शिवांगी राणा
1
कालाजोर। झारखंड-बिहार की सीमा पर बसा एक छोटा-सा कस्बा, जो अब धीरे-धीरे एक कोयला साम्राज्य की अंधेरी गहराइयों में समा चुका है। सूरज की पहली किरणें भी यहाँ की काली मिट्टी में अपना रंग खो देती थीं। एक समय था जब यहाँ जीवन था—खेत, मेले, और बच्चों की किलकारियाँ। अब हर कोने से सिर्फ एक ही आवाज़ आती थी—डंपर की घरघराहट, मशीनों की चरमराहट और… खदानों से उठती एक लंबी थकान भरी साँस।
आईपीएस अधिकारी अवनि राय जब ट्रेन से उतरीं, तो सबसे पहले उन्होंने वही साँस सुनी—जैसे किसी ज़िंदा शहर के सीने पर कोयले की मोटी परत बिछा दी गई हो। उनके गले में पड़ा भाई अक्षय का वो पुराना लॉकेट झूल रहा था, जिसमें दोनों की एक बचपन की तस्वीर थी। उसे छूकर उन्होंने मन ही मन कहा—”मैं आ गई, अक्षय। अब कोई नहीं बचेगा।”
अवनि को इस कस्बे में भेजा नहीं गया था, वो खुद आई थीं—स्वेच्छा से, ट्रांसफर की ज़िद करके। उनकी रिपोर्टिंग राजधानी पटना में थी, लेकिन जब उन्हें खबर मिली कि उनके छोटे भाई की कालाजोर में एक “दुर्घटना” में मौत हो गई, तो उन्हें ये महज हादसा नहीं लगा। वो जानती थीं अक्षय क्या था—जुझारू, ईमानदार और पत्रकार।
स्टेशन से बाहर निकलते ही उन्हें स्टेशन मास्टर से एक ठंडी-सी मुस्कान मिली, जैसे किसी ने पहले ही उसके आने की खबर पूरे कस्बे में फैला दी हो।
“मैडम, आपका यहाँ स्वागत है… लेकिन कालाजोर में लोग सवाल नहीं करते, सिर्फ चलते हैं।”
“मैं चलने नहीं, कुछ रोकने आई हूँ,” अवनि ने कहा और सरकारी जीप में बैठ गईं।
कालाजोर के एसपी ऑफिस में एक मोटे फाइलों का ढेर लगा था, लेकिन अक्षय के केस की सिर्फ एक पतली-सी रिपोर्ट थी। उसमें लिखा था—”अचानक खदान की दीवार गिरी, और पत्रकार अक्षय राय की मौत हो गई। कोई संदिग्ध गतिविधि नहीं पाई गई।”
“मैडम, केस क्लोज है।” इंस्पेक्टर प्रभात ने कहा।
“क्लोज तुम्हारे लिए होगा। मेरे लिए अभी शुरू हुआ है।”
अवनि को जल्द ही समझ में आ गया कि कालाजोर में कानून का असली चेहरा वो नहीं था जो वर्दी पहनता है, बल्कि वो था जो कोयले की काली कमाई से शहर के हर कोने को खरीद चुका था।
नाम था—बाबा खान।
कहा जाता है कि बाबा खान पहले सिर्फ एक ठेकेदार था। फिर उसने माफिया का हाथ थामा, और धीरे-धीरे पूरा खदान सेक्टर अपने कब्जे में कर लिया। पुलिस, नेता, अफसर, पत्रकार—सब उसके जाल में थे। जो नहीं थे, वो मर चुके थे। अक्षय उन्हीं में एक था।
अवनि ने अक्षय का कमरा सील से खुलवाया। अंदर घुसते ही एक अजीब सन्नाटा था, जैसे कमरा भी शोक में हो। किताबों के बीच में एक नोटबुक मिली, जिसके पिछले पन्ने पर एक नाम बार-बार लिखा था—”शेरू – बाबा खान का आदमी”।
“शेरू कौन है?” अवनि ने इंस्पेक्टर से पूछा।
“मैडम, छोटा सा गुंडा है। बाबा के लिए काम करता है। लेकिन बहुत चालाक है। पकड़ा नहीं गया कभी।”
“अब वक्त है उसे पकड़ने का।”
अवनि ने तय किया कि वो खदान में खुद जाकर देखेगी कि आखिर हुआ क्या था। उस दिन की सुबह वो सरकारी जीप से निकली। रास्ते में हर मोड़ पर उसे ऐसे लोग दिखे जो उसकी तरफ ऐसे देख रहे थे जैसे कोई विदेशी आ गया हो।
“मैडम, आपको खदान में जाने की इजाज़त नहीं है,” एक सुरक्षा गार्ड ने कहा।
“मैं इजाज़त लेकर नहीं, वारंट लेकर आई हूँ।”
खदान गहरी थी, बहुत गहरी। नीचे उतरते ही ऐसा लगा जैसे सूरज भी यहाँ आकर थक गया हो। दीवारों पर कोयले के साथ खून के धब्बे भी लगे थे, जिन्हें शायद किसी ने मिटाने की कोशिश की थी।
“यहाँ क्या कोई कैमरा है?” अवनि ने पूछा।
“हां, लेकिन उस दिन का फुटेज गायब है, मैडम,” सुपरवाइज़र ने कहा।
“गायब या मिटाया गया?”
अवनि अब समझ चुकी थी—ये कोई हादसा नहीं था, ये एक योजनाबद्ध हत्या थी। लेकिन सबसे बड़ा सवाल था—क्यों?
क्यों अक्षय को मारा गया?
और… कौन था शेरू?
उसी रात अवनि एक पुराने पत्रकार को मिलने गई—नाम था मनोज तिवारी, जो एक समय में अक्षय का मेंटॉर था।
“अक्षय ने कुछ दिन पहले एक फोल्डर लाकर दिया था,” मनोज ने कांपती आवाज़ में कहा।
“क्या था उसमें?”
“बाबा खान और कुछ नेताओं के बीच एक गुप्त समझौता। कोयले की स्मगलिंग के पीछे एक बड़ा खेल है। अक्षय उसे उजागर करने वाला था।”
“फोल्डर कहाँ है अब?”
“चोरी हो गया, मैडम। शायद उसी रात।”
अब अवनि को यकीन हो गया था—अक्षय की मौत सिर्फ भाई की मौत नहीं थी, ये एक सिस्टम पर हमला था। उसे रोकना ही होगा।
रात के सन्नाटे में खदान के पास एक काली जीप खड़ी थी। उसके अंदर बैठा आदमी सिगरेट जला रहा था।
“मैडम आ गई है… बहुत सवाल पूछती है,” शेरू ने फोन पर कहा।
“देखो, अगली बार सवाल नहीं उठने चाहिए। अबकी बार हादसा नहीं, चुपचाप निपटा दो,” दूसरी तरफ से आवाज़ आई।
अवनि को अब नहीं पता था कि अगले दिन क्या होगा। लेकिन एक चीज़ वो जानती थी—
अब ये लड़ाई सिर्फ उसके भाई के लिए नहीं, बल्कि उस पूरी ज़मीन के लिए थी जो अब तक चुप थी।
2
अवनि राय के अंदर उबाल था। कालाजोर की चुप्पी, अक्षय की अधूरी डायरी, मनोज तिवारी की बातें और शेरू की परछाइयाँ—इन सबने उसे उस बिंदु पर ला दिया था जहाँ अब पीछे हटना मुमकिन नहीं था। उसकी वर्दी अब सिर्फ कानून की नहीं, प्रतिशोध की भी प्रतीक बन चुकी थी।
अगली सुबह उसने थाने में मीटिंग बुलाई।
“हम इस शहर में कानून के रखवाले हैं या बाबा खान के बाउंड्री गार्ड?” अवनि की आवाज़ सख्त थी।
इंस्पेक्टर प्रभात सिर झुकाकर बोला, “मैडम, हम कोशिश करते हैं… लेकिन यहाँ सिस्टम ही सड़ा हुआ है। कोई गवाह मुँह नहीं खोलता। जो खोलता है, वो अगले दिन गायब।”
“अब मैं गवाह नहीं ढूँढ रही। मैं अपराधी ढूँढ रही हूँ।”
अवनि ने तय किया—उसकी अगली चाल होगी शेरू को पकड़ना। उसने पिछले छह महीनों के सारे छोटे-बड़े केस की फाइलें उठवाईं, और देखा कि हर जगह शेरू का नाम या उसका इशारा कहीं न कहीं मौजूद था—पर सबूत एक भी नहीं।
तभी एक नाम उभरा—राजू, खदान मजदूर। एक पुरानी एफआईआर में उसने शिकायत दी थी कि शेरू ने उसके भाई को पीट-पीटकर अधमरा कर दिया था। अवनि ने तुरंत उसे बुलाया।
राजू थरथराता हुआ थाने में दाखिल हुआ।
“मैडम… प्लीज़ माफ कर दीजिए। मैं कुछ नहीं कह सकता। मेरी बीवी, मेरे बच्चे…”
“राजू, तुम्हारे डर की वजह समझ सकती हूँ। लेकिन अगर आज तुम नहीं बोले, तो कल तुम्हारे बच्चे भी इसी खदान में दबा दिए जाएंगे, जैसे तुम्हारे भाई को मारा गया।”
राजू की आँखें भर आईं। उसने धीमी आवाज़ में कहा, “मैडम, उस रात शेरू और उसके दो आदमी खदान में आए थे। उनके साथ एक दुबला-सा लड़का भी था। पत्रकार जैसा दिखता था।”
अवनि का दिल धड़क उठा। “अक्षय?”
राजू ने सिर हिलाया। “हाँ। उन्होंने उसे बहुत पीटा… कह रहे थे कि ‘तेरा कैमरा कहाँ है?’… वो चिल्ला रहा था कि ‘तुम सबको बेनकाब करूँगा।’ फिर… एक ज़ोर का धमाका हुआ। और दीवार… दीवार गिर गई।”
“क्या तुम ये बयान लिखित में दोगे?”
राजू ने हिचकते हुए सहमति दे दी। अवनि को पहली बार लगा कि अब केस आगे बढ़ सकता है।
उधर दूसरी तरफ, बाबा खान अपने अड्डे पर बैठा हुक्का पी रहा था। उसके सामने शेरू खड़ा था।
“वो औरत खतरनाक है, बाबा। उसकी नज़रों में डर नहीं है… गुस्सा है।”
“तो गुस्से को आग बना दो,” बाबा ने धीमे से कहा। “वो क्या कहावत है… ‘जिसे जलना है, उसे खुद आग लगानी पड़ती है।’”
“समझ गया बाबा। आज रात ही कुछ करूँगा।”
रात के साढ़े दस बजे अवनि अपने सरकारी क्वार्टर में बैठी अक्षय की डायरी पलट रही थी। एक जगह छोटा-सा स्केच था—खदान के पीछे एक पुराना गोदाम। नीचे लिखा था—“यहाँ सब कुछ छुपा है।”
उसने तुरंत इंस्पेक्टर प्रभात को फोन किया। “एक टीम तैयार करो। हम अभी गोदाम जाएंगे।”
“मैडम, इतनी रात को—?”
“अपराधी सोते नहीं, प्रभात। हम क्यों सोएं?”
बीस मिनट में जीप खदान के पीछे पुराने गोदाम के सामने रुकी। दीवारें जर्जर थीं, और एक पुराना ताला लटका था।
“कटर लाओ,” अवनि ने आदेश दिया।
ताला टूटा। अंदर घुसते ही बदबू का झटका सा लगा। गोदाम के कोने में कुछ बोरियाँ पड़ी थीं। जब एक बोरी हटाई गई, तो सबकी आँखें चौंधिया गईं—गोदाम के नीचे एक तहखाना था, जिसमें कैमरे, फाइलें, नक्शे, और पुराने कंप्यूटर के पार्ट्स छिपाए गए थे।
“मैडम, ये तो किसी मीडिया रूम जैसा लग रहा है,” एक कांस्टेबल बोला।
“नहीं। ये अक्षय का तहखाना है। वो जानता था कि कब क्या होगा।”
अवनि ने एक फोल्डर उठाया, जिस पर लिखा था—”Project Black Dust”।
फोल्डर के अंदर कई गुप्त दस्तावेज़ थे—बाबा खान के कोल ठेकों के नकली बिल, अवैध खदानों की तस्वीरें, और राजनीतिक फंडिंग का डेटा।
“ये सबूत है। अब कोई नहीं बचेगा,” अवनि ने धीरे से कहा।
लेकिन जैसे ही वो बाहर निकलीं, हवा में अजीब सी सरसराहट थी। तभी दूर से एक पत्थर उछलकर जीप पर लगा।
“घात लगाओ!” अवनि चिल्लाई।
चारों तरफ से गोलियाँ चलने लगीं। किसी ने छुपकर घात लगाई थी। कांस्टेबल रमेश की बाँह छिल गई, प्रभात जमीन पर गिरा।
“मैडम, आपको निकलना होगा!” प्रभात चिल्लाया।
“मैं अपने भाई के सबूत छोड़कर नहीं जाऊँगी!”
लेकिन तभी दूसरी तरफ से पुलिस की बैकअप टीम आ गई, जो अवनि ने पहले ही अलर्ट पर रखा था। हमलावर भाग गए—पर एक आदमी वहीं पकड़ा गया।
चेहरे पर नकाब था। अवनि ने हाथ से खींचकर उतारा—
शेरू।
उसकी आँखों में कोई डर नहीं था, बल्कि नफरत थी।
“तू क्या समझती है, मैडम? एक फाइल से सब बदल जाएगा?”
“नहीं। पर एक फाइल से तू जेल ज़रूर जाएगा।”
अवनि ने हथकड़ी उसकी कलाई में डाली।
रात के दो बजे थाने में शेरू से पूछताछ शुरू हुई। लेकिन वो सिर्फ एक ही बात दोहराता रहा—
“जो देख रहा है, वो सच नहीं है। असली खेल अभी बाकी है।”
“मतलब?”
“बाबा खान वो नहीं है जो तुम समझती हो। उसके ऊपर भी कोई है…”
“कौन?” अवनि ने पूछा।
शेरू मुस्कराया। “वो नाम नहीं, एक साया है। उसके दस्तखत खून में होते हैं।”
अवनि चौंक गई। अगर बाबा खान खुद किसी के इशारों पर नाच रहा है, तो उस पूरे षड्यंत्र का सिरा बहुत ऊपर तक जा रहा था।
शेरू की बातों ने कहानी की दिशा बदल दी थी।
अब ये सिर्फ बाबा खान तक की लड़ाई नहीं थी—
ये लड़ाई थी उस अनदेखे साए से, जिसने अक्षय की मौत की पटकथा लिखी थी।
3
कालाजोर की सुबहों में कोई उत्सव नहीं होता था। सूरज उगता तो था, लेकिन उसकी रोशनी यहाँ पहुँचते-पहुँचते धुंधली हो जाती थी—जैसे कोयले की गर्द उसके तेज को चुरा लेती हो। खदानों की मशीनें गुर्राती थीं, पर शहर की आत्मा खामोश थी।
थाने में शेरू अब सलाखों के पीछे था। लेकिन उसके चेहरे पर हार का कोई चिह्न नहीं था। उल्टा, उसकी आँखों में एक विचित्र चमक थी—जैसे वो जानता हो कि उसे गिरफ़्तार करना सिर्फ शुरुआत है, असली युद्ध अभी बाकी है।
“असली मालिक कौन है?” अवनि ने एक बार फिर पूछा।
शेरू मुस्कराया। “जो मालिक है, वो दिखता नहीं। नामों के पीछे छिपा है—कभी मंत्री बनकर, कभी अधिकारी बनकर, कभी बाबा बनकर।”
“बाबा खान… क्या वो भी बस एक मोहरा है?”
शेरू कुछ पल चुप रहा, फिर धीरे से बोला, “बाबा कभी अकेला नहीं खेलता। उसके पीछे भी चेहरों की भीड़ है। लेकिन अगर तुम्हें उससे मिलना है, तो आज रात ‘कोल मेला’ में जाओ।”
“कोल मेला?”
“हर महीने की पहली तारीख को बाबा खान खदान के पुराने इलाके में एक गुप्त बैठक करता है। उसे लोग कोल मेला कहते हैं। वहाँ सारे सौदे होते हैं। अवैध खनन की रेट तय होती है। नेता, ठेकेदार, सब पहुँचते हैं… लेकिन बिना नाम के।”
अवनि को अब समझ आ गया कि ये लड़ाई एक गहरे, अदृश्य नेटवर्क से थी।
उसी दिन शाम को अवनि ने अपने भरोसेमंद कांस्टेबल रमेश और प्रभात को बुलाया।
“आज रात हम कोल मेला में घुसेंगे। बिना वर्दी के। अगर बाबा खान वहाँ है, तो हमें उसका चेहरा, उसकी आवाज़, उसका सबूत चाहिए।”
“मैडम, ये बेहद खतरनाक होगा,” प्रभात बोला।
“खतरनाक वही होता है जो अनदेखा हो। हम अब उसे देखेंगे।”
तीनों ने सादी वेशभूषा में खुद को कोयले की ढुलाई करने वाले मज़दूरों की तरह तैयार किया। फटे कपड़े, काले चेहरे, और गर्द भरे बाल। एक जीप में बैठकर वो पुराने खदान के पीछे के जंगल की ओर निकल पड़े—जहाँ शहर की लाइट भी नहीं जाती।
रात के करीब नौ बजे वो एक वीरान मैदान में पहुँचे, जहाँ धुआँ-धुआँ माहौल था। दूर-दूर तक ट्रकों की कतारें थीं। लकड़ी के अस्थायी पंडालों में लोग शराब, लड़कियाँ, और रुपये के सौदों में डूबे थे।
“ये मेला है या कोई अंडरवर्ल्ड मंडी?” रमेश फुसफुसाया।
“यही है बाबा का मठ,” अवनि ने धीरे से कहा।
वो धीरे-धीरे पंडालों के बीच से गुज़रे। कुछ लोगों के हाथ में पिस्टलें थीं, कुछ के पास रजिस्टर। पर कहीं कोई वर्दी नहीं थी—सिर्फ सत्ता की बदबू।
एक बड़े तंबू के पास एक हट्टा-कट्टा आदमी खड़ा था। चेहरे पर गहरे निशान और आँखों में बर्फ जैसी ठंडक।
“वो बाबा खान है,” प्रभात ने धीरे से कहा।
बाबा खान तंबू के अंदर बैठा था। उसके सामने एक टेबल पर नोटों की गड्डियाँ, लैपटॉप, और एक नक्शा फैला हुआ था।
अवनि ने एक कोने में जाकर अपने जैकेट से एक छोटा रिकॉर्डिंग डिवाइस चालू किया।
“सब ध्यान से सुनो,” बाबा की भारी आवाज़ गूंजी, “इस बार बंगाल बॉर्डर से खदान निकालनी है। वहाँ की सरकार को भी हिस्सा चाहिए—30%। बाकी हम बाँट लेंगे। और हाँ, पत्रकारों पर नज़र रखो। पिछली बार की तरह कोई फिसलन नहीं होनी चाहिए।”
एक आदमी बोला, “अवनि राय नाम की एक आईपीएस कालाजोर में बहुत एक्टिव है।”
बाबा हँसा, “औरतें बस गरजती हैं, बरसती नहीं। वो भी चली जाएगी।”
उसके इसी वाक्य ने अवनि की आँखों में आग भर दी।
“अब ये रिकार्डिंग कोर्ट में चलेगी,” उसने मन ही मन सोचा।
लेकिन तभी एक तेज़ आवाज़ आई—“वो औरत यहीं है!”
अचानक चारों ओर से लाइटें जलीं और बंदूकें तनीं। बाबा की आँखें चमक उठीं।
“अवनि राय, बहादुरी की हद होती है। तुमने उसे पार कर लिया है।”
अवनि ने जेब से बंदूक निकाली, “और तुमने इंसानियत की सीमा पार की है। तुम सब अब गिरफ़्तार हो।”
पर उससे पहले ही गोलियाँ चलने लगीं। पंडाल में भगदड़ मच गई। रमेश और प्रभात ने तुरंत अवनि को ढँक लिया। उन्होंने एक ट्रक की आड़ ली और जवाबी फायर किया।
अवनि ने देखा, बाबा खान भागने की कोशिश कर रहा है। वो उसकी तरफ दौड़ी।
“रुको!” वो चिल्लाई।
बाबा ने पीछे मुड़कर गोली चलाई—लेकिन अवनि की किस्मत साथ थी। गोली उसके कंधे के पास से निकल गई। उसने बाबा को धक्का मारकर नीचे गिरा दिया और हथकड़ी निकाल ली।
“खेल खत्म, बाबा।”
बाबा हँसा, “तुम समझती हो तुमने कुछ पाया है? मेरा गिरना एक शख्स का गिरना है। लेकिन वो जो ऊपर बैठा है… वो हर हफ्ते एक नया बाबा बना देगा।”
अवनि की आँखें सख्त हो गईं। “अब ऊपर वाला भी गिरेगा। मैं उसके पास भी पहुँचूँगी।”
अगली सुबह कालाजोर में हलचल थी। पहली बार किसी ने बाबा खान को हथकड़ी में देखा था। मीडिया शहर में जुट चुकी थी। अक्षय की तस्वीरें फिर से छपने लगी थीं—लेकिन इस बार ‘मरने वाले पत्रकार’ नहीं, ‘सच की लड़ाई लड़ने वाले भाई’ के रूप में।
लेकिन अवनि जानती थी—ये सिर्फ एक लड़ाई थी। जंग अब भी बाकी थी।
थाने में बैठी अवनि ने रिकॉर्डिंग डिवाइस को फिर से चलाया। उसमें बाबा खान के शब्द गूंज रहे थे—
“जो मालिक है, वो दिखता नहीं।”
अब उसका अगला मिशन था—उस अदृश्य मालिक को बेनकाब करना।
4
बाबा खान अब सलाखों के पीछे था, लेकिन कालाजोर की फिज़ा में कोई खास बदलाव नहीं था। जैसे हवा खुद इंतज़ार में हो—किसी और तूफान के। अवनि जानती थी कि उसने शिकार को सिर्फ जाल में फँसाया है, पर शिकारी अभी जंगल में खुला घूम रहा है।
थाने की एक अंधेरी कोठरी में बाबा अब भी शांत बैठा था। ना अफ़सोस, ना गुस्सा—बस एक रहस्यमयी मुस्कान, जैसे वो हर कदम पहले ही भांप चुका हो।
“मैं तुमसे कुछ और नहीं पूछने वाली,” अवनि ने अंदर जाकर कहा।
बाबा ने उसकी तरफ देखा, “अच्छा है। क्योंकि अब बताने को कुछ बचा नहीं।”
“लेकिन मैंने तुम्हें सुना था, बाबा… कोल मेले में, रिकॉर्डिंग में, तुमने कहा था कि ऊपर कोई और है। कौन है वो? मंत्री? अफसर? उद्योगपति?”
बाबा खान हँसा, “नाम पूछोगी, तो नाम नहीं मिलेगा। लेकिन अगर रास्ता जानना है, तो एक जगह जाओ—‘कर्पूर प्रेस’। वहीं से ये धुआँ उठता है।”
“कर्पूर प्रेस?”
“एक पुराना अख़बार छापने वाला प्रेस था। अब वो किसी के लिए प्रेस नहीं, परदा है। उसके नीचे एक अंडरग्राउंड नेटवर्क चलता है, जहाँ से तुम्हारे जैसे लोगों की फाइलें बनती हैं… और मिटा दी जाती हैं।”
अवनि चौंकी। “तुम कैसे जानते हो?”
बाबा ने मुस्कराकर कहा, “क्योंकि एक समय मैं भी सिर्फ मोहरा था। फर्क बस इतना है कि मैंने अपने राजा को पहचान लिया… और तुम अब तक खोज रही हो।”
अवनि ने तुरंत उस प्रेस के बारे में जानकारी इकट्ठा करनी शुरू की। कर्पूर प्रेस नाम की एक पुरानी इमारत कालाजोर के बाहरी इलाके में थी, जिसे अब सालों से बंद घोषित किया गया था। कागज़ों में वो एक धूल भरी इमारत थी—पर अगर बाबा खान सही था, तो कागज़ से बड़ा झूठ कोई नहीं।
उसने इंस्पेक्टर प्रभात और कांस्टेबल रमेश को साथ लिया और शाम ढलते ही उस प्रेस की ओर रवाना हुई।
कर्पूर प्रेस तक पहुँचने का रास्ता जंगल के बीच से जाता था। पुराने बिजली के खंभे, टूटी सड़कों, और जंग लगे बोर्ड से होते हुए जब वे वहाँ पहुँचे, तो सामने एक उँची चारदीवारी और लोहे का भारी दरवाज़ा था, जिस पर जाले जमे थे।
“लगता है सालों से बंद पड़ा है,” प्रभात ने कहा।
“अक्सर जो सबसे बंद होता है, वो अंदर से सबसे ज़्यादा ज़िंदा होता है,” अवनि बोली।
रमेश ने लॉक तोड़ने के लिए रॉड निकाली। कुछ ही सेकंड में दरवाज़ा चरमराकर खुला। अंदर अंधेरा था, लेकिन दम घुटाने वाली सड़ी कागज़ की बदबू साफ़ महसूस हो रही थी।
दीवारों पर पुराने अखबारों की पीली कटिंग्स चिपकी थीं, और प्रेस मशीनों पर धूल की मोटी परत। लेकिन कुछ चीजें थीं जो हाल की लग रही थीं—जैसे किसी ने उन्हें बार-बार छुआ हो।
“यहाँ कोई आता है,” अवनि ने फुसफुसाया।
तभी उन्हें एक आवाज़ सुनाई दी—धीमी-सी खुसर-फुसर।
“कोई है यहाँ,” रमेश ने कहा और अपनी टॉर्च चालू की।
वे धीरे-धीरे आगे बढ़े। प्रेस के एक कोने में एक पुराना रैक दिखा, जिसमें कुछ रजिस्टर और फाइलें रखी थीं। फाइलों में नाम थे—‘Case 372’, ‘Rai Family’, ‘Black List 8B’…
अवनि ने एक फाइल उठाई, जिसमें उसके भाई अक्षय की तस्वीर लगी थी।
“ये क्या—?”
उसने फाइल खोली, तो उसमें अक्षय की हर गतिविधि की रिपोर्ट थी—उसकी ट्रैवल हिस्ट्री, कॉल रिकॉर्ड्स, ईमेल प्रिंटआउट, और यहाँ तक कि उस रात की तस्वीरें भी जब वह खदान में गया था।
“मतलब… उसे मारा गया, क्योंकि वो यहाँ तक पहुँच गया था,” प्रभात बोला।
अवनि की आँखों में आँसू उतर आए। “उसने जान की कीमत पर सच खोजा… अब मैं उसकी लड़ाई खत्म करूँगी।”
तभी एक ज़ोर की आवाज़ आई—“रुको!”
तीनों पीछे मुड़े। तीन हथियारबंद लोग दरवाज़े पर खड़े थे। चेहरों पर नकाब, हाथों में एके-47।
“फाइल नीचे रखो, और बाहर निकलो,” उनमें से एक बोला।
“तुम लोग कौन हो?” अवनि ने पूछा।
“हम वो हैं जिन्हें दुनिया कभी देखती नहीं, पर डरती सबसे ज़्यादा है।”
“तुम लोग ही ‘ऊपर वाले’ हो?”
“नहीं,” वो आदमी हँसा, “हम सिर्फ उसके सैनिक हैं। असली चेहरा तो तुम्हारे ही साथ रोज़ तस्वीरों में होता है—कभी उद्घाटन में, कभी भाषणों में, कभी हाथ जोड़ते हुए।”
अवनि ने धीमे से अपनी जेब से एक डिवाइस निकाली और बटन दबाया—वो एक लाइव ट्रांसमिटिंग माइक्रोफोन था, जो थाने के कंट्रोल रूम से जुड़ा था।
“अब सब सुन रहे हैं,” उसने मन ही मन सोचा।
“अगर तुम सच में ईमानदार हो,” नकाबपोश बोला, “तो यहाँ से बाहर नहीं निकल पाओगी। तुम्हारे जैसे लोग एक-एक करके मिटा दिए जाते हैं। दुनिया को फर्क नहीं पड़ता।”
“दुनिया को फर्क तब तक नहीं पड़ता, जब तक किसी की चीखें दीवारों के पार नहीं पहुँचतीं,” अवनि ने दृढ़ता से कहा।
तभी एक गोली चली, और रमेश की बाँह से खून निकल पड़ा।
“रुक जाओ!” प्रभात ने चिल्लाया और अपनी पिस्टल निकाल ली।
लेकिन इससे पहले कि कोई और गोली चलती, बाहर से पुलिस की सायरन गूंज उठी। अवनि के सिग्नल पर भेजी गई बैकअप टीम आ चुकी थी।
तीनों नकाबपोश भागने लगे। एक को प्रभात ने टांग मार कर गिरा दिया। नकाब उतारा गया—एक चौंकाने वाला चेहरा सामने आया।
“ये तो नगरपालिका का अफ़सर है!” रमेश चौंका।
“मतलब… ये नेटवर्क सिर्फ गुंडों का नहीं, अफसरों का भी है,” अवनि फुसफुसाई।
कर्पूर प्रेस को सील कर दिया गया। वहाँ से मिली फाइलें और कंप्यूटर जब्त हुए। अक्षय की मौत की गुत्थी अब खुल चुकी थी—पर कहानी अब कहीं बड़ी हो गई थी।
अवनि उस रात अपनी डेस्क पर बैठी, अक्षय की तस्वीर देखती रही।
“तुमने जो शुरू किया था, वो अब मैं खत्म करूँगी।”
लेकिन तभी उसके मोबाइल पर एक अनजान नंबर से मैसेज आया—
“तुमने धुआँ हटा दिया है। अब आग से मिलो।”
5
रात के सन्नाटे में भी कालाजोर का कोयला जलता रहा। उसकी गंध हवा को चीरती हुई हर कोने में फैल रही थी, जैसे कोई अदृश्य शक्ति पूरे शहर पर अपना कब्ज़ा जमाए बैठी हो। पुलिस स्टेशन की खिड़की से बाहर देखते हुए अवनि राय का चेहरा और भी कठोर हो गया था। उस अनजान मैसेज की आखिरी पंक्ति अब भी उसकी आँखों में गूंज रही थी—“अब आग से मिलो।”
इस एक वाक्य ने साफ कर दिया था कि मामला अब शीत युद्ध से गरम मोर्चे की ओर बढ़ चुका था।
अगली सुबह थाने में एक नया मामला दर्ज हुआ। खदान क्षेत्र 17-B में रात को एक मजदूर लापता हो गया था। नाम—श्यामल महतो। रिपोर्ट देने वाला उसका भाई था, जो थरथराते हुए बोला, “वो कल रात ड्यूटी पर गया था, फिर वापस नहीं आया। चौकीदार कहता है, उसने कुछ अजीब गंध महसूस की थी, जैसे कुछ जल रहा हो… और फिर खामोशी।”
अवनि की आँखें सिकुड़ गईं। “क्या खदान में आग लगाई गई?”
“नहीं, मैडम,” प्रभात बोला, “कोई रपट नहीं है। लेकिन मजदूरों में डर फैल गया है। सब कह रहे हैं खदान में ‘भूत’ है।”
“भूत नहीं, डर की अफ़वाहें हैं। लेकिन अफ़वाहें भी अक्सर किसी सच्चाई की परछाई होती हैं,” अवनि बोली।
वह जानती थी—ये लापता होना महज़ इत्तेफ़ाक़ नहीं। ये संदेश है। धमकी।
“आज रात मैं खुद खदान क्षेत्र 17-B जाऊँगी,” उसने कहा।
“मैडम, ये इलाका सबसे पुराना है। वहाँ के कुछ हिस्से सील हैं, बहुत खतरनाक—”
“खतरनाक तो वो सिस्टम है जो सच्चाई से डरता है। चलो।”
रात के दस बजे। पुलिस की जीप खदान के उस हिस्से के बाहर रुकी जहाँ मजदूर श्यामल आखिरी बार देखा गया था। चारों तरफ घना अंधेरा और अजीब सन्नाटा था। सिर्फ मशीनों की दूर से आती आवाज़, और कुछ जलती हुई लकड़ियों की चटक।
अवनि ने हेलमेट और टॉर्च पहन ली। प्रभात, रमेश और दो अन्य कांस्टेबल्स उसके साथ थे।
खदान की गहराई में उतरते ही बदबू तेज़ हो गई। ऐसा लग रहा था जैसे ज़मीन के नीचे कोई सड़ रहा हो—शरीर नहीं, शायद इंसानियत।
एक पुराना सुरंगनुमा रास्ता दिखा, जिस पर “SECTOR 8C – RESTRICTED” लिखा था।
“यही है,” अवनि ने कहा। “श्यामल की शिफ्ट यहीं थी।”
सुरंग के अंदर की हवा और भी भारी थी। दीवारों पर खून जैसे धब्बे, आधे टूटे-फूटे औजार और किसी के पैरों के निशान… जो धीरे-धीरे गहराई की ओर बढ़ते जा रहे थे।
“ये निशान ताजे हैं,” रमेश बोला।
अवनि ने टॉर्च की रोशनी आगे डाली, तभी एक चमचमाता धातु का टुकड़ा दिखा—एक बैज, जिस पर “श्रमिक नं. 342 – श्यामल महतो” खुदा हुआ था।
“श्यामल यहीं था। और अब…” वह आगे बढ़ी।
अचानक दीवार के एक कोने से हल्की सी सरसराहट सुनाई दी।
“कौन है वहाँ?” प्रभात ने चिल्लाया।
कोई जवाब नहीं। सिर्फ एक परछाईं सी आगे दौड़ती दिखाई दी।
अवनि ने बिना वक्त गंवाए पीछा किया। सुरंग में दौड़ते हुए उनके कदमों की आवाज़ और साँसों की गर्मी सब एक भयानक थ्रिल पैदा कर रही थी।
आगे जाकर सुरंग एक गुप्त कमरे में खुलती थी। वहाँ बिजली का इंतज़ाम था—जिसका मतलब था कि कोई वहाँ नियमित आता था।
उस कमरे में एक कुर्सी थी, उस पर बैठा एक आदमी। आँखें खुली हुईं लेकिन शरीर निश्चल।
श्यामल महतो।
“वो… मर गया?” प्रभात फुसफुसाया।
“नहीं,” अवनि ने पास जाकर देखा, “वो बेहोश है। ज़हर… शायद गैस का असर।”
दीवार पर एक कागज चिपका था—लाल स्याही से लिखा हुआ—
“जहाँ अंधेरे में सच्चाई खोजोगी, वहाँ साँस भी चोरी हो जाएगी।”
अवनि की साँस थम गई। ये मामला अब महज़ माफिया तक सीमित नहीं था। कोई ऐसे ट्रैप्स बिछा रहा था जिससे सच्चाई की राह ही मौत का रास्ता बन जाए।
श्यामल को होश में लाने के लिए CPR दी गई। कुछ देर में उसने आँखें खोलीं।
“श्यामल… क्या हुआ था?” अवनि ने पूछा।
“मैं… मैं बस ड्यूटी कर रहा था, मैडम। तभी… कोई गंध आई। फिर दो आदमी आए। उन्होंने कहा—‘तू ज़्यादा नहीं देखेगा।’ फिर… अंधेरा।”
“क्या तुम उन्हें पहचान सकते हो?”
“एक की आँखें अजीब थीं… जैसे किसी साँप की…”
अवनि ने एक लंबी साँस ली। “अब तुम सुरक्षित हो।”
खदान से निकलते ही अवनि ने देखा—सामने कुछ कैमरे फ्लैश कर रहे थे। मीडिया आ चुकी थी।
“मैडम, बाबा खान की गिरफ्तारी के बाद क्या आपको लगता है कि ये माफिया अब कमजोर हो चुका है?” एक पत्रकार ने पूछा।
“कमजोर वो नहीं हुआ है,” अवनि बोली, “लेकिन अब वो छिप नहीं सकता।”
“क्या आपको जान का खतरा है?”
“जो सच्चाई के लिए निकले, उसके लिए खतरा रास्ता नहीं, मंज़िल होता है।”
तभी एक पत्रकार ने मोबाइल दिखाया। एक वीडियो वायरल हो रहा था—बाबा खान जेल से बयान दे रहा था:
“मैं गिरा नहीं हूँ, सिर्फ झुका हूँ। जिस दिन उठूँगा, कालाजोर काँपेगा।”
अवनि ने स्क्रीन को देखा, और मुस्कराई। “काँपने की बारी अब उसकी है।”
लेकिन तभी उसके मोबाइल पर एक और मैसेज आया—
“भूल गईं क्या? आग का दूसरा चेहरा अब आने वाला है। जगह – स्टेशन की तीसरी सुरंग। समय – कल रात 11 बजे।”
ये एक चुनौती थी। एक नया मोर्चा। खदानों से अब शहर की नसों तक जहर फैलाया जा रहा था।
और अवनि जानती थी—
अब सिर्फ लड़ाई नहीं… जंग शुरू हो चुकी थी।
6
कालाजोर रेलवे स्टेशन रात के वक्त और भी भयावह हो जाता था। पुराने पीले बल्बों की मद्धम रोशनी, खस्ताहाल बेंचों पर झपकी ले रहे मजदूर, और दूर किसी इंजन की लंबी चीख जैसे समय को जकड़े हुए हो। लेकिन इस रात कुछ अलग था। घड़ी की सुई जैसे एक ख़ास वक्त का इंतज़ार कर रही थी—रात 11 बजे, जब अवनि राय को किसी अनजान दुश्मन ने स्टेशन की तीसरी सुरंग में बुलाया था।
“यह जाल हो सकता है, मैडम,” प्रभात ने चिंतित होकर कहा।
“जाल ही सही, लेकिन मैं उस शिकारी को पहचानना चाहती हूँ जो इतने लंबे वक्त से छिपा बैठा है,” अवनि ने दृढ़ता से कहा।
तीन जवानों के साथ, हथियार और वायरलेस रेडियो से लैस होकर, वह स्टेशन के उस पुराने हिस्से की ओर बढ़ी जहाँ तीसरी सुरंग थी—जिसे अब वर्षों से इस्तेमाल नहीं किया गया था। वहाँ जाने वाला रास्ता स्टाफ और मालगाड़ी के लिए आरक्षित था, और आम लोगों की नज़र से दूर।
सुरंग का मुँह लोहे की ग्रिल से बंद था, लेकिन किसी ने उसे पहले से ही खोल रखा था। ग्रिल आधी खुली थी, जैसे किसी ने जानबूझकर अवनि के लिए रास्ता छोड़ दिया हो।
अंदर घुसते ही उन्हें एक तेज़ अजीब सी गंध महसूस हुई—जैसे पुराने कोयले और किसी के जलने की मिली-जुली बदबू।
टॉर्च की रोशनी में सुरंग की दीवारें अजीब ढंग से चमक रही थीं, मानो किसी रसायन से पोती गई हों।
“मैडम, ये जगह… अजीब है,” रमेश फुसफुसाया।
“अजीब नहीं, योजनाबद्ध है,” अवनि ने कहा।
तभी सुरंग के बीचोंबीच एक तेज़ रोशनी चमकी। एक प्रोजेक्टर जैसा कुछ था, और दीवार पर एक वीडियो चलने लगा।
बाबा खान की आवाज़ गूंजने लगी—
“जब सिस्टम खुद बिक जाए, तो ईमानदारी अपराध बन जाती है। अवनि राय, तुमने मेरे रास्ते के पत्थर हटाए नहीं, सिर्फ उन्हें एक दूसरे से टकरा दिया है। अब देखो, आग कैसे फैलेगी…”
वीडियो में अगले पल एक क्लिप चली—किसी गुप्त बैठक की। एक गोल टेबल पर नेता, उद्योगपति, और पुलिस अफसर बैठे थे। उन सबकी शक्लें धुंधली थीं, पर आवाज़ें साफ़ थीं।
“कालाजोर कोयला खदान अब सिंगापुर की शेल कंपनी के नाम ट्रांसफर कर दी जाए। मुनाफे का 15% ऊपर जाएगा, बाकी नीचे बाँट लिया जाए।”
“और पत्रकार अक्षय राय?”
“उसका चैप्टर बंद। अब उसकी बहन पर नज़र रखो। बहुत आवाज़ निकाल रही है।”
अवनि की साँसें तेज़ हो गईं।
“ये वो चेहरा है जो हमें दिखता नहीं, मगर सबकुछ नियंत्रित करता है,” उसने बुदबुदाया।
तभी सुरंग के छोर से एक आवाज़ आई—“वीडियो अच्छा था न, मैडम?”
सामने से एक आदमी आता दिखा। लंबा, सफेद कुरता, और चेहरे पर परिचित मुस्कान।
आईजी एस.के. मिश्रा।
“आप?” प्रभात ने दंग होकर कहा।
“हाँ,” मिश्रा ने कहा, “तुम लोगों ने जिसे पुलिस का मुखिया समझा, वो असल में इस सिस्टम का मुख्य मैनेजर है।”
“आप मेरे भाई की मौत के पीछे हैं?” अवनि की आवाज काँपने लगी।
“तुम्हारा भाई ज़्यादा सवाल पूछने लगा था। हमने पहले उसे चेतावनी दी, लेकिन वो न रुका। और तुम? तुमने तो हमारे सारे नक्शे उलट दिए।”
“आप एक अफ़सर होकर देशद्रोहियों की तरह बर्ताव कर रहे हैं!”
“देश और मुनाफा एक साथ नहीं चल सकते, अवनि। यहाँ जो बिकता है, वो देश नहीं, सिर्फ उसका ज़मीर होता है।”
अवनि ने गुस्से में पिस्टल निकाली। “आप अरेस्टेड हैं।”
“मैं?” मिश्रा हँसा, “अभी भी तुम सोचती हो कि तुम जीत सकती हो? मेरी एक कॉल पर यहाँ सबकुछ साफ़ हो जाएगा।”
लेकिन तभी एक और आवाज़ गूंजी—“इस बार कॉल हमने किया था, सर।”
पीछे से इंस्पेक्टर प्रभात ने अपना वायरलेस उठाया। “एसीपी जोशी, टीम को भेजिए।”
सुरंग के बाहर सायरन गूंजने लगे।
मिश्रा का चेहरा स्याह हो गया।
“हमने आपकी बातों को लाइव ट्रांसमिट किया, सर,” अवनि बोली, “अब आपकी आवाज़ सिर्फ हम नहीं, दिल्ली तक सुन चुका है।”
आईजी मिश्रा भागने को पलटा, लेकिन कांस्टेबल रमेश ने उसे पकड़ लिया।
“अब देश की ज़मीर बिकेगी नहीं, जागेगी।”
अगली सुबह, कालाजोर का अखबार जिस हेडलाइन से छपा, वो थी—
“आईजी मिश्रा गिरफ्तार, अवैध कोयला घोटाले का मास्टरमाइंड निकला”
अवनि को राजधानी से फोन आया—सम्मान, पदोन्नति और विशेष मिशन के लिए आमंत्रण।
लेकिन उसकी आँखें अभी भी एक तस्वीर पर टिकी थीं—उसके भाई अक्षय की, जो अपनी छोटी सी नोटबुक लिए मुस्कुरा रहा था।
दोपहर में पत्रकार मनोज तिवारी मिलने आए।
“अवनि, तुमने असंभव कर दिखाया।”
“नहीं मनोज जी, असंभव तो अक्षय ने किया था। मैं सिर्फ उसकी राह पर चली।”
मनोज ने एक पीले लिफाफे से एक और फाइल निकाली।
“ये तुम्हें पहले देनी थी… ये उस नेता की फाइल है जो मिश्रा को चलाता था।”
“कौन?”
“नाम है—विधायक हरिनारायण दुबे।”
अवनि की आँखें ठंडी हो गईं। “तो अब अगला मोर्चा विधानभवन है।”
रात को कालाजोर में पहली बार पुलिस स्टेशन पर कोई मोमबत्ती जल रही थी—अक्षय की स्मृति में। मजदूर, पत्रकार, बच्चे—सब आए थे।
एक छोटी लड़की ने कहा, “मैडम, अब हम डरेंगे नहीं।”
अवनि ने मुस्कराकर कहा, “तभी तो मैं अब तक लड़ रही हूँ।”
लेकिन कहीं दूर, राजधानी के किसी आलीशान बंगले में एक बूढ़ा आदमी टीवी बंद कर रहा था।
“अवनि राय… अब मैं खुद उतरूँगा मैदान में।”
7
कालाजोर के पुराने मालगाड़ी स्टेशन पर सूरज की किरणें भी डरते-डरते उतरती थीं। यहां से रोज़ रात को दर्जनों ट्रक और मालगाड़ियाँ निकलती थीं—कुछ वैध लदान लेकर, और अधिकतर… उन अवैध कोयले की परछाइयों के साथ, जिन पर न कोई टैक्स था, न कोई ट्रैकिंग। अवनि राय जानती थीं, अगर खदानें इस कहानी का पेट थीं, तो ये मालगाड़ियाँ उसकी नाभि—जहां से सारा भ्रष्टाचार बहकर देश के नक्शे पर फैल जाता था।
आईजी मिश्रा की गिरफ्तारी के बाद केस का माहौल गरम हो चुका था। पर असली युद्ध अब भी बाकी था। वो सत्ता, जो पर्दे के पीछे से मिश्रा जैसे मोहरे चलाती थी, अब धीरे-धीरे अपनी गरदन उठाने लगी थी। और वो नाम था—हरिनारायण दुबे, प्रदेश का ताकतवर विधायक, जिसे लोग “खदानों का भगवान” कहते थे।
लेकिन सीधे दुबे तक पहुंचना आसान नहीं था। इसलिए अवनि ने योजना बनाई—कोयले की तस्करी की मालगाड़ियों को ट्रैक करना शुरू करो।
वो जानती थीं, अगर इस गंदी नदी का स्रोत खोजना है, तो उसके बहाव को उल्टा पढ़ना होगा।
“मैडम, यह रही लिस्ट,” प्रभात ने एक फ़ाइल सामने रखी। “पिछले छह महीनों में खदान 17-B से निकलने वाली मालगाड़ियों की सूची। ज़्यादातर रात को 1:15 से 2:30 के बीच निकलती हैं। लदान के पेपर में लिखा है—सरकारी कोयला, गंतव्य: बरौनी। लेकिन…”
“लेकिन?” अवनि ने पूछा।
“GPS लॉग में वो गाड़ियाँ बरौनी पहुंची ही नहीं। बीच रास्ते में सिग्नल गायब हो जाता है।”
अवनि ने टेबल पर उँगली से नक्सा खींचा।
“कहाँ गायब होता है?”
“यहाँ… गुमनी स्टेशन। एक छोटा-सा परित्यक्त स्टेशन, जिसे वर्षों पहले बंद घोषित कर दिया गया था। लेकिन वहाँ आज भी कुछ ट्रैक्स चालू हैं।”
“और वहां CCTV नहीं?”
“नहीं, मैडम। वह ‘घोस्ट स्टेशन’ कहलाता है।”
अवनि की आँखों में चमक आई। “यही है हमारा ट्रैक। मौत का ट्रैक।”
अगली रात। अवनि, प्रभात, और दो जवान एक गुप्त वैन में बैठकर गुमनी स्टेशन के पास की पहाड़ियों में निगरानी के लिए तैनात हो गए। दूर से दिख रहा था—पुराना सिग्नल पोस्ट, टूटी हुई बेंचें, और एक खंडहर जैसी वेटिंग रूम बिल्डिंग। लेकिन स्टेशन के पास दो गार्ड बिना वर्दी के गश्त लगा रहे थे—बंद स्टेशन पर गार्ड?
“कोई बड़ा खेल है यहाँ,” प्रभात फुसफुसाया।
रात के 2:07 बजे, दूर से एक इंजन की आवाज़ आई। धुएँ और सीटी के साथ एक लंबी मालगाड़ी प्लेटफार्म 3 पर आकर रुकी। कुछ आदमी तुरंत गाड़ी के डिब्बे खोलने लगे।
टॉर्च की रोशनी में दिखा—डिब्बों में काला कोयला नहीं, काले बक्से थे।
“ये तो… मशीनें लगती हैं,” रमेश ने कहा।
अवनि ने बायनोक्यूलर से देखा—वो कोयला नहीं था। वो था आयातित उपकरण, ड्रग्स के डिब्बे, और हथियारों के पैकेट।
“ये तस्करी सिर्फ कोयले की नहीं है, प्रभात। ये आतंक के लिए रास्ता बना रहा है।”
तभी उन्होंने देखा, एक SUV प्लेटफार्म के पास रुकी, और उससे उतरा एक भारी कद का आदमी। लंबे बाल, सुनहरे रिम वाले चश्मे, और गले में रुद्राक्ष की माला।
“वो हरिनारायण दुबे है!” प्रभात फुसफुसाया।
“रिकॉर्डिंग चालू है?” अवनि ने पूछा।
“हाँ, मैडम,” रमेश ने कहा।
दुबे मोबाइल पर बात कर रहा था—
“सिर्फ खदान नहीं, अब हथियार भी इसी रास्ते से जाएंगे। सीमा पार वालों को बताओ—डील डन है। और हाँ, उस लड़की अफसर की रिपोर्ट मुझे भेजो। उसका ट्रांसफर करवा देते हैं। या… एक्सीडेंट।”
अवनि की मुट्ठियाँ भींच गईं। वो अब और इंतज़ार नहीं कर सकती थी।
“हमेशा कागज़ों के पीछे छुपे रहने वाला, आज सिग्नल के नीचे खड़ा है। चलो!” उसने आदेश दिया।
चारों पुलिसकर्मी चुपचाप ढलान से नीचे उतरे। ट्रेन अभी भी खड़ी थी। जैसे ही दुबे ने दो लोगों से हाथ मिलाया, अवनि ने आगे बढ़कर कहा—“हरिनारायण दुबे, आप गिरफ्तार हैं। देशद्रोह, तस्करी, हत्या की साजिश, और पुलिस अफसर को धमकाने के आरोप में।”
दुबे ने चौंककर अवनि को देखा, फिर हँसा।
“बहुत बहादुर हो तुम, बेटी। लेकिन ये जंगल मेरा है। यहाँ कानून मेरा चलता है।”
“अब नहीं,” अवनि बोली, “अब तुम्हारी दुनिया की पटरी बदल चुकी है।”
दुबे ने एक इशारा किया। दो गुंडे बंदूकें निकालकर गोली चलाने ही वाले थे कि प्रभात और रमेश ने उन्हें कंधे से धकेलकर हथियार गिरा दिए। दुबे भागने की कोशिश कर ही रहा था कि अवनि ने उसे पीछे से कॉलर से पकड़कर ज़मीन पर गिरा दिया।
“तुम्हारा गला जितना ऊँचा चढ़ा था, उतना ही गहराई में गिरोगे,” उसने कहा।
अगली सुबह, कालाजोर की मीडिया ने जो हेडलाइन दी, उसने पूरा प्रदेश हिला दिया—
“MLA हरिनारायण दुबे गिरफ्तार, हथियारों और ड्रग्स की अंतरराष्ट्रीय तस्करी में भूमिका उजागर”
दिल्ली से विशेष टीम जाँच के लिए भेजी गई।
पर इस सबके बीच, एक खबर सबसे चौंकाने वाली थी—दुबे की गिरफ्तारी के कुछ घंटों के भीतर ही जेल में उसकी संदिग्ध मौत।
“हार्ट अटैक,” रिपोर्ट में लिखा था।
लेकिन अवनि समझ चुकी थी—
ये हार्ट अटैक नहीं था, ये सिस्टमिक क्लीनअप था।
सिस्टम अब अपने ही सबूत मिटाने लगा था।
उस रात, अवनि थकी हुई थी, लेकिन उसका मन शांत नहीं। उसने अक्षय की डायरी के आखिरी पन्ने पलटे। उसमें बस एक लाइन लिखी थी—
“अगर तुम भी डर गई, तो सच हमेशा दफन रहेगा।”
अवनि ने बाहर झाँका—कोयले की धूल अब भी उड़ रही थी। लेकिन आज उसमें एक उम्मीद घुली हुई थी।
पर तभी दरवाज़े के नीचे से एक चिट्ठी सरकाई गई।
उसमें सिर्फ एक वाक्य लिखा था—
“अब आखिरी कोयला तुम्हारे घर की छत पर गिरेगा।”
8
देर रात तक कालाजोर की सड़कों पर सन्नाटा पसरा था, लेकिन अवनि राय के सरकारी क्वार्टर में एक युद्ध जारी था—भीतर और बाहर, दोनों। चुपके से दरवाज़े के नीचे सरकाई गई वह चिट्ठी उसके सामने खुली पड़ी थी—
“अब आखिरी कोयला तुम्हारे घर की छत पर गिरेगा।”
यह महज़ धमकी नहीं थी। यह उन लोगों की घोषणा थी जो सत्ता, धन और खून के खेल में खुद को अजेय समझते थे। लेकिन अवनि भी अब सिर्फ एक आईपीएस अफसर नहीं रही थी—वो एक बहन थी, एक प्रतिशोध थी, और सबसे बढ़कर, एक ज़िंदा ज़मीर थी।
उसने तुरंत सुरक्षा कड़ा कर दिया, लेकिन जानती थी—जो हमला करना चाहते हैं, वो सिर्फ गोली से नहीं, चरित्र, परिवार, और आत्मा पर वार करते हैं।
और अगली सुबह, उसकी यही आशंका सच हो गई।
एक वायरल वीडियो ने कालाजोर को हिला दिया। एक न्यूज चैनल पर अचानक एक फुटेज चला—जिसमें अवनि राय को किसी उद्योगपति के साथ होटल के कमरे में दिखाया गया था। वीडियो में उनकी बातचीत को तोड़-मरोड़कर दिखाया गया, जैसे वो भी इस घोटाले में शामिल रही हों।
“एक औरत का ईमान कितना बिकता है?”
—हेडलाइन थी।
“सिस्टम ने जब दुश्मनी निभानी शुरू की, तो अब वो हर मोर्चे पर वार करेगा,” प्रभात ने कहा।
अवनि ने चैनल को कानूनी नोटिस भिजवाया, लेकिन तब तक सोशल मीडिया पर लोग दो हिस्सों में बंट चुके थे। कुछ समर्थन में, और कुछ नफरत में। वो जानती थी—यही होती है सच की कीमत।
उसने चुप रहने का नहीं, सामना करने का फैसला किया।
“अब हमें सबूत चाहिए। एक ऐसा सबूत, जो सिर्फ आरोपों को खारिज न करे, बल्कि इस पूरे जाल को तोड़ दे,” उसने कहा।
“एक आदमी है, मैडम,” प्रभात ने कहा, “एक मुखबिर जो पहले दुबे के लिए काम करता था। उसका नाम है इरफान अंसारी। वो कुछ महीने पहले गायब हो गया, लेकिन आखिरी बार गुमनी स्टेशन के पास एक झोपड़ी में देखा गया था।”
“उसे ढूंढो। अब हर मिनट ज़रूरी है।”
उधर, उसी समय एक परित्यक्त टेलीफोन बूथ में इरफान अंसारी अपनी टूटी बैसाखी के सहारे बैठा था। आँखों में डर और मुँह में दवा की कड़वाहट। वो पहले दुबे के लिए ट्रैकिंग और माल लोडिंग की निगरानी करता था। लेकिन जब उसने एक ट्रेन में हथियार और ज़हरीले रसायनों के डिब्बे देखे, तो वो डर गया। भाग निकला।
“जो सच जान ले, उसकी साँसें गिनी जाती हैं,” उसने खुद से कहा।
तभी दरवाज़ा खुला।
“इरफान?” अवनि की आवाज आई।
वो चौंका, पर फिर थरथराते हुए बोला, “आप… आप वही हैं जिसने दुबे को गिराया?”
“मैं वही हूँ जिसकी आवाज़ अब वे दबाना चाहते हैं। और मुझे तुम्हारी ज़रूरत है, इरफान।”
वो काँपा। “मैडम, मेरे पास वीडियो है। जिसमें दुबे, मिश्रा, और दिल्ली के कुछ बड़े नामों के बीच खुफिया मीटिंग रिकॉर्ड है। लेकिन… वो रिकॉर्डिंग अब मेरे पास नहीं। मैंने उसे अपने पुराने दोस्त रईस के पास दे दिया था—अगर मुझे कुछ हो जाए तो वो बाहर लीक कर दे।”
“रईस कहाँ है?”
“कोल ब्लॉक C-5 की चाय की दुकान पर काम करता है।”
अवनि उसी रात ब्लॉक C-5 पहुँची। धूल, ट्रक, और धुएँ के बीच एक छोटी-सी दुकान थी—जिस पर लिखा था:
“रईस टी स्टॉल – चाय नहीं, राहत देते हैं”
वहाँ एक दुबला-पतला लड़का भट्टी के पास बैठा था। जब अवनि ने उसका नाम पुकारा, तो वो हड़बड़ा गया।
“मैडम… इरफान ठीक है?”
“तुम्हारा वीडियो कहाँ है, रईस?”
उसने एक थैला खोलकर एक छोटा सा पेनड्राइव निकाला।
“पर इसे चलाना खतरे से खाली नहीं। इसमें बहुत बड़े लोग हैं। अगर आपने इसे ऑन एयर किया, तो…”
“तो सच को आज़ादी मिल जाएगी।”
अवनि ने फौरन कंट्रोल रूम को आदेश दिया—इस वीडियो को राज्य पुलिस चैनल पर और सभी वैध मीडिया पर लाइव किया जाए।
रात 9:00 बजे।
पूरे प्रदेश में टीवी स्क्रीन पर एक वीडियो चलने लगा—
एक मीटिंग रूम, जहाँ कुछ चेहरे साफ थे और कुछ धुंधले। लेकिन आवाज़ें स्पष्ट थीं।
“कालाजोर हमारा बेस है। यहाँ से सिर्फ कोयला नहीं, पॉलिटिकल फंडिंग, ड्रग्स और डेटा ट्रांसफर सब होता है।”
“और अवनि राय?”
“उसे या तो बिकाओ, नहीं तो मिटाओ।”
“वीडियो तोड़कर मीडिया को भेज दो। चरित्र हनन से अच्छा कोई हथियार नहीं होता।”
वीडियो के अंत में एक समय और तारीख भी थी—जो उसी वायरल वीडियो के एक दिन पहले की थी।
अब साफ हो गया था—अवनि पर किया गया चरित्र-प्रहार सुनियोजित था।
अगली सुबह पूरे देश की मीडिया ने यू-टर्न लिया।
“साहसी अफसर के खिलाफ साजिश बेनकाब!”
“कालाजोर केस में नया मोड़, कई बड़े नेता घेरे में”
अवनि को हाई-लेवल सिक्योरिटी मिली, और मामले की जाँच अब CBI को सौंप दी गई।
लेकिन वो जानती थी—लड़ाई अभी भी अधूरी है।
क्योंकि ज़हर अब शहर की दीवारों से नीचे बह रहा था।
दोपहर को किसी ने दरवाज़े की घंटी बजाई।
अवनि ने खोला—सामने एक 13 साल की लड़की थी, हाथ में अक्षय की एक पुरानी फोटो।
“ये मेरे पापा हैं,” उसने कहा।
अवनि कुछ पल को स्तब्ध रह गई।
“मैं आपकी भांजी हूँ। मम्मी ने अब सच बताया है।”
अवनि के होंठ कांपने लगे।
लड़की ने कहा, “आप लड़ रही हैं ना, ताकि उनकी मौत व्यर्थ न जाए?”
अवनि ने उसे गले से लगा लिया।
“नहीं बेटी, अब वो कहानी नहीं रहेगी… अब वो इतिहास बनेगी।”
9
कालाजोर में अब न सन्नाटा था, न हाहाकार। यह वह पल था जब शहर खुद को आईने में देखने लगा था—जिसमें धूल, खून, और वर्दी की जंग के निशान साफ़ थे। अवनि राय के साहस और इरादे ने सत्ता के उन दरवाज़ों को हिला दिया था, जो वर्षों से बंद थे। लेकिन हर क्रांति की सबसे बड़ी कीमत तब चुकानी पड़ती है, जब वो सिस्टम की जड़ों तक पहुँचने लगती है।
और अब… सिस्टम पलटवार कर चुका था।
सुबह 8:00 बजे अवनि अपने क्वार्टर से निकल रही थीं, तभी एक अधिकारी उनके पास एक सीलबंद लिफ़ाफ़ा लेकर आया।
“मैडम, डीजी ऑफिस से आया है।”
अवनि ने लिफाफा खोला और पढ़ते ही उसकी भौंहें तन गईं।
“आपको तत्काल प्रभाव से अवकाश पर भेजा जाता है। जांच की प्रक्रिया के दौरान आप कोई अधिकारिक कार्य नहीं करेंगी।”
नीचे हस्ताक्षर था: राज्य के गृह सचिव।
प्रभात और रमेश वहीं खड़े थे। “मैडम, ये तो…?”
“हां, यही है सिस्टम का तरीका। जब उसे हरा नहीं सकते, तो उसे थका दो।”
“आप कुछ नहीं करेंगी?” रमेश ने पूछा।
“करूंगी। लेकिन अब बतौर अफसर नहीं, एक नागरिक के तौर पर। और यही वर्दी की सबसे बड़ी आग होती है—जब बिना उसे पहने भी इंसान अपने कर्तव्य को जिंदा रखे।”
इसी बीच, सीबीआई की टीम कालाजोर पहुंच चुकी थी। मीडिया, आम नागरिक और मजदूर—अब सब अवनि के साथ खड़े थे। लेकिन राजनैतिक गलियारों में हलचल थी। कई नेता अब खुलकर बयान देने लगे थे—
“अवनि राय अपनी सीमाएं लांघ रही थीं। पुलिस अफसर को कानून से ऊपर नहीं होना चाहिए।”
“यह महिला अफसर अपनी व्यक्तिगत दुश्मनी को जनहित का नाम दे रही है।”
सभी जानते थे—सच जितना करीब आता है, उसका विरोध उतना ही संगठित हो जाता है।
लेकिन सबसे बड़ा झटका तब लगा जब बाबा खान की जेल से फिर एक क्लिप वायरल हुई।
उसने जेल के अंदर से एक इंटरव्यू जैसा वीडियो रिकॉर्ड करवाया था, जिसमें वो कहता है—
“वर्दी उसकी होती है जिसकी गर्दन सीधी रहे। औरतों की गर्दनें कब तक सीधी रहती हैं?”
“अवनि राय को अब सोच लेना चाहिए—कोयले से खेलने वाले अक्सर जल जाते हैं।”
ये बयान वायरल हुआ। कुछ चैनलों ने इसे निंदा के साथ दिखाया, पर कई ने वही पुराना ज़हर परोसना शुरू कर दिया।
अवनि ने उस दिन पहली बार सार्वजनिक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई।
मंच पर वो अकेली खड़ी थीं—बिना वर्दी के, एक साधारण सलवार-कुर्ता में।
“मुझे निलंबित नहीं किया गया है। मुझे एक अवकाश दिया गया है, जो दिखावे का है। मुझे चुप कराने की कोशिश हो रही है, ताकि आप सब भी चुप रहें। लेकिन मैं आज वर्दी में नहीं, ज़मीर में खड़ी हूं।”
“आप पर आरोप हैं कि आपने सिस्टम की प्रक्रिया को तोड़ा है,” एक पत्रकार ने पूछा।
“मैंने नियम नहीं तोड़े, बल्कि उस साज़िश को उजागर किया जो नियमों की आड़ में देश को लूट रही थी। अगर सच बोलना गुनाह है, तो हां, मैं दोषी हूं। लेकिन अगर मैं रुक गई, तो हर वो लड़की, हर वो ईमानदार अफसर हार जाएगा जो ये मानता है कि देश के लिए कुछ किया जा सकता है।”
भीड़ में तालियाँ गूंजने लगीं। जनता अब अवनि के पीछे थी।
रात को अवनि ने अक्षय की भांजी—अनन्या—को साथ लेकर स्टेशन के उस हिस्से में गई जहां से वो पहली बार तीसरी सुरंग में दाखिल हुई थीं।
“तुम जानती हो अनन्या, तुम्हारे पापा ने इस सुरंग से क्या ढूंढा था?”
लड़की ने सिर हिलाया। “सच?”
“नहीं, उससे भी बड़ा कुछ—उम्मीद।”
“तो अब आप क्या ढूंढेंगी?”
“अब मैं ढूंढूंगी कि वर्दी पहनने से पहले इंसान को कितना मज़बूत बनना पड़ता है।”
लेकिन अगली सुबह एक धमाका हुआ।
खदान क्षेत्र 19-D में एक पुरानी सुरंग के अंदर विस्फोट हुआ। पांच मजदूर घायल, दो लापता।
CBI के अफसर मौके पर पहुंचे और पाया—यह दुर्घटना नहीं थी।
एक टाइमर डिवाइस मिला, और साथ में एक संदेश—
“अवनि को हटाओ, नहीं तो हर सुरंग श्मशान बन जाएगी।”
ये संदेश उस नेटवर्क से आया था जो अब भी जीवित था। मिश्रा और दुबे गिर चुके थे, लेकिन अब भी पर्दे के पीछे कोई ऐसा था जो हर धमाके के पीछे दिमाग चला रहा था।
CBI ने पहली बार अवनि से संपर्क किया।
“हमें आपके इनपुट्स चाहिए,” प्रमुख जांच अधिकारी बोले। “हम मानते हैं कि अब इस केस को आपसे बेहतर कोई नहीं समझ सकता।”
“तो फिर मुझे अधिकार दो। मैं सिर्फ दर्शक नहीं बन सकती।”
“आपको अधिकार वापस मिलेंगे… लेकिन एक शर्त पर—आपको फिर से वर्दी में लौटना होगा। और इस बार, खुला मोर्चा लेना होगा।”
अवनि ने मुस्कराकर कहा, “अब मैं रुकने के लिए नहीं लौटी। मैं उस आग को बुझाने लौटी हूं, जो खदान से निकलकर इंसानों की आत्मा जला रही है।”
शाम को राज्य सरकार की तरफ से बयान आया—
“आईपीएस अवनि राय को विशेष जांच इकाई का प्रमुख नियुक्त किया जाता है। उन्हें वर्दी में वापसी और सम्पूर्ण स्वतंत्रता दी जाती है।”
कालाजोर की जनता ने पहली बार किसी पुलिस अफसर के लिए जुलूस निकाला।
और उस दिन, रेलवे स्टेशन के छत पर कोई कोयला नहीं गिरा—
गिरी तो बस एक चिट्ठी—
“अब आखिरी अध्याय शुरू होगा। अगला निशाना—तुम्हारे अतीत की दीवार।”
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कालाजोर की हवाओं में पहली बार उम्मीद की हल्की बूँदें थीं। लेकिन किसी ने कहा था—जिस सच को उजागर करने में खून बहा हो, उसका अंत कभी आसान नहीं होता। अवनि राय ने मिश्रा को गिराया, दुबे को बेनकाब किया, और उस तस्करी नेटवर्क की नसें काटीं जो खदानों की आड़ में एक राष्ट्रविरोधी तंत्र चला रहा था। अब सरकार ने उन्हें विशेष जांच इकाई का प्रमुख बनाया था, और जनता उन्हें जन-सिपाही कहने लगी थी। पर उनके सामने आख़िरी गुत्थी अब भी थी—“अतीत की दीवार”, जैसा कि उस अंतिम धमकी में लिखा गया था।
उस अतीत की दीवार, जिसे अवनि खुद कभी छूना नहीं चाहती थीं।
CBI और STF के साथ मिलकर अवनि ने केस की सारी कड़ियाँ एक बार फिर से टेबल पर रखीं। GPS डेटा, कॉल रिकॉर्ड्स, वीडियो फुटेज और जेल में बंद आरोपियों की पूछताछ—सब कुछ फिर से जोड़ा गया।
तभी एक कड़ी उभरी—“प्रोफेसर अमरेश बागची”, पटना यूनिवर्सिटी में इकोनॉमिक्स के पूर्व विभागाध्यक्ष, अब एक विवादित पॉलिसी कंसल्टेंट। उनका नाम उस वीडियो में आया था जो दुबे की बैठक में रिकॉर्ड हुआ था।
“सर, क्या ये वही बागची हैं जिन्होंने पिछले साल खदान नीति में निजीकरण की वकालत की थी?” प्रभात ने पूछा।
“हाँ,” अवनि ने कहा, “और वही व्यक्ति जिसने अक्षय को कभी कॉलेज में पढ़ाया था।”
“मतलब?” रमेश ने चौंककर पूछा।
“मतलब,” अवनि की आवाज़ भारी हो गई, “वो हमारे परिवार का करीबी था। और शायद… वो ही है जो सारे खेल का मास्टरमाइंड है।”
अवनि पटना पहुँची। उस दिन उनका चेहरा अख़बारों में छाया हुआ था—”अवनि राय की वापसी”। लेकिन उनके कदम पुराने विश्वविद्यालय की ओर थे, जहाँ उनका अतीत पड़ा था।
प्रोफेसर बागची अपने बगीचे में चाय पी रहे थे जब अवनि उनके सामने पहुँची।
“अवनि? इतनी बरसों बाद? और अब तो तुम्हारा चेहरा हर न्यूज़ चैनल पर है।”
“इसलिए आई हूँ। ताकि वो चेहरा तुम्हारे सामने बेनकाब हो सके।”
“क्या मतलब?”
“अक्षय की हत्या, कालाजोर के तस्करी नेटवर्क की संरचना, और दुबे को दिशा देने वाले व्यक्ति… सबके तार एक ही नाम से जुड़ते हैं—तुमसे।”
बागची कुछ क्षण चुप रहे, फिर धीरे से मुस्कराए।
“तुम बहुत होशियार हो, अवनि। लेकिन तुम भूल गईं—पॉलिसी हमेशा नैतिकता से ऊपर होती है। अक्षय एक जुनूनी लड़का था। लेकिन जुनून में व्यवस्था नहीं होती। उसने जो देखा, वो अधूरा सच था।”
“तो तुमने उसे मरवा दिया?”
“मैंने कुछ नहीं किया। मैं सिर्फ सलाह देता हूँ। जैसे तुम्हारे मंत्री सुनते हैं, वैसे ही अपराधी भी। फर्क सिर्फ ये है कि कौन क्या करता है।”
“तुम कोर्ट में ये बातें फिर से कहोगे,” अवनि ने गुस्से में कहा।
“कोर्ट? मेरे खिलाफ सबूत है क्या? सब बस एक शंका है। और जब तक शंका साबित न हो, मैं सिर्फ एक सम्मानित प्रोफेसर हूँ।”
“शायद तुम्हें लगता है कि तुम अजेय हो, प्रोफेसर। लेकिन जो ज़मीर के खिलाफ खड़ा हो, वो चाहे जितना पढ़ा-लिखा हो, अंत में एक अपराधी ही कहलाता है।”
अवनि पटना से लौटते ही टीम को बुलाकर प्रोफेसर बागची के खिलाफ ऑपरेशन की योजना बनाई।
“अगर हमें पुख़्ता सबूत चाहिए, तो हमें उस डेटा सर्वर तक पहुँचना होगा जिससे बागची विदेशों में फंड ट्रांसफर करता है,” CBI अफसर बोला।
“और ये सर्वर कहाँ है?” अवनि ने पूछा।
“कालाजोर खदान नंबर 27 के नीचे एक बंकर—जो कभी अंग्रेजों ने बनाया था। अब उसे डाटा सेंटर में बदल दिया गया है। इसकी जानकारी सिर्फ चुनिंदा लोगों के पास थी।”
“यानी आखिरी बारूद वहीं छिपा है,” अवनि ने कहा।
रात 11:45 बजे।
अवनि, STF और CBI की टीम ने खदान 27 को चारों तरफ से घेर लिया। हेलमेट, नाइट-विजन, और बुलेटप्रूफ जैकेट में तैयार दस्ते सुरंग में दाखिल हुए।
करीब 800 मीटर अंदर, एक गुप्त दरवाज़ा मिला—लोहे की भारी शटर से बंद।
“मैडम, लॉक टाइमर है। अगर जबरदस्ती खुला तो पूरा सिस्टम डिलीट हो जाएगा,” टेक एक्सपर्ट ने कहा।
“तुम्हें पाँच मिनट हैं,” अवनि ने कहा।
तीन मिनट बाद, लॉक खुला।
अंदर का दृश्य चौंकाने वाला था—दीवारों पर सर्वर रैक, कैमरे, और एक बड़े डिस्प्ले पर लाइव ट्रैकिंग सॉफ्टवेयर।
“ये रहा डेटा,” एक्सपर्ट ने कहा।
और तभी स्क्रीन पर एक चेतावनी चमकी—
“SELF DESTRUCT SEQUENCE ACTIVATED – 04:00”
“ये सिस्टम ऑटो वाइप मोड में जा चुका है!” टेक ने चिल्लाया।
“जितना हो सके, डाउनलोड करो,” अवनि बोली, “और बाकी… रिकॉर्ड करो।”
तीन मिनट में सर्वर से 70% डेटा सुरक्षित निकाल लिया गया।
जैसे ही सब बाहर निकले, सुरंग में ज़ोरदार विस्फोट हुआ।
धूल, धुआँ और कंपन से ज़मीन कांप उठी।
लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी। सबूत सुरक्षित था।
48 घंटे बाद, सरकार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की।
“प्रोफेसर अमरेश बागची को देशद्रोह, आर्थिक आतंकवाद, और सरकारी तंत्र को निर्देशित करने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया है। यह केस भारतीय सुरक्षा इतिहास का एक निर्णायक मोड़ होगा।”
जब पुलिस उसे गिरफ्तार करने आई, उसने बस इतना कहा—
“सच कभी जीत नहीं सकता। क्योंकि जनता भूल जाती है।”
लेकिन इस बार, जनता नहीं भूली।
कालाजोर में फिर से एक मोमबत्ती मार्च हुआ। मजदूरों ने नारे लगाए—
“वर्दी नहीं झुकेगी!”
“सच जिन्दा रहेगा!”
और उस रात, जब अवनि अपनी टेबल पर अक्षय की डायरी के पास बैठी थीं, अनन्या ने पूछा—
“अब ये कहानी खत्म?”
अवनि मुस्कराईं।
“नहीं। ये बस पहली जीत है। लड़ाई अब भी बाकी है… पर अब डर पीछे है, और हम आगे।”
समाप्त