका चेहरा दिखा — शांत, लेकिन निर्विकार, जैसे उसने अंतिम प्रसारण पूरा कर लिया हो। उसकी आँखें खुली थीं, पर अब उनमें कोई आवाज़ नहीं थी।
कुछ घंटे बाद, रेडियो स्टूडियो को सील कर दिया गया। रिकॉर्डिंग्स जब्त कर ली गईं, साक्षी को सुरक्षित रखा गया। पूरे शहर ने एक गहरी साँस ली, मानो शोर का आतंक आखिर थम गया हो। लेकिन एक सवाल अब भी अरविंद को भीतर से खा रहा था — क्या उसने सच में एक साइको किलर को मारा, या उस पीड़ा को जो सालों से अनसुनी रह गई थी? रात को अपने डेस्क पर बैठे हुए उसने नायना की आखिरी रिकॉर्डिंग फिर से चलाई — लेकिन इस बार, वो सिर्फ चीख नहीं थी। वह एक लड़की की उम्मीद थी, जो सुनी जाना चाहती थी। और शायद यही वो सबसे बड़ा अपराध था — कि हम सुनना भूल गए हैं। अरविंद ने रिकॉर्डिंग को रोक दिया, खिड़की से झाँका — शहर फिर से जाग रहा था, नए दिन के शोर में, लेकिन अब उसे हर आवाज़ में एक कहानी सुनाई देने लगी थी। शिकार खत्म हो चुका था — पर शोर अब भी ज़िंदा था।
समाप्त