Hindi - क्राइम कहानियाँ

गुमशुदा दुल्हन

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अमृता वीर


पंजाब का छोटा-सा कस्बा उस दिन रोशनी और संगीत से जगमगा रहा था। गलियों में बिछी झालरें और घर-घर से आती ढोलक की थाप पूरे माहौल को उत्सवमय बना रही थी। सर्दियों की हल्की ठंडी हवा में पकवानों की खुशबू, शहनाई की गूँज और औरतों की गिद्दा-भांगड़ा की आवाज़ें मिलकर एक रंगीन तस्वीर बना रही थीं। अर्जुन सिंह, कस्बे के एक सम्मानित परिवार का बेटा, आज दूल्हा बना था। उसकी बारात घोड़ी पर सजी धजी, चमकदार लाइटों और ढोल-नगाड़ों के बीच निकली तो मोहल्ले भर के लोग देखने निकल आए। उधर सिमरन कौर, गाँव के किनारे बसे एक साधारण घर की बेटी, लाल जोड़े और सुनहरी गहनों में ऐसी लग रही थी जैसे किसी ने चाँदनी को इंसानी रूप दे दिया हो। उसकी आँखों में संकोच था, होंठों पर धीमी-सी मुस्कान और मन में हजारों सपने, जिनके बारे में वह केवल अपनी सहेलियों से ही कभी-कभार साझा करती थी। जब वरमाला का पल आया, तो भीड़ ने तालियाँ बजाईं और आतिशबाज़ी से आसमान जगमगा उठा। रिश्तेदारों ने मिठाइयाँ बाँटीं, बच्चों ने आतिशबाज़ी की, और दोनों परिवारों के बुज़ुर्गों ने राहत की साँस ली कि यह रिश्ता पूरी रीतियों और खुशियों के साथ पूरा हुआ।

रात के बढ़ते-बढ़ते शादी की सारी रस्में भी पूरी हो गईं। मंडप में अग्नि के चारों ओर फेरे, कन्यादान की गंभीरता, और माँ के आँसुओं में छिपा गर्व—सब कुछ मानो एक पारंपरिक पंजाबी विवाह का आदर्श रूप था। देर रात तक ढोलकी बजती रही और नाच-गाने का सिलसिला चलता रहा। महिलाएँ पंजाबी बोलियों में गीत गा रही थीं—कुछ में बेटी की विदाई का दुःख, तो कुछ में नई ज़िंदगी के स्वागत की खुशी। अर्जुन के घर के आँगन में रिश्तेदार बैठे-बैठे थककर भी मुस्कुराते रहे, क्योंकि पूरे कस्बे में यह शादी चर्चा का विषय थी। जब विदाई का समय आया, तो सिमरन की माँ मंजीत कौर ने रोते-रोते बेटी को गले लगाया। उसकी आँखों से बहते आँसू केवल बिछोह के नहीं थे, बल्कि इस संतोष के भी थे कि अब उसकी बेटी एक अच्छे परिवार में जा रही है। जैसे ही दुल्हन सजे हुए कार में बैठी, ढोल की थाप धीमी हो गई और लोगों के चेहरे पर एक अजीब-सा सन्नाटा छा गया, मानो सभी को पता हो कि यह पल हमेशा के लिए यादगार बनने वाला है। अर्जुन के घर पहुँचते ही गृहप्रवेश की रस्में हुईं—कलश को लात मारना, चावल गिराना और घर में पहला कदम रखना। घरवाले दुल्हन के स्वागत में खुशी से झूम रहे थे, जबकि सिमरन संकोच और नए माहौल की झिझक में धीरे-धीरे सबकी आँखों का केंद्र बनती जा रही थी।

लेकिन सुबह की पहली किरण ने उस घर का रंग ही बदल दिया। रात की हलचल और थकान के बाद घर के लोग जब जागे, तो सबने उम्मीद की थी कि नई बहू पूजा के लिए तैयार होगी, और बड़े-बुज़ुर्ग उसके हाथों से घर की चौखट पर पहली आरती करवाएँगे। परंतु जब कमरे का दरवाज़ा खटखटाया गया, तो भीतर से कोई जवाब नहीं आया। पहले तो सोचा गया कि सिमरन अभी सो रही होगी, लेकिन जब दरवाज़ा धकेला गया, तो कमरे में खाली बिस्तर और बिखरे हुए फूल ही दिखाई दिए। दुल्हन कहीं नहीं थी। अचानक घर का माहौल जो रात भर गीत-संगीत और हंसी-खुशी से भरा था, अब चिंता और बेचैनी से भर गया। अर्जुन के माता-पिता स्तब्ध रह गए, रिश्तेदार फुसफुसाने लगे और नौकर-चाकर घबराकर इधर-उधर देखने लगे। बाहर गली में खबर आग की तरह फैल गई—“दुल्हन सुहागरात को ही गायब हो गई।” कोई कह रहा था कि शायद वह किसी और के साथ भाग गई होगी, तो कोई कह रहा था कि यह बदनामी है। अर्जुन खुद गहरे सदमे में था, उसे समझ नहीं आ रहा था कि जो लड़की कल तक उसकी आँखों में संकोच और उम्मीदों से देख रही थी, वह बिना कुछ कहे अचानक कहाँ गायब हो सकती है। इस गुमशुदगी ने न केवल एक परिवार की खुशियाँ छीन लीं, बल्कि पूरे कस्बे को हैरानी और शंकाओं से भर दिया।

सुबह की हलचल और सिमरन की गुमशुदगी की खबर ने अर्जुन के घर के भीतर और बाहर अफरा-तफरी मचा दी थी। शादी की खुशियाँ मानो रातों-रात किसी ने छीन ली हों। आँगन में बैठे बुज़ुर्गों की आपस में धीमी-धीमी फुसफुसाहटें शुरू हो गईं—“लड़की भाग गई होगी”, “आजकल की लड़कियों पर भरोसा ही नहीं किया जा सकता”, “इतना अच्छा घर मिला था फिर भी न जाने किसके साथ चली गई।” इन वाक्यों की गूँज अर्जुन के परिवार के कानों में तीर की तरह चुभ रही थी। अर्जुन की माँ का चेहरा शर्म और गुस्से से लाल था, जबकि उसके पिता गहरी सोच में डूबे चुपचाप दरवाज़े के पास खड़े रहे। पड़ोसी भी तमाशबीन बनकर खिड़कियों से झाँक रहे थे, कुछ ने तो ताना मारना भी शुरू कर दिया कि इतनी इज्ज़तदार शादी थी और बहू भाग गई। यह ताने अर्जुन के परिवार के लिए असहनीय हो गए। अर्जुन खुद भीतर ही भीतर टूट रहा था। उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि सिमरन जैसी सीधी-सादी लड़की अचानक यूँ बिना कुछ कहे जा सकती है। उसकी आँखों के सामने पिछले दिन की झलकियाँ बार-बार घूम रही थीं—जब सिमरन ने मुस्कराकर वरमाला पहनाई थी, जब विदाई पर उसकी आँखें आँसुओं से भर आई थीं, जब गृहप्रवेश के समय उसके कदम काँप रहे थे। क्या यह सब सिर्फ दिखावा था? क्या वाकई वह दिल से इस शादी के लिए तैयार नहीं थी?

इस बीच मोहल्ले में अफवाहों का सिलसिला बढ़ता चला गया। कोई कहता कि सिमरन का कोई प्रेमी पहले से था और उसी के साथ चली गई, तो कोई कहता कि उसने शादी मजबूरी में की थी और अब आज़ादी का मौका मिलते ही भाग खड़ी हुई। अर्जुन का परिवार इन बातों को सुन-सुनकर शर्म से झुक गया। शादी के अगले ही दिन अपमानित होकर घर का दरवाज़ा खोलकर खड़ा होना उनके लिए दूभर हो गया। रिश्तेदार भी एक-एक कर जाने लगे, मानो इस घटना ने उनके लिए भी सामाजिक बदनामी का खतरा पैदा कर दिया हो। आखिरकार, अर्जुन के पिता ने ठान लिया कि पुलिस में रिपोर्ट लिखवानी ही होगी। शाम ढलते-ढलते अर्जुन, उसके पिता और कुछ रिश्तेदार थाने पहुँचे। थाने में मौजूद इंस्पेक्टर हरजिंदर गिल ने उनकी शिकायत सुनी, लेकिन उसके चेहरे पर लापरवाही साफ झलक रही थी। उसने बिना ज्यादा सवाल-जवाब किए एफआईआर दर्ज की, पर उसकी भाषा से यह साफ था कि वह इस मामले को गंभीर अपराध नहीं मान रहा। उसने कहा—“ऐसे कई केस रोज आते हैं। शादी से पहले लड़कियाँ कहीं और मोहब्बत कर बैठती हैं और फिर घरवालों के दबाव में शादी करती हैं। बाद में भागना ही उनका रास्ता बन जाता है। मुझे पूरा यकीन है आपकी बहू भी कहीं भाग गई होगी। आप चिंता न करें, एक-दो दिन में खुद ही लौट आएगी।” इंस्पेक्टर की यह बात अर्जुन और उसके परिवार के जले पर नमक छिड़कने जैसी लगी।

थाने से लौटते समय अर्जुन के पिता चुप थे, लेकिन उनकी आँखों में आंसुओं की नमी थी। अर्जुन की माँ लगातार बड़बड़ा रही थी—“हमें क्या पता था कि ऐसी लड़की को घर में लाएँगे। पूरे समाज में अब हमारी इज़्ज़त मिट्टी में मिल गई।” अर्जुन अपने कमरे में लौटकर दीवार पर टिक गया। उसकी आँखों में गुस्सा, दुख और अविश्वास का मिला-जुला तूफ़ान था। वह जानता था कि सिमरन जैसी लड़की बिना वजह यह कदम नहीं उठा सकती। पर दूसरी ओर, पुलिस और समाज सब यही कह रहे थे कि दुल्हन भाग गई। क्या सचमुच यही हक़ीक़त थी? उसके दिमाग में सवालों का जाल बन गया। अगर सिमरन किसी और के साथ भागी है, तो उसने शादी क्यों की? और अगर यह किसी मजबूरी का नतीजा नहीं था, तो आखिर उसके साथ हुआ क्या? इस उलझन और तानों के बीच अर्जुन ने एक बात तय कर ली—चाहे पूरा कस्बा उसे गलत समझे, लेकिन वह खुद इस राज़ की तह तक ज़रूर जाएगा। उसे अपने दिल की गवाही पर भरोसा था कि सिमरन के गायब होने के पीछे सिर्फ़ “भाग जाना” जैसी आसान वजह नहीं छुपी है, बल्कि कुछ और गहरा और खतरनाक सच है।

सिमरन की गुमशुदगी की खबर जब उसके मायके पहुँची, तो जैसे बिजली गिर गई। मंजीत कौर, जो अभी तक शादी के बाद की थकान और बेटी की विदाई के दर्द से उबर भी नहीं पाई थी, यह सुनकर पूरी तरह टूट गई। वह कई बार बेहोश होकर गिर पड़ी और फिर होश में आते ही फूट-फूटकर रोने लगी—“मेरी बिटिया ऐसी नहीं हो सकती… उसने कभी ऐसा सोचा भी नहीं था… क्यों भगवान, तूने मेरी इकलौती संतान को मुझसे छीन लिया?” उसके आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। पड़ोस की औरतें उसे ढांढस बंधाने आईं, लेकिन वे भी आपस में फुसफुसाकर यही कह रही थीं कि “लड़की जरूर भागी है।” यह बातें मंजीत कौर के कानों में चुभतीं, पर उसकी माँ का दिल मान ही नहीं पा रहा था कि उसकी सिमरन ऐसी गलती कर सकती है। उसकी यादों में बेटी का बचपन घूम रहा था—वह सिमरन जो किताबों में डूबी रहती, जो छोटे बच्चों को पढ़ाती, जो माँ की तकलीफ में उसके आँचल से पसीना पोंछ देती। क्या वही सिमरन बिना बताए किसी के साथ भाग सकती है? उसका कलेजा चीख-चीखकर कह रहा था कि इसके पीछे कुछ और है। पर दुख और बेबसी ने उसे इतना कमज़ोर बना दिया था कि वह सिर्फ़ अपनी किस्मत को कोसती रही।

उधर, अर्जुन के घर का माहौल भी दिन-प्रतिदिन भारी होता जा रहा था। रिश्तेदार धीरे-धीरे वापस लौट गए, लेकिन जाते-जाते हर कोई ताना मार गया। अर्जुन की माँ बार-बार यही कहती रही कि घर की इज़्ज़त मिट्टी में मिल गई है, और पड़ोसियों की बातें अब सुनने लायक नहीं रहीं। अर्जुन के पिता चुपचाप अखबार पढ़ने का बहाना करते, लेकिन उनकी आँखें हर पन्ने के पीछे गहरी चिंता से ढकी रहतीं। अर्जुन के दिल में यह सवाल बार-बार उठ रहा था कि क्या सचमुच सिमरन भाग गई? उसके दिमाग में शादी की रात की छोटी-छोटी बातें तैरने लगीं। उसने याद किया कि जब सिमरन पहली बार गृहप्रवेश कर रही थी, तो उसके चेहरे पर झिझक और डर साफ झलक रहा था, लेकिन उसमें किसी गुप्त योजना या धोखे की झलक नहीं थी। उसने विदाई के वक्त अपनी माँ को कसकर पकड़ा था, जैसे कोई बेटी अंतिम बार अपनी जड़ से टूट रही हो। अर्जुन को भीतर से यकीन था कि सिमरन ने यह घर छोड़ने का फैसला खुद नहीं लिया। लेकिन सवाल था—फिर हुआ क्या? अगर वह भागी नहीं तो गई कहाँ? पुलिस ने तो केस को हल्के में लेकर कह दिया था कि “लड़की खुद चली गई,” लेकिन अर्जुन को यह मानना मुश्किल लग रहा था। उसके मन में बेचैनी बढ़ती जा रही थी, और यह बेचैनी धीरे-धीरे संकल्प में बदल रही थी।

अर्जुन ने तय कर लिया कि वह चुप बैठने वाला नहीं है। उसने अपने स्तर पर सुराग ढूँढना शुरू किया। सबसे पहले उसने घर के कमरे को छान मारा जहाँ सिमरन आखिरी बार देखी गई थी। वहाँ बिखरे फूल, एक अधूरी चूड़ी और तकिए के नीचे पड़ा उसका रुमाल मिला। उसे लगा मानो सिमरन किसी जल्दबाज़ी या ज़बरदस्ती में वहाँ से निकाली गई हो। फिर वह पड़ोसियों और रिश्तेदारों से पूछताछ करने लगा कि किसी ने रात को कुछ देखा या सुना क्या। एक बूढ़ी औरत ने बताया कि देर रात घर के पास एक अनजान गाड़ी खड़ी थी, लेकिन उसने ध्यान नहीं दिया। यह सुनकर अर्जुन का शक और गहरा गया। उसने तय किया कि वह उस गाड़ी का सुराग निकालेगा। इसी बीच वह मायके भी गया और मंजीत कौर को भरोसा दिलाया—“माँजी, आप चिंता मत कीजिए। मैं जानता हूँ सिमरन भागी नहीं है। मैं उसे ढूँढकर लाऊँगा। चाहे पूरी दुनिया कुछ भी कहे, मैं सच्चाई सामने लाकर रहूँगा।” मंजीत कौर ने रोते-रोते उसके हाथ थाम लिए और पहली बार उसे दामाद नहीं, बल्कि अपनी बेटी के रक्षक की तरह देखा। उस दिन अर्जुन के मन में एक नई ज्वाला जल उठी—अब यह सिर्फ़ उसकी इज़्ज़त का सवाल नहीं रहा, बल्कि उसकी पत्नी की तलाश और सच की जीत की लड़ाई बन चुकी थी।

दिन बीतते जा रहे थे, और हर बीतते पल के साथ अर्जुन की बेचैनी और भी गहरी होती जा रही थी। पुलिस अब भी इस मामले को “भाग जाने” वाली घटना मानकर फाइल पर धूल चढ़ा रही थी, लेकिन अर्जुन का दिल मानने को तैयार ही नहीं था। उसने निश्चय कर लिया कि वह हर मेहमान, हर पड़ोसी और शादी से जुड़े हर पहलू को खंगालेगा। वह बार-बार शादी की वीडियो और तस्वीरें देखने लगा, इस उम्मीद में कि शायद कहीं से कोई संकेत मिले। एक शाम जब वह बारात और फेरे वाले हिस्से को ध्यान से देख रहा था, उसकी नज़र बार-बार एक महिला पर अटक रही थी। वह महिला किसी रिश्तेदार जैसी नहीं लग रही थी, लेकिन हर फ्रेम में, हर रस्म के समय सिमरन के आसपास मौजूद दिखाई दे रही थी। उसका चेहरा अपरिचित था, और उसकी आँखों में एक अजीब-सी गहराई थी, मानो वह भीड़ का हिस्सा होकर भी कुछ गुप्त तलाश रही हो। अर्जुन का दिल धड़क उठा—कौन थी यह और क्यों हर बार सिमरन के पास ही दिखाई दे रही थी?

अगले दिन अर्जुन ने कुछ रिश्तेदारों और पड़ोसियों को बुलाकर उनसे इस महिला के बारे में पूछना शुरू किया। पहले तो किसी को ठीक से याद नहीं आया, लेकिन जैसे ही उसने वीडियो से उसकी तस्वीर दिखलाई, दो-तीन लोगों ने हामी भरी। उनमें से एक महिला बोली—“हाँ, यह तो बार-बार दुल्हन के कपड़े और गहनों की तारीफ़ कर रही थी। मैंने तो सोचा कि कोई दूर की रिश्तेदार होगी। कह रही थी कि ‘इतने खूबसूरत गहने मैंने कभी नहीं देखे।’” किसी और ने बताया कि उसने सिमरन के लहंगे को हाथ लगाकर बड़ी बारीकी से देखा था, जैसे कि सिलाई, कपड़े और डिज़ाइन की जानकारी ले रही हो। यह सुनते ही अर्जुन के कान खड़े हो गए। सामान्य मेहमान तो तारीफ़ करते हैं, लेकिन इतनी गहरी दिलचस्पी लेना अजीब था। औरतों को याद आया कि उसका नाम शायद “रूपा” बताया गया था, लेकिन कोई यह नहीं बता पाया कि वह किसकी तरफ से आई थी। यह नाम अर्जुन के ज़ेहन में गूंजता रहा। अब उसे यकीन हो गया कि यह महिला यूँ ही नहीं आई थी, बल्कि उसका कोई छुपा मक़सद था।

अर्जुन ने उसी शाम तय किया कि वह इस रूपा नाम की महिला का पता लगाएगा। उसने वीडियो से उसके चेहरे का स्क्रीनशॉट निकाला और आसपास के गाँव-कस्बों में लोगों को दिखाना शुरू किया। किसी ने साफ़ पहचान नहीं की, लेकिन दो-तीन जगह एक ही बात सुनी—“यह औरत यहाँ नई-नई दिखी थी, कभी-कभी मेहँदी वाली औरतों के साथ घूमती है, और बड़े घरों की शादियों में जरूर मौजूद रहती है।” यह सुनकर अर्जुन के मन में एक अजीब सा शक गहराने लगा। क्या वह पेशेवर तरीके से शादियों में घुसपैठ करती थी? अगर हाँ, तो किसलिए? केवल गहनों में दिलचस्पी लेने के लिए, या फिर इसके पीछे कोई और खतरनाक मक़सद था? उसी रात अर्जुन ने अपनी डायरी में लिखा—“यह कोई छोटा सुराग नहीं है। सिमरन की गुमशुदगी और इस औरत का रिश्ता जरूर जुड़ा हुआ है। चाहे जैसे भी हो, मैं इसे ढूँढकर रहूँगा।” वह जानता था कि यह रास्ता आसान नहीं होगा, लेकिन अब उसे पहली बार ऐसा लगा कि वह अंधेरे में टटोलते-टटोलते किसी रोशनी की झलक तक पहुँच रहा है।

 ५

अर्जुन कई दिनों से सुराग ढूँढ़ने की कोशिश कर रहा था, और रूपा नाम की उस अनजान औरत का रहस्य उसके दिलो-दिमाग पर छाया हुआ था। लेकिन अकेले दम पर सब कुछ करना आसान नहीं था। उसे समझ आ रहा था कि अब पुलिस को फिर से शामिल करना पड़ेगा, चाहे वे शुरू में कितने ही लापरवाह क्यों न रहे हों। उसी सोच के साथ एक सुबह वह थाने पहुँचा और सीधे इंस्पेक्टर हरजिंदर गिल से मिलने की जिद की। गिल अपनी भारी-भरकम कुर्सी पर बैठा अख़बार पलट रहा था, और अर्जुन को देखते ही हल्की-सी मुस्कान के साथ बोला—“आ गए फिर? मैंने कहा था न, आपकी बीवी खुद लौट आएगी। औरतों के नखरे होते हैं, चिंता करने की ज़रूरत नहीं।” यह सुनते ही अर्जुन का खून खौल उठा। उसने जेब से मोबाइल निकाला और शादी की वीडियो से वह हिस्सा गिल को दिखाया जिसमें रूपा बार-बार सिमरन के आसपास मंडरा रही थी। उसकी आवाज़ में दृढ़ता थी—“सर, ये औरत कौन थी? किसी को नहीं पता। लेकिन हर वक्त मेरी बीवी के पास ही क्यों थी? और अगर वो रिश्तेदार नहीं थी, तो शादी में आई कैसे?” गिल ने लापरवाही से स्क्रीन पर नज़र डाली, लेकिन अर्जुन की आँखों की सच्चाई और दर्द ने उसे कुछ पल के लिए गंभीर कर दिया।

अर्जुन ने बात आगे बढ़ाई। उसने बताया कि पड़ोसियों ने एक अज्ञात गाड़ी देखी थी जो रात देर तक घर के पास खड़ी रही। उसने यह भी कहा कि सिमरन जैसी लड़की, जिसने हर रस्म में पूरी निष्ठा और शर्मीलेपन से हिस्सा लिया, वो इतनी आसानी से भागने वाली नहीं हो सकती। गिल अब थोड़ा-सा सीधा होकर बैठा और उसकी आँखों में सोच की रेखाएँ गहरी हो गईं। तभी सिमरन की माँ, मंजीत कौर, आँसू पोंछते हुए थाने में दाखिल हुई। उसने इंस्पेक्टर के पैरों में गिरकर कहा—“सर, मेरी बेटी ऐसी नहीं है। प्लीज़, मेरी मदद कीजिए। मुझे यकीन है किसी ने उसे जबरदस्ती ले जाया है। आप ही हमारी आखिरी उम्मीद हो।” उसकी करुणा और माँ की विवशता ने वहाँ मौजूद सबको मौन कर दिया। गिल ने अख़बार मेज़ पर रख दिया और धीरे से बोला—“ठीक है। चलिए मान लेते हैं कि इसमें कुछ गड़बड़ है। लेकिन सबूत चाहिए। मैं सिर्फ शक के आधार पर पूरी टीम नहीं लगा सकता।” अर्जुन ने उसी वक्त वादा किया कि वह सबूत जुटाएगा, बस गिल उसे सहयोग दे।

गिल ने थोड़ी देर चुपचाप सोचा और फिर अपनी गहरी आवाज़ में कहा—“देखो अर्जुन, मैंने ज़िंदगी में बहुत केस देखे हैं। ज़्यादातर में औरतें सचमुच भाग जाती हैं। लेकिन तुम्हारी जिद और तुम्हारी माँ जैसी औरत की गुहार मुझे हल्के में नहीं लेने देती। मैं वादा करता हूँ कि अब इस केस को ‘भाग जाने’ वाला नहीं, बल्कि ‘गुमशुदगी’ मानकर आगे बढ़ाऊँगा।” उसने अपने कांस्टेबल को बुलाया और कहा कि शादी की पूरी फुटेज हासिल करो और उस औरत रूपा की पहचान पता करो। अर्जुन की आँखों में पहली बार उम्मीद की चमक लौटी। उसे लगा जैसे किसी ने उसके कंधे से बोझ का एक हिस्सा उतार दिया हो। गिल ने जाते-जाते अर्जुन के कंधे पर हाथ रखा और गंभीर स्वर में कहा—“तुम्हारी पत्नी को ढूँढ़ना अब सिर्फ तुम्हारा नहीं, मेरा भी मक़सद है। लेकिन याद रखना, ये रास्ता आसान नहीं होगा। अगर इसमें कोई गैंग शामिल है, तो हमें हर कदम सावधानी से बढ़ाना होगा।” अर्जुन ने बिना झिझके सिर हिलाया। अब वह अकेला नहीं था—उसके साथ कानून की शक्ति भी खड़ी हो गई थी, और यह उनके संघर्ष की नई शुरुआत थी।

इंस्पेक्टर गिल ने जब आधिकारिक तौर पर जांच को गंभीरता से लेना शुरू किया, तो पुलिस की मशीनरी धीरे-धीरे चल पड़ी। शादी की फुटेज और मेहमानों के बयानों के आधार पर उन्होंने उस रहस्यमयी औरत “रूपा” की तलाश शुरू की। अर्जुन भी हर रोज़ थाने जाता और जितनी जानकारी जुटा सकता, गिल के साथ साझा करता। शुरुआत में रूपा की पहचान मुश्किल थी क्योंकि उसने शादी में ऐसे बर्ताव किया था जैसे वह परिवार की ही कोई रिश्तेदार हो। लेकिन धीरे-धीरे तस्वीर साफ़ होने लगी। पुलिस ने पिछले एक साल के गुमशुदगी के केसों की फाइलें निकालीं और उनकी तुलना की। हैरानी की बात यह थी कि पंजाब के अलग-अलग कस्बों से तीन और दुल्हनें उसी तरह शादी के बाद अचानक गायब हो गई थीं। हर बार कहानी वही—शादी होती है, खुशियाँ मनाई जाती हैं, और फिर सुहागरात या उसके अगले दिन लड़की कहीं लापता हो जाती है। रिपोर्ट में साफ़ लिखा गया था कि पुलिस ने इन केसों को “लड़की भाग गई” मानकर फाइल बंद कर दी थी। गिल का माथा ठनका। क्या यह सब एक बड़ी साजिश का हिस्सा था?

जाँच गहराई में बढ़ने पर पता चला कि हर केस में एक नाम किसी न किसी गवाह के बयान में उभरा था—“रूपा।” कभी उसने मेहंदी में हाथ आज़माए, कभी औरतों के बीच बैठकर गहनों की तारीफ़ की, तो कभी बच्चों को टॉफियाँ बाँटती दिखी। वह हर बार नए रूप में, नए बहाने से शादी का हिस्सा बनती, लेकिन दुल्हन के बेहद करीब रहती। यह समानता इतनी गहरी थी कि अब शक की कोई गुंजाइश नहीं बची थी। इंस्पेक्टर गिल ने अर्जुन को बुलाकर कहा—“तुम्हारा अंदाज़ा बिल्कुल सही था। यह औरत संयोग नहीं, बल्कि एक पैटर्न है। और यह पैटर्न हमें किसी संगठित गैंग की तरफ़ ले जा रहा है।” अर्जुन का दिल धक से रह गया। उसे लगा जैसे उसकी रीढ़ में सिहरन दौड़ गई हो। अगर यह गैंग है, तो सिमरन अकेली नहीं, बल्कि न जाने कितनी लड़कियाँ इसकी शिकार हुई होंगी। उसका मन कांप उठा लेकिन उसने खुद को संभाला। उसने गिल से कहा—“सर, ये सिर्फ मेरी बीवी की लड़ाई नहीं है। हमें उन सब लड़कियों को बचाना होगा जो इस जाल में फँस चुकी हैं।” गिल ने उसकी ओर गंभीर निगाहों से देखा और बस इतना बोला—“यही अब हमारा लक्ष्य है।”

जाँच की परतें खुलती चली गईं। गिल ने अपने मुखबिरों को सक्रिय किया और धीरे-धीरे रूपा की गतिविधियों के बारे में जानकारी इकट्ठा होने लगी। मालूम हुआ कि वह अक्सर छोटे कस्बों की शादियों में नज़र आती थी, और उसके साथ हमेशा कुछ अज्ञात पुरुष भी मंडराते रहते थे। ये लोग कभी ड्राइवर, कभी कैटरिंग स्टाफ, तो कभी रिश्तेदार बनकर घुलमिल जाते थे। शादी की भीड़ और शोरगुल में उनकी मौजूदगी पर कोई खास ध्यान नहीं जाता था। फिर शादी के अगले दिन या उसी रात, दुल्हन रहस्यमयी तरीके से गायब हो जाती थी। यह सुनकर अर्जुन के रोंगटे खड़े हो गए। तस्वीर अब साफ हो चुकी थी—यह कोई इत्तेफाक नहीं, बल्कि सुनियोजित मानव-तस्करी का धंधा था। और इस खेल की सबसे महत्वपूर्ण मोहरा थी “रूपा”—वह औरत जो औरतों के बीच घुलकर दुल्हन का भरोसा जीत लेती, उसकी भावनाओं को समझती और सही मौके पर उसे फँसाकर बाहर ले जाती। इंस्पेक्टर गिल ने अर्जुन को समझाया—“हम अब सीधे मुठभेड़ नहीं कर सकते। हमें चुपचाप सबूत जुटाने होंगे। ये लोग बड़े चालाक और खतरनाक हैं। लेकिन अगर हमने इन्हें पकड़ लिया, तो न केवल तुम्हारी बीवी को बचाएँगे, बल्कि पूरे गैंग का खात्मा होगा।” अर्जुन ने दृढ़ नज़र से सिर हिलाया। उसकी आँखों में अब डर नहीं, बल्कि आग थी।

इंस्पेक्टर गिल और अर्जुन दिन-रात इस जाँच में जुटे हुए थे। हर दिन नए-नए सूत्र हाथ आते और हर सूत्र उन्हें किसी गहरे अंधेरे में ले जाता। रूपा की गतिविधियों की तह में जाते-जाते उन्हें एक ऐसा नाम मिला, जो सुनकर दोनों सन्न रह गए—बलराज सिंह। शुरू में यह नाम मासूम और सम्मानित-सा लगा, क्योंकि बलराज पंजाब के अलग-अलग कस्बों में समाजसेवा और धर्म-प्रचार के नाम से प्रसिद्ध था। उसकी तस्वीरें अक्सर अख़बारों में छपतीं—कहीं वह अनाथालय में दान देता दिखता, कहीं गुरुद्वारे की सेवा करता, तो कहीं युवा लड़कों को नशे से दूर रहने की नसीहतें देता। ऊपर से वह एक आदर्श समाजसेवी और धर्म-प्रचारक था, जिसकी झलक देखकर लोग उसे संत जैसी नज़र से देखते। लेकिन गुप्त रिपोर्ट और मुखबिरों की बातें कह रही थीं कि इस चमकदार चेहरे के पीछे कुछ और ही सड़ांध छुपी हुई है। इंस्पेक्टर गिल ने अपने अनुभव से समझ लिया कि यही आदमी असली खेल चला रहा है, और रूपा उसी का एक मोहरा है।

गुप्त निगरानी से पता चला कि बलराज का संगठन गरीब घरों की लड़कियों और दूर-दराज़ के गाँवों की औरतों तक पहुँचा करता था। उसके तथाकथित “समाजसेवा” कार्यक्रम दरअसल उस जाल का हिस्सा थे, जहाँ भरोसे और दानशीलता का चारा डालकर मासूम औरतों को फँसाया जाता। शादी-ब्याह के मौक़े पर उसका नेटवर्क सक्रिय हो जाता, और रूपा जैसी महिलाएँ दुल्हनों के इर्द-गिर्द घूमकर उनका विश्वास जीत लेतीं। जब सही समय आता, तो गैंग उन्हें या तो शादी के अगले दिन उठा लेता या फिर मानसिक दबाव डालकर गायब करवा देता। यह सब इतनी सफाई से होता कि पुलिस को हमेशा “भाग जाने” का मामला लगता। अर्जुन को यह जानकर झटका लगा कि पिछले एक साल में ही नहीं, बल्कि पाँच-छह साल से यह नेटवर्क सक्रिय था। बलराज सिंह बाहर से धार्मिक और परोपकारी चेहरा दिखाकर असल में एक मानव-तस्कर था, जो लड़कियों को बड़े शहरों और यहाँ तक कि विदेशों तक बेचता था। अर्जुन की मुट्ठियाँ भिंच गईं। उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि वही आदमी, जिसे लोग समाज का मसीहा मानते थे, असल में उसके जीवन का सबसे बड़ा दुःस्वप्न बना हुआ था।

गिल ने अर्जुन को समझाते हुए कहा—“अभी हमें सीधे बलराज पर हाथ डालना ठीक नहीं होगा। वह रसूखदार आदमी है, उसके राजनीतिक और धार्मिक संबंध मज़बूत हैं। अगर हम ज़रा सी चूक कर गए, तो पूरी जांच दफ्न हो जाएगी और हमें कोई हाथ भी नहीं लगाएगा।” लेकिन अर्जुन का खून खौल रहा था। उसने दृढ़ स्वर में कहा—“सर, अगर यही वो आदमी है जिसने मेरी सिमरन को छीन लिया है, तो मैं चैन से नहीं बैठ सकता। चाहे जैसा भी हो, हमें इसका नकली चेहरा बेनक़ाब करना होगा।” गिल ने उसकी ओर देखा और गंभीरता से सिर हिलाया। उसने आश्वासन दिया कि पुलिस अब पहले जैसी लापरवाह नहीं रहेगी। “बलराज सिंह की पोल खोलनी है, तो हमें उसके नेटवर्क को पकड़ना होगा, उसके मोहरों को पकड़कर उससे जुड़े सबूत जुटाने होंगे। रूपा ही इस चाबी की तरह है, और हम उसी के ज़रिए उसके अड्डों तक पहुँचेंगे।” अर्जुन ने महसूस किया कि लड़ाई अब असली मोड़ ले चुकी है। यह अब सिर्फ उसकी बीवी की खोज नहीं थी, बल्कि पूरे समाज के लिए उस नकली धर्म-प्रचारक का असली चेहरा उजागर करने की लड़ाई थी। उस रात अर्जुन देर तक सो नहीं पाया। उसकी आँखों के सामने बार-बार सिमरन का चेहरा आता और साथ ही बलराज की मुस्कुराती हुई तस्वीरें—दोनों के बीच का यह अंधेरा फासला पाटना ही अब उसका मक़सद बन चुका था।

रात गहरी थी और हल्की-हल्की बूंदाबांदी से सड़कों पर नमी बिखरी हुई थी। इंस्पेक्टर गिल और अर्जुन ने कई दिनों की गुप्त निगरानी के बाद यह सुराग पाया कि गैंग का एक आदमी, बबलू, अगली खेप यानी अगली लड़की को ले जाने वाला है। यह नाम उनके लिए नया नहीं था—बबलू बलराज सिंह के खास गुंडों में गिना जाता था, और उसकी पहचान एक क्रूर और चालाक आदमी की थी। मुखबिर ने जानकारी दी कि आज रात वह किसी पुरानी जीप में लड़की को लेकर हाईवे से गुज़रने वाला है। गिल ने तुरंत एक गुप्त टीम तैयार की और अर्जुन से कहा—“यह मौका हमें गंवाना नहीं चाहिए। अगर बबलू हाथ लग गया, तो हम सीधे बलराज तक पहुँच सकते हैं।” अर्जुन का दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। उसे लग रहा था जैसे सिमरन की झलक अब बस एक कदम दूर है। वे दोनों थाने की जीप में निकले और अंधेरे रास्तों पर धीरे-धीरे बढ़ते रहे, ताकि शक न हो। हाईवे पर पहुँचते ही उन्हें दूर से एक पुरानी जीप आती दिखी, जिसमें पीछे खिड़की से हल्की-सी हरकत झलक रही थी। गिल ने तुरंत अपनी जीप आगे बढ़ाई और बबलू की गाड़ी को घेरने की कोशिश की।

जैसे ही पुलिस की जीप बबलू के वाहन के करीब पहुँची, बबलू समझ गया कि जाल बिछ चुका है। उसने जीप की रफ़्तार तेज़ कर दी और अंधेरे हाईवे पर भागने लगा। अर्जुन की धड़कनें तेज़ हो गईं। पीछा शुरू हो चुका था। दोनों गाड़ियों के टायर सड़क की नमी पर चीखते हुए घूम रहे थे। गिल का चेहरा कठोर हो गया, उसने स्टीयरिंग कसकर पकड़ा और पूरी ताक़त से पीछा करने लगा। कुछ मिनट की दौड़ के बाद आखिरकार पुलिस की जीप बबलू की गाड़ी के बराबर आ गई। अर्जुन ने खिड़की से झुककर देखा तो उसे पीछे धुंधली रोशनी में किसी लड़की का चेहरा दिखा—वह बुरी तरह से घबराई हुई थी। अर्जुन का दिल काँप गया। क्या वह सिमरन थी? उसकी आँखें फटी रह गईं, लेकिन अंधेरे और तेज़ी के कारण वह पूरी तरह पहचान नहीं पाया। तभी गिल ने सायरन बजा दिया और चिल्लाया—“रुको बबलू! गाड़ी साइड करो।” लेकिन बबलू ने इसके बजाय अपनी जीप को पुलिस की गाड़ी से टकराने की कोशिश की। मुठभेड़ का माहौल बन गया। अंततः गिल ने गाड़ी को जोर से घुमाया और बबलू की जीप को एक खाई के किनारे पर रोक दिया। पुलिस ने तेजी से उसे घेर लिया और बबलू को पकड़ लिया गया।

लेकिन मामला इतना आसान नहीं था। जैसे ही बबलू को हथकड़ी लगाई गई, अचानक अंधेरे में से दो मोटरसाइकिलें चीखते हुए वहाँ पहुँचीं। उन पर बैठे गुंडों ने हथियार लहराते हुए पुलिस पर हमला बोल दिया। गोलियों की आवाज़ गूँजने लगी, और अफरा-तफरी फैल गई। गिल और उसकी टीम ने जवाबी फायरिंग शुरू की, मगर इसी हड़कंप के बीच एक गुंडा अर्जुन की ओर झपटा और धारदार चाकू से उस पर वार कर दिया। अर्जुन किसी तरह झुक गया, लेकिन उसके हाथ में गहरी चोट लग गई। खून बहने लगा, फिर भी उसने हार नहीं मानी। उसकी आँखों के सामने बस सिमरन की तस्वीर थी, और उसी की ताक़त से उसने हमलावर को धक्का देकर नीचे गिरा दिया। इस बीच गिल ने अपनी बंदूक तानी और गरजती आवाज़ में चिल्लाया—“हथियार नीचे रखो, वरना यहीं खत्म कर दूँगा!” पुलिस की गोलियों और ताक़त के आगे गुंडे ज्यादा देर टिक न पाए और भाग निकले। बबलू अब पुलिस की गिरफ्त में था, लेकिन उसका चेहरा मुस्करा रहा था, मानो उसे यकीन हो कि उसके पीछे खड़ा बलराज सिंह उसे बचा लेगा। अर्जुन ने घायल हाथ से उसे पकड़कर खींचा और दाँत पीसते हुए कहा—“अब सच उगलना होगा, चाहे कुछ भी हो।” उस रात हाईवे पर धुएँ, गोलियों और बारिश के बीच एक खतरनाक पीछा ख़त्म हुआ, लेकिन अर्जुन और गिल जानते थे कि असली जंग अभी बाकी है। यह तो बस शुरुआत थी।

सुबह का आसमान धुंधला था, लेकिन अर्जुन और इंस्पेक्टर गिल की आँखों में एक अजीब चमक थी। बबलू की गिरफ्तारी के बाद पुलिस को कुछ ठिकानों के बारे में अहम सुराग मिल गए थे। गहन पूछताछ और तकनीकी निगरानी से यह साफ़ हुआ कि गैंग ने सिमरन समेत कई लड़कियों को एक परित्यक्त गोदाम में छिपा रखा है, जो शहर के किनारे पर पुराने औद्योगिक इलाके में स्थित था। गिल ने तुरंत स्पेशल टीम को तैनात किया और पूरी रणनीति बनाई। अर्जुन अपने घायल हाथ के बावजूद पीछे हटने को तैयार नहीं था। उसकी आँखों में सिमरन को देखने की बेचैनी साफ़ झलक रही थी। पुलिस के कई वाहन चुपचाप गोदाम की ओर बढ़े, चारों ओर से घेराबंदी की गई और जैसे ही इशारा मिला, दरवाज़े तोड़कर टीम अंदर घुस गई। भीतर का नज़ारा दिल दहला देने वाला था—अंधेरे कमरे में दस से अधिक लड़कियाँ जंजीरों और ताले के पीछे बंद थीं, उनमें से कई की आँखों में डर और थकान थी। अर्जुन ने बेताबी से हर चेहरे को देखा और आखिरकार एक कोने में सिमरन को पहचाना। उसकी आँखों में आँसू थे, लेकिन वह ज़िंदा थी। अर्जुन की साँसें थम गईं, और उसने मन ही मन ईश्वर का शुक्र अदा किया।

लेकिन कहानी इतनी आसान नहीं थी। जैसे ही पुलिस लड़कियों को बाहर निकालने लगी, गैंग के हथियारबंद गुंडों ने गोलियाँ चलानी शुरू कर दीं। गोदाम के भीतर अचानक गोलियों की गूँज गूंजने लगी और हर तरफ धुएँ और चीखों का माहौल बन गया। गिल ने अपनी टीम को पोज़िशन लेने का आदेश दिया और जवाबी फायरिंग शुरू हुई। अर्जुन ने घायल हाथ के बावजूद एक लोहे की छड़ उठाकर लड़ाई में हिस्सा लिया। उसने अपनी आँखों के सामने एक लड़की को बचाने के लिए एक गुंडे पर हमला कर दिया। पुलिस की गोलियों और बहादुरी के सामने धीरे-धीरे गैंग दबने लगा। इस अफरा-तफरी में बबलू को दुबारा पकड़ लिया गया और इस बार उसका चेहरा डर से सफेद पड़ गया था। उधर, रूपा भी पुलिस की गिरफ्त में आ गई। उसका नकली दयालु और मददगार रूप अब पूरी तरह से टूट चुका था। उसके चेहरे पर पसीना और आँखों में हार की झलक थी। गिल ने उसे कसकर पकड़ा और कहा—“अब तेरा खेल ख़त्म हुआ, रूपा। तू हमें बलराज तक ज़रूर ले जाएगी।” लेकिन असली झटका तब लगा जब खबर आई कि बलराज सिंह उसी गोदाम से पिछली दीवार के रास्ते भागने की कोशिश कर रहा है। उसकी शानदार गाड़ियाँ बाहर इंतज़ार कर रही थीं। गिल और अर्जुन तुरंत पीछे दौड़े, लेकिन बलराज, जो हमेशा भीड़ और सम्मान के घेरे में रहता था, अब कायर की तरह भाग रहा था।

गोदाम से बाहर निकलते ही मीडिया की गाड़ियाँ और पत्रकारों का हुजूम वहाँ मौजूद था। पुलिस को भनक मिलते ही उन्होंने चैनलों को सूचना दे दी थी, ताकि इस बार मामला दबाया न जा सके। कैमरों की रोशनी और माइक्रोफ़ोन की बौछार के बीच बलराज को पुलिस ने घेर लिया। उसकी भागने की कोशिश नाकाम हो गई और वह बुरी तरह पसीने-पसीने होकर खड़ा रह गया। गिल ने उसकी ओर इशारा करते हुए कहा—“यही है असली गुनहगार, जो धर्म और समाजसेवा की आड़ में बेटियों का सौदा करता रहा।” पत्रकारों ने सवालों की बौछार कर दी, और बलराज का चेहरा कैमरों के सामने उतरता चला गया। यह वही आदमी था जिसे लोग संत समझते थे, लेकिन आज उसका असली काला सच जनता के सामने उजागर हो रहा था। लड़कियों को छुड़ाकर सुरक्षित स्थानों पर भेजा गया, और सिमरन अर्जुन के गले लगकर फूट-फूटकर रो पड़ी। पूरे शहर में यह खबर आग की तरह फैल गई। गुरुद्वारे, मोहल्ले, और गलियाँ—हर जगह लोग बलराज की करतूतों पर गुस्से से उबल रहे थे। वह आदमी जो कभी आदर्श समाजसेवक कहलाता था, अब हर किसी की नज़रों में एक राक्षस बन चुका था। अर्जुन ने सिमरन का हाथ कसकर पकड़ते हुए महसूस किया कि उसकी जंग व्यर्थ नहीं गई। इंस्पेक्टर गिल ने गहरी साँस ली और सोचा कि यह जीत सिर्फ एक परिवार की नहीं, बल्कि पूरे समाज की थी। गैंग का काला सच आखिरकार दुनिया के सामने आ चुका था, और अब कोई भी इसे दबा नहीं सकता था।

१०

सूरज की किरणें धीरे-धीरे क्षितिज से निकलकर गाँव की गलियों को सुनहरे रंग में रंग रही थीं। पिछली रात के खौफ़नाक हादसों और गोलीबारी की आवाज़ें अब केवल यादों में थीं। अर्जुन ने सिमरन का हाथ कसकर थामा हुआ था, मानो उसे दोबारा खोने का डर अब भी उसके भीतर बैठा हो। जब पुलिस वैन उन्हें घर तक लेकर पहुँची, तो पूरा मोहल्ला दरवाज़े पर जमा था। हर किसी की आँखों में कौतुहल और राहत की लहर थी। मंजीत कौर अपनी बेटी को देखते ही दौड़ी और उसे अपने सीने से चिपका लिया। उनकी रुलाई पूरे आँगन में गूँज उठी—यह रुलाई डर और दर्द की नहीं, बल्कि ईश्वर का धन्यवाद करने की थी। सिमरन का चेहरा थका हुआ था, लेकिन उसमें अब उम्मीद की चमक थी। अर्जुन की माँ और परिवारजन एक-एक करके सिमरन के माथे को चूमते और उसे आशीर्वाद देते। इतने दिनों से जो बोझ अर्जुन के दिल पर था, वह जैसे पिघल गया। वह मन ही मन सोच रहा था कि यह जंग सिर्फ़ सिमरन को वापस पाने की नहीं थी, बल्कि उस विश्वास को बचाने की थी, जो नकली रिश्तों और झूठी परंपराओं की आड़ में खोता जा रहा था।

इंस्पेक्टर गिल भी उसी समय मोहल्ले के बाहर खड़े थे। लोग उन्हें घेरकर उनकी बहादुरी की तारीफ़ कर रहे थे। कभी उदासीन और औपचारिक दिखने वाला यह पुलिस अफ़सर अब समाज की नज़रों में एक सच्चा हीरो बन चुका था। बच्चों ने फूलों की माला उनके गले में डाल दी, बुज़ुर्गों ने दुआएँ दीं और नौजवानों ने ताली बजाकर उनका स्वागत किया। गिल ने बस मुस्कुराते हुए कहा—“यह मेरी नहीं, हम सबकी जीत है। अगर समाज ऐसे अपराधों के खिलाफ़ एकजुट न होता, तो शायद हम कभी इन बेटियों को नहीं बचा पाते।” मीडिया की गाड़ियाँ भी वहीं थीं, और कैमरों के सामने गिल ने सख़्त संदेश दिया—“हमें यह समझना होगा कि नकली रिश्तों, झूठे बिचौलियों और धर्म के नाम पर छिपे चेहरों की पहचान करना ज़रूरी है। जब तक समाज खुद जागरूक नहीं होगा, तब तक ऐसे अपराध पनपते रहेंगे।” उनके शब्द लोगों के दिलों तक पहुँचे। गाँव की गलियों में अब डर की जगह जागरूकता की बातें होने लगीं। औरतें आपस में चेतावनी देतीं कि हर नए रिश्ते और हर अजनबी की सच्चाई को परखना ज़रूरी है। यह बदलाव उस काले सच के उजागर होने का सबसे बड़ा असर था।

शाम ढलते-ढलते घर के आँगन में दीप जलाए गए। अर्जुन और सिमरन एक-दूसरे के साथ बैठकर चुपचाप आसमान को निहार रहे थे। उनके बीच अब कोई शब्द नहीं थे, सिर्फ़ मौन में छिपा विश्वास था। मंजीत कौर हर दीपक के सामने माथा टेककर भगवान का धन्यवाद कर रही थीं। उनकी आँखों से बहते आँसू अब खुशी और आभार के थे। पूरा परिवार सिमरन की वापसी के साथ मानो फिर से जी उठा था। गाँव के लोग मिठाई लेकर आए और कहा—“आज तो जैसे नया सवेरा हुआ है।” सचमुच, यह एक नए जीवन का संकेत था। सिमरन का बच निकलना सिर्फ़ एक बेटी की वापसी नहीं थी, बल्कि उन तमाम लड़कियों के लिए उम्मीद का संदेश था जो अंधेरे में कैद थीं। अर्जुन ने गहरी साँस ली और सोचा कि इंस्पेक्टर गिल सही कहते हैं—यह जंग कभी ख़त्म नहीं होगी, जब तक समाज खुद खड़ा होकर ऐसे नकली रिश्तों और अपराधों का विरोध न करे। कहानी यहीं खत्म होती है, लेकिन इसका संदेश गूँजता रहता है: “हर नकली रिश्ते की परत के पीछे छुपे अपराध को पहचानना और उससे लड़ना ही असली इंसाफ़ है।”

समाप्त

 

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