रंजन मिश्रा
भाग 1: व्हाट्सऐप वार
“चमनलाल जी ने फिर ग्रुप पर पोस्ट कर दिया—’कल रात तीसरी मंज़िल से जो हड्डी गिराई गई थी, उससे मेरी गुलाब की क्यारी घायल हो गई है। मैं FIR दर्ज करवाने जा रहा हूँ। – चौथी मंज़िल, चमनलाल’।”
कॉलोनी का ‘अप्टू कॉलोनी रेसिडेंट्स ग्रुप’ सुबह-सुबह सुलग उठा। एक ओर हड्डी का मुद्दा, दूसरी ओर FIR की धमकी, और तीसरी ओर वो मोहल्ले की क्यारी जिसमें तीन पौधे छोड़कर सबकुछ सूख चुका था—पर चमनलाल जी का दावा था कि गुलाब कल ही खिला था।
“दादा, आप ज़रा ग्रुप से बाहर वाले मसले ग्रुप में मत लाया करो।” — ये संदेश था नवीन का, तीसरी मंज़िल से, जो हर चीज़ को ‘OTT ड्रामा’ कहकर टाल देता था।
लेकिन चमनलाल जी कोई भी बात ‘नवीनता’ से नहीं, ‘न्याय’ से देखते थे।
“अरे भाई, जब गुलाब खून बहाए, तो चुप रहूं?” उन्होंने फिर से लिखा, “CCTV चेक करवा लूंगा। ये सब सहन नहीं होगा।”
बात बढ़ गई।
सोसायटी के सचिव श्री दीक्षित जी ने ग्रुप पर तीन बार ‘🙏 शांति बनाए रखें 🙏’ लिखा, और हर बार किसी न किसी ने उस पर ‘laughing emoji’ भेजा।
“देखो दीक्षित, बात गुलाब की नहीं है, बात सम्मान की है।” चमनलाल जी ने अब निजी कॉल पर शिकायत शुरू की, “पहले कचरा मेरी दरवाज़े के पास, फिर बच्चों की गेंद से खिड़की टूटी, अब ये हड्डी?”
दीक्षित जी कुछ कह पाते उससे पहले चमनलाल जी ने चाय बनाई, कैमरा ऑन किया, और लाइव विडियो ग्रुप पर डाल दिया—”ये देखिए मेरी घायल क्यारी।”
विडियो में एक पत्ते पर कुछ सफेद सा धब्बा था—शायद पुराने दूध का दाग, लेकिन चमनलाल जी उसे ‘घाव’ बता रहे थे।
“दादा, ये तो मिर्ची का दाग लगता है!” किसी ने कमेंट किया।
“तुम लोग बस मज़ाक उड़ाओ, पर मैं पीछे हटने वालों में से नहीं!” चमनलाल जी ने बड़बड़ाते हुए नया ग्रुप बना डाला: “सच्चे निवासी – अप्टू कॉलोनी”, जिसमें केवल उन्होंने, उनकी पत्नी विमला जी, और उनका पुराना केबलवाला ही जुड़ा।
भाग 2: झगड़ालू जलेबी और बिल्लियों की बारात
सुबह-सुबह विमला जी की चीख ने पूरे फ्लोर को हिला दिया—”चमन! तुम्हारी जलेबी फिर से जल गई!”
चमनलाल जी खांसते हुए बालकनी से अंदर आए, “मैं तो सोच रहा था थोड़ी कुरकुरी बने, विमला। इंस्टाग्राम वाले भी यही कहते हैं—’क्रंच इज़ लंच!'”
“तुम्हारा इंस्टाग्राम देखता कौन है?”
“तेरे मायके वाले तो नहीं, ये पक्का!” कहकर चमनलाल जी हँस दिए और जलेबी को पलेट में सजा कर फोटो खींचने लगे।
तभी नीचे से खड़खड़ की आवाज़ आई। तीसरी मंज़िल से बच्चों का शोर—”फिर से बिल्लियाँ लड़ रही हैं! नीचे पार्किंग में बारात सी लग गई है!”
चमनलाल जी झपट कर नीचे गए। वहाँ दो बिल्लियाँ, एक सफेद और एक काली, पार्किंग के कोने में बैठकर ‘म्याऊ राग’ छेड़े थीं। एक गिलास दूध पड़ा था पास में—और चमनलाल जी को पूरा यक़ीन था कि ये सब नवीन की साज़िश है।
“देखा विमला! यही है ये तीसरी मंज़िल का षड्यंत्र! पहले हड्डी, अब बिल्ली—मेरे खिलाफ साजिश रची जा रही है।”
विमला जी ने ताना मारा, “हो सकता है कोई तुम्हारे जलेबी से खुश होकर बिल्ली को भेजा हो—’क्रंच इज़ लंच!’ याद है?”
इस बार चमनलाल जी को बुरा नहीं लगा। वो अजीब सी गंभीरता से बोले, “मैं इस कॉलोनी की आत्मा हूँ विमला। जब मैं गिरूँगा, तब सबको समझ आएगा। लेकिन अभी नहीं—अभी तो जलेबी जलानी बाकी है।”
शाम को उन्होंने एक और मीटिंग बुला डाली, ग्रुप कॉल पर। तीन लोग जुड़े: वो खुद, विमला जी, और सुधा आंटी जो गलती से बटन दबा बैठी थीं।
“हम एक रेज़ोल्यूशन लाना चाहते हैं,” उन्होंने घोषणा की, “कि तीसरी मंज़िल के निवासी दूध बाहर न रखें। इससे बिल्लियाँ आती हैं और फिर ये बिल्लियाँ हमारी आत्मा की शांति भंग करती हैं।”
सुधा आंटी ने कुछ नहीं सुना। उन्होंने सोचा ये कोई सास-बहू धारावाहिक चल रहा है, और फोन काट दिया।
“लो, विमला, अब तो ये भी नहीं सुनती। सब साज़िश है।”
“और तुम्हारा CCTV वाला क्या हुआ?” विमला जी ने पूछा।
“वो तो मैंने लगा ही दिया है! पर देखना, रात को जो रिकॉर्ड होगा, उससे पूरा मामला खुल जाएगा।”
रात को वीडियो आया। उसमें दिखा—चमनलाल जी खुद दूध रख रहे हैं और बिल्लियों को बुला रहे हैं। वो ‘पुच पुच’ कर रहे हैं, और अंत में बिस्किट भी डालते हैं।
“चमन! ये क्या है?” विमला जी ने मोबाइल घुमाया।
“अरे ये… ये तो पुरानी फुटेज है। उस दिन मेरी तबीयत खराब थी। याद नहीं? बुखार में आदमी क्या करता है, कुछ भी समझ नहीं आता।”
“मतलब ये कि तुम्हीं हो बिल्ली बारात के दूल्हा!”
अब कॉलोनी वालों ने नया ग्रुप बना लिया था—“Only Memes – अप्टू कॉलोनी”, जिसमें चमनलाल जी के जलेबी, बिल्ली और FIR वाली तस्वीरों से भरमार थी।
पर चमनलाल जी रुके नहीं। उन्होंने कॉलोनी के सामने एक पोस्टर चिपका दिया—
“गुलाब की कसम, न्याय चाहिए। जलेबी नहीं, इज़्ज़त चाहिए।”
और नीचे लिखा—“आपका चौथी मंज़िल वाला चमन”
भाग 3: कॉलोनी कुकिंग कॉम्पिटिशन और नमक का बदला
गर्मी की छुट्टियों में कॉलोनी क्लब ने तय किया कि एक ‘कुकिंग कॉम्पिटिशन’ रखा जाए, जिसमें सब अपनी-अपनी खास रेसिपी बनाकर लाएँ। जो जीतेगा उसे मिलेगा ‘सोसायटी सुपर शेफ’ का खिताब और 500 रुपये का गिफ्ट वाउचर।
चमनलाल जी ने यह सुना नहीं, ये सूंघा।
“विमला! अब तो मैं बताकर ही दम लूंगा। वो जलेबी जो मैंने जलाई थी, इस बार उसी से जीतूंगा। मैं बनाऊंगा—जलेबी फ्राई विद गुलाब एसेंस!”
विमला जी ने बिना पलक झपकाए कहा, “नाम में ज़्यादा फ्लेवर है, स्वाद में नहीं। पिछली बार वाली खाकर तो हमारी मेड ने छुट्टी ले ली थी।”
“अरे, वो मेड नहीं, विरोधी दल की एजेंट थी!”
चमनलाल जी ने नया कुर्ता निकाला, फ्रिज से दो दिन पुराना घी, और नीचे बाजार से गुलाब जल मंगवाया।
कॉम्पिटिशन वाले दिन पूरा मैदान किसी टीवी शो के सेट जैसा लग रहा था। नवीन के पापा पनीर सत्तू रोल बना रहे थे। सुधा आंटी अमरुद चाट विद मिंट स्लश पर उतर आई थीं। और बच्चों ने तो मैगी पकोड़े ही बना डाले।
“देखना, मेरी जलेबी इस बार सबको जला देगी!” चमनलाल जी बोले, और माईक पकड़ लिया।
“दोस्तों, मैं चमनलाल, आपके चौथी मंज़िल वाला नागरिक, आज बना रहा हूँ वो व्यंजन जो मेरे सपनों में आया था—’जलेबी फ्राई विद गुलाब एसेंस’। इसे कहते हैं Desi meets Poetry!”
इतना कहकर उन्होंने तवे पर जलेबी डाली—और धुआं उठ गया।
“अरे!” कोई चिल्लाया, “ये तो फिर जल गई!”
“नहीं नहीं, ये है Smoky Touch!” चमनलाल जी ने सफाई दी।
जज के रूप में आए थे सोसायटी के सबसे तटस्थ सदस्य—मोहन अंकल, जिनका स्वाद पिछले लॉकडाउन में ही जा चुका था।
उन्होंने बिना कुछ कहे हर डिश को चखा।
जब चमनलाल की बारी आई, उन्होंने बस पूछा, “इसमें नमक डाला है क्या?”
“नमक? नहीं! ये तो मीठा व्यंजन है!”
“तो फिर ये इतना नमकीन क्यों लग रहा है?”
विमला जी पीछे से चुपचाप मुस्कराईं।
“कहीं ऐसा तो नहीं कि आपने गुलाब जल की जगह रसोई का क्लीनर डाल दिया?” नवीन बोला।
“नवीन! तुम्हारी बातें नमक पर नमक छिड़कती हैं!”
अंत में ‘सोसायटी सुपर शेफ’ बना गया—बबलू, चौथी क्लास का लड़का, जिसकी मैगी पकोड़े ने सभी का दिल जीत लिया।
चमनलाल जी ने हार नहीं मानी। मंच पर जाकर बोले—”आज भले मैं हार गया हूं, पर ये हार जलेबी की नहीं, जलेबी खाने वालों की है। इतिहास गवाह है कि सच्चे स्वाद की पहचान समय लेता है!”
“कृपया अगली बार नमक न डालिएगा,” किसी ने कहा, और लोग हँसी से लोटपोट हो गए।
रात को विमला जी ने पूछा, “अब क्या नया प्लान है, शेफ साहब?”
चमनलाल बोले, “अब अगला युद्ध होगा सोसायटी क्विज़ नाईट में। और इस बार मैं ऐसा सवाल पूछूंगा, जो खुद क्विज मास्टर भी गूगल न कर सके!”
भाग 4: क्विज़ नाइट और ‘घोंघा गमन’ विवाद
“इस शुक्रवार क्विज़ नाइट है! सभी निवासी सादर आमंत्रित हैं। टीमें बना लीजिए, और दिमाग के घोड़े दौड़ाइए!”
— ये पोस्ट सोसायटी के नोटिस बोर्ड पर चिपकी थी, और चमनलाल जी ने उसे ऐसे देखा जैसे कोई आज़ादी की घोषणा हो।
“विमला! अबकी बार कोई पकवान नहीं, कोई बिल्लियाँ नहीं, कोई गुलाब नहीं—बस ज्ञान का महासंग्राम। और इस बार चमनलाल सबसे आगे!”
“तो आप अपनी टीम किसे बनाएँगे?” विमला ने पूछा।
“मेरे पास एक जीनियस है—वो पड़ोस का नन्हा चिंटू। पाँचवीं क्लास में है, पर रमन मैগजीन से लेकर शारदा सरस्वती तक सब पढ़ता है।”
“और तीसरा सदस्य?”
“मैं खुद, विमला। मेरी याददाश्त अब भी गूगल को टक्कर दे सकती है!”
क्विज़ नाइट की शुरुआत हुई। मैदान में झिलमिल लाइटें, माइक पर कॉलोनी के सेक्रেটरी दीक्षित जी की गंभीर आवाज़ और मंच पर आठ टीम्स।
चमनलाल की टीम का नाम था—‘ज्ञान ज्योति योध्दा’
पहला राउंड था—’जनरल नॉलेज’
“भारत के पहले राष्ट्रपति कौन थे?” —
“डॉ. राजेन्द्र प्रसाद!” चिंटू ने तपाक से जवाब दिया। तालियाँ बजीं।
“ताजमहल किसने बनवाया?”
“शाहजहाँ!” चमनलाल जी बोले। फिर से तालियाँ।
अब आया ‘क्रिप्टिक क्वेश्चन राउंड’—जो सबके लिए खतरनाक था।
“सवाल: ऐसा कौन-सा प्राणी है जो सबसे धीरे चलता है लेकिन कभी हार नहीं मानता?”
विनीत की टीम ने जवाब दिया, “कछुआ!”
दीक्षित जी बोले, “गलत।”
अब बारी आई चमनलाल जी की।
उन्होंने पूरे आत्मविश्वास से कहा, “घोंघा!”
“सही जवाब!” दीक्षित जी बोले। और पूरा मैदान उफान पर।
पर वहीं नवीन ने विरोध दर्ज किया, “ये सवाल subjective है! इसमें multiple correct answers हो सकते हैं!”
चमनलाल माइक पर झपटे, “हर क्विज़ का एक ‘सही’ होता है, नवीन! और घोंघा तो हमारे कॉलोनी की रफ्तार का प्रतीक है!”
लेकिन असली बवाल तब मचा जब रैपिड फायर राउंड में दीक्षित जी ने सवाल पूछा—”भारतीय संविधान में कुल कितने अनुच्छेद हैं?”
चिंटू हड़बड़ा गया, चमनलाल जी बोले—”399!”
“गलत!” दीक्षित जी बोले, “सही उत्तर—395!”
“क्या! ये सवाल 2005 के संस्करण से लिया गया है, तब 399 थे!” चमनलाल जी उत्तेजित हो गए।
“दादा, संविधान कोई WhatsApp नहीं जो रोज अपडेट होता रहे!” नवीन ने ताना मारा।
कार्यक्रम के अंत में चमनलाल जी की टीम दूसरे स्थान पर आई।
पहले नंबर पर आई—‘नवीन ज्ञान संघ’।
चमनलाल बोले, “ज्ञान तो जीत गया, पर न्याय हार गया। ये क्विज़ नहीं, कूटनीति थी!”
रात को घर आते हुए विमला जी ने मुस्कराकर पूछा, “अब आगे क्या युद्धभूमि चुनी है?”
चमनलाल बोले, “अबकी बार बच्चों की ड्राइंग प्रतियोगिता में घुसूंगा। मैं बनाऊंगा—क्रेयॉन से चंद्रयान!”
“पर वो तो बच्चों के लिए है!”
“तो मैं चिंटू के नाम से भाग लूंगा—Team Mentor! अब खेला होगा रंगों का!”
भाग 5: क्रेयॉन का चंद्रयान और आर्ट का आर्तनाद
चमनलाल जी ने पूरे सप्ताह भर चिंटू के साथ मिलकर चंद्रयान की योजना बनाई—लेकिन ये कोई रॉकेट साइंस नहीं, पूरी तरह क्रेयॉन-कला थी। उनके कमरे में चार्ट पेपर, स्केच पेन, स्केल, और झिलमिल सितारे वाले स्टीकरों का तूफ़ान मच गया था।
“विमला, देखना! ये कोई साधारण ड्राइंग नहीं होगी। ये होगी मिशन मून विद मस्तिष्क!”
“और उसमें बच्चों का योगदान कितना है?”
“चिंटू ने नाम लिखा है न—‘निर्देशक: चिंटू, मार्गदर्शक: चमन।’”
विमला जी ने एक नज़र चंद्रयान पर डाली—तीन पहिए, ऊपर से झंडा, नीचे लिखा था:
“हरियाणा स्पेस बोर्ड”
“हरियाणा क्यों?” विमला ने पूछा।
“क्योंकि हरियाणा से दूध आता है और दूध से शक्ति, और शक्ति से उड़ान!”
विमला जी ने माथा पकड़ लिया।
ड्रॉइंग प्रतियोगिता वाले दिन पूरा कम्युनিটি हॉल रंगों से सजा हुआ था। बच्चों की चमकती आंखें और रंगीन उंगलियाँ पूरे हॉल में उत्साह भर रही थीं। वहीं एक कोना था जहाँ चमनलाल और चिंटू एक पुरानी स्कूटर के डिक्की से ‘क्रेयॉन चंद्रयान’ निकाल रहे थे।
“ये देखो! बाकी सबने फूल, घर, और जानवर बनाए हैं। हम ले आए हैं स्पेस शटल!” चमनलाल जी गर्व से बोले।
बगल में एक बच्ची ने पूछा, “ये रिक्शा है?”
“अरे नहीं बिटिया, ये चंद्रयान है! जरा imagination खुला रखो!”
जज आए—तीन माताएँ और एक सेक्रেটरी दीक्षित जी।
जैसे ही उन्होंने चमन-चिंटू का मॉडल देखा, माथे पर बल आ गया।
“यह तो काफी अलग है…”
“हाँ, और इसके नीचे लिखा है—‘भाग्य से चंद्रमा तक!’”
“और ये झंडे क्यों हैं?”
“वो हैं मल्टी-नेशनल स्पेस कोऑपरेशन के प्रतीक!” चमनलाल जी बोले, जैसे UN मिशन से आए हों।
दीक्षित जी ने पूछा, “पर ये ड्राइंग है या साइंस प्रोजेक्ट?”
“ये है ड्रॉइंग में दर्शनशास्त्र!”
फैसला आया—पहला पुरस्कार गया टीना को, जिसने पानी के रंगों से एक प्यारा सा ‘इंद्रधनुष और हाथी’ बनाया था।
“पर उसका हाथी तो चार टाँगों की जगह तीन से चल रहा था!” चमनलाल जी चीखे।
“बच्ची है, कल्पना करती है,” जज बोलीं।
“तो हमने कल्पना की तो क्राइम हो गया?”
चिंटू धीरे से बोला, “दादा, छोड़ो न। टीना ने अच्छा बनाया था।”
“तू भी अब भ्रष्ट सिस्टम का हिस्सा बन गया है!” चमनलाल जी ने दुखी होकर अपनी टोपी उतार दी।
घर लौटकर उन्होंने दरवाजा ज़ोर से बंद किया और बोले, “अब ये कॉलोनी मुझे सहन नहीं कर सकती। मैं बनाऊँगा अपनी खुद की प्रतियोगिता—‘चमन चैलेंज’—जहाँ मैं ही आयोजक, मैं ही जज, और मैं ही पुरस्कार विजेता होऊँगा!”
विमला ने चाय सामने रखते हुए पूछा, “और प्रायोजक कौन होगा?”
“वो तो देखो, मोहल्ले का पानवाला भी हमारे साथ है—उसका बोर्ड लगाऊँगा: चमन चैलेंज प्रस्तुत करता है – मिंट मसाला मोमेंट्स!”
भाग 6: चमन चैलेंज और गोलगप्पे का महासंग्राम
रविवार की सुबह जब कॉलोनी वाले अखबार में ‘राहुल गाँधी ने कहा…’ पढ़ रहे थे, तभी सोसायटी के मुख्य दरवाज़े पर एक नया पोस्टर चिपका मिला—
“आ गया है आपके जीवन का सबसे बड़ा मंच —
‘चमन चैलेंज’
कला, ज्ञान, खुराक और हास्य का संगम
स्थान: चौथी मंज़िल की बालकनी
प्रस्तुति: चमनलाल जी और मिंट मसाला पान भंडार”
नीचे लिखा था—”भाग लेने वालों को मिलेगा चाट और च्यवनप्राश फ्री!”
“विमला!” चमनलाल जी उत्साह में चिल्लाए, “देखना, आज मोहल्ला थर्राएगा! कोई ‘सुपर शेफ’ नहीं, कोई ‘क्विज मास्टर’ नहीं—सिर्फ़ मैं और मेरे ‘चमन चैलेंज’ के योद्धा!”
“पर बालकनी में 5 लोग भी नहीं समाते। वहाँ युद्ध कैसे होगा?”
“मैंने नीचे पाइप से रस्सी लटका दी है—सीधा एंट्री फ्री स्टाइल!”
“और ईनाम?”
“खुद का बना गोलगप्पा! लेकिन ट्विस्ट के साथ!”
दोपहर होते-होते बच्चों की टोली, दो मम्मियाँ, और दो बुज़ुर्ग—जिन्हें लगा यहाँ मुफ्त चाय मिलेगी—चमनलाल जी की बालकनी के नीचे इकट्ठा हो गए। रस्सी लटक रही थी, गोलगप्पे की टोकरी सजी थी, और चमनलाल जी टोपी लगाकर स्टेज पर (मतलब कुर्सी पर) खड़े थे।
“स्वागत है मेरे क्रांतिकारी खेल ‘चमन चैलेंज’ में!”
सबसे पहले राउंड था—‘गोलगप्पा विद जीके’।
नियम साफ़ थे—गोलगप्पा खाओ और साथ-साथ सवाल का जवाब दो। जवाब सही तो अगला गोलगप्पा, गलत तो खट्टी इमली का शॉट!
पहली बारी टीना की।
“सवाल: ‘भारत का सबसे बड़ा राज्य कौन-सा है?’”
“राजस्थान!”—कहते ही मुँह में गया गोलगप्पा।
“सही!”—तालियाँ बजीं।
दूसरी बारी नवीन की माँ की।
“सवाल: ‘चमनचैलेंज के आयोजक कौन हैं?’”
“आप!”—बोलते ही दो गोलगप्पे एकसाथ दे दिए।
“यहाँ पक्षपात हो रहा है!”—सुधा आंटी ने चिल्लाया।
“नहीं आंटी! यहाँ सच्चाई का पुरस्कार मिलता है!” चमनलाल जी ने गर्व से कहा।
अब आया सुपर राउंड—‘गोलगप्पे में सरप्राइज़’।
इसमें कुछ गोलगप्पों में सरसों, कुछ में शक्कर, और कुछ में च्यवनप्राश भरा था।
“दादा! ये तो ट्रैप है!” चिंटू ने कहा।
“नहीं बेटा, ये तो ज़िंदगी का गोलगप्पा है—कभी मीठा, कभी तीखा, और कभी चौंकाने वाला!”
सभी हँसी में झूम उठे। तभी नीचे से दीक्षित जी आए, और बोले, “दादा, अगली बार इस ‘बालकनी शो’ के लिए नगरपालिका की इजाज़त ले लेना।”
“ओह! तो अब ज्ञान भी परमिट से बाँटेंगे?”
“और च्यवनप्राश भी!”—दीक्षित जी ने हँसते हुए कहा।
शाम को विमला जी ने पूछा, “तो कैसा रहा ‘चमन चैलेंज’?”
“इतना सफल कि मैं अब ‘चमन ओलम्पिक्स’ का आयोजन करूँगा—भागों में होंगे:
१. चाय कप थ्रो
२. मच्छर भगाओ मैराथन
३. बिल्लियों की म्याऊ मिमिक्री”
“और प्रायोजक?”
“इस बार रेडी—बंटी सेव भुजिया स्टोर्स!”
भाग 7: चमन ओलम्पिक्स और बालकनी से बुलेटिन
कॉलोनी के लोग अभी ‘चमन चैलेंज’ के गोलगप्पा हैंगओवर से बाहर भी नहीं आए थे कि पोस्टरबाज़ी फिर शुरू हो गई। इस बार पोस्टर रंगीन था, और टेढ़ा-मेढ़ा टेप से दीवार पर चिपका:
“आ गया है वह प्रतियोगिता जिसका इंतज़ार आपको था ही नहीं —
चमन ओलम्पिक्स 2024
स्थान: चौथी मंज़िल की बालकनी (या नीचे की सीढ़ियाँ, भीड़ के हिसाब से)
प्रायोजक: बंटी सेव भुजिया स्टोर्स
मेजबान: खुद चमनलाल जी
भाग्यशाली विजेताओं को मिलेगा – भुजिया हैंपैक और स्वर्ण तुलसी माला (प्लास्टिक में)”
“विमला! इस बार कॉलोनी याद रखेगी कि चमन नाम में ही आयोजन है।”
“और आयोजन में ही आयोजन खर्च। कौन भर रहा है सब?”
“मैंने बंटी से डील कर ली है—उनके सारे expired पैकेट मैं ईनाम में बाँटूंगा। और बदले में उनका नाम हर तीसरे वाक्य में लूँगा।”
“और खेल क्या होंगे?”
चमनलाल जी ने एक मुड़ी-तुड़ी कॉपी खोली और पढ़ना शुरू किया:
- चाय कप थ्रो – कप को बालकनी से प्लास्टिक की बाल्टी में फेंको। (कप प्लास्टिक वाला)
 - मच्छर भगाओ मैराथन – दो मिनट में सबसे ज़्यादा मच्छर भगाने का वीडियो भेजो।
 - बिल्लियों की म्याऊ मिमिक्री – माइक पर ‘म्याऊ’ बोलकर लोगों को भावुक करो।
 
प्रतियोगिता वाले दिन मैदान नहीं, पूरी बिल्डिंग ही हँसी से गूंज उठी। पहली स्पर्धा ‘चाय कप थ्रो’ में नवीन के पापा ने दो कप सीधे दीक्षित जी के जूते में दे मारे। वो बोले, “ये खेल नहीं, हमला है!”
“ये खेल की भावना है!”—चमनलाल जी बोले।
‘मच्छर भगाओ मैराथन’ में बच्चों ने मच्छरदानी ओढ़कर ताली बजाई और बबलू ने तो झाड़ू ही घुमा दी।
“अरे ये तो घरेलू क्वार्टरबैक है!”—चमनलाल ने घोषणा की।
अब बारी थी ‘बिल्ली मिमिक्री’ की।
टीना ने मीठी सी म्याऊ की, सबने ताली बजाई।
नवीन ने भारी आवाज़ में ‘म्यাঊ म्याऊ म्याऊ!’ की—जैसे बिल्ली बीमार हो।
फिर मंच पर चमनलाल जी खुद आए।
उन्होंने आँखें बंद कीं, फिर झुककर बोला, “म्याऊ… म्याऊ… मेरे गुलाब को मत खाओ…”
भीड़ सन्नाटे में।
फिर ताली बज उठी।
“दादा की म्याऊ में दर्शन है!”—किसी ने कहा।
अंत में पुरस्कार वितरण हुआ। बंटी भुजिया के तीन पैकेट और एक माला (जिसका धागा टूटा था) टीना को मिला।
“और मेरा?”—चमनलाल जी ने पूछा।
“आपको हम देंगे ‘चमन बुक ऑफ रिकॉर्ड्स’ में नाम दर्ज करने का मौका!”
रात को विमला ने पूछा, “अब और क्या बाकी है?”
चमन बोले, “अब तो न्यूज़ चैनल शुरू करूंगा—चमन बुलेटिन!
प्रसारण: बालकनी से
समाचार: कॉलोनी के धोबी से लेकर डब्बा चोरी तक
और स्पेशल रिपोर्ट: ‘कौन है वो जिसने मेरी गुलाब की क्यारी में दही गिराया?’”
“और दर्शक?”
“मौसम, बादल और पड़ोस की बिल्ली—सब देखेंगे विमला!”
भाग 8: बालकनी ब्रॉडकास्ट और ‘दही षड्यंत्र’
सोमवार की सुबह थी। कॉलोनी में हर दरवाज़े पर दूध के थैले टंगे थे, और हर मोबाइल में नया नोटिफिकेशन।
“आज से शुरू हो रहा है —
चमन बुलेटिन लाइव!
समय: प्रातः ८ बजे
स्थान: चौथी मंज़िल की बालकनी
विषय: कॉलोनी की अंदरूनी साज़िशें और दही स्कैंडल का पर्दाफाश”
नीचे लिखा था—“Powered by: बंटी सेव भुजिया स्टोर्स और चौकीदार चाय सेंटर”
विमला जी ने अखबार हटाया और पूछा, “ये क्या बकवास है, अब न्यूज़ चैनल?”
“बिलकुल! जब गाँधीजी चरखा चला सकते हैं, तो चमन कैमरा क्यों नहीं?”
“कैमरा कौन देगा?”
“वो चिंटू का पुराना मोबाइल! और माइक के लिए—ये चाय की ट्रे, थोड़ा धागा और बहुत सारा आत्मविश्वास!”
सुबह ८ बजे, बालकनी से प्रसारण शुरू हुआ।
“नमस्कार, मैं हूँ चमनलाल। आप देख रहे हैं ‘चमन बुलेटिन’। आज की प्रमुख सुर्खियाँ—
१. तीसरी मंज़िल से दही का गिरना: दुर्घटना या साज़िश?
२. कॉलोनी में नए गोलगप्पे वाले की एंट्री – क्या बंटी भुजिया संकट में?
३. और आज का मौसम: ‘कूलर से ठंडी पर पड़ोसी की बातों से गर्म!’”
नीचे खड़े तीन बच्चे, एक बिल्ली और दीक्षित जी (जो अखबार लेने आए थे) दर्शक बन चुके थे।
“आज हम आपको ले चलेंगे घटनास्थल पर…” चमनलाल कैमरा उठाते हुए बोले, “…जहाँ कल रात मेरी गुलाब की क्यारी में एक चम्मच दही गिरा पाया गया। सवाल ये है—दही आया कहाँ से?”
उन्होंने स्कूटर पर रखा एक प्लास्टिक का कप दिखाया, जिसमें सफेद कुछ था।
“ये है अपराध का सबूत! और मुझे शक है—नवीन की मम्मी पर!”
नीचे से कोई चिल्लाया, “दादा! वो तो व्रत रखती हैं!”
“और दही भी व्रत में खाया जाता है! तो मतलब क्लू फिट बैठता है!” — चमन बोले।
विमला जी ने कैमरा नीचे किया और धीरे से फुसफुसाईं, “अरे वो दही तो मैंने गिराया था, दूध उबालते वक़्त छींटा पड़ा!”
“क्या!! विमला!! तुमने मुझे बिना TRP के सब बता दिया?”
“तो अब क्या करोगे?”
“अब मैं ‘Live Confession’ चलाऊँगा—’विमला की वाणी: दूध से दही तक’ नाम से!”
दोपहर तक कॉलोनी में हँसी का तूफ़ान मच चुका था। सबने बालकनी की तरफ देखा—वहाँ चमनलाल जी माइक लटकाए बोले जा रहे थे:
“और अब हमारी स्पेशल रिपोर्ट—कल किसके घर में आई सब्ज़ी में से मिर्च ज़्यादा थी? जानिए विमला जी की चुपके से की गई किचन रिपोर्ट से!”
विमला ने माइक छीन लिया, “बस कीजिए अब! मैं आपकी प्रोड्यूसर नहीं, बीवी हूँ!”
रात को चिंटू आया, “दादा, क्या कल फिर बुलेटिन आएगा?”
“हाँ बेटा, कल का विषय है—‘कॉलोनी में कौन सबसे ज़्यादा लिफ्ट रोकता है?’ साथ में exclusive फुटेज!”
“दादा, एक सुझाव है—आप ‘Reality Show’ शुरू कीजिए, नाम रखिए Big Balkon!”
चमनलाल जी के दिमाग में बिजली सी दौड़ गई।
भाग 9: बिग बालकनी और झाड़ू की जासूसी
“जब देश में बिग बॉस हो सकता है, तो कॉलोनी में क्यों नहीं?”
—चमनलाल जी ने चौथी मंज़िल की बालकनी से ऐलान किया।
“अब आएगा असली धमाका! Introducing… Big Balkon—जहाँ हर पड़ोसी की पोल खुलेगी, और लिफ्ट के अंदर की बातचीत होगी nation के सामने खुली!”
विमला ने चश्मा उतारकर कहा, “आप सीरियस हो?”
“सीरियस से भी ऊपर! विमला, मैं Reality ke भीतर की Reality लाने वाला हूँ।”
पोस्टर लग गया—“Big Balkon शुरू हो रहा है!
हर सुबह ८ बजे, चाय के साथ असली कॉलोनी की असलियत।
CCTV फूटेज, कॉलोनी व्हाट्सऐप ग्रुप के लीक मैसेज, और झाड़ू के नीचे छुपे सच!”
विमला ने घूरकर पूछा, “झाड़ू वाला क्या मतलब?”
“मतलब जासूसी कैमरा! मैंने चिंटू के खिलौने में कैमरा फिट किया है। जहाँ झाड़ू जाएगा, वहीं सच्चाई जाएगी!”
पहले एपिसोड का नाम था—“लिफ्ट के अंदर वो कौन था?”
चमनलाल बोले—”कल सुबह ७:३५ पर कोई लिफ्ट में जोर से हँस रहा था, फिर जोर से लहसुन की खुशबू आई। अब सवाल ये है—क्या लहसुन हँसी का कारण था या साजिश?”
चिंटू ने झाड़ू-कैमरा से फुटेज निकाला। उसमें नवीन खड़ा था, मुंह में गुटखा और कान में हेडफोन।
“देखा विमला! ये हँसी की मिलीभगत है! ये हँसता है, ताकि लहसुन की गंध पर ध्यान न जाए!”
दूसरे एपिसोड का विषय था—“कॉलोनी के गुप्त कचरेवाले”
“हर रात ११ बजे कोई व्यक्ति चुपचाप नीचे आता है और काले थैले में कचरा छोड़ता है। ये है कॉलोनी कचरा कांड!”
पर जब कैमरा ज़ूम करके देखा गया, तो वो खुद चमनलाल निकले।
“अरे! ये तो… मैं ही हूँ!”
विमला हँसते-हँसते गिर गई।
“भूलवश हो गया विमला! पर इससे एक बात साबित होती है—Big Balkon में कोई नहीं बख्शा जाएगा, यहाँ तक कि खुद मैं भी नहीं!”
अब कॉलोनी में सनसनी फैल चुकी थी।
लोग बालकनी से निकलते समय साड़ी ठीक कर रहे थे, चप्पल धीरे पहन रहे थे, और व्हाट्सऐप पर संदेश भेजने से पहले तीन बार सोच रहे थे।
दीक्षित जी बोले, “दादा, थोड़ा कैमरा कम करो। लोग डर के मारे बेल बजाना बंद कर देंगे।”
“सच्चाई से डरते हैं आप लोग! अब आखिरी एपिसोड में होगा फिनाले ओपनिंग—सभी पड़ोसियों का सीधा आमना-सामना, लाइव पोल और ‘गुलाब की कसम’ राउंड!”
विमला ने पूछा, “इसके बाद क्या करोगे?”
“फिर मैं करूंगा रिटायरमेंट से वापसी—एक कॉलोनी न्यूज़पेपेर शुरू करूँगा, नाम होगा ‘चमन सवेरा’, जिसमें हर दिन की ब्रेकिंग न्यूज़ होगी—‘कौन ले गया दीक्षित जी की चप्पल?’”
भाग 10: चमन सवेरा और आख़िरी अवॉर्ड शो
चमनलाल जी ने तय कर लिया था—अब ‘Big Balkon’ की जगह एक सम्मानित समाचार पत्र शुरू होगा। नाम रखा गया: “चमन सवेरा”
टैगलाइन: “जहाँ खबरों में नमक नहीं, अनुभव है।”
हर दिन सुबह अख़बार का पहला पन्ना होगा—“कॉलोनी एक्सक्लूसिव”, जिसमें होगी ये जानकारी:
– किसके घर में आलू खत्म
– किसने झाड़ू बालकनी से नीचे फेंका
– और किसने वाट्सऐप ग्रुप में ‘🙏’ भेजकर असल में sarcasm किया।
विमला ने सिर पकड़ लिया, “अब अखबार भी छापोगे?”
“हाँ विमला, लोग बोले कि मैं तमाशा करता हूँ। अब मैं तमाशा नहीं, इतिहास बनाऊँगा।”
पहला अंक छपा—पेन से हाथ से लिखा, ज़ेरॉक्स से कॉपी करवाया, और खुद चमनलाल ने सबके दरवाज़े में चुपचाप सरका दिया।
हेडलाइन थी:
“दीक्षित जी ने टॉवल में वोटिंग की—लोकतंत्र के लिए समर्पण या लापरवाही?”
नीचे थी कॉलम: विमला की रसोई से
“आज की रेसिपी: दही में गुलाब जल न डालें, वरना पति न्यूज़ चैनल खोल देगा।”
इस बीच कॉलोनी के बच्चों ने नया विचार दिया—“चमन अवॉर्ड्स नाइट” रखी जाए, जिसमें पिछले महीनों के सारे कांडों को मनाया जाए।
चमनलाल जी तुरंत तैयार हो गए, और निमंत्रण भेजा:
“The Grand Chaman Awards 2024”
श्रेणियाँ:
– Best Entry in CCTV
– Best WhatsApp Comeback
– Most Mysterious Fridge Sound
– और Lifetime Achievement for Balcony Presence
कार्यक्रम शुरू हुआ, दीप प्रज्वलन हुआ (विमला की अगरबत्ती से), और मंच सजा—एक प्लास्टिक की मेज़, तीन कुर्सियाँ और गोलगप्पों की थाली।
पुरस्कार बाँटे गए:
– Best CCTV Entry: नवीन की मम्मी (जब उन्होंने रात को छिपकर गोलगप्पे चुराए थे)
– Best WhatsApp Comeback: दीक्षित जी (“🙏🙏🙏… इस पर भी हँसी आती है?”)
– Lifetime Achievement: खुद चमनलाल जी (तालियों की गूंज के साथ)
उन्होंने माइक उठाया, “मैं इस कॉलोनी का आइना नहीं, आईना-निर्माता हूँ। आप सबके जीवन में हास्य लाकर, मैंने अपना धर्म निभाया है।”
और जैसे ही वो मंच से उतरने लगे, पीछे से बिल्ली ‘म्याऊ’ करती हुई आई और उनके गुलाब की क्यारी में बैठ गई।
सब हँसते हुए बोले, “आ गया क्लोजिंग एपिसोड!”
रात को विमला ने चाय दी और पूछा, “अब तो विश्राम?”
चमनलाल जी बालकनी की ओर देखकर बोले, “विश्राम नहीं विमला, बस… अगला सीज़न थोड़ा देर से लाऊँगा। नाम सोच लिया है—चमन रिटर्न्स: द वार ऑफ वर्जिन किचन गैस”
समाप्त
				
	

	


