नरेश चतुर्वेदी
पहला भाग: उधारी के सूट से शुरू हुआ रोमांस
रमेश कुमार चौबे एक साधारण लेकिन महत्वाकांक्षी युवक था, जो इलाहाबाद की एक पुरानी किराये की कोठी में रहता था जहाँ दीवारों से पपड़ी गिरती थी और छत से कबूतर। लेकिन उसके सपनों की कोई सीमा नहीं थी। वह हर इतवार को बालों में नारियल तेल लगाकर आइने के सामने “शाहरुख खान स्टाइल” में बाल झटकता और सोचता, “एक दिन मैं भी शादी करूंगा… पर किस्तों में।”
असल में, रमेश का मानना था कि जीवन में कुछ भी कैश में नहीं लेना चाहिए – चाहे वो मोबाइल हो, फ्रिज हो, या पत्नी। हर चीज़ की EMI होनी चाहिए ताकि एक एक्साइटमेंट बना रहे।
रोज़ सुबह वो अपने ऑफिस, ‘सिंघानिया स्टील्स लिमिटेड’, साइकिल से जाता था। और हाँ, उसकी साइकिल भी उधारी पर ली गई थी – पंकज सायकिल स्टोर्स से तीन साल की किस्तों में।
उसका सबसे अच्छा दोस्त गोपाल था – जो हमेशा गंदा कुर्ता पहनता और हर बात पर ठहाके लगाता। एक दिन गोपाल बोला, “अबे रमेश, तेरी जिंदगी में रोमांस नहीं है। तू शादी क्यों नहीं करता?”
रमेश ने गम्भीरता से जवाब दिया, “शादी करनी है भाई, लेकिन पहले सूट खरीदना है, फिर जूते, फिर घोड़ा। सब किस्तों में चलेगा।”
गोपाल ने आँखें घुमाकर कहा, “तेरा दिमाग किस्तों में ही चलता है।”
खैर, किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था। एक दिन रमेश अपने साइकिल पर ऑफिस जा रहा था, तभी उसने सामने से आती हुई एक लड़की को देखा – गुलाबी सलवार सूट में, बाल हवा में उड़ते हुए, और हाथ में टिफिन। अचानक रमेश की साइकिल का ब्रेक फेल हो गया और दोनों की टक्कर हो गई। लड़की ज़मीन पर, टिफिन हवा में, और रमेश उसके दिल में।
“माफ़ कीजिए… ब्रेक नहीं लग पाए,” रमेश बोला।
“शुक्र है ब्रेक नहीं लग पाए, वरना आपसे मुलाकात कैसे होती?” लड़की ने मुस्कराकर कहा।
रमेश का दिल एक ही पल में चार किश्तों में बँट गया – पसंद, मोहब्बत, सपना और शादी।
लड़की का नाम था सावित्री – पास की ही एक स्कूल में शिक्षिका। और अगले हफ्ते रमेश ने अपनी साइकिल को पॉलिश करवा लिया, बालों में परफ्यूम लगाया (क्योंकि डियो महंगा था), और सावित्री से मिलने के लिए बहाना ढूंढने लगा।
फिर आया श्रीमती बत्रा का किराए का हिसाब – रमेश तीन महीने से किराया नहीं दे रहा था। उन्होंने धमकी दी, “इस बार किराया नहीं मिला तो सामान बाहर।”
रमेश ने गोपाल को बुलाया, “भाई, अब क्या करें?”
गोपाल ने ज्ञान दिया, “शादी कर ले। फिर कह देना कि बीवी आई है, खर्चा बढ़ गया है। बत्रा आंटी पिघल जाएंगी।”
“और बीवी कहाँ से लाऊँ?”
“उधारी में ले ले।”
रमेश को एक आईडिया सूझा – और वहीं से शुरू हुआ एक ऐसा प्लान जो पूरे मोहल्ले में हंसी का भूचाल ले आया।
भाग 2: नकली बीवी, असली आफ़त
रमेश कुमार चौबे ने गोपाल की बात को दिल से लगा लिया। गोपाल का सुझाव था सीधा—“अगर किराया नहीं दे सकता तो घर में एक बीवी ले आ। फिर बहाना बना देना कि शादी हुई है, खर्चा बढ़ गया है। बत्रा आंटी थोड़ी दया दिखाएंगी।”
रमेश ने गंभीरता से सिर हिलाया, जैसे कोई वैज्ञानिक अपने लैब में नई थ्योरी पर मोहर लगा रहा हो। लेकिन फिर सवाल आया—”बीवी कहाँ से लाऊँ?”
गोपाल ने मुस्कराते हुए जवाब दिया, “ड्रामा स्कूल चलते हैं। वहाँ एक से एक कलाकार मिलते हैं। किसी को कुछ पैसे का लालच दे दे, बीवी बनने के लिए मना ले।”
अगले ही दिन दोनों पहुँचे ‘सुषमा थियेटर क्लासेस’। वहाँ रंग-बिरंगे कपड़ों में युवा, अधेड़ और बूढ़े सब अभिनय में मग्न थे। मंच पर एक महिला ज़ोर से चिल्ला रही थी—“शंभू! तू वापस लौट आ! मुझे छोड़ मत जा!” और सामने एक आदमी ज़मीन पर गिरा हुआ सिसक रहा था।
रमेश और गोपाल एक कोने में खड़े होकर सब देख रहे थे। तभी उनकी नजर एक लड़की पर पड़ी—सादा सलवार सूट में, बिना मेकअप, लेकिन आँखों में गज़ब की आत्मा थी। वह चुपचाप बैठी अपनी स्क्रिप्ट पढ़ रही थी।
गोपाल ने धीरे से रमेश की कोहनी मारी—“बस यही। यही बन सकती है तेरी उधारी वाली बीवी।”
रमेश उसके पास गया, थोड़ा हकलाते हुए बोला, “नमस्ते… मुझे एक छोटा सा एक्ट करवाना है… थोड़ा निजी है… मतलब… शादी का सीन है… आप… बीवी बनेंगी?”
लड़की ने सर उठाकर उसे देखा, फिर स्क्रिप्ट बंद की और मुस्कराई, “पैसे कितने मिलेंगे?”
रमेश ने जेब टटोली, फिर बोला, “पहले हफ्ते सौ रुपये। फिर… महीने के अंत में 250 और साथ में समोसे।”
लड़की हँस पड़ी। “ठीक है। नाम मेरा रीना है, पर तुम मुझे सावित्री बुला सकते हो। वैसे भी किरदार का नाम तो सावित्री ही होगा, है ना?”
रमेश की आँखें चमक गईं। उसे लगा जैसे कोई फिल्मी हीरो अपनी हिरोइन ढूंढ चुका हो।
अगले दिन प्लान के मुताबिक रीना उर्फ सावित्री, सुबह 9 बजे बड़ी सी अटैची लेकर रमेश के कमरे पर आई। बालों में गजरा, माथे पर सिंदूर (ड्रामा स्कूल से उधार लिया गया), और हाथ में चूड़ियाँ खनक रही थीं।
ठीक उसी समय श्रीमती बत्रा बालकनी में खड़ी थी। उन्होंने देखा और चश्मा साफ किया। “अरे रमेश जी! ये कौन?”
रमेश ने गर्दन गर्व से तानी, “मेरी धर्मपत्नी। शादी हुई है पिछले हफ्ते। गाँव में। अभी लाया हूँ इलाहाबाद में सेटल करने।”
श्रीमती बत्रा की भौंहें सिकुड़ गईं। “पर आपने तो बताया ही नहीं!”
“आंटी जी, अचानक हुआ। लॉकडाउन में रिश्तेदार कम, खर्चा ज़्यादा। सोचा सादगी से कर लें। अब तो घर में खर्चा डबल हो गया है, समझिएगा न?”
बत्रा आंटी ने एक लंबी “हूंफ” भरी और वापस अंदर चली गईं।
रीना ने दरवाज़ा बंद किया और ज़ोर से हँस पड़ी—“तुम तो बड़े झूठे हो!”
रमेश थोड़ा झेंप गया। “नाटक ही तो है।”
“तो नाटक के पैसे भी बढ़ाओ। किराया भी देना है, और अब मैं यहाँ रहूँगी तो मेकअप, समोसे, चाय सब खर्च बढ़ेगा।”
रमेश को लगा कि किस्तों वाली बीवी वाकई महँगी पड़ रही है।
रात को गोपाल भी आ पहुँचा—“कैसी लग रही है तेरी बीवी?”
रीना ने चाय थमाते हुए कहा, “वैसे झूठा है, लेकिन प्यारा है। और ये तुम्हारा दोस्त… बिल्कुल मसखरा।”
तीनों ठहाके लगाकर हँसने लगे। बाहर से देखने पर वो कमाल की जोड़ी लगते थे। मोहल्ले में अफ़वाह फैल गई कि रमेश कुमार अब विवाहित हैं। टीटी शर्मा, जो मोहल्ले के जासूस थे, हर किसी से पूछते फिरते—“सुना है रमेश की बीवी आई है। कोई फोटो देखा तुमने?”
अगली आफ़त तब आई जब हरिहरलाल, रमेश के बापू, अचानक दरवाज़े पर प्रकट हो गए—खादी के कुर्ते में, हाथ में छड़ी, और चेहरे पर गुस्सा।
“कमीने! तूने शादी कर ली और हमें बुलाया भी नहीं?”
रमेश के मुँह से चाय का घूंट बाहर आ गया। रीना भी चौक गई। “ये असली बाप हैं?”
“हाँ। और अब तू असली बहू है। बस, भगवान से यही दुआ कि बाऊजी को दिल का दौरा न पड़े।”
हरिहरलाल ने रीना को निहारा। “बहू, चरण स्पर्श करो।”
रीना ने तुरंत नाटकीय अंदाज़ में पैर छुए और मुस्कराकर बोली, “पिताजी, आशीर्वाद दीजिए।”
हरिहरलाल पिघल गए। “अरे वाह! आजकल की लड़कियाँ कहाँ ऐसा आदर करती हैं! रमेश, तुझमें कुछ तो अक्ल बची है।”
रमेश ने मन में सोचा, “सारी अक्ल तो किस्तों में चली गई।”
और इस तरह एक नकली शादी अब असली ड्रामे में बदलने लगी। बापू ठहर गए घर पर, सावित्री को रोज़ नाश्ता बनाना पड़ता, बत्रा आंटी ने अपनी बेटी के लिए सावित्री से शादी की रेसिपी माँग ली, और मोहल्ले में अब रमेश को ‘गृहस्थ रमेश’ कहा जाने लगा।
पर ड्रामा यहीं नहीं रुका। एक दिन रीना ने रमेश से कहा, “मुझे एक ऑडिशन के लिए मुंबई जाना है। अगले हफ्ते। फिर तुम्हारी नकली बीवी चली जाएगी।”
रमेश चुप हो गया। उसे नहीं पता था कि इस नकली रिश्ते में कहीं न कहीं कुछ असली-सा हो गया था। सावित्री की हँसी, उसके झूठे गुस्से, और चाय बनाते हुए उसकी बातें अब उसे पसंद आने लगी थीं।
क्या वह इस नकली शादी को सच्चा बना पाएगा?
क्या हरिहरलाल को सच्चाई पता चलेगी?
और सबसे बड़ा सवाल – बत्रा आंटी किराया माँगने कब फिर लौटेंगी?
भाग 3: मोहब्बत की मासिक किश्त
रमेश को अब तक समझ नहीं आया था कि ज़िंदगी उसके साथ मज़ाक कर रही है या कोई स्क्रिप्ट राइटर बैकग्राउंड में बैठा उसके जीवन का धारावाहिक चला रहा है। नकली बीवी लेकर किराया बचाने का जो प्लान था, वो अब बापू के आशीर्वाद और पड़ोसियों की बधाइयों के बीच उलझकर एक भावनात्मक सीरियल बनता जा रहा था।
रीना, जिसे उसने सावित्री बनाकर अपने घर लाया था, अब रसोई में नाश्ता बना रही थी, बापू अख़बार पढ़ रहे थे और गोपाल पिछवाड़े में बैठा बिन बुलाए समोसे खा रहा था।
“रमेश!” रीना ने रसोई से आवाज़ लगाई, “तुम्हारे बापू को पराठे ज्यादा पसंद हैं या इडली?”
रमेश ने चौंक कर बापू की ओर देखा। बापू ने बिना निगाह उठाए कहा, “पराठा। लेकिन उसमें पनीर भरवाया करो, अब बहू घर आई है तो स्वाद में भी इज़ाफा होना चाहिए।”
गोपाल ने चुटकी ली, “बहू क्या आई, चवन्नी में लॉटरी लग गई!”
रमेश ने धीरे से गोपाल के कान में कहा, “अबे चुप कर। तू नहीं समझेगा, यार। मुझे लगता है… मुझे रीना से सच में प्यार होने लगा है।”
गोपाल की हँसी गायब हो गई। उसने रमेश को गौर से देखा, फिर कहा, “अबे ये तो ट्रेजेडी है। तू जिससे किस्तों पर बीवी बना के लाया, उससे अब दिल की किश्तें बाँट रहा है?”
रमेश ने सिर झुका लिया। “क्या करूँ? वो जब चाय बनाते हुए गुनगुनाती है, तो मुझे लगता है कि दुनिया की सारी परेशानियाँ उसकी आवाज़ में पिघल जाती हैं। जब वो बापू से बहस करती है, तो लगता है कोई फिल्म देख रहा हूँ। और जब रात को वो सोने से पहले ‘गुडनाइट’ कहती है, तो दिल करता है कि सुबह कभी न हो।”
गोपाल चुप हो गया। फिर बोला, “तो बता उसे। बता दे कि तू उसे नकली नहीं, असली बीवी बनाना चाहता है।”
रमेश ने सिर हिलाया, “लेकिन वो अगले हफ्ते मुंबई जा रही है। ऑडिशन है उसका। उसका सपना है एक्ट्रेस बनना। मैं कैसे रोकूँ उसे?”
उस रात रमेश अपने छत पर बैठा चाँद की तरफ़ देखता रहा, जैसे चाँद कोई किस्त में खरीदा हुआ आइटम हो और अब ईएमआई भरनी बाकी हो।
अगली सुबह रीना ने एक बैग पैक किया और बोली, “मैं डांस क्लास जा रही हूँ। शाम तक लौटूंगी।”
रमेश ने हिम्मत कर पूछ लिया, “रीना… क्या तुम… क्या कभी…”
“क्या मैं क्या?”
“क्या तुमने कभी सोचा है कि हम दोनों… मतलब… अगर ये शादी असली होती तो?”
रीना ने एक पल चुप रहकर रमेश को देखा, फिर हँसते हुए बोली, “असली शादी? तुम्हारे साथ?”
रमेश थोड़ा सकुचा गया, “हाँ… मतलब… क्यों नहीं?”
रीना अब गंभीर हो गई। “रमेश, मैंने एक्टिंग इसलिए चुनी क्योंकि मुझे आज़ादी चाहिए थी। किरदारों में खुद को खोजना अच्छा लगता है, लेकिन असली ज़िंदगी में मैं किसी का किरदार नहीं बनना चाहती।”
“लेकिन… अगर मैं कहूँ कि ये किरदार तुम्हारे लिए ही लिखा गया है?”
“तुम्हें मुझसे मोहब्बत हो गई है?”
“हां।” रमेश ने पहली बार अपने मन की ईएमआई चुका दी।
रीना ने नजरें झुका लीं। “रमेश, मैं जानती थी कि ऐसा होगा। लेकिन मैं यहाँ इमोशन कमाने नहीं, एक्सपीरियंस कमाने आई थी।”
रमेश चुप हो गया।
शाम को रीना लौट कर आई तो देखा कि रमेश ने उसके लिए आलू के पराठे बनाए हैं। पहली बार रसोई से धुआं नहीं, प्यार की खुशबू उठ रही थी। बापू सो रहे थे, गोपाल घर नहीं आया था, और घर में एक अजीब सी खामोशी थी।
रीना ने पराठा खाया, फिर कहा, “तुम्हें पता है, रमेश, मैं पहली बार सोच रही हूँ कि अगर मैं कहीं टिकती, तो शायद तुम्हारे जैसे किसी के साथ।”
“तो मत जाओ।”
“जाना ज़रूरी है। लेकिन लौटकर आने का वादा करती हूँ।”
“सच?”
“सच। और अगर तुम तब भी अकेले रहोगे, तो अगली बार मैं किराए की नहीं, फुल-टाइम बीवी बनकर आऊंगी।”
रमेश मुस्करा दिया, जैसे उसकी ज़िंदगी की सबसे बड़ी ईएमआई माफ़ हो गई हो।
अगले दिन रीना चली गई। स्टेशन पर विदा करते हुए रमेश ने कुछ नहीं कहा। बस उसका बैग पकड़े खड़ा रहा। ट्रेन चली, और रीना ने खिड़की से हाथ हिलाया।
“रुको,” रमेश चिल्लाया।
ट्रेन धीमी हो चुकी थी। रीना ने झांककर पूछा, “क्या हुआ?”
रमेश ने हँसते हुए कहा, “समोसे तो लेती जाओ!”
रीना हँस पड़ी। “मुंबई में ये नहीं मिलेंगे!”
रमेश की ज़िंदगी फिर से अकेली हो गई, लेकिन अब वो अकेलापन मीठा था। हर दिन वो रीना के मैसेज का इंतज़ार करता, उसकी तस्वीरें देखता, और रोज़ शाम को पराठा बनाकर खुद को समझाता—”फुल टाइम बीवी आएगी… थोड़े दिन की बात है।”
उधर मोहल्ले में अफ़वाहें थीं कि सावित्री जी मायके चली गई हैं। बत्रा आंटी रोज़ पूछतीं, “बहू कब लौटेगी?”
रमेश मुस्कराकर कहता, “जल्द ही। इस बार पनीर पराठे बनाकर लाएगी।”
और तब तक, रमेश अपने सपनों की मासिक किश्तें भरता रहा—रीना की यादों से, उसकी चूड़ियों की खनक से, और उस वादे से जो उसने ट्रेन की खिड़की से झांकते हुए किया था।
भाग 4: मोहल्ले में मिसेज़ सावित्री
रीना के जाने के बाद रमेश की ज़िंदगी में एक अजीब सी ख़ाली जगह बन गई थी, जैसे किसी सीरियल में अचानक लीड ऐक्ट्रेस छुट्टी पर चली गई हो और निर्माता को फिलर एपिसोड से काम चलाना पड़ रहा हो। कमरे में अब चाय की खुशबू नहीं रहती थी, बर्तन गंदे होकर भी नखरे नहीं करते थे, और सबसे बड़ी बात—रात को कोई ‘गुडनाइट’ कहकर लाइट बंद नहीं करता था।
गोपाल वापस आया और पहली बार रमेश के चेहरे पर उदासी देखी।
“अबे! तू तो सच में आशिक निकला।”
रमेश ने तकिए में मुँह छुपा लिया। “अबे ये सब तुम्हारी वजह से हुआ है। तूने ही कहा था बीवी ले आ, अब तू ही जा रीना को वापस ले आ।”
गोपाल ने कंधा थपथपाया, “जैसे किश्तों में मोबाइल आता है, वैसे किश्तों में ही मोहब्बत आती है। तू पहली किश्त चुका चुका है—दिल से इज़हार करके। अगली किस्त—रीना का लौटना।”
पर मोहल्ला, जैसा कि हर मोहल्ला होता है, चुप नहीं बैठा।
टीटी शर्मा, पड़ोस के स्वघोषित गुप्तचर, अब हर जगह घोषणा करते फिर रहे थे—
“कुछ तो गड़बड़ है। रमेश की बीवी मायके नहीं गई है, वो तो एक नाटक थी!”
“क्या बात कर रहे हैं शर्मा जी!”
“हाँ भई! मैंने खुद अपनी दूरबीन से देखा है, वो लड़की डेली एक्टिंग क्लास में जाती थी, कोई बहू नहीं थी वो!”
बत्रा आंटी को मौका मिल गया। तीन महीने के किराए की पुरानी फाइल खोली गई और वो सीधा रमेश के दरवाज़े पर पहुँच गईं।
धड़ धड़ धड़!
रमेश ने दरवाज़ा खोला, बाल बिखरे, आँखों के नीचे काले घेरे, और हाथ में प्याज की चटनी।
“हाँ आंटी?”
“अब कोई बहाना मत बनाना। बहू मायके गई है, या थिएटर में काम करती थी—जो भी हो, तीन महीने का किराया दे दो, वरना तुम्हारा तम्बू यहीं से उखाड़कर बाहर फेंक दूँगी!”
रमेश ने धीरे से कहा, “मैं एक हफ्ते में दे दूँगा, आंटी। मेरी बीवी… मतलब, रीना, काम पर गई है। ऑडिशन से अगर सेलेक्ट हो गई, तो एडवांस मिल जाएगा। वहीं से भेजेगी।”
बत्रा आंटी ने आँखें सिकोड़ कर देखा, जैसे एक्स-रे निकाल रही हों।
“देखो रमेश, हम भी पुराने किरायेदार हैं। तुम्हारे बापू से इज़्ज़त है, इसलिए अब तक बर्दाश्त किया है। लेकिन अब सब्र जवाब दे रहा है। बहू कब लौटेगी?”
“जल्द ही… अगले हफ्ते।”
“ठीक है। अगर बहू नहीं आई और किराया नहीं मिला, तो समझ लेना कि बिस्तर बाहर!”
रमेश ने सिर झुका लिया, लेकिन मन ही मन तय कर लिया कि अब कुछ करना पड़ेगा।
उसी दिन शाम को मोहल्ले की महिलाओं ने ‘श्रीमती सावित्री चौबे महिला मंडल’ नामक एक नया ग्रुप बनाया, जिसमें वॉट्सएप के ज़रिए सावित्री को जोड़ने की योजना बनी।
“कहाँ है बहू?”
“सावित्री की खट्टी-मीठी रेसिपीज़ चाहिए।”
“करवा चौथ की तैयारी शुरू हो गई है, बहू को बुलाओ!”
अब रमेश को समझ आया कि नकली बीवी असली ज़िम्मेदारियों के साथ आती है।
अगले दिन गोपाल ने नया सुझाव दिया, “रीना को बुलाओ वीडियो कॉल पर। मोहल्ले वालों को दिखाओ कि बीवी है, जिन्दा है, और पति से अब भी जुड़ी है।”
रमेश ने फ़ोन निकाला, रीना को वीडियो कॉल किया।
रीना एक स्टूडियो के बाहर खड़ी थी, बाल बिखरे, चेहरे पर थकावट, लेकिन मुस्कान वैसी ही।
“रमेश!”
“रीना… तुम्हारी बहुत याद आ रही है।”
“मुझे भी। कल रात मेरी पहली लाइन थी कैमरे के सामने। बस बोला – ‘साहब, आपका चाय!’ लेकिन डायरेक्टर ने कहा – फीलिंग्स दो!”
“तुम्हारे बिना तो मेरी चाय भी फीकी है।”
रीना हँसी, “क्या बात है! रोमांटिक होते जा रहे हो। क्या हुआ?”
रमेश ने सब बता दिया—बत्रा आंटी की धमकी, मोहल्ले की गुप्तचर मंडली, और महिला मंडल की माँग।
रीना ने गंभीर होकर कहा, “चलो एक काम करो—कल शाम 5 बजे मोहल्ले की औरतों को बुलाओ। मैं वीडियो कॉल से लाइव आऊंगी, करवा चौथ की रेसिपी भी बताऊंगी। उन्हें लगेगा मैं हूँ।”
अगले दिन रमेश ने अपने कमरे में पर्दा लगाया, लैपटॉप को स्टूल पर रखा, स्पीকার जोड़ा, और पूरे मोहल्ले की महिलाओं को आमंत्रित किया।
श्रीमती सावित्री लाइव!
“नमस्ते! मैं सावित्री चौबे, मुंबई से। आज मैं आपको बताऊँगी बिना घी की करारी करवा चौथ की कचौरी कैसे बनती है!”
और सच में, रीना का अभिनय इतना कमाल का था कि बत्रा आंटी ने कहते ही नहीं थकीं—
“वाह! बहू तो हीरे जैसी है! अब रमेश को छोड़ मत देना!”
रमेश की छाती गर्व से फूल गई।
एक घंटे तक महिलाएं ‘वाह बहू, क्या बात है’ कहती रहीं, और रीना ने एक-एक से बात की, हँसी, मुस्काई, और मोहल्ले में अपना वर्चस्व फिर से स्थापित कर लिया।
टीटी शर्मा को मिर्ची लगी। वो बोले, “ये वीडियो कॉल असली है या एक्टिंग?”
गोपाल बोला, “आप खुद देख लीजिए, शर्मा जी। बहू के पास जो प्यार है, वो स्क्रिप्ट से नहीं आता।”
शर्मा जी चुपचाप पानी पीकर वापस चले गए।
उसी रात रीना ने कहा, “रमेश… मुझे अब समझ में आ रहा है कि ज़िंदगी एक्टिंग से ज्यादा रीयल रिश्तों में बसती है।”
“तो तुम वापस आओगी?”
रीना मुस्कराई। “अगर मैं वापस आऊँ, तो इस बार बत्रा आंटी को किराया माफ करवा दूँ?”
“अगर तुम वापस आओ, तो बापू भी तुम्हारे लिए सब्ज़ी लाएँगे।”
और दोनों हँस पड़े।
रीना ने कैमरे की तरफ देखा, “मैं लौटूंगी। पर इस बार सिर्फ बीवी बनकर नहीं, तुम्हारे घर की ‘मालकिन’ बनकर।”
रमेश की आँखें भर आईं। उसके दिल में एक नई किश्त जमा हो चुकी थी—प्यार की।
भाग 5: वापसी की योजना और गोपाल का प्रेमपत्र
रमेश अब हर सुबह कुछ ज्यादा ही तैयार होकर ऑफिस जाने लगा था। पहले जहां बाल में तेल लगाकर किसी तरह ऑफिस पहुँच जाना उसकी आदत थी, अब वही रमेश बाल सेट करके, इत्र छिड़ककर और मुँह में पुदीना रखकर निकलता। कारण सिर्फ एक था—रीना की वीडियो कॉल। रोज़ सुबह ठीक 10 बजे रीना उसे फोन करती, पूछती – “चाय पी ली?”, “बापू ने पराठा खाया?”, और फिर कुछ प्यारी सी नोंकझोंक के बाद “मिस यू” कहकर कॉल काट देती।
गोपाल ने यह सब देखकर चुटकी ली—“तू अब ‘एमआई’ नहीं, ‘पीटीएम’ बन गया है—प्यार ट्रांसफर मॉडल।”
रमेश मुस्कराता और कहता, “भाई, ये वही रीना है जिसे मैंने ड्रामा स्कूल से किराए पर लाया था। और अब वो मेरी ज़िंदगी की स्क्रिप्ट बन गई है।”
इसी बीच मोहल्ले में सावित्री के नाम का डंका बजने लगा था। महिला मंडल में अब ‘सावित्री टिप्स’ नामक सेगमेंट चल रहा था, जिसमें रीना हर शुक्रवार को कुछ नया बताती। कभी ‘बिना गैस के बर्फी बनाना’, कभी ‘पुराने कुरते को स्टाइलिश ड्रेस बनाना’। रमेश के कमरे को अब ‘वीडियो कॉल स्टूडियो’ कहा जाने लगा था, और बत्रा आंटी का रवैया 180 डिग्री बदल चुका था।
एक दिन बत्रा आंटी खुद ही पराठा लेकर आईं।
“बेटा, ये बहू को दिखा देना वीडियो में। कहो कि मेरी तरफ़ से खास बनवाया है।”
रमेश चौंक गया, “आंटी, अब तो आप मुझे किराया भी याद नहीं दिलातीं?”
“अरे बेटा, जब बहू इतनी संस्कारी हो, तो किराया भी नेग बन जाता है!”
इधर गोपाल के जीवन में भी कुछ हलचल होने लगी थी।
एक दिन रमेश ने देखा कि गोपाल बालों में जेल लगाकर, नई कमीज पहनकर और हाथ में गुलाब लिए घर से निकला।
“अबे कहाँ जा रहा है? audition पे?”
गोपाल हँसा नहीं, शर्माया।
“नहीं यार, मोहल्ले की किराने वाली शालिनी दीदी की बहन आई है—नीलम। उससे मिलने जा रहा हूँ।”
रमेश ने आँखें चौड़ी कीं, “गोपाल तू भी…?”
“अबे क्या मैं सिर्फ हँसाने के लिए बना हूँ? दिल मेरे पास भी है। मैं भी चाहूँ किसी को जो मेरा टिफिन देखकर कहे—‘बहुत नमक है।’”
रमेश ने गले लगाकर कहा, “जा। और हाँ, पहली मुलाकात में ही शादी का प्लान मत बता देना। धीरे-धीरे, किश्तों में कर।”
गोपाल चला गया और शाम तक लौटा। चेहरा लाइट टावर की तरह चमक रहा था।
“क्या बात है गोपाल?”
“उसे हँसते हुए देखा… तो लगा दुनिया हँस रही है।”
रमेश ने ताली मारी, “तेरा नंबर भी लग गया!”
“और सुन, मैंने उसे एक चिट्ठी दी। प्यार भरी। तुझे पढ़नी है?”
“ज़रूर!”
गोपाल ने जेब से एक मुड़ी-तुड़ी चिट्ठी निकाली और पढ़ने लगा—
> “प्रिय नीलम,
तुम्हें देखकर पहली बार मुझे लगा कि जीवन सिर्फ बुलेट और भुजिया के बीच नहीं होता। उसमें मिठास भी हो सकती है।
मैं बहुत अमीर नहीं हूँ, पर तुम्हारे लिए हर हफ्ते बालों में परफ्यूम लगा सकता हूँ।
अगर तुम चाहो, तो हम साथ में आधे पकोड़े बाँट सकते हैं, और बाकी ज़िंदगी भी।
तुम्हारा,
गोपाल (अभी तक सिंगल लेकिन बहुत कोशिश कर रहा हूँ)”
रमेश हँसते-हँसते लोटपोट हो गया।
“भाई, तू तो रोमांस का रवींद्रनाथ टैगोर निकला!”
“बस दुआ कर, नीलम का जवाब ‘हाँ’ हो।”
उधर रीना ने एक दिन कॉल पर कहा, “रमेश, एक बात बतानी है।”
रमेश थोड़ा घबराया, “क्या?”
“डायरेक्टर ने कहा है कि मैं लीड रोल के लिए शॉर्टलिस्ट हुई हूँ। एक बड़ी वेब सीरीज़ के लिए।”
“सच में? रीना, ये तो कमाल की बात है!”
“हाँ, पर…”
“पर?”
“अगर मैं सेलेक्ट हो गई, तो मुझे मुंबई में ही शिफ्ट होना पड़ेगा, लंबे वक्त के लिए।”
रमेश की मुस्कान थोड़ी फीकी पड़ गई।
“मतलब… तुम लौटोगी नहीं?”
रीना ने गहरी साँस ली, “मैं लौट सकती हूँ, लेकिन फिर मेरा सपना अधूरा रह जाएगा। और अगर मैं रुकती हूँ, तो तुम्हारे बिना अधूरी रह जाऊँगी।”
“तो अब?”
“तो अब… मुझे सोचने दो। मैं वापस आऊँगी। पर कब—ये तय करना बाकी है।”
रमेश ने सिर झुका लिया। सपनों की कीमत वह समझता था, लेकिन अपने दिल की चुप्पी भी भारी लग रही थी।
उसी शाम बापू ने रमेश के कंधे पर हाथ रखा, “बेटा, रीना एक अच्छी लड़की है। अगर वो लौट आए, तो उससे सच्ची शादी कर लेना। और अगर नहीं लौटे, तो उसके आने के फैसले का सम्मान करना। ये मोहब्बत भी किस्तों में आती है, पर वफ़ा एकमुश्त होनी चाहिए।”
रमेश की आँखें भर आईं।
अगले दिन गोपाल भागता हुआ आया, “अबे रमेश! नीलम ने हाँ कह दी!”
“क्या?”
“हाँ! उसने कहा—‘अगर तुम मेरे हर शुक्रवार को कविता सुनाओगे, तो मैं हर रविवार तुम्हारे लिए उपमा बनाऊँगी।’”
रमेश हँस पड़ा।
“देख, तेरा भी प्यार किश्तों में सेट हो गया!”
“और तेरा?”
रमेश ने फोन की स्क्रीन पर रीना की तस्वीर देखी।
“मेरा अभी चल रहा है… वेटिंग में। लेकिन मैं जानता हूँ, जो सच होता है, वो लौटता है। और मेरी रीना—अब मेरी नहीं, पर एक दिन पूरी तरह मेरी होगी।”
कमरे की खिड़की से बाहर चाँद झांक रहा था, जैसे जानता हो कि मोहब्बत की किश्तें कभी-कभी देर से आती हैं, लेकिन जब आती हैं, तो पूरी ज़िंदगी का ब्याज चुकता कर जाती हैं।
भाग 6: मुंबई मेल और एक चुप्पी का पैगाम
रमेश अब हर दिन को एक अधूरी चिट्ठी की तरह जी रहा था—हर सुबह उम्मीद से शुरू होती, और हर शाम रीना की यादों से भीग कर खत्म हो जाती। मोबाइल हर वक्त हाथ में रहता, जैसे कोई पुराने रेडियो पर किसी खास चैनल की प्रतीक्षा करता हो। लेकिन कुछ दिनों से रीना की कॉल कम हो गई थी। कभी टेक्निकल शूट की वजह से, कभी बैक-टू-बैक ऑडिशन्स की बात कहकर वो माफी माँग लेती।
रमेश मुस्कराकर सब स्वीकार कर लेता। लेकिन दिल का कोना कहीं सिसकता था।
गोपाल का हाल एकदम उल्टा था। उसका रोमांस अब एक्सप्रेस ट्रेन की स्पीड पकड़ चुका था। नीलम के लिए वो कविता लिखता, कढ़ी-चावल बनाना सीखता, और तो और, एक बार उसने दही जमाने की पूरी विधि भी गूगल से सीख डाली।
“अबे तू तो पूरा हस्बैंड मटेरियल बन गया,” रमेश ने चुटकी ली।
“हाँ भाई। सच्चा प्यार आदमी को खाना बनाना भी सीखा देता है। तू भी सीख ले—तुझसे पहले तेरी चाय पक रही होती थी, अब रीना से मिलने के लिए पराठा तो खुद बनाना पड़ेगा।”
रमेश मुस्कराया, लेकिन हँसी में वो जान नहीं थी।
रात को रमेश अपने कमरे में बैठा था। बापू अखबार पढ़ रहे थे।
“बेटा,” उन्होंने अचानक कहा, “क्या रीना अब भी रोज़ बात करती है?”
रमेश चुप रहा।
बापू ने चश्मा उतारा और गम्भीरता से कहा, “देख, मैं बूढ़ा हूँ लेकिन अंधा नहीं। मैं देख रहा हूँ, तेरे चेहरे की हँसी अब कम हो गई है। बोल, क्या बात है?”
रमेश ने धीमे स्वर में कहा, “बापू… रीना का सेलेक्शन हो गया है। वेब सीरीज़ की लीड मिल गई है। अब वो मुंबई में ही बसने की सोच रही है।”
बापू कुछ देर शांत रहे।
“तो तू क्या चाहता है?” उन्होंने पूछा।
“मैं चाहता हूँ कि वो वापस लौट आए। पर मैं उसके सपनों का बोझ नहीं बनना चाहता।”
बापू ने हँसते हुए कहा, “बेटा, जो प्यार बोझ बन जाए, वो प्यार ही नहीं होता। तू उस पर भरोसा रख, और खुद पर भी। और हाँ, अगर ज़रूरत हो, तो एक बार खुद जाकर उससे मिल आ।”
“मैं? मुंबई?”
“हाँ। इस मोहब्बत की ट्रेन में अब तू कंफर्म टिकट लेकर सफ़र कर। वेटिंग बहुत हो चुकी।”
अगली सुबह रमेश ने अपनी साइकिल गोपाल को सौंप दी और स्टेशन चला गया। टिकट खिड़की पर जाकर बोला, “मुंबई मेल… एक रिज़र्वेशन।”
क्लर्क ने पूछा, “क्लास?”
रमेश बोला, “क्लास तो नहीं है, लेकिन काम बहुत क्लास वाला है।”
ट्रेन की सीट पर बैठते ही उसका दिल धड़कने लगा। बार-बार सोचता रहा—कैसा रिएक्शन होगा रीना का? क्या वो नाराज़ होगी कि रमेश बिना बताए आ गया? या वो मुस्कराएगी, दौड़कर गले लगेगी?
मुंबई पहुँचना एक सपना जैसा था। बड़ी-बड़ी इमारतें, ऑटोवालों की चीखें, सड़क किनारे वड़ा-पाव की महक, और हर मोड़ पर किसी न किसी का सपना।
रमेश ने रीना के फ्लैट का पता गोपाल से लिया था, जिसने रीना की इंस्टाग्राम स्टोरीज देखकर लोकेशन ट्रेस की थी—“तू चिंता मत कर, मैंने पूरी जासूसी कर ली है। उसके अपार्टमेंट के बाहर पीपल का पेड़ है, और पास में एक बन-मक्खन वाला ठेला।”
रमेश वहाँ पहुँचा। साँसें तेज़, माथे पर पसीना, और हाथ में एक छोटा सा गिफ्ट—एक कप जो रीना की पसंदीदा मूवी ‘दिल चाहता है’ के डायलॉग से सजा था—”प्यार का पहला किस्ता दोस्ती है।”
अपार्टमेंट की चौकीदारन ने पूछ लिया, “कौन चाहिए?”
“रीना मैडम… चौथे मंज़िल पे रहती हैं।”
“कौन आप?”
रमेश हकला गया। “उनका… दोस्त। इलाहाबाद से।”
रीना ने दरवाज़ा खोला, बाल बिखरे हुए, चेहरा थका हुआ, लेकिन आँखें उसी चमक से भरी हुईं।
“रमेश!” वो चौंकी।
“सॉरी… यूँ ही आ गया।”
रीना ने पल भर देखा, फिर मुस्कराई। “अंदर आओ।”
कमरे में एक बड़ा सा पोस्टर लगा था—”शूटिंग इन प्रोग्रेस। डू नॉट डिस्टर्ब।” लेकिन रीना ने दरवाज़ा बंद किया और कहा, “तुम बैठो, मैं चाय लाती हूँ।”
रमेश ने कप उसकी ओर बढ़ाया। “ये तेरे लिए।”
रीना ने कप देखा, पढ़ा, फिर कहा, “कप तो प्यारा है… डायलॉग भी।”
“लेकिन इसका दूसरा हिस्सा भी है… दोस्ती के बाद जो किश्त आती है, वो मोहब्बत है।”
रीना कुछ पल चुप रही।
“रमेश… मुझे लगा था तुम समझोगे। मैं यहाँ अपने करियर की शुरुआत कर रही हूँ। यहाँ बहुत कम्पटीशन है, बहुत थकान है… और तुम्हारा यूँ अचानक आ जाना… थोड़ा मुश्किल कर देता है।”
रमेश ने सिर झुका लिया।
“मुझे बस तुझसे एक जवाब चाहिए,” उसने कहा। “क्या तू मुझसे अब भी उतना ही जुड़ी है, जितनी इलाहाबाद में थी? या ये सब अब सिर्फ एक एक्ट था?”
रीना के चेहरे पर दर्द उभरा। “मैं हर दिन तुझे याद करती हूँ। लेकिन मैं डरती हूँ कि अगर मैं लौट गई, तो सब छोड़ना पड़ेगा। और अगर रुकी रही, तो तुझे खो दूँगी।”
“तो इसका मतलब…?”
“इसका मतलब है… मुझे थोड़ा और वक्त दो। मैं तेरे पास लौटूंगी, लेकिन तब जब मैं खुद को पूरी तरह तेरे लायक समझूँ।”
रमेश ने मुस्कराकर कहा, “तू पहले दिन से ही मेरे लिए परफेक्ट है, रीना। लेकिन ठीक है… मैं इंतज़ार करूँगा। जैसे हर किस्त का आता है टाइम, वैसे ही तेरा भी आएगा।”
वापसी की ट्रेन में रमेश अकेला नहीं था। साथ थी रीना की आँखों में चुप्पी, उसकी खामोशी में छिपा भरोसा, और वो कप जो उसने नहीं लिया लेकिन उसकी टेबल पर रखा रह गया था।
ट्रेन की खिड़की से बाहर देखते हुए रमेश ने मन ही मन कहा—”ये मोहब्बत आसान नहीं, लेकिन इसकी हर किश्त, हर रुकावट, हर वेटिंग… मैं चुका दूँगा। बस तेरा नाम लिखकर रख छोड़ा है—मिसेज़ सावित्री चौबे।”
भाग 7: किरायेदार, कवि और करवा चौथ
इलाहाबाद लौटते ही रमेश को एक अजीब सी ठंडक महसूस हुई। मौसम वही था, गर्म और उमस भरा, लेकिन उसके भीतर का तापमान कुछ गिर सा गया था। ट्रेन की खिड़की से बाहर देखा गया हर दृश्य अब रीना की आँखों जैसा लगता था—चुप, गहरा और अनकहा।
स्टेशन पर गोपाल हाथ में गुलाब और एक गुटका का पाउच लिए खड़ा था।
“तो कैसा रहा मुंबई का सफर, फ़िल्मी हीरो?”
रमेश ने मुस्कराने की कोशिश की।
“रीना ने कहा—थोड़ा और वक्त दो। बोले तो, अगली किश्त पेंडिंग है।”
गोपाल ने सिर हिलाया, “समझ गया। तू इंतज़ार कर, मैं कविता लिखने में मदद करूँगा। ये जो दिल की ईएमआई है, उसे थोड़ा इमोशनल क्रेडिट चाहिए।”
रमेश का कमरा अब पहले जैसा नहीं लगता था। दीवार पर टँगा रीना का छोड़ा हुआ स्कार्फ, कोने में रखा चाय का प्याला, और बापू की आँखों में उसकी चिंता—सब कुछ एक अधूरी किताब जैसा था।
बापू ने पूछा, “मिल ली रीना से?”
“हाँ बापू।”
“और?”
“वो भी मुझे चाहती है… पर डरती है कि उसका सपना और मेरा प्यार—एक साथ न टिक पाएं।”
बापू ने लंबी साँस ली, “बेटा, जब सपना और प्यार टकराते हैं, तो अगर दिल में जगह हो तो दोनों समा सकते हैं। तू अपना दरवाज़ा खुला रखना।”
उधर मोहल्ले में करवा चौथ की हलचल शुरू हो चुकी थी। बत्रा आंटी ने ऐलान कर दिया—“इस बार चौबे परिवार की बहू रीना जी ही हमारे कार्यक्रम की मुख्य अतिथि होंगी—वीडियो कॉल के माध्यम से।”
रमेश ने समझाया, “आंटी, वो बहुत व्यस्त है। अभी शूटिंग में है।”
“तो क्या हुआ? एक मिनट का वीडियो मैसेज ही भेज दे, इतना भी समय नहीं उसके पास?”
रमेश के मन में सवाल आया—क्या रीना अब भी खुद को ‘चौबे परिवार की बहू’ मानती है?
गोपाल ने कहा, “भाई, तू उसको एक आखिरी ख़त लिख दे। दिल की सारी किश्तें समेटकर। और भेज दे उस पराठे वाली बात भी जो बापू रोज़ करते हैं। रोमांस में कचौड़ी हो या कविता—ताजगी ज़रूरी है।”
रात को रमेश ने लिखा—
“प्रिय रीना,
इलाहाबाद की सुबहें अब तुम्हारे बिना अधूरी लगती हैं। बापू ने आज भी पूछा—‘कब लौटेगी बहू?’
गोपाल अब भी नीलम के लिए हर हफ्ते नई डिश बनाता है, और मैं… मैं अब भी तेरे भेजे हुए कप में चाय पीता हूँ।
तुम्हारे बिना मेरा कमरा वैसा ही है, जैसे स्क्रिप्ट बिना संवाद के।
तुमसे मिलकर जाना कि प्यार भी किस्तों में आता है—पहले झूठ में, फिर हँसी में, फिर चाय में और अब चुप्पी में।
अगर तुम चाहो, तो अगली किस्त मैं चुका सकता हूँ—एक असली मंडप, असली फेरे, और असली ‘मैं-तुम’।
तुम्हारा
रमेश कुमार चौबे (अब आधा ही सही, पर पूरा बनने की ख्वाहिश में)”
रमेश ने वह खत एक कुरियर से भेजा। पता वही जो गोपाल ने उसके इंस्टाग्राम से निकाला था। साथ में रखा एक पिटारी में ‘होममेड इलाहाबादी मठरी’ और एक पुराना गुलाबी स्कार्फ—जो रीना ने गलती से छोड़ा था।
उधर मोहल्ले की औरतें दिन गिनने लगीं—“अब तक बहू का वीडियो नहीं आया?”
करवा चौथ की पूर्व संध्या को बत्रा आंटी की बड़बड़ाहट चरम पर थी।
“बहू इतनी बड़ी अदाकारा बन गई है कि मोहल्ले की औरतों को भूल गई?”
गोपाल ने चुपके से रमेश के मोबाइल में एक वीडियो चलाया—रीना का पुराना वीडियो जिसमें वो पराठा बनाना सिखा रही थी।
“लो आंटी, बहू का सन्देश।”
बत्रा आंटी भावुक हो गईं। “कितनी प्यारी है रे! देखो तो कैसे कह रही है—‘नमक स्वादानुसार’!”
उस रात रमेश छत पर बैठा था, खुले आसमान के नीचे, जहाँ चाँद धीरे-धीरे ऊपर चढ़ रहा था।
बापू ने आकर पास में बैठते हुए कहा, “आज बहू व्रत रखती, तो मैं खुद खिला देता उसे खीर।”
रमेश चुप रहा।
“तेरे चेहरे से लग रहा है कि तू रोज़ व्रत में ही जी रहा है।”
“वो कहती थी, करवा चौथ पर चाँद से ज़्यादा चमकता है प्रेमी का चेहरा।”
“तो आज तेरा चेहरा सबसे ज़्यादा चमक रहा है।”
अचानक रमेश का मोबाइल बीप किया। एक वीडियो कॉल—रीना।
वो झट से उठा।
रीना थी, बाल खुले, आँखों में चमक, होंठों पर हल्की सी थकान, लेकिन मुस्कान वही जानी-पहचानी।
“करवा चौथ मुबारक, मिस्टर चौबे।”
“तुमने कॉल किया?”
“क्यों? कॉल करने का कॉन्ट्रैक्ट सिर्फ तुम्हारा है?”
“नहीं… बस सोचा, अब हमारी किस्तें बंद हो गई हैं।”
“नहीं रमेश, तुम्हारा ख़त मिला। पढ़कर लगा, अब वापस आने की वजह मिल गई है। वहाँ जो मिल रहा है, वो सपना है। लेकिन यहाँ जो छूट गया है, वो अपना है।”
रमेश की आँखें भर आईं।
“तो मतलब?”
“मतलब, अगली ट्रेन की टिकट बुक हो चुकी है। रीना अब किराये की नहीं, चौबे परिवार की स्थायी सदस्य बनने आ रही है।”
उस रात चाँद को देखकर रमेश ने कहा—“अब तू ही गवाह बन, इस मोहब्बत की आखिरी किश्त का।”
भाग 8: आखिरी किश्त, पूरी मोहब्बत
सूरज की पहली किरण जब रमेश के कमरे की खिड़की से भीतर आई, तब उसका चेहरा तकिए पर नहीं था। वह छत पर बैठा था, आँखें बंद, और होंठों पर हल्की मुस्कान। रीना के ‘मैं लौट रही हूँ’ वाले वीडियो कॉल के बाद से उसकी नींद में मिठास घुल चुकी थी। हर सेकंड, हर पल अब उल्टी गिनती में बदल चुका था—मानो मोहब्बत की ट्रेन अब प्लेटफॉर्म पर आने ही वाली हो।
नीचे मोहल्ले में गोपाल फूलों की दुकान से वापस लौट रहा था। उसके हाथ में था एक गुलाब का हार, एक माला और दो ‘वेलकम’ के गुब्बारे।
“अबे, क्या शादी का मंडप सजाने का इरादा है?” रमेश ने छत से आवाज़ दी।
गोपाल ने हँसते हुए कहा, “जब नायक लौटे, तो मंच सजा होना चाहिए! और जब बहू लौटे, तो मोहल्ला भी!”
बापू अख़बार पढ़ते-पढ़ते बोले, “आज अख़बार नहीं, बेटा… आज बहू की बात सुननी है।”
बत्रा आंटी पहले से ही बालकनी में बिन बुलाए सजी-धजी बैठी थीं। हाथ में थाली, जिसमें नारियल, रोली, चावल और एक मुँह मीठा करने के लिए रसगुल्ला भी रखा था।
“बहू आएगी तो सबसे पहले मैं तिलक लगाऊँगी!” उन्होंने घोषणा कर दी।
दोपहर होते-होते इलाहाबाद जंक्शन पर ट्रेन पहुँचने वाली थी। रमेश, गोपाल और बापू एक ऑटो में बैठकर स्टेशन की ओर रवाना हुए। रास्ते में ट्रैफिक इतना था कि लगता था पूरा शहर मोहब्बत की गवाही देने निकला है।
प्लेटफॉर्म नंबर चार पर ट्रेन आई—मुंबई मेल। वही ट्रेन जिसमें कुछ हफ्ते पहले रमेश गया था रीना से मिलने, अब वही ट्रेन रीना को लेकर लौट रही थी—नकली से असली की ओर।
ट्रेन के दरवाज़े से रीना उतरी। नीली साड़ी में, आँखों में नींद और चेहरे पर वही पुरानी मुस्कान, जो किसी गुमशुदा गीत की तरह लौट आई थी।
रमेश कुछ कह नहीं पाया। बस नज़रें मिलीं और वक्त वहीं थम गया।
रीना ने धीमे से कहा, “सुनो… उस दिन तुमने जो कप भेजा था—‘प्यार की पहली किश्त दोस्ती है’—तो अब मैं दूसरी किश्त चुकाने आई हूँ।”
रमेश ने चौंककर पूछा, “और वो क्या है?”
रीना मुस्कराई, “सगाई।”
बापू ने ताली बजाई, गोपाल ने माला थमाई और स्टेशन पर एक पल के लिए ऐसा लगा कि कोई फिल्मी सीन चल रहा है। पीछे से आवाज़ आई, “चाय! गरम चाय!” लेकिन आज किसी को चाय की नहीं, भावनाओं की गर्मी की ज़रूरत थी।
ऑटो में घर लौटते हुए रीना ने कहा, “मैंने डायरेक्टर को मना कर दिया। कहा—मुझे कुछ महीनों की छुट्टी चाहिए। उन्होंने पूछा क्यों? मैंने कहा—मेरी रियल लाइफ की स्टोरी शूट हो रही है।”
रमेश ने उसका हाथ थाम लिया, “इस बार मैं तुम्हें किराए पर नहीं, स्थायी सदस्य के तौर पर लेकर जा रहा हूँ।”
घर पहुँचते ही बत्रा आंटी ने आरती की थाली घुमा दी, जैसे कोई बहू नहीं, देवी उतर रही हो।
गोपाल ने दरवाज़े पर ‘वेलकम बहू’ का पोस्टर चिपका दिया, जिसमें बीच में एक दिल बना था और उसके अंदर लिखा था—“EMI Over, Now Only Love.”
शाम को मोहल्ले में एक छोटी सी पार्टी रखी गई। रूमाल जितना आँगन आज महफिल बन गया था। सावित्री, यानी रीना, सबके लिए मिठाई ले कर आई थीं। महिला मंडल ने उनका इंटरव्यू लिया, बापू ने अपनी पुरानी प्रेमकथा सुनाई (जो किसी को याद नहीं थी), और टीटी शर्मा ने पहली बार रीना से माफी माँगी।
“बहू जी, मैं पहले दिन से ही जानता था कि आप असली हो… पर शक की आदत है।”
रीना ने हँसते हुए कहा, “कोई बात नहीं, शर्मा जी। मोहब्बत में भी शक आता है, लेकिन जब भरोसा लौटता है, तो सब ठीक हो जाता है।”
रात को जब सब चले गए, रीना रसोई में रमेश के लिए चाय बना रही थी। वही प्याला, वही अदरक की खुशबू, वही चाय जो अब पहले से कहीं मीठी लग रही थी।
रमेश ने कहा, “कल से ऑफिस फिर से शुरू। तू भी यहीं शूटिंग कर सकती थी।”
रीना बोली, “मैं अब भी एक्टर हूँ, लेकिन अब मेरी सबसे बड़ी भूमिका है—तुम्हारी ज़िंदगी की साथी बनना। और हाँ, मैंने फैसला किया है कि मोहल्ले की महिला मंडल को थिएटर वर्कशॉप शुरू करवा दूँगी। सीनियर सिटिज़न ड्रामा क्लब!”
रमेश हँस पड़ा। “बत्रा आंटी को विलेन बनाना मत भूलना।”
रीना ने चाय का प्याला उसकी ओर बढ़ाया।
“ये हमारी पहली असली चाय है,” उसने कहा।
“और इस कप का क्या नाम रखोगी?”
“‘मोहब्बत की आखिरी किश्त’। क्योंकि इसके बाद अब सिर्फ हम हैं… और किस्तें खत्म।”
रमेश ने चाय की चुस्की ली और मन ही मन कहा—“शुरुआत झूठ से हुई थी, पर अंत में जो मिला, वो सच्चाई से बढ़कर था।”
बाहर आसमान में चाँद मुस्करा रहा था। शायद वही चाँद जो उस रात करवा चौथ पर गवाह बना था, आज इस मोहब्बत की आखिरी किश्त की रसीद बन गया था।
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