Hindi - हास्य कहानियाँ

कांता बुआ का मोबाइल मिशन”

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सुनील शर्मा


कांता बुआ को मोहल्ले में कौन नहीं जानता था? उम्र साठ के पार, लेकिन जुबान इतनी तेज़ कि मोहल्ले की दीवारें भी डर के मारे कांप जाएँ। सफेद बाल, माथे पर बड़ी सी बिंदी, और पल्लू हमेशा सिर पर — कांता बुआ का लुक देखकर कोई भी उन्हें सीधा-सादा समझ लेता, लेकिन असली गड़बड़ वहीं से शुरू होती थी।

“अरे सुन री विमला! तूने सुना, सामने वाली पुष्पा की बहू रोज़ छत पर फोन पर बात करती है, लगता है कोई चक्कर-वक्कर है!” बुआ ने नाश्ते के समय विमला चाची को बताया, जो खुद मोहल्ले की “डेली न्यूज़ चैनल” थीं।

लेकिन इस बार कुछ अलग हुआ।

राजू, कांता बुआ का इकलौता बेटा जो मुंबई में किसी IT कंपनी में काम करता था, छुट्टियों में घर आया था। दो दिन तो शांति से बीते, लेकिन तीसरे दिन बुआ ने ऐलान कर दिया —
“मुझे भी एक मोबाइल चाहिए। वो वाला… टचवाला।”

राजू की चाय गले में अटक गई, “अरे मां, आपको मोबाइल लेकर क्या करना है?”

“तो क्या तेरा बाप लेगा? मोहल्ले में सबके पास है, विमला के पास भी! पुष्पा की बहू ने ग्रुप बना लिया है ‘मोहल्ला क्वीनज़’ नाम से, उसमें मैं नहीं हूँ। ये अपमान है मेरा!” बुआ ने आंखें तरेरीं।

राजू ने हार मान ली और एक एंड्रॉइड स्मार्टफोन ला दिया।
फिर आई असली आफत — बुआ और उनका नया दोस्त — मोबाइल!

राजू ने जैसे-तैसे उन्हें समझाया — “ये बटन है पॉवर का, ये वाला कैमरा, और इसमें है व्हाट्सएप।”
“व्हाट क्या?” बुआ ने पूछा।
“वो एक जगह है जहाँ आप सबकी बातें पढ़ सकती हैं, फोटो देख सकती हैं।”
बुआ की आँखों में शेरनी सी चमक आ गई।

अगले ही दिन बुआ ने मोहल्ले की तीन और विधवा बहनों — शकुंतला दी, गोमती बुआ और कमला काकी — को बुला लिया और उन्हें बताया,
“अब हम चारों मिलकर बनाएँगे ‘मोबाइल मिशन’। हर बहू, हर बेटा, हर झूठ पकड़ा जाएगा।”

शकुंतला दीदी ने सवाल किया, “लेकिन कैसे?”

“व्हाट्सएप पर सबके स्टेटस देखो, फोटो देखो, बातों की तह तक पहुँचो,” बुआ ने बताया, मानो उन्होंने FBI ट्रेनिंग ली हो।

वो दिन था और फिर तो बुआ का फोन दिनभर गरम रहने लगा।
कभी बिल्लू हलवाई की दुकान की फोटो आ जाती, कभी मंदिर में पूजा की जगह लड़कियाँ सेल्फी लेती मिलतीं। बुआ सबकुछ सेव करतीं और अगली सुबह विमला चाची से “खुफिया मीटिंग” करतीं।

एक दिन तो हद हो गई — बुआ ने गलती से वीडियो कॉल कर दिया किसी ‘शशांक शर्मा’ नामक अनजान अंकल को, जो अमेरिका में रहते थे।

“नमस्ते… ये कौन?”
“अरे! कौन हो तुम? तुमने कॉल क्यों किया?”
“बेटा तुमने तो कॉल किया…”
बुआ ने डर के मारे फोन फेंक दिया और कहा, “ये मोबाइल में भूत है, अपने आप कॉल हो गया!”

फिर शुरू हुआ असली झगड़ा — कांता बुआ ने मोहल्ले के मंदिर की ग्रुप चैट में एक फ़ॉरवर्ड भेज दिया:
“अगर आपने ये मैसेज 7 लोगों को नहीं भेजा तो आपके घर में छिपकली का प्रकोप होगा।”
उसके बाद पूरे मोहल्ले में छिपकलियों की चर्चा और डर फैल गया।

पंडित टिंकू जी ने ऐलान कर दिया, “जिसने ये अफवाह फैलाई है, उसे सार्वजनिक रूप से माफी माँगनी होगी।”

राजू को बुलाया गया, और उसने बुआ के मोबाइल से सबूत निकाला — मैसेज की शुरुआत: “Sent by Kanta Bua”

अब बुआ पर गाज़ गिरी। लेकिन वो कांता बुआ ही क्या जो हार मान जाए?

बुआ ने मोहल्ला मीटिंग में जाकर कहा,
“मैंने किया, हाँ! लेकिन इसमें मेरी मंशा नहीं थी। मेरा तो मोबाइल से प्यार हो गया है। अगर गलती हुई तो सॉरी, लेकिन मैं मोबाइल नहीं छोड़ूँगी।”

सन्नाटा छा गया। और तभी विमला चाची ने ताली बजा दी, “कांता सही कह रही है, मोबाइल अब हर महिला का हथियार बन चुका है!”

सब हँस पड़े।
बुआ जीत गईं।

राजू ने चैन की सांस ली — “माँ अब तो चैन से रहेंगी।”
लेकिन तभी बुआ बोलीं —
“अब इंस्टा भी सीखना है, उसमें वीडियो बनाते हैं ना? मैं रील्स बनाऊँगी ‘बुआ की बातों’ के नाम से!”

राजू ने माथा पकड़ लिया।

***

मोबाइल से दोस्ती करने के बाद कांता बुआ की दुनिया पूरी तरह बदल चुकी थी। पहले जो दिन भर खिड़की पर बैठी मोहल्ले की गतिविधियाँ देखती थीं, अब वो मोबाइल स्क्रीन में उलझी रहती थीं — कभी किसी की DP देखना, कभी ‘Good Morning’ फोटो बनाना, कभी किसी की फोटो पर दोबारा ज़ूम कर के जासूसी करना।

लेकिन असली बवाल तब शुरू हुआ जब एक दिन बुआ ने देखा कि मोहल्ले की छोटी बहू, नेहा, अपने घर के सामने खड़ी होकर मोबाइल से कुछ “उछलकूद” कर रही है।

“ये क्या कर रही है बहू?” बुआ ने खिड़की से झाँकते हुए पूछा।

नेहा हँसी, “बुआ, इंस्टाग्राम पर रील बना रही हूँ, आजकल ये ही चल रहा है।”

बुआ की आँखों में फिर वही FBI वाली चमक आ गई।

“रील? वो क्या होता है?”
“मतलब… छोटे-छोटे वीडियो बनाना, और सब देखते हैं, लाइक करते हैं।”
“तो मतलब जो वीडियो बनाता है, वही स्टार होता है?”
“जी हाँ, बुआ।”

बस! इतना सुनना था कि कांता बुआ ने ठान लिया —
“अब मैं भी बनाऊंगी रील्स। और देखना, मैं बनूंगी मोहल्ले की रील रानी!”

राजू उस समय लिविंग रूम में बैठा लैपटॉप पर मीटिंग कर रहा था कि बुआ ने आकर घोषणा कर दी —
“राजू, मुझे इंस्टा पर अकाउंट बनाना है!”

राजू को लगा शायद नींद में सुन रहा है। “क्या??”

“हाँ, वो जो इंस्टा… इंस्टा-ट्रम्प… नहीं नहीं, इंस्टाग्राम! उसमें मुझे डालना है मेरा टैलेंट। सब देखेंगे बुआ की बातों को, मैं रील्स बनाऊंगी, और मुझे मिलेगा फैन।”

राजू ने गहरी साँस ली, “माँ, इंस्टाग्राम बच्चा नहीं है, जो आप खेल-खेल में चलाएँगी।”

“बिलकुल नहीं! मैं सीरियस हूँ। और अब से तुम मुझे ‘बुआ इनफ्लुएंसर’ बुलाओ।”

अगले ही दिन बुआ ने ‘कांता_बुआ_ऑफिशियल’ नाम से इंस्टाग्राम अकाउंट बनाया (राजू की सहायता से, मजबूरी में)।
पहली रील — बुआ ने सिलाई मशीन के पास बैठकर कहा:
“औरतें कमजोर नहीं होतीं, बस थोड़ा नेटवर्क कमजोर होता है।”

रील अपलोड हुई। राजू ने सोचा – कोई नहीं देखेगा।
लेकिन दो घंटे में ही 250 views!
बुआ फूली नहीं समाईं।

दूसरी रील — बुआ बरामदे में झाड़ू लगाते हुए:
“साफ-सफाई सिर्फ घर की नहीं, सोच की भी ज़रूरी है।”
इस बार 700 views!

अब बुआ को लगा जैसे उनके अंदर एक ‘रील रावण’ बैठा है — जो हर रोज़ एक नया वीडियो माँगता है।

शकुंतला दीदी, गोमती बुआ, और कमला काकी को बुआ ने बुला लिया —
“अब तुम सब मेरी टीम हो। शकुंतला, तू शूटिंग करेगी, गोमती बुआ डायरेक्शन, और कमला काकी बैकग्राउंड म्यूज़िक।”

तीनों ने हैरान होकर पूछा, “बैकग्राउंड म्यूज़िक?”

“अरे जैसे — ताना नाना नाना… वो वाला! तू मुँह से गा दे।”

और यूँ बना बुआ प्रोडक्शन हाउस।

बुआ की तीसरी रील —
“जब बहू रोटियाँ गोल नहीं बनाती, तब सास का दिल तिरछा हो जाता है!”
बैकग्राउंड में कमला काकी की भजन जैसी म्यूजिक।

और इस रील पर मिल गए 1500 views!

अब मोहल्ले में हलचल मच गई। बिल्लू हलवाई तक कहने लगा —
“बुआ अब स्टार बन गई हैं, उनके नाम के समोसे रखने पड़ेंगे शायद!”

पंडित टिंकू जी को बात हज़म नहीं हुई। उन्होंने मंदिर के सामने घोषणा की —
“अब धर्म का पतन हो रहा है! साठ साल की महिलाएँ कैमरे के सामने अभिनय कर रही हैं!”

बुआ बोलीं —
“पंडित जी, मैं तो बस लोगों को हँसाने आई हूँ, कोई गुनाह नहीं कर रही।”

बुआ की अगली रील —
“साठ की उम्र में भी सपना देख सकती हूँ, क्योंकि सपनों की उम्र नहीं होती।”
और इस बार – 5200 views और 300 लाइक्स!

बुआ ने खुश होकर राजू से पूछा,
“बेटा, अब तो मुझे ब्रांड वाला फोन दिला दे ना… कैमरा बढ़िया चाहिए।”

राजू ने कहा, “माँ, तुम सच में वायरल हो रही हो!”

“मैं तो पहले ही कहती थी, मेरी बातों में दम है! अब दुनिया मानेगी।”

अब बुआ ने वीडियो एडिटिंग भी सीख ली। “ट्रांजिशन डालो, म्यूज़िक लगाओ, हैशटैग लगाओ — #BuaSpeaks, #DesiInfluencer, #ReelRani”

पर बवाल तब शुरू हुआ जब बुआ ने अपने मोहल्ले की बहुओं की एक्टिंग पर बनी एक व्यंग्यात्मक रील डाल दी —
“जब बहुएँ सास से झूठ बोलती हैं कि ‘माँ जी, गैस ही नहीं आ रही थी’”
रील में शकुंतला दीदी गैस की टंकी के सामने चाय बनाती हुई दिखाई देती हैं, और बुआ पीछे से कहते हुए:
“सच कैमरे में कैद है बहू, अब मत बोल बहाना।”

बस फिर क्या! पूरी कॉलोनी में बहुओं का विद्रोह।
नेहा, मीना और ज्योति ने मिलकर मोहल्ला ग्रुप में लिखा —
“Privacy का उल्लंघन हुआ है, बुआ को माफ़ी माँगनी चाहिए।”

राजू को फिर बुलाया गया। उसने कहा —
“माँ, ये बहुत हुआ। अब आप किसी की निजी ज़िंदगी में कैमरा मत घुसाइए।”

बुआ चुप हो गईं।

शाम को छत पर बैठी थीं — अकेली। कोई शूटिंग नहीं, कोई म्यूज़िक नहीं।

शकुंतला दीदी आईं, “बुआ, सब ठीक?”

“सब ठीक है शकुंतला, बस अब रील नहीं बनाऊँगी। लगता है मेरी हँसी किसी की तकलीफ़ बन गई।”

लेकिन अगले ही दिन, नेहा और बाकी बहुएँ बुआ के घर आईं।

नेहा बोली, “बुआ, हमें आपसे शिकायत नहीं है, बल्कि गर्व है। आपने साबित किया कि उम्र कोई रुकावट नहीं। बस थोड़ा ध्यान रखा करें, किसी को टारगेट ना लगे।”

बुआ मुस्कुराईं —
“मतलब रील बनाऊँ?”

“हाँ, लेकिन पॉज़िटिव कंटेंट! हमारी भी मदद मिलेगी आपको।”

और यूँ बनी टीम — बुआ एंड बहुएँ।

अब नई रील —
“जब सास-बहू साथ मिलकर वीडियो बनाएं, तब घर भी और इंटरनेट भी दोनों चमकते हैं!”

रील हिट हुई। मोहल्ला खुश, राजू चैन में, और कांता बुआ — अब इंटरनेट की असली रील रानी!

***

इंस्टाग्राम की दुनिया में कांता बुआ अब एक नाम बन चुकी थीं। #BuaSpeaks ट्रेंड करने लगा था, और मोहल्ले में कोई ऐसा नहीं था जिसने उनका कोई रील न देखा हो। बच्चों से लेकर बूढ़ों तक, सब बुआ के फैन थे। कॉलोनी में हर शाम “बुआ की रील” की चर्चा होती थी, और अब बहुएँ भी बुआ की टीम का हिस्सा बन चुकी थीं।

लेकिन बुआ को अंदाज़ा नहीं था कि इंटरनेट की लहर उन्हें एक ऐसे मोड़ पर ले आएगी, जहाँ से कहानी और भी अजीब, और मजेदार हो जाएगी।

एक दिन बुआ सुबह चाय पी रही थीं और मोबाइल में कमेंट्स पढ़ रही थीं। तभी एक अजनबी नाम का मेसेज आया —
“Hello beautiful lady. I see your videos. You are charming and graceful. Will you marry me?”
– Mr. Benjamin Walker, USA

बुआ की चाय मुँह से बाहर!
“हे भगवान! ये तो शादी का प्रस्ताव है! और वो भी विलायती?”
उन्होंने मोबाइल को ज़ूम करके देखा — सफेद बालों वाला, सूट पहने एक बुजुर्ग आदमी मुस्कुरा रहा था।

“राजू!” बुआ चिल्लाईं।
राजू भागा-भागा आया, “क्या हुआ माँ?”
“देख बेटा, ये बेंजामिन है। अमरीका से है, मुझे शादी के लिए कह रहा है!”
राजू की आँखें गोल — “क्या??”
“हां! उसने लिखा है ‘Will you marry me?’ मतलब शादी का ही तो पूछ रहा है!”

राजू ने झट से मोबाइल छीना और देखा —
अकाउंट असली लग रहा था, ढेर सारे पोस्ट्स थे, और बुआ की हर रील पर कमेंट भी करता था।
राजू ने घबराकर कहा, “माँ, ये तो सीरियस लग रहा है!”

बुआ ने गाल पर हाथ रखा, “तो क्या अब मैं कांता वॉकर बन जाऊँगी?”

उधर शकुंतला दीदी, गोमती बुआ, और कमला काकी को जब ये खबर लगी तो सब बुआ के घर जमा हो गईं।

“हे बाप रे! विदेशी वर!”
“शादी के कार्ड इंग्लिश में छपेंगे!”
“शादी में समोसे के साथ पिज़्ज़ा मिलेगा क्या?”

बुआ मुस्कुराईं, “अभी तो मैंने ‘हाँ’ नहीं कहा है। थोड़ा जान-पहचान तो करूँ पहले!”

अब बुआ ने इंस्टाग्राम पर बेंजामिन से वीडियो कॉल करने की ठान ली।
राजू की मदद से कॉल जुड़ी —
स्क्रीन पर आया एक गोरा बुज़ुर्ग आदमी, पीठ पीछे एक बुकशेल्फ, और हाथ में चाय का प्याला।

“Hello, Kanta! So lovely to meet you!”
बुआ शर्माकर बोलीं, “नमस्ते बेटा… मेरा मतलब, जी!”

बातचीत शुरू हुई —
बेंजामिन: “I am 68 years old. Retired professor. Saw your videos, loved your spirit. You remind me of my late wife — same fire, same fun.”
बुआ: “अरे वाह, तो मैं तुम्हें अपनी बीवी जैसी लगती हूँ?”
बेंजामिन: “Exactly! Will you consider spending the rest of life with me? Together we make funny reels in America!”

बुआ के माथे पर पसीना!
गोमती बुआ ने कान में फुसफुसाया, “हाँ कर दे बुआ! अमेरिका चलो, ह्वाइट हाउस में रील बनाएँगे!”

लेकिन तभी शकुंतला दीदी गंभीर हो गईं — “बुआ, ये मामला मज़ाक से ज़्यादा बड़ा हो गया है। सोच-समझकर करना।”

अब बुआ असमंजस में थीं — दिल कह रहा था, “चलो, नयी ज़िंदगी शुरू करो!” और दिमाग कह रहा था, “राजू को कौन संभालेगा?”

राजू भी थोड़े चिंता में था, लेकिन बोला,
“माँ, ये आपकी ज़िंदगी है। आपकी मर्ज़ी है। अगर आप जाना चाहती हैं, तो हम सब आपके साथ हैं।”

बुआ ने दो दिन का समय लिया और फिर बैठ गईं सोचने।

शाम को छत पर अकेली बैठीं, आँखों में पुरानी यादें तैर रहीं थीं — जब पति ने छोड़ दिया था, जब बेटे को अकेले पाला, जब दुनिया ने कहा ‘बूढ़ी औरत से क्या उम्मीद करना।’
और अब… एक विदेशी आदमी उसे ‘पार्टनर’ बनाना चाहता है, उसके टैलेंट को सराहता है!

अगली सुबह बुआ ने एक स्पेशल रील बनाई —
“शादी का जवाब मिलेगा इस वीडियो में…”

रील शुरू होती है —
बुआ लाल साड़ी में तैयार, हाथ में चाय, और बैकग्राउंड में धीमा संगीत।
फिर कैमरे की ओर देखकर बोलती हैं —
“बेंजामिन, तुम अच्छे इंसान लगते हो। लेकिन मेरी दुनिया यहाँ है — मेरी बहुएँ, मेरी रील टीम, मेरा राजू। मैं किसी के साथ ज़िंदगी बाँटना चाहती हूँ, लेकिन इंटरनेट पर नहीं — असल ज़िंदगी में। अगर तुम कभी भारत आओ, और मेरे मोहल्ले की गलियों में घूमकर ये पगला-पगला प्यार निभा सको, तब सोचेंगे शादी की बात। अभी के लिए, चलो दोस्त बनकर रील बनाते हैं।”

वीडियो वायरल!

3 लाख views, 10 हजार लाइक्स और कमेंट्स की बाढ़ —
“बुआ, आप रानी हैं!”
“True desi diva!”
“Benjamin को भी बुआ का जवाब हिंदी में डब करवा देना चाहिए।”

बेंजामिन ने जवाब दिया —
“You are right, Kanta. Let’s make friendship the most beautiful reel.”

बुआ ने स्क्रीन बंद की और बोलीं,
“चलो टीम! अगली रील की स्क्रिप्ट लाओ, इस बार टॉपिक होगा — ‘बुज़ुर्गों का प्यार – वायरल या व्यंग्य?’”

सब हँस पड़े। कांता बुआ अब और भी मशहूर हो गई थीं —
ना सिर्फ एक डिजिटल स्टार, बल्कि एक इंस्पिरेशन —
कि उम्र सिर्फ एक नंबर है, और दिल अगर जवान हो तो मोबाइल के छोटे स्क्रीन में भी पूरी दुनिया समा सकती है।

***

कांता बुआ की रील्स अब किसी मोहल्ले या शहर की सीमा में नहीं थीं। सोशल मीडिया पर ‘Desi Bua’ के नाम से उनकी पहचान बन चुकी थी। उनके वीडियो वायरल होने लगे थे और विदेशी दर्शकों तक भी पहुँच चुके थे। हर दिन कोई न कोई ब्रांड उन्हें फोलो करता, कोई इंस्टाग्राम पेज शेयर करता, और कभी-कभी बड़े-बड़े सेलेब्स उनकी रील्स पर कमेंट भी कर देते।

पर असली धमाका तब हुआ जब एक दिन राजू हड़बड़ाते हुए घर आया।

“माँ, टीवी खोलो! इंडिया टुडे चैनल पर तुम्हारा नाम आ रहा है!”

बुआ टीवी ऑन करते ही देखती हैं — एंकर कह रहा था:

“आज हमारे खास शो ‘डिजिटल इंडिया की दादी’ में हम मिलेंगे इंस्टाग्राम की वायरल सनसनी — कांता बुआ से!”

बुआ के हाथ से चाय गिरते-गिरते बची।

“हे राम! अब मैं टीवी पर भी आ रही हूँ?”

राजू ने कहा, “हाँ माँ! अगले हफ्ते नोएडा स्टूडियो में लाइव इंटरव्यू है। पूरा शो तुम्हारे ऊपर है। टिकट, होटल सब बुक हो चुका है!”

बुआ को थोड़ा डर भी लगा — “लाइव मतलब… सब देखेंगे? मेरी हिंदी उलट-पलट हो गई तो?”

शकुंतला दीदी बोलीं, “बुआ, आप तो रील में जो कहती हैं, वही बोलिए। वैसे भी आप जो भी बोलती हैं, ट्रेंड बन जाता है!”

बुआ की तैयारियाँ शुरू हो गईं। नेहा ने उनके लिए एक स्मार्ट लाल रंग की बनारसी साड़ी निकाली, गोमती बुआ ने बालों में गजरा लगाया, और कमला काकी ने कहानियों की लिस्ट बना दी जो टीवी पर सुनाई जा सकती हैं।

नोएडा की उड़ान में बुआ पहली बार प्लेन में बैठीं।

जब एयर होस्टेस ने पूछा — “Madam, tea or coffee?”

बुआ बोलीं — “दोनों दे दो, हम घर में भी मिलाकर ही पीते हैं!”

राजू ने सिर पकड़ लिया।

स्टूडियो पहुँचे, तो वहाँ कैमरों की कतार, लाइट्स की चमक, और एक मॉर्डन एंकर — आर्यन मेहरा, जो खुद को न्यूज़ एंकर कम फिल्म स्टार ज्यादा समझता था।

“Welcome Kanta Ji! You are a rockstar!”
बुआ शर्माकर बोलीं — “अरे नहीं, हम तो रीलस्टार हैं!”

इंटरव्यू शुरू हुआ — लाइव टेलीविजन पर।

आर्यन: “कांता जी, आपने इस उम्र में सोशल मीडिया को जीत लिया। आप क्या सोचती हैं इस सफलता के बारे में?”

बुआ: “देखिए बेटा, मैं तो पहले घर की बाई थी, अब सबकी बुआ बन गई हूँ। सोचती हूँ कि रोटियाँ गोल हो ना हों, बात गोलमोल नहीं होनी चाहिए।”

(स्टूडियो ठहाकों से गूंज उठा)

आर्यन: “कौन प्रेरणा बना आपके लिए?”

बुआ: “बहू ने जब कहा कि कैमरा घुमाओ, तो मैं कैमरे पर ही घूम गई।”

आर्यन: “एक सवाल जो सब जानना चाहते हैं — क्या आपको शादी का प्रस्ताव सच में आया था एक विदेशी से?”

बुआ मुस्कराईं — “हाँ बेटा, आया था। लेकिन हमने कह दिया — पहले दही के साथ समोसे खा कर दिखाओ, फिर बात करेंगे!”

आर्यन भी हँस पड़ा।

इंटरव्यू ज़बरदस्त हिट रहा, लेकिन असली धमाका हुआ जब उन्होंने बुआ से कहा,
“अब एक लाइव रील बनाइए हमारे साथ!”

बुआ मान गईं। कैमरा ऑन हुआ, लाइव ऑडियंस सामने थी।
बुआ ने हाथ में चाय ली और बोलीं:

“ज़िंदगी भी इंस्टाग्राम की तरह है — जब तक फ़िल्टर लगाओगे, सब अच्छा लगेगा। लेकिन असली मज़ा बिना फ़िल्टर के आता है!”

तभी अचानक बुआ के कान में माइक का वायर उलझ गया, और वो घूमते-घूमते कुर्सी से गिरते-गिरते बचीं।

राजू चिल्लाया — “माँ! धीरे!”

बुआ ने उठकर कहा —
“देखा बेटा? रील में गिरो तो फॉलोअर्स बढ़ते हैं, पर असल में गिरो तो हड्डी टूट जाती है!”

पूरा स्टूडियो हँसी से गूँज उठा।
लाइव चैट में लिखा जाने लगा —
#RealBua #LiveLegend #DesiWisdom

इंटरव्यू ख़त्म होते ही चैनल के प्रोड्यूसर आए —
“कांता जी, हम आपके साथ एक शो करना चाहते हैं — ‘बुआ की बातें’ – हफ्ते में एक बार, आप आकर लाइफ टिप्स दीजिए!”

बुआ ने राजू की ओर देखा, फिर बोलीं —
“ठीक है, लेकिन मेरी एक शर्त है — चाय फ्री होनी चाहिए!”

और यूँ कांता बुआ बन गईं एक टीवी शो होस्ट!

घर लौटते ही मोहल्ले में स्वागत हुआ — माला, ढोल, और हर दिवार पर लिखा था —
“Welcome Reel Rani!”
“हमारी बुआ — देश की स्टार!”

शकुंतला दीदी ने पूछा —
“बुआ, अब आप हमसे बात करेंगी भी या सेलेब्रिटी बनकर घमंड करेंगी?”

बुआ बोलीं —
“मैं वही कांता हूँ, जो परसों तक गैस पर दाल जलाकर भूल गई थी। सेलेब्रिटी बनने के बाद भी सब्ज़ी में नमक ज़्यादा ही पड़ता है।”

और बुआ फिर बन गईं उसी मोहल्ले की, वही दोस्तों की, लेकिन अब कैमरे के सामने और भी मज़ेदार।

***

टीवी पर ‘बुआ की बातें’ शो हिट हो गया था। हर रविवार को लोग अपने कामकाज रोककर टीवी के सामने बैठ जाते — बुआ की चाय पीने की अदा, उनकी बातों में मसालेदार सच्चाई, और उनका हर एपिसोड सोशल मीडिया पर वायरल हो जाता।

लेकिन एक दिन की बात कुछ और थी।

सुबह-सुबह राजू दौड़ता हुआ आया —
“माँ! बॉलिवुड से कॉल आया है!”
बुआ ने चश्मा ऊपर खींचकर पूछा — “बॉलिवुड? यानी कि मुंबई? यानी कि हिरोइनों वाला मुंबई?”
“हाँ! एक डायरेक्टर हैं — अभिषेक कश्यप। वेब सीरीज़ बना रहे हैं ‘अजब मोहल्ला गजब लोग’। आपको रियल बुआ के रोल के लिए चाहते हैं। वीडियो कॉल करना है अभी!”

बुआ की चाय एक बार फिर छलक गई।

तुरंत ही कैमरा सेट हुआ, लाइट ऑन, बुआ गजरा लगा चुकी थीं, और सामने स्क्रीन पर आया — अभिषेक कश्यप। माथे पर बंधा रुमाल, गर्दन में कैमरा, पीछे फिल्म के पोस्टर टंगे।

“नमस्ते बुआ जी!”
बुआ बोलीं, “हम कांता बोल रहे हैं, नाम याद रखिए, वरना बाद में ‘कांता चल गया’ बोलते रह जाएंगे!”

अभिषेक हँस पड़ा — “बुआ जी, मैं चाहता हूँ आप हमारे शो में रियल लाइफ बुआ बनें। वही देसी अंदाज़, वही तड़का! डायलॉग तो हम देंगे, लेकिन आप अपने स्टाइल में बोलिए। शूटिंग मुंबई में होगी, एक महीने का कॉन्ट्रैक्ट, और अच्छा पैसा मिलेगा।”

बुआ थोड़ी चुप हुईं। फिर पूछा — “खाने में क्या मिलेगा?”
अभिषेक: “सेट पर सब मिलेगा — पूड़ी से पास्ता तक।”
बुआ: “अच्छा! तो हम शूटिंग के साथ-साथ रेसिपी भी सीख लेंगे!”

बुआ ने हामी भर दी।

दो दिन में कांता बुआ, राजू और नेहा मुंबई पहुँचे। बुआ ने पहली बार लोकल ट्रेन देखी और कहा — “हे भगवान! लोग ट्रेन में ऐसे चढ़ते हैं जैसे शादी के मंडप में लड्डू बाँट रहे हों!”

शूटिंग शुरू हुई — बुआ को एक पुराने मोहल्ले की बुआ का किरदार निभाना था, जो हर झगड़े में नमक मिर्च लगाकर मामले को बिगाड़ती और फिर खुद ही हल कर देती।

सच कहें तो, बुआ को एक्टिंग करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी — वो बस अपने जैसे ही थीं!

पहला सीन:
एक बहू दरवाज़ा बंद करती है, तभी बुआ अंदर से बोलती हैं:
“अरे बहू! ये दरवाज़ा है या चुनाव का बैरिकेड? थोड़ा धीरे मारो, लकड़ी भी इज्जत चाहती है!”

कैमरा कट हुआ — डायरेक्टर बोला:
“Perfect shot! No retake!”

पूरा सेट बुआ का दीवाना हो गया।

कोई उन्हें चाय देने आता, कोई पैर छूकर आशीर्वाद लेता। कैमरा मैन कहता — “बुआ जी, आपकी बातों में मम्मी जैसी डांट है, पर वो भी हँसी दिला देती है।”

एक दिन फिल्म के हीरो — रोहित बब्बर — आए मिलने। लम्बे, गोरे, संजीदा, इंस्टाग्राम पर करोड़ों फॉलोअर्स। उन्होंने बुआ से कहा,
“Ma’am, I’m your fan! आपकी रील मेरी मॉर्निंग मोटिवेशन है।”
बुआ मुस्कराईं — “बेटा, सुबह मोटिवेशन चाहिए तो ब्रश कर, फिर दो परांठे खा, रील बाद में देख।”

फिर आया बुआ का सबसे चर्चित सीन — ‘बुआ का रिश्ता सलाह केंद्र’।

सीन में मोहल्ले की हर लड़की, लड़का, बाप, बहू, सब अपने रिश्ते के झगड़े लेकर बुआ के पास आते हैं — और बुआ अपनी स्टाइल में सबको सुधार देती हैं।

लड़की: “बुआ, वो मेरे मैसेज का जवाब नहीं देता।”
बुआ: “बेटी, अगर जवाब चाहिए तो सवाल ऐसा पूछ कि सामनेवाला भागे नहीं, झुके।”

लड़का: “बुआ, माँ नहीं मान रही शादी के लिए।”
बुआ: “माँ को मनाना है तो पहले उसकी फ़ेवरेट मिठाई ला, फिर धीरे से कहना — माँ, बहू नहीं बहाना है ये!”

सीन शूट होते ही डायरेक्टर ने ताली बजा दी —
“ये एपिसोड वायरल होगा बुआ जी!”

अब वेब सीरीज़ रिलीज से पहले प्रेस कॉन्फ्रेंस रखी गई। बड़ी-बड़ी मीडिया कंपनियाँ, कैमरे, रिपोर्टर, और बीच में कांता बुआ — अपनी गुलाबी बनारसी साड़ी में, गजरा लगाए, झोला लटकाए।

रिपोर्टर: “बुआ जी, आपको अब क्या बॉलिवुड की नायिका कहा जाए?”

बुआ: “हम नायिका नहीं बेटा, मोहल्ले की अम्मा हैं। फर्क बस इतना है कि अब कैमरा हमारा बेटा बन गया है।”

रिपोर्टर 2: “आपका अगला प्लान क्या है?”

बुआ: “सोच रही हूँ किचन में बैठकर ‘बुआ की बावर्ची बातें’ शुरू करूँ।”

सभी ठहाकों से लोटपोट!

एक पत्रकार ने पूछा — “अब इतने फेम के बाद मोहल्ला याद आता है?”

बुआ की आँखें थोड़ी भीग गईं — “याद तो आता है बेटा। वहीं से तो सीखा मैंने कैसे बिना सब्ज़ी के दाल में भी कहानी पकाई जाती है।”

प्रेस के बाद, एक निर्माता उनके पास आया और बोला —
“बुआ जी, अगली फिल्म में आपको लीड रोल देंगे। नाम होगा — ‘दनादन बुआ इन दुबई’।”

राजू चौंका, “माँ दुबई भी जाएंगी?”

बुआ बोलीं — “बेटा, पहले लखनऊ घूम लूँ, फिर देखेंगे!”

***

वेब सीरीज़ सुपरहिट हो चुकी थी। इंस्टाग्राम पर फॉलोअर्स लाखों में, यूट्यूब पर चैनल ट्रेंड कर रहा था, और ‘बुआ की बातें’ शो में उन्होंने हर रविवार को देशभर के दर्शकों का दिल जीत लिया था। अब कांता बुआ की लोकप्रियता इतनी बढ़ गई थी कि उसका असर सत्ता के गलियारों तक पहुँच चुका था।

एक दिन राजू दौड़ता हुआ आया —
“माँ! दिल्ली से कॉल आया है — मिनिस्ट्री ऑफ डिजिटल इंडिया से। आपको अगले हफ्ते ‘डिजिटल एंबेसडर’ के रूप में संसद में बुलाया गया है!”

बुआ चौंकीं —
“हे भगवान! अब हम सांसदों को ज्ञान देंगे? वो भी मोबाइल का?”

राजू ने हँसते हुए कहा —
“माँ, अब आप सिर्फ बुआ नहीं रहीं, आप ‘डिजिटल इंडिया की देवी’ बन चुकी हैं!”

नेहा ने साड़ी की नई डिज़ाइन सिलवा दी, पड़ोस की बच्चियों ने पोस्टर बनाकर भेजे — “बुआ दिल्ली जा रही हैं!” और मोहल्ले भर में मिठाइयाँ बँटीं।

जब बुआ दिल्ली पहुँचीं, तो उन्हें संसद भवन के पास VIP गेस्ट हाउस में ठहराया गया। वहाँ लगे हर पोस्टर में उनका चेहरा था — “Meet Kanta Bua: The Face of Digital Bharat!”

दूसरे दिन उनका भाषण था संसद के विशेष सेशन में — “डिजिटल साक्षरता और ग्राम स्त्री शक्ति” पर।

राजू बोला —
“माँ, एकदम सभ्य भाषा में बोलिएगा, और अंग्रेजी से डरिए मत।”

बुआ ने कहा —
“डर किस बात का? हम तो वो हैं जो बिना नेटवर्क के भी नेटवर्क खड़ा कर दें!”

संसद के विशेष भवन में जब कांता बुआ पहुँचीं, तो सामने बैठे थे — मंत्रीगण, IAS अधिकारी, टेक्नोलॉजी एक्सपर्ट, सोशल मीडिया CEO तक। बुआ मंच पर पहुँचीं, और सबका ध्यान गया उनकी साड़ी पर — जिस पर लिखा था:

“वीडियो बनाओ, लेकिन इज़्ज़त बनाए रखो।”

सारा सभागार मुस्करा उठा।

बुआ का भाषण शुरू हुआ:

“सबसे पहले तो जय हिंद।
अब आप सब मुझे सुनना चाहते हैं, तो मैं साफ कह दूँ — मोबाइल में ताक़त है, लेकिन उसके अंदर आदमी खो गया तो ताक़त भी बेकार है।
हमारे गाँव में पहले लोग एक-दूसरे को देख लेते थे, अब एक-दूसरे की स्टोरी देखते हैं।
मैं कहती हूँ — डिजिटल बनो, लेकिन दिलवाले भी रहो।
और ये रील्स — हाँ, मैंने भी बनाईं, लेकिन हर रील में रोटी की भी बात की।
क्योंकि डांस करके लाइक्स मिलते हैं, पर पड़ोसी की थाली देखके भूख समझ आती है।”

सब तालियाँ बजाने लगे।

फिर उन्होंने कहा —
“सरकारी ऐप्स बनाइए, लेकिन ऐसा हो कि मेरी पड़ोस की गीता बाई भी समझ सके।
हम बुढ़िया हैं, लेकिन अगर हम इंस्टा सीख सकते हैं, तो मंत्री जी भी सीख सकते हैं कि फाइल भेजनी हो तो PDF में भेजो, JPEG में नहीं!”

तालियों की गूंज इतनी ज़ोरदार थी कि मंत्रीगण मुस्कराने लगे।

डिजिटल मंत्री खुद मंच पर आए और बोले:

“बुआ जी, आपने जो कहा वो एक किताब में नहीं, ज़िंदगी में लिखा हुआ पाठ है। मैं आपसे अनुरोध करता हूँ — हमारे ‘Digital India Rural’ मिशन की एंबेसडर बनिए।”

बुआ बोलीं —
“हम बनेंगे, लेकिन शर्त एक है — ऐप्स ऐसे बनाओ जो अंग्रेज़ी में शुरू होकर हिन्दी में समझ आएं।”

और मंत्री ने तुरंत ऐलान किया —
“अगला ग्राम मोबाइल लर्निंग ऐप – कांता बुआ के नाम से।”

दिल्ली में कांता बुआ को राष्ट्रपति भवन में सम्मान मिला —
“Digital India Change-Maker of the Year”

और फिर क्या था — इंस्टाग्राम पर ट्रेंड होने लगे मीम्स:

बुआ के साथ संसद का मीम: “जब बुआ ने सांसद को कहा – बेटा, तुम भी रील बनाओ, चैनल चल पड़ेगा!”

ट्विटर पर हैशटैग चल पड़ा:
#BuaInSansad
#KantaForPM2029
#DesiDigitalDhamaka

बुआ खुद भी मुस्कराईं — “अब तो हमें ‘बुआ जी’ कहने से पहले लोग सोचते हैं — कहीं वीडियो में न आ जाए!”

बुआ जब दिल्ली से लौटीं, तो मोहल्ले में ढोल-नगाड़ों से स्वागत हुआ। पंडित जी ने आरती की, स्कूल की बच्चियों ने कविता गाई:
“कांता बुआ हैं कमाल की, मोबाइल में भी मिशाल की!”

शकुंतला दीदी ने पूछा —
“बुआ, अब आप मंत्री बनेंगी क्या?”

बुआ हँस पड़ीं —
“हमसे चाय ठीक से नहीं बनती, मंत्री क्या बनेंगे! हम वही हैं, जो लड्डू के डिब्बे में मोबाइल रखकर भूल जाती हैं।”

और बुआ फिर से अपने उसी आँगन में लौट आईं — जहाँ मोबाइल की घंटी के साथ चिड़ियों की चहचहाहट थी, और जहाँ आज भी उनके वीडियो बनते थे — बिना शोऑफ, बिना तामझाम — सिर्फ हँसी और सच्चाई के साथ।

***

कांता बुआ की दिल्ली यात्रा के बाद सोशल मीडिया पर हलचल कुछ ऐसी मची कि अब विदेशों से भी न्यौते आने लगे। बुआ अभी मोहल्ले में लौटी ही थीं कि एक शाम राजू फिर मोबाइल लेकर दौड़ता आया — इस बार चेहरे पर ऐसा एक्साइटमेंट जैसे उसे iPhone मुफ्त में मिल गया हो।

“माँ! न्यूयॉर्क से ईमेल आया है! ‘ग्लोबल डिजिटल समिट’ में आपको keynote speaker के रूप में बुलाया गया है!”

बुआ उछल गईं — “हे राम! ये न्यूयॉर्क क्या उसी अमेरिका में है जहाँ लोग गरम पानी पीते हैं और रोटी को ‘ब्रेड’ बोलते हैं?”

नेहा बोली — “हाँ माँ, वही! और आपको वहाँ मंच पर बुलाया जाएगा — इंटरनेशनल ऑडियंस के सामने!”

बुआ बोलीं —
“अरे बेटा, हम तो मंच पर खड़े होते ही झेंप जाते हैं… लेकिन चलो, विदेश की चाय का स्वाद भी चख लेते हैं!”

बुआ पहली बार हवाई जहाज पर चढ़ने जा रही थीं। एयरपोर्ट पहुँचीं तो TSA वालों की हालत खराब हो गई। झोले में ठूँसा हुआ अचार, पापड़, तीन मोबाइल (जिनमें से दो बंद), और एक थर्मस जिसमें तुलसी की चाय।

सुरक्षा अधिकारी ने पूछा, “Madam, any electronics?”

बुआ ने कहा, “हाँ, ये मोबाइल, ये टॉर्च, और ये तांबे का लोटा भी बिजली से काम करता है अगर माने तो!”

पूरे सुरक्षा चेक के दौरान बुआ ने तीन बार कहा — “हम कोई आतंकवादी नहीं हैं, हम मोहल्ले की बुआ हैं!”

राजू और नेहा को शर्म के मारे हँसी रोकना मुश्किल हो गया।

जब फ्लाइट से उतरीं तो सामने दिखाई दिया — एक बोर्ड: “Welcome Kanta Bua – India’s Digital Dadi”

बुआ ने कहा — “बाप रे! अब दादी भी बन गए हम! पर ठीक है, अमेरिका में उम्र बढ़ ही जाती है ना!”

होटल में उन्हें presidential suite दिया गया। बुआ दरवाज़ा खोलते ही बोलीं —
“हे भगवान! इतना बड़ा कमरा? इसमें तो हमारी पूरी कॉलोनी रह सकती है!”

अगले दिन समिट था — न्यूयॉर्क के प्रसिद्ध डिजिटल सेंटर में। बड़े-बड़े टेक दिग्गज, ऐप डेवलपर, यूट्यूब स्टार्स और CEO मंच पर थे।

सभी अंग्रेज़ी में बोले जा रहे थे:
“AI… Blockchain… Quantum Computing…”
बुआ धीरे से राजू से फुसफुसाईं — “बेटा, ये लोग खिचड़ी बना रहे हैं क्या?”

बारी आई कांता बुआ की।

सब सोच रहे थे कि बुआ कैसे अंग्रेज़ी में बोलेंगी। लेकिन जैसे ही माइक हाथ में लिया, बुआ ने चश्मा ठीक किया और बोलना शुरू किया:

“Hello everyone, I am Kanta Bua, straight from India. I no speak much English, but I speak truth, and truth has no subtitles.”

सारा सभागार ताली बजा उठा।

फिर बुआ ने अपनी देसी शैली में कहा:

“Technology वो है जो मेरी पड़ोसन की बहू को भी समझ आ जाए — जो ऐप्स बनते हैं, वो बुजुर्गों को भी बाँध सकें।
हमने गाँव में मोबाइल पकड़ा, और पकाते-पकाते डिजिटल भी हो गए।
हमने Reels बनाईं, लेकिन रिश्ते भी नहीं छोड़े।
हमारे लिए सोशल मीडिया लाइफ नहीं है, लाइफ़ में सोशल होना है।
और हाँ, अगर कोई पूछे — ‘बुआ, आपकी क्वालिफिकेशन क्या है?’
तो मैं कहती हूँ — ‘मुझे ज़िंदगी पढ़नी आती है, बाकी सब यूट्यूब से सीखा।’”

पूरा हॉल ठहाकों और तालियों से गूंज गया।

बुआ को समिट में “Digital Inclusion Hero” का अवॉर्ड मिला।

BBC, CNN, और Buzzfeed जैसे चैनलों ने उनकी क्लिप चलाई:
“Meet India’s Internet Grandmom Who Stole the Show in NYC!”

इंस्टाग्राम पर ट्रेंड कर गया:

#BuaInAmerica

#DesiDadiGoesGlobal

#InternetKaTadka

और बुआ की वो लाइन वायरल हो गई:

“Truth has no subtitles.”

बुआ ने वहाँ भी लोगों को चौंका दिया।

एक रेस्टोरेंट में वेटर आया और पूछा — “Ma’am, would you like pizza?”

बुआ ने कहा —
“Pizza तो ठीक है, पर उस पर थोड़ा अचार मिल जाए तो मज़ा आ जाए!”

नेहा हँसकर बोली — “माँ! अब आप यहाँ भी अचार माँगेंगी?”

बुआ बोलीं — “बेटा, ज़ुबान की आदत को VISA नहीं चाहिए।”

जब बुआ भारत लौटीं तो एयरपोर्ट पर लोग तख्तियाँ लेकर खड़े थे —
“Welcome Bua – India’s Global Grandma”

रिपोर्टर भागे-भागे आए:

“बुआ जी, अब अगला मिशन क्या होगा?”

बुआ बोलीं —
“हम सोच रहे हैं एक ऑनलाइन स्कूल खोलें — नाम होगा ‘बुआ की बुद्धि शाला।’ जहाँ हर उम्र के लोग सीखेंगे मोबाइल, सोशल मीडिया, और असली ज़िंदगी में फ़र्क कैसे करें!”

लोगों ने पूछा — “क्या आप अगला चुनाव लड़ेंगी?”

बुआ बोलीं —
“हम वो हैं जो टीवी में भी रिमोट से चलती हैं, राजनीति में नहीं। लेकिन हाँ, अगर किसी को सच सुनना है — तो बुआ अब भी वहीं हैं, मोहल्ले की चौपाल में!”

***

जब न्यूयॉर्क से लौटने के बाद कांता बुआ ने अपने पुराने मोहल्ले की चौखट पर कदम रखा, तो लगता था जैसे वे किसी फिल्म की हीरोइन बनकर लौटी हों—बाहर स्वागत की भीड़, मीडियावाले माइक लिए खड़े, बच्चे फूलों की माला लेकर तैयार और बगल की शकुंतला दीदी की आँखों में गर्व के आँसू। लेकिन बुआ फिर भी वैसी ही थीं—सर पर पल्लू, हाथ में थैला और मुंह में वही ताजगी भरी खरी-खरी बातें। उन्हें तो तब भी फर्क नहीं पड़ा जब अगले ही हफ्ते एक बड़े फिल्म निर्माता—करण कक्कड़—खुद मुंबई से उनसे मिलने आ धमके। वो बुआ के घर के दरवाजे पर आए और बोले, “बुआ जी, आपकी ज़िंदगी किसी फिल्म से कम नहीं है। हम आपकी बायोपिक बनाना चाहते हैं, फिल्म का नाम होगा — ‘बुआ ऑन फायर’।” बुआ चौंकीं, “क्या नाम रखा है रे बाबा! हम कोई गैस सिलिंडर हैं क्या जो फायर पर हों?” राजू ने फौरन मोबाइल निकाला, गूगल किया, और उन्हें समझाया कि ‘on fire’ का मतलब है कि आप ट्रेंड में हैं, आपसे सब इंस्पायर हो रहे हैं। बुआ बोलीं, “तो ऐसा क्यों नहीं रखते—’बुआ की बात, दिल के साथ’?” करण हँसते हुए बोले, “बुआ, नाम चाहे जो रखिए, कहानी तो आपकी है। आप ही तय कीजिए, स्क्रिप्ट कैसी हो।”

अगले ही दिन बुआ के आँगन में मीटिंग शुरू हुई—एक तरफ करण कक्कड़, दूसरी तरफ स्क्रिप्ट राइटर, डायरेक्टर, और कैमरा टीम। सामने बैठीं कांता बुआ, हाथ में लोटा और पास ही चाय का कुल्हड़। डायरेक्टर ने शुरुआत की, “तो बुआ जी, फिल्म की ओपनिंग हम न्यूयॉर्क वाले सीन से करना चाहते हैं—जब आपने ‘truth has no subtitles’ बोला था, वही लाइन सबसे पहले गूंजेगी।” बुआ बोलीं, “अरे बेटा, तुम फिल्म बनाते हो या हलवा? शुरुआत मीठी होती है। हमारी फिल्म की शुरुआत होगी उस दिन से जब हमने पहला मोबाइल खरीदा था और गलती से बिजली के रिमोट से कॉल करने की कोशिश की थी।” स्क्रिप्ट राइटर ने तुरंत नोट किया — “Scene 1: Old woman confuses mobile with remote – comic opening.” बुआ बीच में बोल पड़ीं, “ओए! बूढ़ी औरत नहीं, बुआ लिखना! और कॉमिक क्या, वो तो सच्ची घटना थी।”

फिल्म की कहानी आगे बढ़ी—बुआ का मोहल्ले में डिजिटल ज्ञान देना, उनकी पहली रील जिसमें उन्होंने कहा था “चाय बनाओ लेकिन इज़्ज़त के साथ,” फिर गाँव की महिलाओं को ऐप सिखाना, दिल्ली की संसद में भाषण और फिर न्यूयॉर्क का धमाका। सब कुछ दर्ज किया जा रहा था, लेकिन बुआ का कहना था, “हमारे फिल्म में ड्रामा हो सकता है, लेकिन झूठ नहीं।” डायरेक्टर ने एक सीन का सुझाव दिया—“बुआ, एक सीन में आप ट्रेन में बैठी हों और आपके मोबाइल में अचानक देश के प्रधानमंत्री का कॉल आ जाए।” बुआ ने फौरन विरोध किया, “हम फिल्म बना रहे हैं या सपना? हम तो प्रधानमंत्री से कभी बात नहीं किए, अब फिल्म में दिखाएंगे तो लोग कहेंगे हम झूठ बोलते हैं। वो कॉल वाला सीन काटो।” करण बोले, “लेकिन बुआ, थोड़ा सिनेमैटिक लिबर्टी तो चलती है।” बुआ बोलीं, “सिनेमैटिक लिबर्टी घर के पराठे की तरह है—ज़्यादा हो गई तो जल जाएगा।”

फिल्म की शूटिंग शुरू हुई। मोहल्ले के लोग भी एक्स्ट्रा बन गए—प्यारे लाल हलवाई ने ‘मोती मिष्ठान्न भंडार’ में खुद को निभाया, नेहा और राजू अपने ही किरदार में थे, और शकुंतला दीदी को कैमरे में देखकर ऐसा लगा मानो वो ‘गृहशोभा’ के कवर पर आ गई हों। बुआ को एक बार मेकअप आर्टिस्ट ने बुलाया, “मैम, थोड़ी फाउंडेशन लगाएँ?” बुआ ने जवाब दिया, “हमारे चेहरे पर अनुभव की मिट्टी है, फाउंडेशन की नहीं।” कैमरा टीम ने वो भी रिकॉर्ड कर लिया—और वही डायलॉग बन गया पोस्टर की टैगलाइन।

जैसे-जैसे शूटिंग आगे बढ़ी, बुआ की प्रसिद्धि और बढ़ती गई। सेट पर इंटरनेशनल जर्नलिस्ट आए, डॉक्युमेंट्री वालों ने इंटरव्यू लिया, और ‘Netflix Originals’ वालों ने भी पूछा—“क्या बुआ की कहानी हमारे प्लेटफॉर्म पर आ सकती है?” बुआ ने पूछा, “नेटफ्लिक्स क्या होता है?” राजू ने कहा, “माँ, जहाँ सारी दुनिया देखेगी आपको।” बुआ बोलीं, “तो पहले मोहल्ले वाले देख लें, फिर दुनिया देखे।” करण कक्कड़ बोले, “बुआ जी, आप तो हमारी सबसे सच्ची स्टार हैं। आप में कोई नखरे नहीं, कोई बनावट नहीं।” बुआ मुस्कराईं, “हमें नखरे करना आता ही नहीं, हम वो हैं जो ग्लैमरस के बदले घर के बर्तन मांजकर चैन पाते हैं।”

फिल्म पूरी हुई। प्रीमियर रखा गया मुंबई के सबसे बड़े थियेटर में—रेड कारपेट, कैमरे, इंटरव्यू, और ढेर सारे सितारे। बुआ जब वहाँ पहुँचीं तो डिजाइनर साड़ी में भी वही मोहल्ले वाली आत्मीयता लिए। मीडियावाले पूछते रहे, “बुआ जी, आप अब फिल्मों में और आएँगी क्या?” बुआ बोलीं, “हम रोज़ फिल्म में होते हैं—ज़िंदगी नाम की। इसमें एक्शन भी है, इमोशन भी और असली कॉमेडी भी। फर्क बस इतना है, यहाँ कट बोलने वाला कोई नहीं होता।” फिल्म चली—पूरे भारत में। थिएटर में लोग हँसते-हँसते रोने लगे। बच्चों ने बुआ को अपना रोल मॉडल कहा, और बुजुर्गों ने कहा, “अगर बुआ कर सकती हैं, तो हम क्यों नहीं?” स्कूलों में ‘बुआ की कहानी’ पर निबंध लिखे गए, सरकारी पाठ्यक्रमों में उनका नाम जोड़ा गया—“Digital Inspiration: Kanta Bua’s Journey from Mohalla to Manhattan”

कहानी वहीं खत्म नहीं हुई। बुआ अब भी उसी मोहल्ले में हैं, सुबह तुलसी को जल देती हैं, चाय पीते वक्त नए वीडियो की स्क्रिप्ट सोचती हैं और हर किसी से एक ही बात कहती हैं — “टेक्नोलॉजी से मत डरो, उसका इस्तेमाल करो—but दिल से। और हाँ, वीडियो बनाओ, लेकिन उसमें सच्चाई होनी चाहिए। क्योंकि कैमरा सब पकड़ लेता है, और दिल सब याद रखता है।” आज भी मोहल्ले में कोई नया मोबाइल लेता है, तो सबसे पहले दिखाने बुआ के पास आता है। और बुआ मुस्कराकर कहती हैं, “ये सिर्फ मशीन नहीं, ये अब तुम्हारी ज़िम्मेदारी है। इसे चलाना तो आसान है, पर सही से चलाना ही असली चालाकी है।”

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