अभिज्ञान मेहता
आगमन
गहरी रात थी। झारखंड की पहाड़ियों के बीच बसा बिसराडीह गाँव जैसे नींद में था, लेकिन हवा में कुछ असामान्य था। रिया चौधरी, एक नवयुवती खोजी पत्रकार, टैक्सी की खिड़की से बाहर झांक रही थी। कोलकाता से तकरीबन 300 किलोमीटर की दूरी तय कर वह इस रहस्यमयी गाँव में पहुँच चुकी थी। साथ था उसका कैमरामैन अमित, जो थका हुआ था लेकिन उत्साहित भी।
“रिया, यार… हम ये लोककथाओं की रिपोर्टिंग क्यों कर रहे हैं? भूत-प्रेत की कहानियाँ अब कोई नहीं सुनता,” अमित ने कैमरा बैग जमाते हुए कहा।
“TRP की बात मत कर अमित। यहां कुछ है… कुछ ऐसा जो अब तक उजागर नहीं हुआ,” रिया की आँखों में चमक थी।
टैक्सी गाँव के एक बड़े पीपल के पेड़ के पास रुकी। वहीं उनका स्वागत किया गाँव के मुखिया रामचरन ने—एक बुज़ुर्ग लेकिन तेज़-नज़र वाला आदमी।
“आप ही हैं पत्रकार बिटिया? बहुत सुन चुके आपके बारे में। आइए, आपके रहने का इंतज़ाम हो चुका है।”
रिया ने हल्की मुस्कान दी। “धन्यवाद दादाजी। हम बस गाँव की कहानियों को समझना चाहते हैं। डोमबाई की कहानी पर काम कर रहे हैं।”
रामचरन का चेहरा एक पल को सख्त हो गया।
“उस नाम को फिर से मत लेना। गाँव अब भी उसके शाप से मुक्त नहीं हुआ है।”
“शाप?” अमित ने चौंककर पूछा।
“हाँ। डोमबाई… गाँव की तांत्रिक थी। कोई कहता है वो बच्चियों की बलि देती थी। लेकिन कोई सबूत नहीं था। फिर भी… डर के मारे हमने उसे जला दिया।”
“आपने… ज़िंदा?” रिया की आँखें फैल गईं।
“हाँ। और मरते वक्त उसने शाप दिया—’तुम सब अपने बच्चों के लिए रोओगे’।”
रात को रिया और अमित पुराने स्कूल भवन में ठहरे। चारों ओर सन्नाटा। सिर्फ जुगनुओं की रोशनी और दूर कहीं उल्लू की आवाज़। रिया ने अपना लैपटॉप खोला और डोमबाई से जुड़ी कतरनों को देखने लगी।
एक अखबार की पुरानी क्लिपिंग में लिखा था—
“1946, बिसराडीह—तीन बच्चियाँ लापता। गाँववालों का शक स्थानीय ओझा डोमबाई पर। कोई प्रमाण नहीं मिला। भीड़ ने उसे उसकी झोपड़ी में बंद कर ज़िंदा जला दिया। मरते समय डोमबाई ने कहा—’मैं लौटूंगी’।”
“रिया, ये सब अंधविश्वास है।” अमित ने कहा।
“शायद। लेकिन हर कहानी की जड़ में कुछ सच्चाई होती है। मुझे सच चाहिए।”
“और अगर सच डरावना निकला?”
रिया मुस्कराई। “तो और बेहतर।”
अगली सुबह दोनों गाँव के चारों ओर घूमते हैं, लोगों से बात करते हैं। लेकिन कोई कुछ नहीं बताता। बस एक बूढ़ा पुजारी, बाबा माधो, जो मंदिर के बाहर बैठा होता है, चुपके से कहता है
“तू डोमबाई की तलाश कर रही है न बिटिया? उसका घर अब भी खड़ा है, गाँव के बाहर, बांस के जंगल के पार। लेकिन वहाँ जाना मत… वहाँ कुछ है जो अब भी साँस लेता है…”
“वहाँ क्या है बाबा?” रिया ने झुककर पूछा।
“उसकी किताब। काले जादू की किताब। जिसे भी मिली, उसका जीवन समाप्त।”
दोपहर ढलते ही गाँव में एक अफरा-तफरी मच जाती है। सात साल की बच्ची सरस्वती लापता है।
“कहीं गई होगी, खेल में भूल गई होगी,” कुछ कहते हैं।
“नहीं… ये डोमबाई का काम है,” कुछ फुसफुसाते हैं।
रिया और अमित मौके पर पहुँचते हैं। सरस्वती का घर, उसकी माँ की चीखें, गाँववालों की खामोश निगाहें… रिया को सब कुछ अजीब लगता है।
“क्या ये डोमबाई की वापसी है?” रिया कैमरे के सामने बोलती है।
“या फिर कोई और… जो काले जादू का इस्तेमाल कर रहा है?”
रात होते-होते गाँव पर भय का साया छा जाता है। लोग दरवाजे बंद कर लेते हैं। लेकिन रिया और अमित रुकते नहीं।
“कल सुबह हम चलेंगे उस झोपड़ी की तलाश में,” रिया कहती है।
“अगर कुछ हुआ तो?”
“तो हम रिकॉर्ड कर लेंगे। यही तो रिपोर्टिंग है, अमित।”
आसमान में बादल घिर आए हैं। बिजली चमकती है। और रिया की आँखों में एक जिद चमकती है।
उसे सच चाहिए। चाहे उसकी कीमत कुछ भी हो।
डोमबाई की किताब
अगली सुबह थी, लेकिन सूर्य की किरणों में वो उजाला नहीं था जो रिया और अमित को राहत दे सके। चारों ओर एक अजीब-सी नमी थी, जैसे कोई अदृश्य परछाई सब पर छाई हो। गाँव के बच्चे अब बाहर नहीं खेल रहे थे। महिलाएं कुएं से पानी नहीं भर रहीं थीं। और सबसे बड़ा बदलाव—रामचरन अब रिया से नज़रें चुरा रहे थे।
“हमें आज ही डोमबाई की झोपड़ी तक पहुँचना है,” रिया ने कहा। “रिया, मुझे लगता है हमें पुलिस को बुलाना चाहिए,” अमित ने डरते हुए कहा।
“अगर हम ये स्टोरी किसी को बताएंगे तो वो इसे फेक न्यूज़ कह देंगे। हमें सबूत चाहिए। वो किताब… उसी में सारा रहस्य छिपा है।”
रिया और अमित गाँव से बाहर निकलते हैं। करीब एक घंटे का रास्ता था बांस के जंगलों तक। जैसे-जैसे वे जंगल की ओर बढ़ते, हवा भारी होती जाती है। पेड़ों के बीच से आती धीमी-धीमी आवाज़ें—मानो कोई पुकार रहा हो।
“रिया, ये रास्ता अजीब लग रहा है,” अमित ने कहा।
“बस कुछ दूर और,” रिया ने अपने फोन की फ्लैशलाइट चालू की
कुछ ही देर में वे पहुँचे एक काले-सुनसान खंडहर के पास। ये वही जगह थी जिसे गाँववाले डोमबाई की झोपड़ी कहते थे।
झोपड़ी अब मिट्टी, राख और काई से ढकी हुई थी। लेकिन अंदर जाते ही हवा बदल गई।
दीवारों पर अजीब-अजीब प्रतीक बने हुए थे—त्रिकोणों के बीच आंखें, उल्टे हाथ, और संस्कृत जैसी किसी प्राचीन भाषा में मंत्र।
अचानक अमित चिल्लाया—“रिया… यहाँ कुछ है!”
रिया दौड़ती है और देखती है—एक पत्थर की अलमारी जैसी जगह, जिसमें बंद थी एक काली किताब।
बड़ी-बड़ी लोहे की कीलों से बंद किताब, उसके चारों ओर सिंदूर और राख का घेरा।
“ये… यही है डोमबाई की किताब,” रिया ने कहा।
जैसे ही उसने किताब की ओर हाथ बढ़ाया, दीवार पर लगे चिन्ह चमकने लगे। हवा सिहरने लगी, और झोपड़ी के बाहर पेड़ हिलने लगे जैसे किसी ने उन्हें जगाया हो।
“रिया, मत छू इसे। ये सही नहीं है,” अमित ने पीछे खींचा।
“हमें इसे दुनिया को दिखाना है।”
रिया ने किताब उठाई।
उसी पल, पूरा कमरा अंधेरे में डूब गया। सिर्फ किताब से आती काली रोशनी बाकी थी। और तभी—रिया को सुनाई दी एक औरत की आवाज़।
“तू वही है… जो मेरा रहस्य उजागर करेगी…”
“तू ही है… जो मुझे मुक्ति देगी… या खुद नष्ट हो जाएगी…”
रिया ने किताब को एक प्लास्टिक शीट में लपेटा और जल्दी से वहाँ से निकलने का फैसला किया। लौटते वक्त जंगल और भी डरावना लग रहा था।
गाँव लौटते ही उन्होंने देखा—सरस्वती अब भी लापता है और गाँव में अजीब घटनाएं हो रही हैं।
● तीन गायें अचानक मर गईं
● एक आदमी की आँखें सफेद हो गईं
● मंदिर के पास खून के निशान मिले
रामचरन ने रिया को देखते ही चिल्लाया—“तूने क्या किया? तूने फिर से उसे जगा दिया!”
“मैंने क्या किया?” रिया ने विरोध किया।
“वो किताब… उसे छूकर तूने उसे फिर से इस धरती पर बुला लिया है। अब वो हर उस व्यक्ति को ले जाएगी जिसने उसके खिलाफ आवाज़ उठाई थी…”
रिया उस रात किताब को खोलती है।
उसमें लिखे थे मंत्र—काले, गहरे, और रहस्यमय। हर पृष्ठ पर किसी की चीखें, किसी की मौत, किसी की तंत्र साधना की झलक।
और आखिरी पृष्ठ पर—
“जिसे न्याय नहीं मिला, वही न्याय करेगा। जिसे जलाया गया, वही अग्नि लाएगा।”
रिया अब समझ चुकी थी कि डोमबाई सिर्फ एक तांत्रिक नहीं थी, वो बलिदान थी। और उसका क्रोध आज भी जीवित था।
उस रात एक सपना आता है रिया को।
वो खुद को एक मंदिर में देखती है। उसके चारों ओर लोग हैं—लाल कपड़े पहने हुए, आँखों में शून्य। और बीच में खड़ी है—डोमबाई।
उसका चेहरा जला हुआ, बाल बिखरे, लेकिन आँखें चमक रही थीं।
“रिया, तू ही मेरी उत्तराधिकारी है। तू ही न्याय करेगी। मैं तेरे अंदर हूँ।”
रिया चिल्लाकर उठ जाती है। उसका माथा पसीने से भीगा हुआ है।
अमित उसे देखकर डरता है, “तू ठीक है?”
रिया की आवाज़ बदल चुकी है—धीमी, भारी, और कुछ अलग…
“हाँ, मैं… बिल्कुल ठीक हूँ।”
सुबह होते ही गाँव की हवा बदल चुकी है। अब सिर्फ डर नहीं, बल्कि खून की गंध भी तैर रही है।
दूसरी बच्ची गुड़िया लापता हो गई है।
गाँववाले रिया की ओर देखते हैं—जैसे अब वो डोमबाई बन चुकी हो।
रामचरन लोगों से कहता है, “इसका अंत यहीं करना होगा। किताब को नष्ट करना होगा। और रिया को भी…”
लेकिन अब रिया डरने वाली नहीं थी।
उसकी आँखों में एक नई रोशनी थी—या कहिए अंधकार।
उसने किताब को उठाया, और मंदिर की ओर चल पड़ी।
अब वो सिर्फ पत्रकार नहीं रही थी।
अब वो थी—काले रहस्य की वाहक।
काले जादू का समापन
मंदिर की ओर बढ़ती रिया अब पहले जैसी नहीं थी। चेहरे पर भय नहीं, एक विचित्र शांति थी। हाथ में कसकर थामी थी डोमबाई की किताब। मंदिर की सीढ़ियाँ गीली थीं—शायद रातभर बारिश हुई थी। लेकिन रिया के पाँव जैसे स्वयं पथ बनाते जा रहे थे।
पीछे से अमित दौड़ते हुए आया, “रिया, रुक जाओ! तुम कुछ अजीब व्यवहार कर रही हो।”
रिया पलटी। उसकी आँखें अब भी रिया की थीं, पर उनमें जो चमक थी, वो उसकी नहीं लग रही थी।
“मैं ठीक हूँ, अमित। मुझे बस इसे वापस वहीं रखना है, जहाँ ये होना चाहिए।”
गाँव के मंदिर के अंदर धूप जल रही थी। पुजारी बाबा माधो झुके हुए मंत्र पढ़ रहे थे। तभी उन्होंने रिया को देखा और काँप उठे।
“किताब वापस ले जा बेटी! तू नहीं समझती, वो तुझे खा जाएगी।”
रिया धीरे-धीरे आगे बढ़ी। “मुझे सब समझ में आ गया है बाबा। डोमबाई राक्षसी नहीं थी… वो न्याय चाहती थी। और मैंने… उसका श्राप फिर से जगा दिया है।”
अमित अभी भी पीछे खड़ा सब रिकॉर्ड कर रहा था। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसकी समझदार, तर्कशील पत्रकार साथी अब तंत्र-मंत्र की दुनिया में इस कदर डूब चुकी है।
रिया ने किताब को मंदिर के गर्भगृह के बीच रख दिया। और फिर आरंभ हुआ—एक प्राचीन मंत्र जाप।
धीरे-धीरे हवा फिर से भारी होने लगी। मंदिर की दीवारें थरथराने लगीं। और बाहर, गाँव में—तूफ़ान उठ खड़ा हुआ।
बिजली चमक रही थी। पत्ते उड़ रहे थे। और सबसे भयानक—सरस्वती और गुड़िया, दोनों बच्चियाँ, अचानक मंदिर की सीढ़ियों पर खड़ी दिखाई दीं।
“रिया दीदी!” सरस्वती की आवाज़ आई।
रिया दौड़ी, दोनों को गले लगा लिया। “तुम… तुम ठीक हो!”
“हमें एक औरत ने बचाया। वो कह रही थी कि आप उसे मुक्त करेंगी,” गुड़िया ने बताया।
रिया समझ गई—डोमबाई अब भी उन्हें नुकसान नहीं पहुँचाना चाहती। बस अपनी आत्मा को शांति दिलाना चाहती थी। लेकिन तभी…
गाँव वाले लाठियाँ और मशालें लेकर मंदिर की ओर आ रहे थे।
“रिया को बाहर निकालो!”
“वो अब इंसान नहीं, चुड़ैल बन गई है!”
“उस किताब को जला दो!”
रामचरन सबसे आगे था। “मैंने उसे आने ही क्यों दिया… ये हमारी भूल थी।”
अमित ने रिया के सामने खड़े होकर विरोध किया, “रुको! वो सिर्फ किताब को वहाँ रखने आई है। उसने किसी को नुकसान नहीं पहुँचाया!”
लेकिन भीड़ कब किसी की बात सुनती है?
रिया ने किताब फिर से उठाई। अब वो समझ चुकी थी कि यदि ये किताब एक बार फिर से गलत हाथों में पड़ी, तो अगली पीढ़ी भी इस शाप से नहीं बचेगी।
“डोमबाई,” रिया ने कहा, “मुझे शक्ति दो। ताकि मैं इस रहस्य का अंत कर सकूँ।”
अचानक, किताब से एक अजीब प्रकाश निकला—काला, नीला और लाल रंगों से चमकता हुआ।
मंदिर के भीतर एक स्त्री की आकृति प्रकट हुई—डोमबाई की।
चेहरा जल चुका था, लेकिन आँखों में करुणा थी।
“रिया… तू मेरी वंशज नहीं है। पर तू वो है जो मेरे लिए न्याय करेगी।”
“तेरे हाथों से मेरा शाप समाप्त होगा।”
रिया रो रही थी।
“तुम्हें जो सहना पड़ा, वो गलत था। लेकिन बच्चों को डरा कर तुमने खुद को शैतान बना लिया। मैं इसे अब समाप्त करना चाहती हूँ।”
डोमबाई मुस्कराई। “तू सही कहती है। अब मुझे मुक्त कर।”
रिया ने किताब उठाई और गर्भगृह की अग्निकुंड में डाल दी।
किताब जैसे ही जलने लगी, पूरी पृथ्वी जैसे काँप उठी।
भीड़ डरकर पीछे हट गई। रामचरन गिर पड़ा।
अमित की आँखें फटी रह गईं—किताब खुद जल रही थी, उसमें से उड़ती चिंगारियाँ आकाश में विलीन हो रही थीं।
डोमबाई की आकृति धीरे-धीरे हल्की होती गई।
“मुक्ति… अंततः…”
और फिर एक तेज़ प्रकाश में वह गायब हो गई।
अगले दिन गाँव बदल चुका था।
बच्चियाँ सुरक्षित थीं।
मंदिर में शांति थी।
गाँववाले, जो कल तक रिया को चुड़ैल मान रहे थे, अब उनके पैरों पर गिर कर क्षमा माँग रहे थे।
रामचरन ने कहा, “तूने हमें अंधविश्वास से बाहर निकाला बिटिया। आज हमें समझ आया कि डर और अज्ञानता कितनी भयानक हो सकती है।”
रिया ने मुस्कुरा कर सबको माफ कर दिया।
अंत में, रिया और अमित गाँव से रवाना हुए।
“अब क्या करोगी इस रिपोर्ट के साथ?” अमित ने पूछा।
“किसी चैनल को नहीं दूंगी। ये कहानी सिर्फ उन्हीं के लिए है, जो सुनना जानते हैं… समझना चाहते हैं। मैं इसे एक किताब में बदलूँगी।”
“नाम क्या होगा?”
रिया ने मुस्कुराते हुए कहा—
“काला रहस्य”।
और कहीं दूर, झारखंड की घाटियों में… हवा अब भी बांस के पत्तों को हिलाती है।
पर अब वो डर की नहीं… मुक्ति की हवा है।