Hindi - हास्य कहानियाँ

देसी जासूस एजेंसी

Spread the love

प्रभात कुमार वर्मा


 १

पप्पू और गोलू की दोस्ती मोहल्ले में मशहूर थी। दोनों हमेशा साथ घूमते-फिरते, गली-गली की हर गप्प में मौजूद रहते और हर झगड़े में बीच-बचाव करने का मौका ढूँढते। लेकिन ज़िंदगी में कुछ बड़ा करने की उनकी ख्वाहिश अधूरी रह जाती थी। मोहल्ले की छत पर, गर्मियों की एक दुपहरी में, पप्पू ने अपने सपनों का बक्सा खोल दिया। पसीने से तर-बतर होते हुए भी वह बड़ी गंभीरता से बोला—“गोलू, अब बहुत हो गया यह मामूली जिंदगी। हमें कुछ अलग करना होगा, कुछ ऐसा कि लोग हमारी मिसाल दें।” गोलू, जो बगल में बैठकर संतरे का रस पी रहा था, हक्का-बक्का होकर बोला—“तो क्या करें? तू तो पढ़ाई में ज़ीरो, नौकरी तुझे कोई देगा नहीं, और मैं तो बस हलवाई की दुकान पर उधार का समोसा खाने का रिकॉर्ड बना चुका हूँ।” पप्पू ने अपनी शर्ट की जेब से एक पुराना आवर्धक लेंस निकाला, जिसकी काँच पर हल्की दरारें थीं। फिर उसने अपनी आँखें चौड़ी कर के कहा—“यही है हमारा हथियार! हम बनाएँगे देसी जासूस एजेंसी।” गोलू ने पहले तो ठहाका लगाया, लेकिन जब पप्पू ने बड़े गर्व से टीवी के मशहूर जासूसों के नाम गिनाने शुरू किए और बताया कि कैसे वह भी ‘शरलॉक’ की तरह सुराग ढूँढ सकता है, तब गोलू का भी दिमाग चमका। उसने सोचा, अगर पप्पू जासूस बनेगा तो केस की जांच करते-करते खाने-पीने का भी बहाना मिलेगा। आखिरकार, दोनों ने छत पर ही कसम खाई कि अब से मोहल्ले के हर रहस्य का पर्दाफाश करने की जिम्मेदारी उनकी होगी।

इस कसम के साथ ही शुरू हुआ उनकी एजेंसी का पहला ‘ऑफिस’। असल में यह ऑफिस मोहल्ले के पप्पू के घर की छत पर पड़ा एक पुराना टेबल और दो टूटी हुई कुर्सियाँ थीं। पप्पू ने अपने दिमाग में बड़े-बड़े प्लान बना लिए थे। उसने अपनी पुरानी स्कूल की कॉपी निकालकर सामने रखी और उस पर बड़े अक्षरों में लिखा—“देसी जासूस एजेंसी – हर रहस्य का हल”। गोलू ने भी गंभीर चेहरा बनाकर कहा—“लेकिन भाई, एजेंसी खोलने से पहले एक लोगो बनाना चाहिए, सब बड़ी-बड़ी एजेंसियों के पास लोगो होता है।” पप्पू ने तुरंत कॉपी में एक लेंस और समोसे की तस्वीर खींच दी और बोला—“यह है हमारा लोगो, क्योंकि सुराग और समोसा दोनों हमें चाहिए।” गोलू की आँखें चमक उठीं और उसने संतरे का रस खत्म कर हाथ में कलम पकड़ लिया। दोनों ने घंटों बैठकर यह तय किया कि कौन किस काम में एक्सपर्ट होगा। पप्पू ने खुद को ‘मुख्य अन्वेषक’ घोषित कर दिया और गोलू को ‘सहायक अन्वेषक’ बना दिया। गोलू को इस पर कोई आपत्ति नहीं थी, क्योंकि सहायक का मतलब था कि खाने के मौके ज़्यादा मिलेंगे और काम थोड़ा कम।

अब एजेंसी को ज़िंदा रखने के लिए एक ‘केस’ की तलाश जरूरी थी। पप्पू ने मोहल्ले की खिड़कियों में झाँका, गली में बैठे लोगों की बातें सुनीं और हर जगह कान लगाकर सुराग ढूँढने लगा। गोलू इस बीच सोच रहा था कि अगर पहला केस हल हो गया तो शायद इनाम में समोसे का ठेला भी मिल सकता है। अचानक नीचे से शर्मा आंटी की आवाज़ आई—“अरे कोई है? मेरी बिल्ली मिनी गायब हो गई है!” पप्पू की आँखें चमक उठीं। उसने गोलू की तरफ ऐसे देखा मानो सदियों से इसी पल का इंतज़ार कर रहा था। दोनों फौरन सीढ़ियों से कूदते-फांदते नीचे उतरे और शर्मा आंटी के दरवाज़े पर पहुँच गए। पप्पू ने आवर्धक लेंस आँख के सामने लगाया, गोलू ने अपनी कॉपी और कलम संभाली, और दोनों ने गले फुलाकर घोषणा की—“आंटी जी, अब आप बेफिक्र रहिए। देसी जासूस एजेंसी आपका केस संभाल चुकी है। आपकी मिनी को ढूँढना अब हमारा फर्ज़ है।” मोहल्ले के लोग यह सुनकर ठठा कर हँसने लगे, लेकिन पप्पू और गोलू के लिए यह पहला कदम था, जहाँ से उनकी मजेदार जासूसी की कहानी शुरू होने वाली थी। उनकी आँखों में अब चमक थी, दिल में उत्साह था और दिमाग में यह भरोसा कि चाहे केस कितना भी छोटा या बड़ा क्यों न हो, देसी जासूस एजेंसी का नाम अब हर किसी की ज़ुबान पर होगा।

शर्मा आंटी की बिल्ली मिनी मोहल्ले की सबसे चर्चित हस्ती थी। सुबह-सुबह जब मोहल्ले की औरतें अपने दरवाज़ों पर झाड़ू-बुहारू करतीं तो मिनी सबके पैरों के पास घूम-घूमकर अपना हक़ जताती थी। किसी के घर में दही जम रहा हो या दूध उबल रहा हो, मिनी वहीं जा धमकती। लेकिन उस दिन दोपहर के वक़्त शर्मा आंटी ने पूरे मोहल्ले को हिला दिया—“अरे कोई है? मेरी मिनी गायब हो गई है!” उनकी आवाज़ सुनते ही पप्पू और गोलू ने छत से नीचे झाँका। पप्पू तो वैसे ही किसी केस की तलाश में था, और यह मौका हाथ से जाने वाला नहीं था। उसने तुरंत गोलू को ठोकर मारी और बोला—“गोलू, यह है हमारा पहला केस! अब दिखा देंगे मोहल्ले को कि देसी जासूस एजेंसी कितनी काबिल है।” गोलू पहले तो झिझका, लेकिन फिर जब उसने सोचा कि शर्मा आंटी शायद इनाम में दूध-समोसा भी खिला देंगी, तो वह भी उछल पड़ा। दोनों छत से फुदकते-फुदकते नीचे उतरे और आंटी के घर पहुँचकर पूरी गंभीरता से बोले—“आंटी जी, अब आप परेशान मत होइए। यह केस अब हमारे हाथ में है।” मोहल्ले के लोग, जो पहले से इकट्ठा हो चुके थे, दोनों की नाटकीय एंट्री देखकर हँसी दबाने लगे। लेकिन पप्पू को लगा जैसे उसने कोई इंटरनेशनल मिशन पकड़ लिया हो। उसने अपनी जेब से टूटा हुआ आवर्धक लेंस निकाला और गोलू से बोला—“लिख ले, केस नंबर एक—खोई हुई मिनी।” गोलू ने तुरंत कॉपी खोली और बड़े-बड़े अक्षरों में नोट कर लिया, जैसे कोई बड़ा राज़ दर्ज हो रहा हो।

इसके बाद शुरू हुआ दोनों का ‘इंवेस्टिगेशन’। पप्पू ने लेंस आँख के सामने लगाकर हर कोने-कोने को सूँघना और देखना शुरू कर दिया। कभी वह दीवार पर पंजों के निशान तलाशता, कभी दरवाज़े के नीचे झाँकता, और कभी मोहल्ले के बच्चों से पूछताछ करता। गोलू उसकी हर हरकत को नोटबुक में लिखता, हालाँकि उसकी लिखावट में ज़्यादा ध्यान यह रहता था कि अगली दुकान पर कौन-सी मिठाई मिली। पप्पू ने जोरदार अंदाज़ में घोषणा की—“यह कोई साधारण गुमशुदगी नहीं है, यह अपहरण है! मिनी का अपहरण हुआ है!” मोहल्ले वाले ठहाका मारकर हँस पड़े। शर्मा आंटी ने माथा पकड़ लिया और बोलीं—“अरे भई, कौन करेगा मेरी बिल्ली का अपहरण? कोई दही-दूध चोरी कर ले, यह समझ में आता है, लेकिन बिल्ली?” पप्पू ने गंभीर स्वर में जवाब दिया—“आंटी जी, अपराधी का दिमाग हमसे बड़ा नहीं हो सकता। हम इस रहस्य को जरूर सुलझाएँगे।” इतना कहकर उसने गोलू को इशारा किया और दोनों बिल्ली खोजने मोहल्ले की गलियों में निकल पड़े। रास्ते में मिलते हर आदमी से पप्पू पूछता—“क्या आपने किसी संदिग्ध इंसान को इधर-उधर घूमते देखा है?” जबकि गोलू हर दुकान पर रुककर समोसे और जलेबी का भाव पूछता। धीरे-धीरे दोनों की पूछताछ मोहल्ले में मज़ाक का कारण बन गई। बच्चे उनके पीछे-पीछे चलने लगे और कहते—“जासूस आ गए, जासूस आ गए।” पप्पू ने इसे अपनी लोकप्रियता समझकर और भी सीना चौड़ा कर लिया।

काफी देर तक खोजबीन और हंगामे के बाद आखिरकार गोलू की नज़र दूधवाले के बर्तन पर पड़ी, जो मोहल्ले के कोने में रखा था। उसने पप्पू को इशारा किया—“देख उधर!” पप्पू बड़े नाटकीय अंदाज़ में बर्तन की तरफ़ बढ़ा, लेंस लगाकर झाँका और फिर जोर से चिल्लाया—“यही है अपराध स्थल!” सब लोग इकट्ठा हो गए। दूध के बड़े बर्तन के पास मिनी आराम से गोल होकर सो रही थी, जैसे दुनिया की किसी चिंता से उसका कोई लेना-देना न हो। आंटी भागकर आईं और मिनी को गोद में उठा लिया। पूरे मोहल्ले में हँसी का ठहाका गूँज उठा। पप्पू और गोलू, जो अब तक खुद को दुनिया के सबसे बड़े जासूस समझ रहे थे, शर्मिंदगी में एक-दूसरे को देखने लगे। लेकिन पप्पू ने हार मानने से इनकार कर दिया। उसने छाती चौड़ी कर कहा—“देखा, हमने केस सुलझा दिया। अगर हम न होते तो आंटी जी की मिनी आज भी लापता रहती।” गोलू ने भी तुरंत हामी भर दी और नोटबुक में लिख दिया—‘केस सुलझा: मिनी दूध के बर्तन से बरामद’। मोहल्ले के लोग हँसते-हँसते लोटपोट हो गए। शर्मा आंटी ने भी मुस्कुराकर दोनों को आशीर्वाद दिया और उन्हें मिठाई का डिब्बा थमा दिया। गोलू की खुशी का ठिकाना न रहा—उसके लिए तो यह असली इनाम था। इस तरह देसी जासूस एजेंसी का पहला केस खत्म हुआ, और भले ही वह गड़बड़-झाला ही क्यों न रहा हो, पर पप्पू और गोलू को लगा जैसे उन्होंने किसी बड़ी अंतरराष्ट्रीय साज़िश का पर्दाफाश कर दिया हो। मोहल्ले के बच्चों ने उन्हें छेड़ते हुए कहा—“जासूस बाबू, अगला केस कब पकड़ोगे?” और पप्पू ने बड़ी अकड़ से जवाब दिया—“अब हमारी एजेंसी हर रहस्य सुलझाएगी, चाहे वह कितना भी मुश्किल क्यों न हो।” इस तरह एक बिल्ली की झपकी ने दोनों की जासूसी की यात्रा की नींव मजेदार ढंग से रख दी।

रामलाल हलवाई की दुकान मोहल्ले का दिल थी। सुबह से लेकर रात तक वहाँ लोगों का आना-जाना लगा रहता, कोई जलेबी लेने आता तो कोई समोसा, और बच्चों का तो रोज़ का चक्कर होता। लेकिन पिछले कुछ दिनों से रामलाल परेशान था—उसकी मिठाई रहस्यमयी ढंग से गायब हो रही थी। कभी रसगुल्ले कम निकलते, कभी गुलाबजामुन और कभी समोसे। पहले तो उसने सोचा कि शायद गिनती में गलती हो रही है, लेकिन जब यह सिलसिला लगातार चला तो उसने मोहल्ले में ऐलान कर दिया—“कोई मेरी दुकान से चोरी कर रहा है!” यही ऐलान सुनकर पप्पू और गोलू मौके पर पहुँच गए। पप्पू ने तुरंत हाथ हवा में उठाया और बोला—“यह केस अब देसी जासूस एजेंसी के हवाले है।” रामलाल पहले तो हँस पड़ा लेकिन फिर बोला—“अरे जाओ बेटा, मज़ाक मत करो। ये कोई खेल नहीं है।” पप्पू ने अपनी गंभीर आवाज़ में कहा—“रामलाल काका, अपराध कोई भी करे, लेकिन अपराध है बड़ा। और अपराधी कितना भी चालाक क्यों न हो, हमारी नज़र से बच नहीं सकता।” गोलू ने अपनी नोटबुक खोली और लिख दिया—‘केस नंबर दो: मिठाई की दुकान का रहस्य’। पूरे मोहल्ले के लोग इकट्ठा हो गए, किसी को हँसी आ रही थी, किसी को जिज्ञासा। अब दोनों के हाथ पहला ‘बड़ा केस’ लग चुका था, और पप्पू को लग रहा था कि यह उनके करियर का टर्निंग पॉइंट होगा।

जांच शुरू हुई बड़ी नाटकीय अंदाज़ में। पप्पू ने दुकान के चारों ओर घूम-घूमकर निशान तलाशने शुरू किए। वह कभी मिठाई के डिब्बे के पास झुककर देखता, कभी फर्श पर झाड़ू से मिटाए गए धूल को गौर से देखता, और कभी ग्राहकों को शक की नज़र से घूरता। उसने गोलू से कहा—“यह कोई छोटा-मोटा चोर नहीं है, यह कोई प्रोफेशनल अपराधी है। चुपचाप आकर मिठाई उड़ाता है और भाग जाता है।” गोलू इस बीच जांच के बहाने एक-एक मिठाई चख रहा था। वह हर रसगुल्ले को चखकर कहता—“इसमें शक की गंध नहीं है।” कभी गुलाबजामुन उठाकर कहता—“यह तो साफ-साफ निर्दोष है।” असल में गोलू का इरादा जांच से ज़्यादा खाने पर था। पप्पू ने उसे कई बार घूरा लेकिन फिर भी वह चुपके-चुपके आधे सबूत चट कर गया। मोहल्ले के बच्चे हँसते-हँसते कहने लगे—“चोर मिला, चोर मिला—गोलू ही तो है!” लेकिन पप्पू ने तुरंत गोलू का बचाव करते हुए कहा—“यह मेरे सहायक की जांच-पद्धति है, समझे? वह टेस्ट करके देख रहा है।” सबने ठहाका लगाया। पप्पू ने फिर गंभीरता से कहा—“इस अपराध में जरूर कोई ऐसा है, जो दुकान का अच्छा-खासा हाल जानता है। यानी यह इनसाइड जॉब है।” यह सुनकर सब लोग एक-दूसरे को देखने लगे।

जैसे ही रात हुई, पप्पू ने अपनी योजना बनाई। उसने कहा—“हम आज रात दुकान के बाहर निगरानी करेंगे। चोर जरूर आएगा।” गोलू को पहले डर लगा लेकिन फिर उसने सोचा कि अगर निगरानी करेंगे तो मिठाई मुफ्त में खाने को मिल सकती है। दोनों ने दुकान के कोने में छिपकर चौकसी शुरू की। आधी रात बीत गई, पप्पू आँखें ताने बैठा रहा और गोलू ऊँघता रहा। तभी अचानक दुकान के पीछे से कुछ हलचल हुई। पप्पू ने फौरन गोलू को झकझोरा और दोनों चुपचाप आगे बढ़े। उन्होंने देखा—रामलाल का कुत्ता टोमी दुकान के अंदर घुसा और रसगुल्ले के डिब्बे में मुँह डाल दिया। गोलू हँसी रोक न पाया—“अरे पप्पू, चोर तो कुत्ता निकला!” पप्पू की हालत खराब हो गई। उसने सोचा था कोई बड़ा अपराधी पकड़ेगा, अख़बार में नाम आएगा, लेकिन यहाँ तो कुत्ता था। फिर भी उसने अपनी इज़्ज़त बचाने के लिए कहा—“देखा, यही तो असली चालाक अपराधी है। इंसान से भी खतरनाक। यह ही तो असली ‘इनसाइड जॉब’ था।” सब लोग सुबह इकट्ठा हुए और जब मामला सामने आया तो ठहाके गूँजने लगे। रामलाल ने शर्माते हुए कहा—“अरे यह तो मेरा टोमी है, मैंने कभी सोचा ही नहीं कि यह मिठाई खा रहा होगा।” पप्पू और गोलू ने मामले का खुलासा किया, लेकिन असल में गोलू ने आधे सबूत पहले ही खा लिए थे। लोग हँसते हुए बोले—“एक चोर मिला, दूसरा जासूस के रूप में!” पप्पू को झेंप छुपाने के लिए फिर वही संवाद बोलना पड़ा—“हर केस में हमारी एजेंसी सच का पता लगा ही लेती है।” मोहल्ले के लोगों ने खिलखिलाकर ताली बजाई और गोलू को बचा हुआ मिठाई का डिब्बा पकड़ाया। गोलू ने जीत की मुस्कान के साथ समोसा उठाया और बोला—“केस बंद!” इस तरह मिठाई की दुकान का रहस्य तो सुलझ गया, लेकिन मोहल्ले में देसी जासूस एजेंसी की छवि और भी मजाकिया बन गई।

मोहल्ले की सुबह हमेशा की तरह चाय की भाप और सब्ज़ियों की पुकार के बीच शुरू हुई थी, लेकिन इस बार हवा में कुछ अजीब-सा डर भी घुला हुआ था। गली के नुक्कड़ पर रामलाल की परचून की दुकान के सामने भीड़ जमा थी। सबकी नज़रें उस पीले लिफाफ़े पर थीं, जिसे सुबह-सुबह काका पोस्टमैन ने शर्मा जी के घर डाल दिया था। शर्मा जी ने जैसे ही खत खोला, उनकी आँखें चौड़ी हो गईं और चेहरे का रंग उड़ा-सा लगने लगा। खत में लिखा था—“अगर तुमने आज रात अपनी छत पर लाल कपड़ा नहीं डाला तो तुम्हें भारी नुक़सान उठाना पड़ेगा। यह मज़ाक नहीं है।” मोहल्ले में फुसफुसाहटें शुरू हो गईं—किसने लिखा होगा? कोई पुराना झगड़ा? या फिर कोई सचमुच बदमाश यहाँ आ गया है? थोड़ी ही देर में खबर पूरे मोहल्ले में फैल गई और हर घर के दरवाज़े के पीछे चिंता की लकीरें खिंच गईं। बच्चों को खेलते-खेलते रोक लिया गया, औरतें आपस में कानाफूसी करने लगीं, और मर्द गली के बीच खड़े होकर अटकलें लगाने लगे। तभी वहाँ पहुँच गए हमारे नन्हे एजेंट—मोंटू और पिंकी। दोनों ने भीड़ के बीच से रास्ता बनाते हुए सीधे शर्मा जी से खत माँगा और उसे पढ़ने लगे। मोंटू ने भौंहें सिकोड़कर कहा, “ये मामला साधारण नहीं लग रहा, पिंकी। इसमें या तो कोई धमकी है या फिर कोई गहरी चाल।” पिंकी ने तुरंत अपनी जासूसी डायरी निकाली और नोट करने लगी—‘रहस्यमयी खत का रहस्य उजागर करना है। पहला कदम: सबूत इकट्ठा करना।’ पूरे मोहल्ले की निगाहें अब इन दो नन्हे जासूसों पर टिकी थीं, जैसे वही सच सामने लाएँगे।

जाँच की शुरुआत सबसे पहले उस लिफाफ़े से हुई। मोंटू ने हाथ में लिफाफ़ा लिया और सूँघकर बोला, “इसमें पकोड़े की गंध आ रही है, लगता है किसी ने इसे खाने की थाली के पास रखा था।” पिंकी ने गौर से देखा तो पाया कि कागज़ पर हल्के तैलीय धब्बे बने हुए हैं। यह देखकर उसने कहा, “यानि ये खत घर में लिखा गया है, न कि कहीं बाहर प्रिंट करवा कर।” दोनों ने गली के लोगों से एक-एक कर पूछताछ शुरू की। किसी ने कहा—“ये जरूर पंडित जी के खिलाफ होगा, क्योंकि उन्होंने पिछले हफ्ते सबको टोका था।” तो कोई बोला—“नहीं, ये तो पप्पू हलवाई की करतूत लगती है।” अफवाहें ऐसे उड़ रही थीं जैसे आग में घी पड़ रहा हो। रात होते-होते तो हाल ये हो गया कि हर घर में लोग खिड़कियाँ-दरवाज़े बंद कर रहे थे, मानो खत लिखने वाला सचमुच कोई बड़ा डाकू हो। लेकिन एजेंटों का हौसला डिगा नहीं। उन्होंने अलग-अलग सुराग ढूँढने शुरू किए। गली के कोने पर उन्हें वही लाल कपड़ा मिला, जिसका ज़िक्र खत में था। पास ही बच्चों की चॉक से बनी कुछ शरारती लिखावट भी दिखी। मोंटू ने अंदाज़ लगाया कि लिखावट बच्चों की हो सकती है। तभी एक और सुराग हाथ आया—कचरे के ढेर में वैसा ही फाड़ा हुआ कागज़ मिला, जिस पर पेंसिल से अधूरे अक्षर बने हुए थे। पिंकी ने तुरंत नोट किया, ‘खत लिखने वाला यहीं आसपास का कोई बच्चा है। अंदाज़न उम्र 8 से 12 साल।’ दोनों ने तय किया कि कल सुबह गली के बच्चों की लिखावट से खत की लिखावट की तुलना करेंगे।

अगले दिन जैसे ही सूरज उगा, मोंटू और पिंकी अपनी डायरी और खत लेकर मैदान में पहुँच गए, जहाँ गली के बच्चे खेल रहे थे। उन्होंने चतुराई से सबको कहा—“चलो, सब मिलकर ‘लिखावट प्रतियोगिता’ करते हैं। जो सबसे अच्छी लिखावट लिखेगा, उसे इनाम मिलेगा।” बच्चे उत्साह से कतार में बैठ गए और लिखने लगे। एक-एक कर सबकी लिखावट को पिंकी अपनी नोटबुक से मिलाती गई। तभी उसकी नज़र चोटू पर पड़ी—उसकी लिखावट हूबहू वैसी ही थी जैसी उस रहस्यमयी खत में थी। पिंकी ने मोंटू को आँखों से इशारा किया। मोंटू ने हँसते हुए चोटू से पूछा—“क्यों रे चोटू, तू ही तो नहीं था जिसने ये धमकी वाला खत लिखा?” पहले तो चोटू सकपका गया, फिर घबराकर हँस पड़ा और बोला, “अरे, वो तो मैं मज़ाक में लिखा था! मैंने सोचा सब डरेंगे और मज़ा आएगा।” यह सुनते ही पूरी गली एकदम सन्न हो गई। फिर कुछ लोग हँस पड़े, तो कुछ गुस्सा करने लगे। शर्मा जी ने राहत की साँस ली कि अब कोई खतरा नहीं है। मोहल्ले वालों ने चोटू को डाँटा भी और समझाया भी कि ऐसे मज़ाक से सब डर जाते हैं। मोंटू और पिंकी ने अपनी डायरी में लिखा—‘मामला सुलझ गया। रहस्यमयी खत का रहस्य था बच्चों की शरारत।’ मोहल्ले में फिर से शांति लौट आई। लोग ताले-चेन खोलकर बाहर निकल आए, बच्चे खेल में जुट गए और परचून की दुकान पर चाय की महफ़िल फिर सज गई। लेकिन सबके मन में एक बात साफ़ हो गई—अब कोई भी रहस्य हो, उस पर सबसे पहले भरोसा रहेगा उनके नन्हे जासूसों पर, जो हर बार सच्चाई सामने ले आते हैं।

गली में उस दिन हंगामा मच गया जब रानी दौड़ती हुई आई और चिल्लाई—“मेरा मोबाइल खो गया!” रानी मोहल्ले की सबसे होशियार और चंचल लड़की थी, और उसका मोबाइल उसके लिए किसी खजाने से कम नहीं था। उसमें उसके गाने, तस्वीरें और दोस्तों के चैट थे, जिनके बिना वह खुद को अधूरा महसूस कर रही थी। रानी की आवाज़ में घबराहट थी, और जैसे ही उसने बताया कि फोन नहीं मिल रहा, पप्पू का चेहरा चमक उठा। उसे लगा कि यह मौका उसके लिए भगवान ने ही भेजा है। वह हमेशा से रानी को इम्प्रेस करना चाहता था, लेकिन कभी हिम्मत नहीं जुटा पाया। अब उसके पास मौका था—एक सच्चा हीरो बनने का। पप्पू ने तुरंत अपनी नोटबुक निकाली और बड़े स्टाइल से बोला—“चिंता मत करो रानी, देसी जासूस एजेंसी है ना! तुम्हारा फोन ढूँढना हमारा फर्ज़ है।” रानी ने उम्मीद भरी नज़र से उसकी तरफ देखा तो पप्पू का दिल बल्लियों उछलने लगा। गोलू भी वहाँ खड़ा था, उसने हल्की मुस्कान दबाई और सोचा—“अच्छा, तो ये केस पप्पू अपनी मोहब्बत के लिए ले रहा है!” लेकिन वह भी साथ देने को तैयार हो गया क्योंकि जहाँ केस, वहाँ मज़ा, और मज़ा मतलब मिठाई या समोसे मिलने की संभावना। पूरे मोहल्ले में खबर फैल गई कि रानी का फोन चोरी हो गया है और अब पप्पू-गोलू उसे ढूँढने निकल पड़े हैं। गली के लोग तमाशा देखने के लिए जुट गए, बच्चों में उत्सुकता थी और बड़ों को भी मज़ाक बनने की गंध आ रही थी।

जाँच की शुरुआत पप्पू ने गंभीर अंदाज़ में की। उसने रानी से सवाल किए—“फोन आख़िरी बार कब देखा था? कौन-कौन आसपास था? क्या किसी ने तुम्हें शक़ की नज़र से देखा?” रानी ने कहा कि उसने फोन कल रात चार्जिंग पर लगाया था, और सुबह उठकर देखा तो गायब था। पप्पू ने नोटबुक में सब दर्ज किया और बोला—“यह केस साधारण नहीं है, इसमें जरूर कोई गहरी साजिश है।” गोलू ने बीच में टपकते हुए कहा—“साजिश नहीं, जेब में गया होगा।” पप्पू ने उसे घूरकर देखा और बोला—“चुप रहो सहायक, यह जाँच का नाज़ुक मामला है।” गोलू को यह सुनकर और मज़ा आ गया। उसने तय किया कि वह मोबाइल ट्रैकिंग की ज़िम्मेदारी लेगा। लेकिन उसका तरीका अलग था। उसने सोचा, “मोबाइल ट्रैक करने के लिए सबसे आसान उपाय है हर किसी का फोन चेक करना।” और फिर शुरू हुआ उसका सर्कस—गोलू मोहल्ले में घूम-घूमकर सबके हाथ से फोन छीनता और स्क्रीन पर उँगली फेरकर देखता, “अरे भाई, ये रानी का नहीं है।” कोई पड़ोसी फोन छीनने पर चिल्लाता, कोई हँसते-हँसते कहता—“अरे गोलू, तू चोर है या जासूस?” गली के बच्चे उसके पीछे-पीछे “फोन चोर गोलू” चिल्लाते दौड़ने लगे। गोलू ने एक अंकल का फोन छीनकर कहा—“ओहो, इसमें तो पप्पी-लव वाले गाने हैं, जरूर रानी का होगा।” लेकिन असल में वह अंकल का अपना फोन था। अंकल ने उसकी कान खींच दी और लोग ठहाके मारकर हँस पड़े। उधर पप्पू खुद को गंभीरता से जासूस दिखाने की कोशिश कर रहा था—वह हर जगह झुककर पैरों के निशान देख रहा था, दरवाज़े के ताले टटोल रहा था और लोगों को शक्की नज़रों से घूर रहा था। लेकिन जब मोहल्ले के बच्चे उसके पीछे-पीछे “शरलॉक पप्पू” गाने लगे तो उसकी शान में भी दरार आ गई।

आखिरकार जब सब कोशिशें नाकाम होती दिखीं, तो पप्पू ने नाटकीय अंदाज़ में घोषणा की—“यह केस हमें घर-घर की तलाशी तक ले जाएगा।” गोलू ने भी तुरंत हामी भर दी और बोला—“हाँ, और हर तलाशी के बाद चाय-समोसे मिलने चाहिए।” यह सुनकर मोहल्ले वाले हँस पड़े। तभी रानी की मम्मी ने हिचकिचाते हुए कहा—“अरे बेटा, एक बार मेरे कमरे में भी देख लो।” पप्पू और गोलू कमरे में दाखिल हुए तो वहाँ रानी का मोबाइल चार्जिंग वायर से ही लटकता हुआ पड़ा था। असल में रानी की मम्मी ने सुबह-सुबह फोन उठाकर अपने रिश्तेदार को कॉल कर लिया था और बाद में वहीँ रखकर भूल गईं। पप्पू और गोलू एक-दूसरे का मुँह देखने लगे। पप्पू की सारी गंभीरता धरी की धरी रह गई। गोलू तो ठहाका मारकर बोला—“केस बंद! असली चोर तो आंटी ही निकलीं।” रानी शर्म से मुस्कुरा दी और बोली—“ओह! मम्मी ने ही ले लिया था!” मोहल्ले वाले ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगे। पप्पू का चेहरा उतर गया, क्योंकि उसने सोचा था कि इस केस से वह रानी का दिल जीत लेगा, लेकिन हुआ उल्टा। गोलू ने सबके सामने समोसा उठाकर कहा—“एक बार फिर देसी जासूस एजेंसी ने केस सुलझा दिया!” भीड़ में ठहाके गूँजने लगे और बच्चे तालियाँ बजाने लगे। पप्पू ने झेंपते हुए वही पुराना डायलॉग दोहराया—“अपराधी चाहे कोई भी हो, हमारी नज़र से बच नहीं सकता।” लेकिन अंदर से वह जानता था कि इस बार उसका हीरो बनने का सपना फिर गोलू की मस्ती के नीचे दब गया। मोहल्ले के लोग इस केस की चर्चा करते हुए लौट गए और गोलू अपने हिस्से की मिठाई लेकर खुश हो गया। जबकि बेचारा पप्पू सोचता रह गया कि अगली बार उसे वाकई कोई ‘बड़ा केस’ चाहिए ताकि वह रानी के सामने चमक सके।

गोलू की जिंदगी में रहस्य चाहे कितना भी बड़ा क्यों न आ जाए, उसके लिए असली मसला हमेशा खाने से जुड़ा होता था। और जब मोहल्ले की सबसे मशहूर चीज़—रामलाल हलवाई के समोसे—गायब होने लगे, तो उसके कान वैसे खड़े हो गए जैसे बिल्ली के सामने चूहा। बात ऐसी थी कि रामलाल हलवाई सुबह दुकान खोलते तो देखते कि रात में बनाए गए कुछ समोसे ग़ायब हो जाते हैं। शुरू में उन्हें लगा कोई ग्राहक देर रात दुकान से उठा ले गया होगा, लेकिन जब रोज़ाना ऐसा होने लगा, तो उनकी चिंता बढ़ गई। उन्होंने मोहल्ले में ऐलान किया—“समोसा-चोर पकड़ा गया तो दुकान से आजीवन बैन कर दिया जाएगा!” यह सुनकर पूरे मोहल्ले में हलचल मच गई। लोग बातें बनाने लगे—“कहीं यह गली में आया कोई नया चोर तो नहीं?” लेकिन असली उथल-पुथल गोलू के भीतर थी। उसकी आँखें चौंधिया उठीं और पेट के भीतर से आवाज़ आई—‘समोसे गायब… इसका मतलब मेरे हिस्से कम पड़ेंगे… नहीं! यह तो सीधा मेरी इज्ज़त और खाने पर हमला है।’ उसी वक्त उसने पप्पू की बाँह पकड़कर कहा—“भाई, यह केस हमें ही लेना पड़ेगा। यह तो मेरी जिंदगी-मौत का सवाल है!” पप्पू को भी केस लेने में मज़ा आता था, लेकिन वह जानता था कि गोलू की दिलचस्पी सिर्फ समोसों तक सीमित है। फिर भी उसने गंभीरता दिखाते हुए घोषणा की—“देसी जासूस एजेंसी इस केस की तह तक जाएगी!” मोहल्ले के लोग ताली बजाने लगे, और हलवाई ने वादा किया कि केस सुलझाने पर उन्हें समोसे का “स्पेशल इनाम” मिलेगा। गोलू के चेहरे पर लार चमक उठी।

जाँच की शुरुआत दोनों ने दुकान पर की। दिन के वक्त सब सामान्य था—कढ़ाही में तेल खौल रहा था, गर्मागर्म जलेबियाँ छन रही थीं और समोसे की खुशबू गली में तैर रही थी। पप्पू ने चारों तरफ नज़र दौड़ाई, दुकान के ताले को देखा, शटर की जाँच की और पड़ोस के लोगों से पूछताछ की। लेकिन दिन के उजाले में सब साफ़-सुथरा लग रहा था। गोलू इस बीच हर आने वाले ग्राहक को शक़ की नज़र से देखता और उनके थैले में झाँक-झाँककर चिल्लाता—“यही चोर होगा!” जिससे कई बार लोग नाराज़ हो जाते। पप्पू ने डाँटते हुए कहा—“अरे, ऐसे नहीं! हमें असली सबूत ढूँढना होगा।” आखिरकार दोनों ने तय किया कि असली रहस्य रात में ही सामने आएगा। योजना बनी—आज रात वे दुकान पर “गुप्त निगरानी” करेंगे। शाम को दोनों ने खुद को जासूसी फिल्म के हीरो की तरह तैयार किया—काले कपड़े, हाथ में टॉर्च और एक छोटा-सा नोटबुक। रात होते ही वे धीरे-धीरे दुकान में घुसे और शटर के पीछे छिप गए। हलवाई ने खुद आकर ताला लगाया और जाते-जाते धीरे से कहा—“बेटा, अब तुम्हारी निगरानी पर भरोसा है।” जैसे ही दुकान अँधेरे में डूबी, गोलू ने पप्पू से फुसफुसाकर कहा—“भाई, इतनी खुशबू आ रही है कि भूख से हालत खराब हो रही है। एक समोसा निकालने दे।” पप्पू ने आँखें तरेर दीं और कहा—“बेवकूफ, निगरानी करने आए हैं, चोरी करने नहीं।” और इस तरह दोनों भूखे-प्यासे पूरी रात जागकर बैठ गए। बाहर कुत्तों की भौंकने की आवाज़ आती रही, दूर मंदिर की घंटी बजी, और बीच-बीच में गोलू का पेट गुर्राता रहा।

आधी रात बीत चुकी थी और अब दोनों की आँखें नींद से झपकने लगी थीं। पप्पू ने टॉर्च हाथ में पकड़ रखी थी, और गोलू लगातार कुर्सी पर हिल-डुल रहा था ताकि नींद न आए। तभी अचानक पीछे से हल्की-सी खड़खड़ाहट सुनाई दी। दोनों चौकन्ने हो गए। पप्पू ने धीरे से गोलू को इशारा किया—“देखो, कोई आ रहा है।” शटर के कोने से हल्की-सी आवाज़ आई, जैसे किसी ने धीरे से दरवाज़ा खोला हो। अँधेरे में एक परछाईं दुकान के भीतर घुसी। पप्पू और गोलू ने साँसें रोक लीं। वह परछाईं सीधे समोसों की टोकरी की ओर बढ़ी और झट से दो समोसे उठा लिए। उसी वक्त पप्पू ने टॉर्च जला दी और गोलू ने चिल्लाकर कहा—“पकड़े गए समोसा-चोर!” टॉर्च की रोशनी पड़ते ही सारा रहस्य खुल गया—वह कोई बाहरी चोर नहीं, बल्कि खुद रामलाल हलवाई का बेटा था। लड़के ने चौंककर समोसे गिरा दिए और सकपकाते हुए बोला—“मैं… मैं तो बस रात को पढ़ते-पढ़ते भूखा हो जाता हूँ। पापा डाँटते हैं तो चोरी-छिपे आकर समोसा खा लेता हूँ।” गोलू का मुँह खुला का खुला रह गया और फिर उसने ज़ोर से ठहाका लगाया—“अरे, तो समोसे के पीछे पूरा मोहल्ला परेशान हो गया और असली चोर घर का ही निकला!” पप्पू ने डायरी में लिखा—‘रहस्य सुलझा। कोई अपराधी नहीं, सिर्फ भूखा बेटा।’ सुबह जब मोहल्ले वालों को पता चला तो सब हँस-हँसकर लोटपोट हो गए। रामलाल हलवाई ने शर्मिंदा होकर कहा—“अरे, मैं अपने ही बेटे को चोर समझ रहा था।” और उसने पप्पू-गोलू को इनाम में समोसे की भरपूर प्लेटें खिलाईं। गोलू खुशी से ऐसे समोसे खा रहा था मानो जीत का असली जश्न वही हो। पप्पू ने भी गर्व से कहा—“देखा, चाहे मामला समोसे का ही क्यों न हो, हमारी एजेंसी हर रहस्य खोल ही देती है।” और इस तरह “समोसा-चोर” का रहस्य भी पूरे मोहल्ले की हँसी-ठिठोली में खत्म हो गया।

मोहल्ले की शामें अक्सर चाय, पकौड़े और बच्चों के खेल-कूद से गूंजती थीं, लेकिन उस दिन माहौल कुछ अलग था। गली में तरह-तरह की फुसफुसाहटें चल रही थीं—“अरे, सुना है? पुराने कुएँ पर भूत दिखा है!” किसी ने दावा किया कि उसने रात के अंधेरे में सफेद परछाईं घूमते देखी। किसी और ने कसम खाकर कहा कि उसने कर्र-कर्र की आवाज़ भी सुनी थी। देखते ही देखते यह अफवाह पूरे मोहल्ले में फैल गई। बच्चे कुएँ के पास जाना बंद कर चुके थे, और बड़े लोग भी रात को उस रास्ते से गुजरने से बचने लगे। यह खबर जब पप्पू और गोलू तक पहुँची तो दोनों की आँखों में उत्साह की बिजली चमक गई। पप्पू ने सीना चौड़ा करके कहा—“यही मौका है! अगर हमने भूत पकड़ लिया तो हमारी एजेंसी की धाक पूरे मोहल्ले में बैठ जाएगी।” गोलू पहले तो डर गया और बोला—“भाई, भूत-वूत असली हुए तो?” लेकिन फिर जैसे ही उसने सोचा कि भूत पकड़ने के बाद लोग डर कर समोसे उसके हाथों में थमा देंगे, उसकी हिम्मत लौट आई। दोनों ने मिलकर एलान किया—“आज रात देसी जासूस एजेंसी भूत का राज़ खोलेगी।” यह सुनकर मोहल्ले वाले आधे डरे और आधे उत्सुक हो गए। कुछ ने तो पहले से ही ताना मार दिया—“अरे, ये दोनों बस नाटक करेंगे।” लेकिन बच्चों के मन में सस्पेंस और रोमांच भर गया।

रात गहराने लगी, और पूरा मोहल्ला नींद की तैयारी में था, लेकिन पप्पू और गोलू ने अपनी “स्पेशल जासूसी तैयारी” शुरू कर दी। दोनों ने काले कपड़े पहने, हाथ में टॉर्च और एक पुराना कैमरा लिया, ताकि सबूत मिल सके। गोलू ने तो यहां तक कह दिया—“अगर भूत सचमुच निकला तो उसे यूट्यूब पर डालकर फेमस हो जाएँगे।” पप्पू ने उसे डाँटते हुए कहा—“बेवकूफ, पहले पकड़ तो ले भूत।” आधी रात को दोनों धीरे-धीरे पुराने कुएँ की तरफ बढ़े। वहाँ की हवा ही कुछ अलग थी—ठंडी, सन्नाटे से भरी, और पास के पेड़ों से आती झींगुरों की आवाज़ गूँज रही थी। गोलू का दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। उसने पप्पू का हाथ कसकर पकड़ लिया और बोला—“भाई, अगर सच में भूत निकला तो मैं भाग जाऊँगा, तू ही संभालना।” पप्पू ने बहादुरी दिखाने की कोशिश की, लेकिन भीतर से वह भी कांप रहा था। अचानक कहीं से “हुsssss…” जैसी आवाज़ आई और दोनों के रोंगटे खड़े हो गए। टॉर्च की रोशनी कांपते हाथों से इधर-उधर घूम रही थी। तभी कुएँ के पास एक सफेद आकृति हिलती-डुलती दिखाई दी। गोलू चीख पड़ा—“भाई भूत!” और पप्पू ने तुरंत कैमरा ऑन कर दिया। दोनों ने हिम्मत जुटाकर धीरे-धीरे उस आकृति की ओर कदम बढ़ाए। आकृति ने हाथ फैलाए और “बचsssाओ…” जैसी आवाज़ निकाली। पप्पू ने टॉर्च का फोकस सीधा उस पर डाला और सच सामने आ गया—वह भूत नहीं, बल्कि चोटू था, जो मोहल्ले का शरारती बच्चा था। उसने अपने ऊपर सफेद चादर लपेट रखी थी और आवाज़ बदलकर लोगों को डराता फिर रहा था।

सच्चाई देखते ही गोलू की सारी दहशत गुस्से में बदल गई। उसने चोटू की चादर खींचते हुए कहा—“अरे बदमाश! तूने पूरे मोहल्ले की नींद हराम कर दी।” पप्पू ने डायरी निकालकर गंभीरता से लिखा—‘केस क्लोज़: कोई भूत नहीं, सिर्फ चोटू का मज़ाक।’ लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। जैसे ही मोहल्ले वालों को पता चला कि रात भर जिस ‘भूत’ से वे डरते रहे, वह तो चोटू का खेल था, सब हँसी से लोटपोट हो गए। आंटी लोग ताने मारते हुए बोलीं—“अरे, भूत तो नहीं निकला, लेकिन हमारे बच्चों को डराकर सब्ज़ी मंडी से छुटकारा जरूर मिल गया।” बच्चे चोटू को पकड़कर उसकी खिंचाई करने लगे और हलवाई ने ठहाका लगाते हुए कहा—“इसका इनाम पप्पू-गोलू को मिलना चाहिए। आखिर इन्होंने ही साबित किया कि मोहल्ले में भूत-प्रेत का कोई चक्कर नहीं।” गोलू को सबसे बड़ा इनाम तब मिला जब हलवाई ने कहा—“बेटा, डर हटाने का जश्न समोसों से ही होगा।” गोलू ने खुशी से झूमते हुए एक साथ तीन समोसे दबा लिए और बोला—“देखा भाई, अगर हम न होते तो लोग आज भी भूत से डर रहे होते।” पप्पू ने गर्व से गर्दन हिलाई और गंभीर स्वर में कहा—“याद रखो, सच्चाई हमेशा डर से बड़ी होती है।” उस रात पूरा मोहल्ला चैन की नींद सोया और देसी जासूस एजेंसी की शोहरत और भी बढ़ गई।

सुबह-सुबह मोहल्ले की गलियों में हंगामा मच गया जब शर्मा आंटी रोते-चिल्लाते बाहर आईं—“अरे बचाओ! मेरा सोने का झुमका चोरी हो गया!” मोहल्ले की औरतें एक-दूसरे से कानाफूसी करने लगीं, कोई बोली—“सोने का झुमका! जरूर कोई बड़ा चोर मोहल्ले में आ गया है।” कोई बोली—“अरे आजकल तो चोरी-डकैती बहुत बढ़ गई है।” बच्चों में खुसुर-फुसुर शुरू हो गई, और देखते ही देखते पूरे मोहल्ले में यह खबर फैल गई कि शर्मा आंटी का कीमती झुमका चोरी हो गया है। शर्मा आंटी का गुस्सा और घबराहट देखकर लोग डर भी गए, क्योंकि आंटी का झुमका सिर्फ गहना नहीं, उनकी शान था। वहीं पप्पू और गोलू, जो पास में ही क्रिकेट खेल रहे थे, तुरंत बैट-गेंद छोड़कर मौके पर पहुंच गए। पप्पू ने जैसे ही केस सुना, उसकी आँखों में चमक आ गई। उसने गंभीर आवाज़ में कहा—“आंटी, चिंता मत करो। देसी जासूस एजेंसी है ना, आपका झुमका हम ढूँढ निकालेंगे।” गोलू ने भी सीना चौड़ा करके बोला—“हाँ, और अगर हम न ढूंढ पाए तो हम समोसे खाना छोड़ देंगे।” यह सुनकर बच्चे हँस पड़े और आंटी ने उम्मीद भरी नज़रों से दोनों की तरफ देखा। पूरा मोहल्ला पप्पू-गोलू की तरफ देखने लगा, जैसे अब सारी जिम्मेदारी इन्हीं पर हो। पप्पू को यह सुनहरा मौका लग रहा था खुद को हीरो साबित करने का। उसने अपनी डायरी निकाली और लिखा—“केस नं. 8: चोरी हुआ झुमका।”

जाँच की शुरुआत बड़े ही नाटकीय अंदाज़ में हुई। पप्पू ने सबको चुप रहने को कहा और हाथ में आवर्धक लेंस लेकर ज़मीन पर झुक गया, जैसे कि किसी बड़े अपराध स्थल की जांच कर रहा हो। उसने शर्मा आंटी से सवाल पूछे—“आंटी, आख़िरी बार झुमका कब देखा था? कहाँ रखा था? कोई शक्की व्यक्ति आसपास था क्या?” आंटी ने कहा कि कल रात उन्होंने शादी में जाने के बाद झुमके उतारकर मेज़ पर रखे थे और सुबह उठकर देखा तो एक झुमका गायब है। पप्पू ने तुरंत नोट किया और बोला—“यानी चोरी रात के समय ही हुई है।” गोलू इधर-उधर ताकझांक करता फिर रहा था। उसने शर्मा जी पर शक जताते हुए कहा—“लगता है शर्मा अंकल ही ले गए होंगे, घर के खर्च में काम आ जाए।” यह सुनते ही शर्मा अंकल तमतमाकर बोले—“अबे बदतमीज़! मैं अपनी बीवी का झुमका क्यों चुराऊँगा?” भीड़ ठहाके मारकर हँसने लगी। पप्पू ने गोलू को घूरकर कहा—“जासूसी कोई मज़ाक नहीं, सबूत चाहिए सबूत।” फिर दोनों ने सुराग ढूंढने शुरू किए। रसोई में, कमरे में, यहां तक कि छत पर भी टॉर्च जलाकर देख डाला। गोलू तो इतने उत्साह में था कि उसने बर्तन की टोकरी उठाकर उलट-पलट कर डाली, लेकिन कुछ हाथ नहीं आया। पूरे मोहल्ले के बच्चे उनके पीछे-पीछे घूम रहे थे, और हर बार गोलू कोई अजीब हरकत करता तो बच्चे “जासूस गोलू! जासूस गोलू!” चिल्लाकर हँस पड़ते।

काफी खोजबीन के बाद भी जब झुमका नहीं मिला तो पप्पू की पेशानी पर पसीना आ गया। वह सोच में पड़ गया कि अगर केस सुलझा नहीं तो उसकी एजेंसी की हँसी उड़ जाएगी। गोलू तो पहले ही बोर होकर बोला—“भाई, झुमका न मिला तो कम से कम समोसा ही दिलवा दो।” तभी शर्मा आंटी ने अपनी साड़ी ठीक करने के लिए पल्लू झाड़ा और सबकी नजरें उस पर टिक गईं—क्योंकि वहीँ पर झुमका साड़ी के धागों में फँसा चमक रहा था। गोलू उछलकर बोला—“अरे आंटी, आपका झुमका तो आपके कपड़ों में ही अटका हुआ है!” सब लोग ठहाका मारकर हँसने लगे। शर्मा आंटी भी शर्मिंदा होकर बोलीं—“अरे, ये तो साड़ी में ही फंस गया था!” पूरा मोहल्ला तालियाँ बजाने लगा। पप्पू ने झेंपते हुए डायरी बंद की और गंभीरता से बोला—“केस क्लोज़: कोई चोरी नहीं, झुमका मिला।” गोलू ने तुरंत ताना मारा—“भाई, अगर हमने इतना झंझट न किया होता तो आंटी को खुद ही मिल जाता।” भीड़ ठहाकों से गूंज उठी। लेकिन पप्पू ने फिर भी शेर की तरह सीना तानकर कहा—“याद रखो, जासूस वही होता है जो हर छुपे हुए सच को बाहर लाए।” बच्चे शरारती अंदाज़ में बोले—“हाँ हाँ, बर्तन की टोकरी उलटने के बाद!” उस दिन मोहल्ले में जितनी हँसी-ठिठोली हुई, उतनी शायद ही कभी हुई हो। भले ही केस साधारण निकला, लेकिन देसी जासूस एजेंसी की लोकप्रियता और भी बढ़ गई—क्योंकि लोगों को अब समझ आ गया था कि पप्पू-गोलू के केस से हमेशा हँसी और तमाशा ज़रूर मिलेगा।

गली में सुबह-सुबह चहल-पहल तो थी, लेकिन माहौल कुछ अलग था। हवलदार ठाकुर, जो मोहल्ले की सुरक्षा देखता था, बेहद चिड़चिड़ा होकर लोगों से कह रहा था—“ये तुम्हारे पप्पू-गोलू दिन-रात बस तमाशा करते हैं! कभी भूत पकड़ने निकल जाते हैं, कभी समोसे की चोरी पर हंगामा करते हैं। पुलिस का काम मज़ाक नहीं होता।” यह सुनकर पप्पू और गोलू दोनों को बड़ा बुरा लगा। पप्पू ने ठोड़ी ऊँची करके कहा—“ठाकुर जी, जासूस भी समाज की सेवा करते हैं।” गोलू ने भी बात बढ़ाते हुए कहा—“हाँ, और हमारी वजह से मोहल्ला हँसता है, डरता नहीं।” लेकिन ठाकुर का गुस्सा कम न हुआ। उन्होंने दोनों की पीठ पर हल्की सी छड़ी मारी और बोला—“अब से अगर बेवजह हंगामा किया तो थाने ले जाकर बैठा दूँगा।” मोहल्ले वाले हँसते रहे और बच्चे चुपके से फुसफुसाते—“देखो, हमारे जासूसों की तो खैर नहीं।” तभी अचानक रामदयाल किराना वाले भागते हुए आए और हांफते हुए बोले—“चोरी! चोरी हो गई! मेरी दुकान से नकद और सामान दोनों गायब हो गए!” पूरे मोहल्ले में हलचल मच गई। ठाकुर का चेहरा सख़्त हो गया और वह बोला—“देखा, ये असली चोरी है। अब तुम दोनों बच्चों को पता चलेगा कि केस कैसे सुलझाते हैं।” लेकिन पप्पू और गोलू कहाँ मानने वाले थे? वे तो इस मौके को अपनी काबिलियत साबित करने का सुनहरा अवसर मान बैठे।

रामदयाल की दुकान पर भीड़ इकट्ठा हो गई। पप्पू ने गंभीरता से सुराग ढूंढने की कोशिश की। उसने दुकान के दरवाज़े, ताले और आसपास की मिट्टी का बारीकी से मुआयना किया, बिल्कुल टीवी वाले जासूसों की तरह। गोलू ने वहीं दुकान की मेज़ पर रखी बिस्कुट की पैकेट उठाई और खाने लगा, जैसे कि वही उसका सुराग हो। ठाकुर ने गुस्से से घूरकर कहा—“अबे, ये जांच है या पिकनिक?” लेकिन पप्पू ने नोटबुक में लिखना शुरू कर दिया और बोला—“देखो ठाकुर जी, चोर ने ताला तोड़ा नहीं, इसका मतलब वो दुकान का ही कोई जानकार होगा। और दुकान के अंदर कदमों के निशान भी हैं।” गोलू बीच में कूद पड़ा और बोला—“हाँ हाँ, और ये पैकेट आधा खाली है, मतलब चोर को बिस्कुट बहुत पसंद है।” भीड़ ठहाकों से गूंज उठी। ठाकुर ने माथा पीट लिया, लेकिन दोनों की जिद देखकर उन्हें चुप रहना पड़ा। तभी पप्पू ने दो बच्चों को दुकान के बाहर खुसुर-फुसुर करते देखा और शक की निगाह से उन्हें पकड़ा। वे बच्चे डर के मारे काँपने लगे, लेकिन जब ठाकुर ने डाँटकर पूछा तो पता चला कि बच्चे तो बस डर के कारण चोरी की कहानी सुन रहे थे। पप्पू और गोलू को थोड़ी शर्मिंदगी हुई, लेकिन उनकी कोशिशें कम न हुईं। उन्होंने यहाँ तक किया कि पास के मोहल्ले में जाकर पूछताछ शुरू कर दी, जहाँ उनका आधा दिन लोगों से बेकार सवाल पूछने में निकल गया। इस बीच ठाकुर गंभीरता से गवाहों से पूछताछ और ताले की जांच करता रहा।

शाम तक मामला उलझने की बजाय और गड़बड़ा गया। पप्पू ने दावा किया कि चोर पड़ोस का शंकर है, क्योंकि वह अक्सर दुकान के आसपास मंडराता है। गोलू ने इस थ्योरी को सपोर्ट करते हुए कहा—“हाँ, और उसने एक बार मुफ्त में आलू भी माँगा था, मतलब चोरी की आदत होगी।” ठाकुर ने झल्लाकर कहा—“अबे, आलू माँगने से कोई चोर बन जाता है क्या?” इसी बीच असली सुराग ठाकुर के हाथ लगा—दुकान के अंदर गिरे कपड़े का एक टुकड़ा। वह टुकड़ा मोहल्ले के ही रामलाल के नौकर के कपड़ों से मेल खा गया। जब ठाकुर ने नौकर से सख्ती से पूछताछ की तो सच्चाई सामने आ गई—वही चोरी का असली गुनहगार था। सब लोग हैरान रह गए और पप्पू-गोलू के सारे अनुमान धरे के धरे रह गए। ठाकुर ने केस सुलझाते हुए ऐलान किया—“देखा, पुलिस का काम बच्चों का खेल नहीं। सबूत, गवाही और तफ्तीश से ही सच निकलता है।” मोहल्ले वालों ने राहत की सांस ली और पप्पू-गोलू हताश होकर एक तरफ खड़े रह गए। गोलू ने धीरे से कहा—“भाई, हमने तो केस और उलझा दिया।” पप्पू ने सिर झुका लिया, लेकिन फिर तुरंत मुस्कराकर बोला—“कोई बात नहीं गोलू, अगली बार हम जरूर असली जासूस बनकर दिखाएँगे।” ठाकुर ने दोनों को घूरते हुए भी आखिरकार मुस्कुरा दिया, और बोला—“ठीक है बच्चों, कोशिश अच्छी थी, लेकिन अब आगे से सबूत के बिना किसी को चोर मत बनाना।” पूरा मोहल्ला हँस पड़ा और बच्चों ने ताली बजाई। भले ही केस ठाकुर ने सुलझाया, लेकिन पप्पू और गोलू की शरारती जासूसी ने पूरे मोहल्ले का दिन हँसी और रोमांच से भर दिया।

१०

गली की शाम ढल रही थी। बच्चे पतंग उड़ाने में मशगूल थे, और महिलाएँ चौपाल पर बैठकर गपशप कर रही थीं। इन सबके बीच पप्पू और गोलू, अपनी टूटी-फूटी टेबल और कॉपी लेकर छत पर बैठे हुए थे। दसियों बार की नाकामयाबी के बाद भी उनके चेहरे पर उदासी की जगह अजीब-सी चमक थी। पप्पू ने नोटबुक पलटकर पुराने केस पढ़े—“मिनी बिल्ली का अपहरण”, “हलवाई की मिठाई चोरी”, “रहस्यमयी खत” और “भूत का चक्कर।” हर पन्ने में गलती, हंगामा और बेवकूफ़ी की कहानियाँ लिखी थीं, लेकिन हाशिये पर हमेशा एक हँसी छुपी रहती थी। गोलू ने एक आधा खाया हुआ समोसा प्लेट से उठाया और मजाकिया अंदाज में बोला—“भाई, देख तो, हम मोहल्ले के पहले जासूस हैं, जिनके पास सबूत से ज्यादा खाने के कागज पड़े हैं।” दोनों ठहाके लगाकर हँस पड़े। तभी नीचे से बच्चों की आवाज़ आई—“देखो, हमारे जासूस बाबू बैठे हैं!” और लोग सचमुच ताली बजाने लगे। पप्पू चौंका—इतनी असफलताओं के बावजूद लोग उनका मजाक उड़ाने की बजाय उनकी मौजूदगी का मजा लेने लगे थे। मोहल्ला मान चुका था कि देसी जासूस एजेंसी असली केस सुलझाए या न सुलझाए, लेकिन मोहल्ले में रौनक ज़रूर ले आती है।

इस बीच रानी छत पर आई। पप्पू के दिल की धड़कन तेज़ हो गई। रानी, जो पहले पप्पू की जासूसी हरकतों पर हंसती थी, आज मुस्कराकर बोली—“पता है पप्पू, तुम हमेशा केस तो गड़बड़ा देते हो, पर मानना पड़ेगा कि हिम्मत रखते हो। मोहल्ले में कुछ भी होता है, सबको सबसे पहले तुम्हारी याद आती है। तुम… थोड़े स्मार्ट हो।” यह सुनते ही पप्पू का चेहरा टमाटर जैसा लाल हो गया और गोलू ने तुरंत चुटकी ली—“अरे वाह, अब तो हमारी एजेंसी का ब्रांड एंबेसडर भी मिल गया!” रानी ने खिलखिलाकर हँसते हुए कहा—“चलो, कोशिश करते रहना, शायद एक दिन सच में बड़े जासूस बन जाओ।” और वह सीढ़ियों से नीचे उतर गई। पप्पू की आँखों में अब नया आत्मविश्वास चमकने लगा। उसने अपनी कॉपी बंद करते हुए गंभीर स्वर में कहा—“गोलू, हमें एजेंसी को और मजबूत बनाना होगा। चाहे केस छोटे हों या बड़े, असफलताएँ कितनी भी हों, हमें रुकना नहीं चाहिए।” गोलू, जो समोसे का आखिरी टुकड़ा खा रहा था, गंभीर होकर बोला—“बिलकुल! कमाई हो या न हो, लेकिन हँसी की कमी नहीं होनी चाहिए। यही तो हमारी सबसे बड़ी सफलता है।”

उस रात, छत पर बैठकर दोनों ने सपनों की नई उड़ान भरी। पप्पू ने तय किया कि अब वे और भी गंभीरता से काम करेंगे—कभी किताबों से पढ़कर सुराग ढूँढना सीखेंगे, तो कभी इंटरनेट पर देखकर नए तरीके अपनाएँगे। गोलू ने भी वादा किया कि अब सबूत खाने से पहले उसकी फोटो जरूर खींचेगा। उन्होंने कॉपी के आखिरी पन्ने पर लिखा—“देसी जासूस एजेंसी – हँसी और रहस्य दोनों का हल।” मोहल्ले में भी अब लोग उन्हें सिरदर्द की बजाय अपनी खुशी का हिस्सा मानने लगे थे। बच्चे उनके पीछे-पीछे घूमते, और बड़े भी जानते थे कि इन दोनों की हरकतें चाहे कैसी भी हों, गली का माहौल जीवंत बना देती हैं। ठाकुर हवलदार, जो कभी उन्हें डाँटते-पीटते थे, अब मुस्कराकर कहते—“चलो, कुछ तो सीखा। कोशिश जारी रखो।” हलवाई भी, जिसका समोसा गोलू अक्सर सबूत की तरह खा जाता था, अब जानबूझकर रात को दो समोसे छुपाकर रख देता, ताकि सुबह ‘केस’ मिल सके। पूरा मोहल्ला, इन दोनों के हास्यास्पद लेकिन प्यारे जासूसी सफर का हिस्सा बन चुका था। और इसी हंसी-ठिठोली के बीच पप्पू और गोलू को अहसास हुआ कि एजेंसी का असली मकसद सिर्फ केस सुलझाना नहीं था, बल्कि मोहल्ले को हँसी और अपनापन देना था। उन्होंने तारों की तरफ देखकर एक साथ कहा—“हमारी एजेंसी कभी बंद नहीं होगी!” और आसमान भी जैसे उन पर मुस्करा उठा।

***

 

1000060075.png

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *