Hindi - क्राइम कहानियाँ

खामोश गवाह

Spread the love

अनिरुद्ध राजन मिश्रा


वाराणसी की तंग गलियों में वो रात कुछ ज्यादा ही खामोश थी, जैसे कोई बड़ा तूफान पहले ही सब उजाड़ चुका हो। इंस्पेक्टर अयान शुक्ला की जीप जब कोतवाली इलाके की उस मोड़ पर पहुँची, तो चारों तरफ भीड़ जमा हो चुकी थी। लाल-नीली बत्तियों की चमक पुलिस की असहज उपस्थिति दर्ज करा रही थी, लेकिन वहां खड़ा हर शख्स जानता था — ये कोई आम मर्डर नहीं।

“कौन है?” अयान ने उतरते ही पूछा।

“साहब… एक औरत है,” कॉन्स्टेबल दुबे ने सिर झुकाते हुए जवाब दिया, “किसी ने सिर पर वार किया है, मौके पर ही मौत हो गई।”

“चेहरा देखा?” अयान ने तेजी से कदम बढ़ाते हुए पूछा।

“नहीं साहब, खून से सना है। पहचान नहीं हो रही…”

अयान के कदम धीरे हो गए। उस गली में एक बिछी हुई चादर के ऊपर, एक औरत की लाश थी। बाल बिखरे हुए, चेहरा अधखुला, और एक हाथ में कुछ दबा हुआ जैसे आखिरी दम तक कुछ पकड़ने की कोशिश कर रही हो। लाश के पास गिरा बैग खुला पड़ा था — उसमें से एक प्रेस कार्ड झाँक रहा था।

अयान झुककर कार्ड उठाता है। अगले ही पल उसके हाथ कांप जाते हैं।

“माया शुक्ला — वाराणसी टाइम्स”

कुछ सेकंड के लिए वक़्त जैसे रुक गया। कानों में सायरन की आवाजें गूंज रही थीं लेकिन वो सुनाई नहीं दे रही थीं। जिस महिला के साथ उसने ज़िंदगी बिताई, जिसके साथ उसने लड़ाइयाँ कीं, सुलह की, और आखिरकार अलग हो गया… वो अब एक लाश बनकर उसके सामने पड़ी थी।

“सर, कुछ मिला हाथ में,” एक अफसर ने कहा।

अयान ने धीरे से उसके हाथ से उंगलियाँ हटाईं। उसमें एक टूटा हुआ कैमरा लेंस था, और कुछ मुड़े-तुड़े कागज़।

“तुरंत फोरेंसिक टीम को बुलाओ। आसपास की सारी सीसीटीवी फुटेज खंगालो।”

“लेकिन सर,” दुबे ने धीरे से कहा, “इधर कोई सीसीटीवी नहीं है। गली में दो महीने से मरम्मत का काम चल रहा है।”

“तो चश्मदीद गवाह?”

“एक बच्ची है सर, शायद गवाह है। लेकिन बोल नहीं सकती… मूक है।”

अयान की निगाहें घूमीं। गली के कोने पर एक लड़की दीवार से चिपककर बैठी थी। उसके कपड़े गीले थे, आँखों में भय। वो बार-बार अपनी उंगलियों से कुछ इशारे कर रही थी, जिन्हें कोई नहीं समझ पा रहा था।

“उसे मेरे पास लाओ,” अयान ने कहा।

रूही मिश्रा — यही नाम बाद में उसकी फाइल में दर्ज होगा। उस वक्त वो नाम भी नहीं बता सकी थी। लेकिन उसकी आँखें बहुत कुछ कह रही थीं। वो इंसानी खून के साथ इंसाफ की आखिरी उम्मीद थी।

अयान उसके सामने बैठा। लड़की काँप रही थी। उसकी उंगलियाँ हवा में कुछ बना रही थीं — जैसे किसी का चेहरा खींच रही हो। फिर अचानक उसके हाथ कांपने लगे, और उसने दोनों हथेलियों से चेहरा ढक लिया।

“क्या उसने माया को मरते देखा?” अयान ने कॉन्स्टेबल से पूछा।

“पता नहीं सर। कोई डिटेल नहीं बता रही। बस वहीं गली में बैठी थी, जब पहुंचे तो चुपचाप इधर-उधर देख रही थी।”

“हमें इसे स्पेशलिस्ट के पास ले जाना होगा। कोई ऐसा जो मूक-बधिर भाषा समझ सके। ये बच्ची कुछ जानती है।”

अयान ने चारों ओर देखा — कोई कैमरा नहीं, कोई चश्मदीद नहीं, माया के बैग से कुछ ज़रूरी दस्तावेज़ ग़ायब थे। और उसका फोन भी लापता था।

मर्डर का तरीका प्रोफेशनल लग रहा था। साफ़-सुथरी सफाई, बिना कोई फुटप्रिंट, और वो कैमरा लेंस… जैसे किसी ने सबूत को जानबूझकर कुचला हो।

अयान ने माया के चेहरे पर आखिरी बार नज़र डाली। उस चेहरे पर अब भी जिद की एक हल्की झलक थी। वही जिद जो उसे हमेशा आगे ले जाती थी, वही जिद जो उसके और अयान के बीच खाई बनाती थी… और शायद वही जिद उसे मौत तक ले आई।

उस रात अयान ने कोई बात नहीं की। उसने रूही को खुद गाड़ी में बिठाया, और थाने के बजाए उसे सीधे अपने घर ले गया। सबूत नहीं थे, लेकिन एक विश्वास था — ये बच्ची कुछ छुपा रही है, या शायद बताना चाहती है पर समझा नहीं पा रही।

अयान के घर में वो एक खाली कमरा था, जहां कभी माया अपने आर्टवर्क और स्टोरी आइडिया पर काम किया करती थी। आज वहीं पर रूही को बिठाया गया। उसकी आँखों में अजीब सी पहचान की चमक थी — जैसे वो इस कमरे को जानती हो।

अयान को पहली बार ऐसा लगा कि ये महज़ एक मर्डर केस नहीं, कोई गहरा खेल है — ऐसा खेल जिसमें खिलाड़ी भी छुपे हैं और दांव पर इंसानियत भी है।

उसने अपनी डायरी निकाली और पहला नोट लिखा —
माया की हत्या — कोई गवाह नहीं, कोई सबूत नहीं।
बस एक खामोश लड़की… और उसका डर।”

अगली सुबह अयान चाय के प्याले को टेबल पर रखते हुए चुपचाप उस कमरे को देखता रहा जहाँ रूही बैठी थी। उसकी आँखें खुली थीं, लेकिन उनमें नींद नहीं थी — सिर्फ जागते रहने की आदत। रात भर वो एक भी शब्द नहीं बोल सकी, और अयान भी चुप रहा। कभी-कभी खामोशी ज्यादा कह देती है।

उसने तय कर लिया था — पहले किसी विशेषज्ञ से मिलवाना होगा। उसे कोई ऐसा चाहिए था जो मूक-बधिर भाषा समझ सके। सौभाग्य से उसकी पहचान में एक NGO की कार्यकर्ता थी — स्वाति दीक्षित, जो मूक-बधिर बच्चों के साथ काम करती थी।

सुबह 10 बजे तक स्वाति पहुंच गई। उसके आते ही रूही की आँखों में कुछ हलचल हुई। उसने पहली बार किसी को बिना डरे देखा। शायद वो भरोसा कर सकती थी।

“मैं कोशिश करूंगी, लेकिन इसे समय लगेगा,” स्वाति ने कहा।

“हमें समय नहीं है,” अयान ने कहा, “ये अकेली गवाह है। अगर इसका बयान नहीं मिला, तो केस बंद समझो।”

स्वाति ने रूही के सामने बैठकर हाथों से कुछ संकेत किए। रूही ने कुछ उत्तर दिए, बहुत धीमे, डरे हुए।

“ये बहुत डरी हुई है,” स्वाति बोली, “इसे पूरा विश्वास नहीं कि आप इसके साथ हैं या उसके खिलाफ।”

“मैं इसे बचाना चाहता हूँ।”

“तो पहले इसे यकीन दिलाना होगा कि आप सिर्फ अफसर नहीं, इंसान भी हैं।”

अयान ने दीवार की तरफ देखा — वही पुरानी दीवार जहां माया ने एक स्केच बनाया था। उसमें एक लड़की बारिश में भीगती खड़ी थी, आँखें छत की ओर, और होंठ बंद।

“माया ये स्केच क्यों बनाती थी?” उसने खुद से पूछा।

“क्या ये तुम्हें जानती थी?” उसने धीरे से रूही की तरफ इशारा किया।

रूही ने सिर हल्के से हिलाया। फिर उसके हाथों ने दो शब्द बनाए: “दीदी… दोस्त।”

“क्या?” अयान झटका खा गया।

“ये कह रही है कि वो माया को जानती थी,” स्वाति ने पुष्टि की, “उसे दीदी कहती थी।”

अब कहानी नया मोड़ ले चुकी थी।

“तो तुम वहाँ क्यों थीं, उस गली में?”

रूही की उंगलियाँ थरथरा गईं। उसने एक तस्वीर बनानी शुरू की — दो लोग, एक महिला और एक पुरुष। फिर एक बड़ी गाड़ी, और फिर एक इशारा — जैसे किसी ने माया को घसीटा हो।

“वो कह रही है,” स्वाति ने कहा, “माया दीदी वहाँ किसी से मिलने गई थीं। वो खुद साथ नहीं गई थी, लेकिन थोड़ी दूरी पर छुपकर सब देख रही थी।”

“क्या उसने कातिल को देखा?”

रूही का चेहरा सख्त हो गया। वो काँपती हुई उंगलियों से एक नकाब जैसा कुछ दिखाने लगी।

“नकाब? चेहरा नहीं देखा?”

रूही ने सिर हिलाया — नहीं।

“तो फिर कुछ और देखा?”

उसने फौरन इशारे में कुछ नया दिखाया — एक टैटू। दाईं कलाई पर कुछ अजीब आकृति।

“क्या टैटू दिखा था?”

रूही ने जल्दी से स्केचबुक और पेन मांगा। उसने कांपते हाथों से एक डिजाइन बनाया — एक त्रिशूल, जिसके नीचे दो अक्षर थे: VB

अयान का माथा ठनक गया। VB — विक्रांत बख्शी?

“क्या तू जानती है ये कौन है?” उसने पूछा।

रूही ने सिर्फ एक बार सिर झुकाया।

वो नहीं जानती थी नाम, पर टैटू पहचानती थी।

अब तस्वीर थोड़ी साफ़ हो रही थी।

माया किसी स्टोरी पर काम कर रही थी, कुछ ऐसा जो विक्रांत तक पहुँचता था। और अब वो मारी गई थी।

अयान ने पुराना कॉल रिकॉर्ड खंगालना शुरू किया — माया के नंबर से आखिरी कॉल एक नंबर पर गई थी, जो किसी मनीष त्रिपाठी के नाम से पंजीकृत था — विक्रांत का अकाउंट हेड।

“फुल सर्कल में आ गए हैं,” उसने बुदबुदाया।

लेकिन सबूत? गवाह एक मूक लड़की, जो शब्दों के बिना इंसाफ की लड़ाई लड़ रही थी।

उसी दिन अयान ने क्राइम ब्रांच से एक पुराने केस की फाइल मंगाई — विक्रांत का नाम उसमें एक बार आया था, लेकिन “प्रभावशाली” गवाहों और बयान बदलने की वजह से केस बंद कर दिया गया था।

“इतिहास खुद को दोहरा रहा है,” अयान ने फाइल बंद करते हुए कहा।

शाम को जब अयान रूही को खाने के लिए बुला रहा था, उसने देखा कि वो वही स्केच बना रही है — माया, मुस्कुराती हुई, खुले बाल, बारिश में भीगती हुई।

“क्या तुमने आखिरी बार उसे ऐसे ही देखा था?” अयान ने पूछा।

रूही ने सिर हिलाया — नहीं।

फिर उसने माया के चेहरे पर एक काली परछाई खींची।

“मरने से पहले वो डर गई थी… बहुत डर गई थी।”

अयान समझ गया — जो कुछ भी हुआ था, वह अचानक नहीं था। माया को पता था कि वो खतरे में है, लेकिन उसने अयान को नहीं बताया।

“शायद इसलिए, क्योंकि हम अलग हो चुके थे।”

उसने छत की ओर देखा। उसके ऊपर एक लंबा अंधेरा खिंचा था। रूही ने खिड़की से बाहर देखा — एक काली कार दूर से गुज़र रही थी।

वो कूदकर पीछे हट गई।

“क्या हुआ?”

उसने तुरंत उंगलियों से संकेत किए — “वही गाड़ी…”

“कौन? किसकी गाड़ी?”

रूही ने चित्र बनाया — एक SUV, नंबर प्लेट के बिना।

अब उसे यकीन हो गया — कोई उसे ट्रैक कर रहा है। शायद वो गवाह को खत्म करना चाहता है।

अयान ने उसी पल फैसला किया — वो अब इसे अकेला नहीं छोड़ेगा। ये सिर्फ माया का मामला नहीं, अब ये एक बच्ची की जान और सच की जंग थी।

उसने उसी डायरी में दूसरा नोट लिखा —

गवाह ज़िंदा है। और गवाही शुरू हो चुकी है।
अब सवाल सिर्फ ये है — कौन पहले हार मानेगा… मैं या वो कातिल?”

 

वाराणसी की गलियों का रंग कभी एक जैसा नहीं होता — दिन में श्रद्धा से भरा हुआ, और रात में रहस्यों से। इंस्पेक्टर अयान शुक्ला जानता था कि अब उसका काम सिर्फ एक मर्डर सुलझाना नहीं, बल्कि उन पर्दों को हटाना था जिनके पीछे एक संगठित साज़िश धीरे-धीरे पनप रही थी।

रूही अब अयान के घर के एक सुरक्षित कमरे में रह रही थी, लेकिन उसकी आँखों की बेचैनी लगातार बता रही थी कि खतरा अभी टला नहीं। अयान ने थाने से एक विश्वसनीय कांस्टेबल, नवीन को उसे निगरानी में रखने की ज़िम्मेदारी दी और खुद सीधा निकला उस जगह पर जहाँ से सब शुरू हुआ था — माया का अख़बार दफ़्तर।

“इंस्पेक्टर साहब, माया मैम पिछले कुछ हफ्तों से बहुत परेशान लग रही थीं,” एडिटर ने बताया।

“किस बारे में स्टोरी कर रही थीं?”

“उन्होंने कहा था कि उन्हें एक बिल्डर के अवैध कब्जे और ज़मीन घोटाले पर काम करना है। उन्होंने एक फाइल लॉक की थी अपने ड्रॉअर में — लेकिन अब वह गायब है।”

अयान ने अलमारी खुलवाई — अंदर सिर्फ एक टूटा ताला और खाली फोल्डर।

“कोई एक्सेस था इस कमरे तक?”

“सिर्फ तीन लोग — माया, मैं और ऑफिस बॉय रामदीन।”

“रामदीन कहाँ है?”

“ग़ायब है दो दिन से। फोन भी बंद।”

अयान ने नोट किया — रामदीन सिर्फ एक मामूली ऑफिस बॉय नहीं, शायद इस पूरे मामले का पहला लूप-होल था।

अयान अब सीधे गया पुलिस फोरेंसिक लैब — जहाँ माया के बैग और कैमरा की रिपोर्ट तैयार थी।

“सर, लेंस जानबूझकर तोड़ा गया था। लेकिन बैग में एक कार्ड मिला है जो मुड़कर चिपक गया था अंदर। साफ करते समय निकला।”

अयान ने कार्ड देखा — एक विज़िटिंग कार्ड था, जिस पर सिर्फ दो चीज़ें छपी थीं:

“Vikrant Bakshi Group – VB Infra Projects
Meeting Code: 17B-KASHI”

“मीटिंग कोड क्या है?”

“पता नहीं सर, लेकिन हो सकता है किसी प्राइवेट इन्विटेशन या इंटरनल शेड्यूल का हिस्सा हो।”

अयान को अब पक्का यकीन था — माया ने विक्रांत बख्शी की किसी गुप्त मीटिंग को ट्रैक किया था। और शायद वही उसकी मौत की वजह बनी।

उसने फौरन विक्रांत का नंबर ट्रेस किया — कॉल डिटेल से पता चला कि घटना की रात, विक्रांत के फोन से तीन कॉल उसी गली के टॉवर से पिंग हुए थे जहाँ माया मारी गई। लेकिन लोकेशन डेटा में एक अजीब बात थी — उस फोन की आखिरी लोकेशन एक “निर्माणाधीन आश्रम” थी, शहर से दूर, काशीपुर इलाके में।

वहीं दूसरी ओर, रूही ने एक नई बात बताई — इशारों में बताया कि वो ‘आश्रम’ माया दीदी के साथ एक बार गई थी, जहाँ कुछ अजीब सा माहौल था — वहाँ अक्सर रात को गाड़ियाँ आती थीं, और नकाबपोश लोग अंदर जाते थे।

“क्या तुम जानती हो कि वो लोग वहाँ क्या करते थे?” अयान ने पूछा।

रूही ने एक ही शब्द बनाया — “वीडियो।”

अब खेल साफ था। माया किसी सेक्सुअल ब्लैकमेल रैकेट का भंडाफोड़ करने जा रही थी, जिसमें VB ग्रुप की कोई गुप्त लोकेशन कैमरों से भरी हुई थी।

अयान उसी शाम उस निर्माणाधीन आश्रम में पहुँचता है — वहाँ दो चौकीदार और एक सीमेंट कंपनी का बोर्ड। सबकुछ वैध दिखता है, लेकिन एक चीज़ बाहर खड़ी SUV से मेल खाती है — नंबर प्लेट गायब।

“बाहर खड़ी ये गाड़ी किसकी है?”

“साहब, कोई अफसर आया था, वो अंदर ही है।”

“नाम?”

“विक्रांत बख्शी।”

अयान ठिठक गया। वो आदमी जिसे वो ढूंढ रहा था, वो यहीं, इस समय, सामने था।

वो अंदर गया — और पहली बार दोनों आमने-सामने हुए।

“इंस्पेक्टर शुक्ला! आपकी बहुत तारीफ सुनी है। माया जी आपकी पत्नी थीं, अफ़सोस हुआ।”

“आपकी कंपनी की मीटिंग का कोड उसके पास से मिला है।”

“बहुत लोग हमारे यहाँ काम करते हैं, हजारों कार्ड छपते हैं। इसका मतलब ये नहीं कि मैं किसी मर्डर में शामिल हूँ।”

“लेकिन आपकी गाड़ी घटना स्थल के पास देखी गई।”

“मैं वाराणसी में ही रहता हूँ, अफ़सर। मेरी गाड़ियाँ हर गली में घूमती हैं।”

अयान को पता था — ये आदमी सबूत के बिना नहीं झुकेगा।

“तो आप इस आश्रम के मालिक नहीं?”

“नहीं, लीज़ पर है। मैं बस निर्माण का काम देखता हूँ।”

अयान ने आश्रम के भीतर की दीवारें देखीं — बिलकुल सफेद, लेकिन एक जगह सीलिंग के कोने में एक छोटा छेद। कैमरा हटाया गया था, लेकिन स्क्रू के निशान बाकी थे।

“निशान जो छूट जाते हैं, वही सबसे ज़्यादा बोलते हैं।” अयान ने मन में दोहराया।

अब उसकी लड़ाई मुश्किल हो गई थी — एक चुप गवाह, एक छुपा हुआ वीडियो, और सामने एक ताकतवर अपराधी।

वापसी पर उसने थाने में एक गुप्त नोट लिखा:

ये सिर्फ हत्या नहीं… ब्लैकमेल, राजनैतिक गठजोड़, और एक इलीट सेक्स रैकेट का दरवाज़ा खुल रहा है।
रूही को अब सिर्फ गवाह नहीं — सबूत बनाना होगा। और मेरे लिए रास्ता एक ही है — कानून से बाहर, लेकिन सच के अंदर।”

 

अयान की सुबह एक पुराने सवाल से शुरू हुई — माया की वह गुमशुदा फ़ाइल आखिर कहाँ थी? उस फ़ाइल में, उसे यकीन था, कई ऐसे सबूत छुपे थे जो इस पूरे काले जाल को उजागर कर सकते थे। उसने अपने थाने के कर्मचारियों को आदेश दिया, माया के पुराने घर और दफ्तर दोनों जगह तलाशी ली जाए।

माया के पुराने कमरे में वह पुरानी अलमारी मिली, जिसकी तिजोरी टूटी हुई थी। मगर फ़ाइल कहीं नहीं मिली। फोल्डर के खाली पन्नों पर धूल जम रही थी, जैसे कोई जानबूझकर उसे वहां से हटा चुका हो। उस फ़ाइल में शायद वो रिकॉर्ड था, जो किसी बड़े बिल्डर और राजनेता के खिलाफ था।

अयान ने अपनी नोटबुक में लिखा — “कोई जानता है, पर बोल नहीं रहा।”

दफ्तर में उसकी मुलाकात हुई एक साथी पत्रकार से, ज्योति से। ज्योति ने डरते हुए बताया, “माया के बाद से मैं भी धमकियाँ पा रही हूँ। उसने मुझसे कहा था, ‘अगर कुछ हुआ तो मेरी फ़ाइल जरूर देखना।’”

अयान ने उसके मोबाइल से फ़ाइल के कुछ नाम निकाले — सब कागज़ात के नाम थे, कुछ पते, फोन नंबर, और खाता डिटेल। लेकिन असली फ़ाइल नहीं।

तभी फोन बजा — अयान का पुराना दोस्त और क्राइम ब्रांच का इंस्पेक्टर, अभिजीत।

“अयान, ये मामला बड़ा हो गया है। माया की फ़ाइल मिली है, पर वो गायब है। और पता चला है, थाने के अंदर भी कुछ लोग विक्रांत के साथ हैं। सावधान रहो।”

अयान की सांस रुकी। उसे पता था कि इस जाल में कहीं उसकी अपनी पुलिस विभाग की दीवारें भी शामिल थीं।

उसने तय किया — अब ये लड़ाई सिर्फ अदालत में नहीं, बल्कि उसके दिल और दिमाग में थी।

रूही को देखता रहा जो मूक थी, पर उसकी आँखों में सैकड़ों कहानियाँ छुपी थीं।

अयान ने उस दिन पहली बार महसूस किया कि सच के लिए लड़ना कितना मुश्किल होता है, जब हर तरफ साये होते हैं।

वाराणसी के बाहर एक पुराना आश्रम था, जिसकी दीवारें समय के साथ धुंधली हो चुकी थीं। वहाँ अक्सर रहस्यमयी आवाज़ें आती थीं, और लोग कहते थे कि अंदर अंधेरा और साज़िशें छुपी हैं। इंस्पेक्टर अयान शुक्ला और रूही मिश्रा वहीं पहुँचे। रूही ने अपने कांपते हाथों से इशारे किए कि माया वहाँ आखिरी बार थी।

आश्रम के भीतर फटे हुए पर्दे और टूटे हुए फर्नीचर के बीच कुछ गुमशुदा दस्तावेज़ और कैमरों के अवशेष मिले। वहां की जमीन पर गड़बड़ी के निशान थे, मानो कोई छुपा हुआ है। अयान को महसूस हुआ कि ये आश्रम केवल एक निर्माणाधीन जगह नहीं, बल्कि एक काला अड्डा है, जहां से अवैध गतिविधियां संचालित होती हैं।

रूही ने फिर एक बार अपने इशारों से बताया कि माया ने वहां कुछ छुपा हुआ देखा था, शायद कोई वीडियो या रिकॉर्डिंग। अयान ने उस जगह की जांच तेज़ कर दी। अंदर से उसे एक टूटी हुई सीसीटीवी मिली, जिसके तार काटे गए थे, लेकिन एक कैमरा लेंस बचा हुआ था, जिस पर धुंधले निशान थे।

अयान ने सोचा, “निशान जो छूट जाते हैं, वही सबसे ज़्यादा बोलते हैं।” उसी समय उसे एहसास हुआ कि माया की मौत का राज़ इसी आश्रम के भीतर छुपा है।

आगे की जांच में, अयान को पता चला कि विक्रांत बख्शी का वहाँ कोई गुप्त ठिकाना है, और यही जगह उसकी कई गुप्त बैठकों का केंद्र है। वो अंदर जाकर देखना चाहता था कि सच क्या है, पर खतरा भी बहुत था।

अयान ने ठाना कि वो सच का पीछा तब तक नहीं छोड़ेगा जब तक वो पूरी गुत्थी सुलझा न ले।

खामोश गवाह के सफर में अब एक नया मोड़ आ चुका था। इंस्पेक्टर अयान शुक्ला का दिल तेजी से धड़क रहा था, लेकिन उसका दिमाग ठंडा था। विक्रांत बख्शी का नाम अब केवल एक अफवाह या छाया नहीं रहा था, बल्कि वह अब इस कहानी का केंद्र था। उसकी काली ताकतें, उसकी दहशत, और उसकी पकड़ ने पूरे शहर को अपनी गिरफ्त में ले रखा था। और अयान के सामने अब दो रास्ते थे — या तो सिस्टम के सहारे सच को उजागर करना, या खुद को और रूही को इस खतरे से बचाना।

विक्रांत के फार्महाउस की ओर जाते हुए अयान की सोच में कई सवाल घूम रहे थे। क्या उसे सीधे उस जगह जाना चाहिए था? या पहले पूरी तैयारी करनी चाहिए? पर अब वक्त नहीं था। जो कुछ भी होने वाला था, उसे अब झेलना था।

फार्महाउस बड़ा था, चारों तरफ ऊंची दीवारें और काले लोहे के गेट थे। गेट के बाहर एक सुरक्षा गार्ड था, जो निगरानी की आंखों से हर आने-जाने वाले को देख रहा था। अयान ने अपना आईकार्ड दिखाया, लेकिन गार्ड की नजरें संदेह से भरी थीं। “सर, यहां सिर्फ निमंत्रित मेहमान ही आ सकते हैं।”

अयान ने ठंडी आवाज में कहा, “मुझे विक्रांत से मिलना है।”

गेट के अंदर, अयान ने अपने अंदर के डर को दबाते हुए कदम बढ़ाया। फार्महाउस में अंदर एक आलीशान लॉबी थी, जिसमें महंगे फर्नीचर, बड़ी सी झूमर और दीवारों पर भारी-भरकम पेंटिंग्स थीं। वहां एक आदमी इंतजार कर रहा था — विक्रांत बख्शी खुद।

विक्रांत ने मुस्कुराते हुए कहा, “इंस्पेक्टर शुक्ला, आखिरकार हम मिल ही गए। आपने मुझे ढूंढा भी, तो सही।”

अयान ने उसकी आंखों में देखा — कहीं घमंड था, कहीं खतरा। “आपके खिलाफ कई शिकायतें हैं, लेकिन कोई सबूत नहीं। क्या सच यही है कि आप हमेशा कानून के ऊपर हैं?”

विक्रांत ने शीतलता से जवाब दिया, “कानून सबके लिए बराबर होता है, इंस्पेक्टर। लेकिन सच ये भी है कि कुछ लोग नियम तोड़ते हैं, और मैं उन्हें रोकता हूं।”

“माया की हत्या का क्या?” अयान ने कटाक्ष किया।

विक्रांत ने एक गहरी सांस ली, फिर कहा, “माया की मौत दुखद है। लेकिन उसे मेरी दुनिया में दखल देने का कोई हक़ नहीं था। उसने बहुत खतरनाक खेल खेलना शुरू किया था।”

अयान ने उसकी हरकत पर गौर किया — विक्रांत की आंखों में कोई अफ़सोस नहीं, केवल नियंत्रण का भाव। उसने पूछा, “क्या आप जानते हैं कि रूही को भी खतरा है? और मुझे भी?”

“रूही? वह मासूम बच्ची? उसे मैंने कभी नुकसान नहीं पहुंचाया। लेकिन अगर कोई उसे निशाना बना रहा है, तो मैं उसके खिलाफ कार्रवाई कर सकता हूं।”

अयान ने भीतर ही भीतर तय किया कि अब केवल बातचीत से कुछ नहीं होगा। उसे ठोस सबूत चाहिए थे।

फार्महाउस के अंदर अयान ने कई कमरों की जांच की। एक कमरे में सीसीटीवी कैमरे लगे थे, जो पूरे परिसर को कवर करते थे। उनमें से कई कैमरे तो बंद थे, लेकिन कुछ चालू थे। अयान ने सोचा, शायद वह वहां छुपा हुआ कोई सबूत पा सके।

अचानक, उसे एक कमरे का दरवाजा खुला मिला। अंदर कुछ कागजात और लैपटॉप पड़े थे। लैपटॉप ऑन था, और स्क्रीन पर कुछ वीडियो फाइलें चल रही थीं। अयान ने उसे खोलना शुरू किया।

वीडियो में कुछ गुप्त बैठकें थीं, जहां कई उच्च पदस्थ लोग बैठे थे। किसी बातचीत में माया का नाम भी लिया जा रहा था। अयान ने फुर्ती से वीडियो को फास्ट फॉरवर्ड किया। तभी स्क्रीन पर एक ऐसा दृश्य आया जिसने उसकी रूह कांपा — माया की एक क्लिप, जिसमें वह किसी को धमकी दे रही थी कि वह सच बाहर लाएगी।

लेकिन वीडियो अचानक कट गया।

अयान ने उस लैपटॉप को अपने साथ छिपा लिया और बाहर निकला। विक्रांत का सामना करते हुए उसने कहा, “यह सब कुछ साबित करता है कि आपकी ताकतें कानून से ऊपर हैं।”

विक्रांत ने ठंडी मुस्कान के साथ कहा, “आपको सबूत तो चाहिए, लेकिन सबूत छुपाने वाले आपके ही बीच हैं। सावधान रहो, इंस्पेक्टर।”

वहां से बाहर निकलते ही अयान ने फोन उठाया और रूही से कहा, “तुम सुरक्षित रहो। मैं जल्दी ही वापस आता हूं।”

लेकिन जैसे ही वह अपने वाहन की ओर बढ़ा, उसे लगा कि कोई उसकी निगरानी कर रहा है। SUV धीरे-धीरे उसके पीछे आ रही थी। दिल की धड़कन तेज़ हो गई। उसने गाड़ी तेज़ की।

रूही की जान अब सच में खतरे में थी। अयान ने तय किया कि अब समय आ गया था कि वह रूही को थाने की सुरक्षा से बाहर ले जाकर कहीं और छुपाए।

वह जानता था कि ये लड़ाई केवल पुलिस का मामला नहीं रह गया था। ये लड़ाई थी इंसाफ की, सच की, और दो इंसानों की जिनकी ज़िंदगी दांव पर थी।

 

खामोश रात की चादर जब गहरे सन्नाटे के साथ छाई हुई थी, तब इंस्पेक्टर अयान शुक्ला ने अपने कार की सवारी तेज़ कर दी। पीछे से आती काली SUV की रोशनी उसके दिल की धड़कनें बढ़ा रही थी। वो जानता था कि विक्रांत बख्शी का शिकंजा अब उसके और रूही दोनों की जिंदगी पर कसता जा रहा है। रूही की सुरक्षा अब उसके लिए सबसे बड़ा प्रश्न था।

उसने फोन पर नवीन को आदेश दिया कि रूही को थाने से निकालकर सुरक्षित स्थान पर छुपाओ। मगर अयान जानता था कि यह सुरक्षा कितनी भी हो, वो अस्थायी है। असली खतरा तब आएगा जब विक्रांत और उसके लोग इस लड़की को ढूंढ निकाले। इसी सोच में खोया था अयान, तभी उसकी कार के पीछे आ रही SUV ने अचानक तेज़ी से उसका रास्ता काट दिया।

अयान ने ब्रेक लगाया, SUV ने गाड़ी रोक ली। कुछ पल के लिए दोनों गाड़ियां एक-दूसरे के सामने खड़ी रहीं। अयान ने गाड़ी से बाहर निकलने की तैयारी की, लेकिन तभी एक मस्कराता हुआ शख्स SUV से निकला। उसकी शक्ल अंधेरे में अधूरी सी दिख रही थी, पर वो विक्रांत का आदमी था, कोई शक नहीं।

“इंस्पेक्टर साहब,” उसने कहा, “विक्रांत जी कहते हैं, कि आप खेल खत्म कर दें। रूही को छोड़ दें, नहीं तो…”

उसकी आवाज़ में धमकी साफ झलक रही थी। अयान ने ठंडेपन से जवाब दिया, “मैं किसी भी कीमत पर उस बच्ची को नुकसान नहीं पहुंचने दूंगा।”

वह आदमी मुस्कुराया और SUV वापस घुस गई, अंधेरे में खो गई। अयान ने सांस ली, कार में बैठा और आगे बढ़ गया। वो जानता था कि विक्रांत ने खेल के नियम बदल दिए हैं, और अब उसे खुद को और रूही को बचाने के लिए सबकुछ करना होगा।

वह अगले दिन रूही को लेकर एक पुराने परिचित के घर गया, जो एक सुरक्षित घर था — अनाम जगह, जहां किसी की पहुँच नहीं थी। वहां रूही को आराम मिला, और अयान को भी थोड़ी राहत। मगर उस रात अयान को एक और झटका लगा जब नवीन ने फोन किया।

“सर, रामदीन मिला है। वो हमसे बात करना चाहता है।”

रामदीन, जो माया के ऑफिस बॉय था और अचानक गायब हो गया था, अब सामने आ गया था। अयान ने तुरंत उससे मिलने की ठानी। रामदीन एक छोटी सी चाय की दुकान पर था। उसकी आंखें घबराई हुई थीं, और हरकतें अनिश्चित।

“आपसे एक बात कहनी है,” उसने फुसफुसाते हुए कहा, “माया की मौत… ये सिर्फ मर्डर नहीं था।”

अयान ने ध्यान से सुना। रामदीन ने बताया कि माया ने उस फ़ाइल में एक बड़ी हेराफेरी पकड़ी थी — एक राजनैतिक और आर्थिक साज़िश जिसमें कई बड़े नाम शामिल थे। विक्रांत केवल एक चेहरा था, लेकिन अंदर कई लोग थे। माया ने आखिरी वक्त में अपने कुछ रिकॉर्डिंग्स और वीडियो छुपा दिए थे। ये वीडियो कहीं सुरक्षित थे, पर पता नहीं कहां।

अयान ने पूछा, “क्या तुम बता सकते हो कि वीडियो कहाँ हैं?”

रामदीन ने सिर हिलाया, “माया ने एक जगह छुपा रखा था। एक पुराने मंदिर के पास, गंगा किनारे।”

अयान ने फैसला किया कि अब उसे तुरंत उस जगह जाना होगा। अगले ही दिन सुबह जल्दी उठकर वह उस मंदिर की ओर चल पड़ा, रूही की सुरक्षा की चिंता मन में लिए। मंदिर पुराना और वीरान था, पत्थरों पर जमी घास और दीवारों पर काई जमी थी। गंगा की ठंडी हवा में कहीं दूर से मन्दिर की घंटी की आवाज़ आती थी।

अयान ने मंदिर के पीछे एक छोटी सी गुफा देखी। गुफा के अंदर कुछ पुरानी लकड़ी के बक्से थे। उसने उनमें से एक खोला तो देखा कि उसमें कुछ USB ड्राइव और एक छोटा कैमरा था।

उसने कैमरा ऑन किया। स्क्रीन पर कुछ वीडियो फाइलें थीं। जब वह वीडियो चलाने लगा तो उसकी धड़कन तेज़ हो गई। वीडियो में माया की आवाज़ थी, जो एक साजिश का खुलासा कर रही थी। उसमें बड़े राजनेता, बिजनेसमैन, और पुलिस वाले शामिल थे, जो एक बड़े भ्रष्टाचार और सेक्स रैकेट के तार जोड़ रहे थे। विक्रांत बख्शी उनमें से एक था, लेकिन उसके साथ कई और भी ताकतवर लोग थे।

अचानक एक आवाज़ आई — “इंस्पेक्टर, तुम्हारे पीछे खतरा है।” अयान ने पीछे मुड़कर देखा, कोई नहीं था। लेकिन उसे महसूस हुआ कि ये कोई और नहीं, विक्रांत की सेना की चाल थी।

वह वीडियो की कॉपी लेकर मंदिर से बाहर निकला। बाहर निकलते ही उसे लगा कि किसी की नजर उस पर है। उसने जल्दी कदम बढ़ाए, लेकिन तभी एक अंधेरा साया उसके सामने आ गया और उसे पकड़ लिया।

वह आदमी विक्रांत का खास गुर्गा था। “तुम्हें ये वीडियो नहीं मिलनी चाहिए थी,” उसने धमकी दी।

अयान ने हिम्मत जुटाई, और लड़ाई के लिए तैयार हो गया। उसने जैसे-तैसे उस आदमी को धक्का दिया और भाग निकला। उसका दिल दहाड़ रहा था, पर वीडियो उसके पास था — अब सच सामने आने को था।

अगले दिन थाने में उसने रूही को वीडियो दिखाई। रूही ने कांपती उंगलियों से एक-एक व्यक्ति की पहचान की और इशारों में बताया कि वे वही लोग थे जिन्होंने माया को मारा।

अयान ने ठाना कि वह इस बार सबूतों के साथ पूरी लड़ाई लड़ेगा। कोर्ट में यह वीडियो उसकी सबसे बड़ी ताकत होगी।

लेकिन वह जानता था, ये लड़ाई आसान नहीं होगी। विक्रांत और उसके लोगों के पास शहर की हर ताकत थी। अब सवाल था — क्या वह और रूही इस साज़िश से बाहर निकल पाएंगे?

बारिश की बूँदें जैसे ही जमीन से टकराईं, अयान को एहसास हुआ कि वक्त उसके खिलाफ दौड़ रहा है। माया के द्वारा छिपाई गई वीडियो उसकी सबसे बड़ी जीत भी हो सकती थी और सबसे बड़ा खतरा भी। थाने में बैठे हुए जब उसने वीडियो की एक-एक क्लिप दोबारा देखी, तब उसके चेहरे पर एक गहरी चिंता की रेखा उभर आई। वीडियो में दिख रहे चेहरों में एक चेहरा ऐसा भी था जिसे देख वह स्तब्ध रह गया—डिप्टी कमिश्नर विजय रस्तोगी। वही विजय जो अब तक पूरे केस में उसका सीनियर, मार्गदर्शक और मित्र था।

अयान को यकीन करना मुश्किल हो रहा था कि इतने बड़े स्तर की साज़िश उसके अपने विभाग के भीतर तक फैली हुई थी। लेकिन अब भ्रम की कोई गुंजाइश नहीं थी। विजय रस्तोगी की एक रिकॉर्डिंग में साफ-साफ सुना जा सकता था—”इस लड़की को चुप कराना ज़रूरी है। माया बहुत दूर तक पहुंच गई है। अगर ये वीडियो सामने आ गया, तो सिर्फ विक्रांत ही नहीं, हम सब डूब जाएंगे।”

अयान ने गहरी सांस ली। उसकी आंखों में जंग का इरादा अब और पक्का हो गया था। उसने वीडियो की कई कॉपी बनाई, एक अपने फोन में, दूसरी एक पेनड्राइव में जो उसने अपनी जुराब के नीचे छिपाई और तीसरी सीधे नवीन को दी, जिसे उसने शहर से बाहर सुरक्षित ठिकाने पर भेजा।

रूही अब धीरे-धीरे बोलना सीख रही थी। अयान के साथ बिताए हुए दिनों में उसने कुछ शब्द कहना शुरू किया था, जैसे “माया दीदी”, “डर”, “रात”, “दरवाज़ा बंद करो”—ये छोटे शब्द उसकी बड़ी कहानी के संकेत थे। अयान ने एक मनोवैज्ञानिक की मदद ली, जो धीरे-धीरे रूही के साथ संवाद स्थापित कर रही थी।

मगर जब अयान थाने लौटा तो माहौल बदला हुआ था। रस्तोगी ने उसे अपने केबिन में बुलाया, चेहरा सख्त, आंखों में एक बनावटी चिंता। “अयान,” उसने कहा, “हमें सूचना मिली है कि तुमने कुछ संदिग्ध वीडियो हासिल किए हैं। क्या ये सच है?”

अयान ने भीतर ही भीतर खुद को मजबूत किया। “सर, एक बच्ची की जान को खतरा है। जो कुछ भी मैंने हासिल किया है, वो सिर्फ उसकी और माया की सुरक्षा के लिए है।”

रस्तोगी ने मुस्कुराते हुए सिर हिलाया। “हमें भी उसकी सुरक्षा की चिंता है। वीडियो मेरे पास जमा कर दो, हम सब देखेंगे।”

अयान जानता था कि अगर उसने वीडियो दे दिया, तो वो सबूत हमेशा के लिए गायब हो जाएगा। उसने बहाने से बात टाल दी और झूठ बोला कि वो वीडियो अभी नवीन के पास है। रस्तोगी का चेहरा कुछ पलों के लिए सख्त हो गया, फिर वह बोला, “अच्छा… ठीक है। मगर हम उम्मीद करते हैं कि तुम विभाग के नियमों का पालन करोगे।”

अयान को समझ आ गया कि अब उसके हर कदम पर नजर रखी जा रही है। उसने उसी रात एक पत्रकार से संपर्क किया—नीलिमा शर्मा, जो माया की करीबी थी और भ्रष्टाचार के मामलों में बेबाकी से लिखती थी। उसे वीडियो की एक कॉपी दी और कहा, “अगर कुछ हो जाए, तो इसे सार्वजनिक कर देना।”

अगले दिन सुबह जब अयान थाने पहुंचा तो वहां एक अजीब-सा सन्नाटा था। रूही को थाने लाया गया था एक फॉर्मल बयान के लिए, लेकिन जब अयान के केबिन में पहुंचा तो वहां कुर्सी खाली थी।

“रूही कहां है?” उसने चिल्लाकर पूछा।

एक कांस्टेबल ने डरते-डरते कहा, “सर… किसी ने उसे लेकर चले गए। कह रहे थे कि रस्तोगी साहब का आदेश है…”

अयान का गुस्सा आसमान छू गया। उसका मन किया कि सब तोड़-फोड़ दे। वह तुरंत गाड़ी लेकर रवाना हुआ—उसे पता था कि अगर रूही एक बार विक्रांत के हाथ लग गई, तो वो कभी नहीं बचेगी।

उसने पुराने कारखाने की तरफ रुख किया, जहां विक्रांत अक्सर अपने कामकाज के लिए आता था। कारखाने के बाहर एक काली SUV खड़ी थी। गेट अंदर से बंद था। अयान ने दीवार कूदकर भीतर झांका।

एक कोने में रूही बंधी हुई थी, और सामने खड़ा था विक्रांत—हाथ में एक चाकू, मुस्कुराता हुआ।

“इंस्पेक्टर साहब,” वह बोला, “आपको बहुत शौक है हीरो बनने का। मगर हर हीरो का एक आखिरी सीन होता है।”

अयान ने पिस्तौल निकाली, मगर तभी पीछे से दो लोग आ गए और उसे पकड़ लिया। पिस्तौल गिर गई।

विक्रांत पास आया और धीरे से बोला, “वीडियो कहां है?”

अयान ने आंखों में देखते हुए कहा, “तू कितना भी कोशिश कर ले, अब सच्चाई सामने आकर ही रहेगी।”

विक्रांत ने गुस्से में एक तमाचा मारा, लेकिन तभी एक तेज़ सायरन की आवाज़ आई।

बाहर से पुलिस की दो गाड़ियां आईं। नवीन, नीलिमा और कुछ पत्रकार भी थे। अयान ने मुस्कराकर देखा—नीलिमा ने लाइव स्ट्रीम चालू कर दिया था।

विक्रांत ने जैसे ही भागने की कोशिश की, नवीन ने उसे काबू में कर लिया।

रूही को छुड़ाया गया। उसकी आंखों में भय था, मगर आज पहली बार वह बोली—“धन्यवाद।”

अयान ने आंखें बंद कर लंबी सांस ली। एक लड़ाई खत्म हुई थी, लेकिन कहानी अभी बाकी थी।

पराजय का खौफ साफ दिख रहा था, लेकिन अयान जानता था कि यह सिर्फ परत का एक सिरा है। असली खेल तो उसके पीछे छिपे चेहरे खेल रहे थे—वो चेहरे जो अब भी खुलेआम सिस्टम में सांस ले रहे थे, फैसले ले रहे थे।

रात के करीब दो बजे, अयान ने थाने के लॉकअप में जाकर विक्रांत से अकेले में मिलने की इजाज़त ली। अंधेरे कमरे में एक बल्ब झूल रहा था, उसकी पीली रोशनी विक्रांत के चेहरे को और भी ज्यादा खौफनाक बना रही थी।

“अब बोल, तुझे किसने संरक्षण दिया? माया की हत्या के पीछे सिर्फ तू नहीं था,” अयान की आवाज़ सख्त थी।

विक्रांत ने एक फीकी हँसी हँसी, “तू सच चाहता है, इंस्पेक्टर? कभी-कभी सच्चाई इतनी गंदी होती है कि आदमी खुद को आईने में देखने से डरता है।”

“नाम ले,” अयान ने कुर्सी पर बैठते हुए कहा।

विक्रांत ने धीरे-धीरे सिर उठाया। “तू नहीं संभाल पाएगा वो नाम… विजय रस्तोगी बस मोहरा था। असली ताकत तो मंत्री अश्विन ठाकुर है।”

यह नाम सुनते ही अयान का दिमाग सन्न हो गया। अश्विन ठाकुर—राज्य का गृह मंत्री, सिस्टम का सबसे ताकतवर शख्स।

“उसने ही माया को चुप करवाने का आदेश दिया था। वो लड़की बहुत कुछ जान गई थी—भूमि घोटाला, अवैध निर्माण, ट्रांसफर पोस्टिंग माफिया। और उसकी रिपोर्ट… अगर वो बाहर आ जाती, तो कई लोग नप जाते,” विक्रांत ने ठहाका लगाया।

अयान उस रात सो नहीं सका। एक तरफ रूही की सुरक्षा, दूसरी तरफ नीलिमा पर भी खतरा मंडरा रहा था। वीडियो की खबर अब धीरे-धीरे मीडिया में फैलने लगी थी, लेकिन ठाकुर की सत्ता इतनी मजबूत थी कि कोई उसे सीधे नहीं छू पा रहा था।

अगली सुबह अयान मुख्यमंत्री से सीधे मिलने का फैसला करता है। कड़ी सुरक्षा के बीच जब वह सचिवालय पहुंचा, तो कई लोगों ने उसे रोका, मगर जब उसने सीएम को एक मिनट का वीडियो क्लिप दिखाया—जिसमें रस्तोगी और ठाकुर की बातचीत का हिस्सा था—तब मुख्यमंत्री ने तुरंत उसे अंदर बुला लिया।

मुख्यमंत्री ने गुस्से में मेज पर हाथ मारा, “अगर ये सच है, तो पूरा सिस्टम सड़ चुका है।”

“सर, मेरे पास पूरा वीडियो है। मैं चाहता हूं कि एक स्वतंत्र जांच बिठाई जाए, जिसमें सीबीआई या विशेष अदालत की निगरानी हो। वरना ये मामला हमेशा के लिए दबा दिया जाएगा,” अयान ने दृढ़ता से कहा।

सीएम ने आदेश दिया कि अयान की सुरक्षा बढ़ाई जाए और विशेष जांच टीम गठित की जाए। लेकिन सीएम ने एक चेतावनी भी दी—“अयान, अब तुम दुश्मनों के निशाने पर हो। ये लड़ाई लंबी है। हर कदम फूंक-फूंक कर रखना।”

उसी शाम अयान जब थाने लौटा, तो उसे सूचना मिली कि नीलिमा की गाड़ी पर हमला हुआ है। किस्मत से वह बच गई, लेकिन उसे सिर पर गंभीर चोट आई थी। अस्पताल में भर्ती नीलिमा ने अयान का हाथ पकड़ा और कहा, “जो भी हो, ये रिपोर्ट प्रकाशित होनी चाहिए… मैं चुप नहीं रहूँगी।”

रात के अंधेरे में अयान ने फिर से वीडियो क्लिप्स, दस्तावेज, माया की पुरानी डायरी और कॉल रिकॉर्ड्स की मदद से केस की फाइल तैयार की। उसने महसूस किया कि यह सिर्फ कानून की लड़ाई नहीं थी—यह एक ऐसी आत्मा की आवाज़ थी जो मरी नहीं थी, जो इंसाफ की मांग कर रही थी।

रूही अब नर्सिंग होम में थी, एक गुप्त ठिकाने पर, जहां मनोवैज्ञानिकों की मदद से उसका इलाज चल रहा था। धीरे-धीरे उसने माया के साथ बिताए हुए आखिरी दिनों की बातें बतानी शुरू कीं—कैसे माया रात-रात भर फाइलों में गुम रहती थी, कैसे एक रात किसी ने दरवाज़ा तोड़ने की कोशिश की थी, और कैसे माया ने उससे कहा था—“अगर मुझे कुछ हो जाए, तो मेरी फाइल अयान तक पहुँचा देना।”

रूही की बातों ने माया के बलिदान को और स्पष्ट कर दिया।

अगले दिन अदालत में विशेष याचिका दायर की गई। मीडिया का दबाव बढ़ने लगा था। टीवी डिबेट्स में माया का नाम फिर से गूंजने लगा। लोग पूछने लगे—कौन थी वो लड़की जो सत्ता से टकरा गई?

अयान को समझ आ गया कि अब निर्णायक समय आ गया है। या तो वो सब खो देगा, या सब जीत जाएगा।

सुनवाई की तारीख तय हुई—और उससे ठीक एक रात पहले, अयान की गाड़ी के ब्रेक फेल कर दिए गए।

वो किसी तरह जान बचाकर अस्पताल पहुंचा। लेकिन उसके चेहरे पर भय नहीं, बल्कि एक और अधिक सख्ती थी। उसकी आंखें जैसे कह रही थीं—अब तू चाहे कुछ भी कर ले, सच सामने आएगा।

अस्पताल के बिस्तर पर लेटे-लेटे उसने नवीन को बुलाया, पेनड्राइव सौंपी और कहा—“कल कोर्ट में ये चलाना है। चाहे कुछ हो जाए।”

नवीन ने सिर हिलाया।

अयान की आंखें बंद होने लगीं। उसके मन में माया की मुस्कराती तस्वीर उभर आई।

उसने धीरे से बुदबुदाया—“माया, अब बहुत हुआ। अब तुम्हारे खून की हर बूँद का हिसाब होगा।”

 

कोर्टरूम में असाधारण सन्नाटा पसरा हुआ था। मीडिया कैमरे, सुरक्षा बल, वकीलों की फुसफुसाहटें—सब एक-दूसरे में गुँथी हुई थीं, लेकिन हर किसी की नजरें जज की कुर्सी के सामने खड़े नवीन पर टिकी थीं।

नवीन ने अपनी आँखों में दृढ़ विश्वास भरते हुए पेनड्राइव को कोर्ट के रजिस्ट्रार को सौंपा। फॉरेंसिक जांच पहले ही हो चुकी थी—वीडियो असली था।

वीडियो चलते ही पूरे कोर्ट में सन्नाटा छा गया। उसमें दिख रहा था:

मंत्री अश्विन ठाकुर—एक आलीशान बंगले के ड्राइंग रूम में बैठा—विजय रस्तोगी को धमका रहा है:
“माया को चुप करवाना जरूरी है। अगर रिपोर्ट बाहर आ गई, तो सब फंस जाएंगे। तुझे जो करना हो कर।”

फिर कैमरा कट होता है—और कुछ सेकंड की धुंधली रिकॉर्डिंग में माया की चीख सुनाई देती है, एक पुरुष आवाज—“तू जानती थी न, तूने क्यों रिपोर्ट बनाई?”
और फिर गोली चलने की आवाज।

कोर्ट के हर कोने में सिहरन दौड़ गई। जज ने हथौड़ा बजाया—“Order! Order!”

वकील ने आगे बढ़कर कहा—“माई लॉर्ड, अब इस वीडियो के सामने किसी गवाही की जरूरत नहीं है। आरोपी विक्रांत ने स्वीकार किया है कि उसने मंत्री के आदेश पर हत्या की योजना बनाई। यह हत्या मात्र एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि लोकतंत्र के मूल्यों की हत्या है।”

ठाकुर कोर्ट में मौजूद नहीं था। गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिया गया था, लेकिन वह भूमिगत हो गया था। अयान अस्पताल के बेड पर था, लेकिन टीवी पर सब कुछ देख रहा था। जब कोर्ट ने कहा—अश्विन ठाकुर, यदि सात दिन में पेश नहीं हुए, तो उन्हें भगोड़ा घोषित किया जाएगा,” तो उसके होंठों पर एक संतोष की मुस्कान आ गई।

नवीन बाहर आया तो पत्रकारों ने घेर लिया—“क्या ये न्याय है?”
उसने शांत स्वर में कहा—“न्याय तब होता है जब अपराधी सज़ा पाए। हम आधे रास्ते पर हैं। बाक़ी रास्ता जनता को तय करना है।”

विक्रांत को कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई। रस्तोगी को भी साजिश में शामिल होने के लिए दस साल की कैद हुई।

रूही ने धीरे-धीरे सामान्य जीवन में लौटना शुरू किया। उसकी मुस्कान में अब एक अनकही दृढ़ता थी। उसने पत्रकारिता पढ़ने का फैसला किया—माया की तरह।

नीलिमा ने अपनी रिपोर्ट को प्रकाशित किया, जो अब ‘माया फाइल्स’ के नाम से प्रसिद्ध हो चुकी थी। वह रिपोर्ट पढ़कर पूरे देश में हड़कंप मच गया। अवैध ज़मीन घोटाले से लेकर ट्रांसफर पोस्टिंग रैकेट तक—हर बात विस्तार से बताई गई थी।

कुछ ही हफ्तों में अश्विन ठाकुर को नेपाल बॉर्डर से पकड़ा गया। सीबीआई ने उसे भारत लाकर कोर्ट में पेश किया, और उसके राजनीतिक करियर का अंत हो गया।

जब वह कोर्ट में झुका सिर लेकर खड़ा था, तभी पीछे की बेंच पर बैठा अयान अपनी बैसाखी से उठ खड़ा हुआ। उसकी आंखों में लपटें थीं। ठाकुर ने उसकी ओर देखा और पलकें झुका लीं।

जज ने कहा—“देश के एक मंत्री द्वारा ऐसा अपराध लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा कलंक है। अदालत आपको उम्रकैद की सजा देती है। और यह संदेश देती है कि सत्ता चाहे कितनी भी ऊँची हो, कानून के ऊपर नहीं हो सकती।”

 

कुछ महीने बाद

एक पुरानी बिल्डिंग की छत पर अयान, नीलिमा और रूही चाय पी रहे थे। सामने सूरज डूब रहा था, आसमान सुनहरी रौशनी में भीगा था।

नीलिमा ने मुस्कुराते हुए कहा—“कभी सोचा था कि ये लड़ाई यहाँ तक लाएगी?”

अयान ने चुपचाप चाय का एक घूँट लिया और कहा—“माया की मौत सिर्फ एक हादसा नहीं थी, वो एक मशाल थी। और हम सब उसकी लौ में तपकर नए बने हैं।”

रूही ने आहिस्ता से कहा—“दीदी अब भी मुझे सपने में आती हैं। हँसते हुए कहती हैं—‘अयान को मेरा शुक्रिया कहना।’”

अयान की आंखें नम हो गईं, पर होंठों पर मुस्कान थी।

उसने आसमान की ओर देखा, जैसे कोई अदृश्य ताकत से संवाद कर रहा हो—
“माया, तुम्हारी खामोश आवाज़ अब पूरी दुनिया ने सुन ली है। अब कोई खामोश गवाह नहीं रहेगा।”

समाप्त

WhatsApp-Image-2025-07-29-at-6.57.46-PM.jpeg

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *