आधी रात का चाँद
वाराणसी की गलियाँ वैसे तो दिन-रात लोगों से भरी रहती हैं लेकिन शाम होते ही उनमें एक अजीब-सी खामोशी उतर आती है, मानो सदियों पुरानी इमारतें खुद अपनी कहानियाँ सुनाने लगती हों। उन्हीं गलियों में रहती थी समीरा, उम्र मात्र बाईस, आँखों में अनगिनत राग और दिल में अधूरी ख्वाहिशों का कोलाहल। वह बनारस घराने की तालीम ले रही थी, सुबह की ठंडी हवा में उसका सुर और तानपुरे की गूँज मिलकर मोहल्ले का वातावरण बदल देती थी। लेकिन उसके भीतर हमेशा एक दुविधा रहती—क्या कभी वह अपने संगीत से पहचान बना पाएगी या परिवार की इच्छा पूरी कर किसी अंजान रिश्ते में बाँध दी जाएगी। दूसरी तरफ, दिल्ली से आया आरव वाराणसी की गलियों में नया था। पेशे से फोटोग्राफर, दिल से एक आवारा रूह, जो अपनी लेंस से उन पलों को कैद करना चाहता था जिन्हें लोग अक्सर अनदेखा कर देते हैं। गंगा के घाट, पुरानी हवेलियाँ, लालटेन की रोशनी में नहाती तंग गलियाँ—सब कुछ उसकी आँखों में बसता जा रहा था। उसे लगा था कि यहाँ वह अपने अगले फोटोग्राफी प्रदर्शनी की आत्मा ढूँढ़ लेगा। एक शाम दशाश्वमेध घाट पर गंगा आरती के समय दोनों की दुनिया टकराई। आरव अपने कैमरे से चाँदी-सी चमकती लहरों और आसमान में टिमटिमाते तारे को कैद कर रहा था, तभी उसके फ्रेम में अचानक समीरा आ गई। उसके चेहरे पर दीपों की लौ का प्रतिबिंब पड़ रहा था, आँखें बंद थीं और होंठों पर कोई अनसुना सुर काँप रहा था। आरव ने शटर दबाया और उसी क्षण उसे महसूस हुआ कि उसने केवल एक तस्वीर नहीं, बल्कि किसी की आत्मा को कैद कर लिया है। समीरा को पता ही नहीं चला कि कोई उसकी तस्वीर खींच चुका है, वह तो अपने राग में डूबी थी। आरव उस तस्वीर को बार-बार देखता रहा, उसे समझ नहीं आया कि उसे किसने बाँध लिया—गंगा की लहरें या वह अनजान लड़की। अगले दिन सुबह-सुबह आरव ने वही तस्वीर लैपटॉप पर देखी। तस्वीर में समीरा का चेहरा अंधेरे और रोशनी के बीच जैसे किसी रहस्य की तरह चमक रहा था। वह सोचने लगा कि इस लड़की से मिले बिना उसकी वाराणसी की यात्रा अधूरी है। उधर समीरा अपने तानपुरे के साथ रियाज़ कर रही थी लेकिन उसके सुर बार-बार टूट रहे थे। मन अजीब बेचैन था, मानो किसी ने उसकी तान के बीच एक अनकही खिड़की खोल दी हो। शायद यह शहर दोनों के लिए अब सिर्फ जगह नहीं रह गया था, बल्कि एक पुल था—जहाँ दो अलग-अलग दुनियाओं के लोग अनजाने में एक-दूसरे की ओर खिंच रहे थे। शाम ढलते ही आरव ने कैमरा उठाया और उसी गली में निकल पड़ा जहाँ से वह लड़की आरती के बाद गायब हुई थी। संकरी सीढ़ियों पर बैठी औरतें, पीतल के बर्तनों की झंकार, दुकानों से उठती जलेबी और कचौरी की महक, और बीच-बीच में बहती गंगा की ठंडी हवा—उसका कैमरा लगातार क्लिक करता रहा लेकिन दिल केवल एक चेहरे को ढूँढ़ रहा था। और अचानक, एक मोड़ पर, वही चेहरा सामने आया। समीरा हाथ में किताब लिए अपनी सहेली से बातें करती हुई आ रही थी। आरव की धड़कन तेज हो गई, कैमरे की पट्टी कसकर पकड़ ली, पर हिम्मत नहीं जुटा सका कि बात कर ले। बस दूर से खड़ा रहा और देखता रहा, जैसे कोई सुर अनसुना रह गया हो। समीरा ने क्षण भर के लिए उसकी ओर देखा, हल्की-सी जिज्ञासा भरी नजर, और फिर चली गई। उस छोटे-से पल में जैसे दोनों की दुनिया ने पहली बार एक-दूसरे को छू लिया हो। आरव के भीतर एक नया सुर गूंजा और समीरा के भीतर एक नया सवाल जन्मा—क्या यह अजनबी उसकी जिंदगी का कोई नया राग बनने वाला है?
समीरा उस दिन रात देर तक सो नहीं सकी। गंगा की लहरों का स्वर और उस अजनबी की नज़र उसके भीतर कहीं गहरे उतर गई थी। उसने पहली बार महसूस किया कि कोई अनजान चेहरा भी मन के भीतर हलचल मचा सकता है। उसकी सहेली ने तो मज़ाक में कहा था—“तुझे तो बस राग-रागिनी सूझते हैं, अब किसी की आँखें तुझे भटकाने लगीं क्या?” लेकिन समीरा ने हँसकर बात टाल दी, भीतर ही भीतर वह मान चुकी थी कि उस एक पल में कोई अदृश्य डोर उसके भीतर बंध गई है। दूसरी तरफ आरव अपने होटल के कमरे में बैठा उसी तस्वीर को बार-बार देख रहा था। वह जानता था कि फोटोग्राफी सिर्फ़ तस्वीरें खींचने का नाम नहीं, बल्कि उस पल की आत्मा को पकड़ने की कला है। और इस बार उसे लगा कि उसकी कला ने उससे भी बड़ा कुछ पा लिया है—एक धड़कन, एक चेहरा, एक राग। अगले दिन आरव जानबूझकर उसी गली में गया। कैमरा उसके गले में था, लेकिन नज़रें सिर्फ़ समीरा को तलाश रही थीं। संकरी सीढ़ियों पर बैठे पंडे, दुकान पर कतार लगाए तीर्थयात्री, रंग-बिरंगी चुनरियाँ लहराती हुईं—सब कुछ कैमरे में उतारता रहा, पर दिल बेचैन था। और तभी मंदिर से लौटती भीड़ के बीच उसे समीरा दिख गई। आज उसके हाथ में तानपुरे का थैला था। आरव ने हिम्मत जुटाकर आगे बढ़ते हुए कहा—“माफ कीजिए, मैं आरव हूँ, दिल्ली से आया हूँ। फोटोग्राफर हूँ… कल घाट पर आपकी तस्वीर खींची थी।” समीरा चौंकी, फिर झिझकते हुए बोली—“मेरी तस्वीर? बिना पूछे क्यों?” उसके स्वर में हल्की नाराज़गी थी लेकिन आँखों में जिज्ञासा भी। आरव ने मोबाइल पर तस्वीर दिखाई। तस्वीर देखते ही समीरा ठिठक गई। दीपों की रोशनी में उसका चेहरा, आँखें बंद, होंठों पर अधूरा सुर—वह तस्वीर उसके भीतर का अनकहा राज़ खोल रही थी। उसने पहली बार खुद को किसी और नज़र से देखा। समीरा कुछ पल चुप रही, फिर धीरे से बोली—“अजीब है… मैं तो खुद को ऐसे कभी नहीं देख पाई।” आरव मुस्कुराया—“कभी-कभी हम अपनी असली शक्ल दूसरों की नज़र से ही देख पाते हैं।” उस क्षण दोनों के बीच की दूरी कुछ कम हो गई। समीरा ने कदम आगे बढ़ाए लेकिन उसके मन में सवाल उठे—यह अजनबी क्यों उसके भीतर झाँक रहा है? क्या यह सिर्फ़ फोटोग्राफी है या कुछ और? उस रात समीरा ने रियाज़ किया लेकिन सुर बार-बार टूटते रहे। उसकी उँगलियाँ तानपुरे पर ठहरतीं और आँखों में वही तस्वीर उभर आती। उधर आरव गंगा किनारे बैठा चाँद को देखता रहा। कैमरा पास में था लेकिन उसने शटर दबाने की कोशिश भी नहीं की। उसे महसूस हुआ कि कुछ तस्वीरें आँखों में ही रहनी चाहिए, हमेशा के लिए। धीरे-धीरे दिन बीतने लगे। आरव और समीरा घाट, गलियों और मंदिर के बीच अनायास टकरा जाते। हर बार बातचीत थोड़ी लंबी होती, और हर बार उनके भीतर कुछ अनकहा जुड़ता। समीरा उसे अपने संगीत के बारे में बताती, कैसे परिवार चाहता है कि वह जल्द शादी कर ले, पर उसका सपना है कि वह बड़े मंच पर गाए। आरव उसे अपने बारे में बताता, कैसे वह रिश्तों से भागता है क्योंकि उसे लगता है कि कलाकार को किसी बंधन में नहीं रहना चाहिए। दोनों की सोचें अलग थीं लेकिन दोनों के भीतर एक ही बेचैनी थी—अपने सपनों को खो देने का डर। एक शाम जब गंगा पर आधा चाँद झिलमिला रहा था, आरव ने पूछा—“क्या तुम्हें लगता है कि कला और प्यार साथ-साथ चल सकते हैं?” समीरा ने धीरे से उत्तर दिया—“शायद हाँ, अगर दोनों में से कोई भी बंधन न बने।” उस जवाब में जैसे भविष्य की आहट थी। हवा में घुला वह क्षण दोनों के दिल में गहराई तक उतर गया।
समीरा अब हर सुबह तानपुरे के साथ बैठती तो महसूस करती कि उसकी तान में कुछ नया रंग आ गया है, जैसे सुरों में अब किसी अनदेखे एहसास की गूँज शामिल हो गई हो। उसकी सहेली हँसकर कहती—“लगता है तेरे रागों में अब कोई अजनबी भी उतर आया है।” समीरा बस मुस्कुरा देती लेकिन भीतर जानती थी कि यह सच है। दूसरी तरफ आरव भी अब अपने कैमरे से सिर्फ घाट या मंदिर की तस्वीरें नहीं खींचता, उसकी नज़रें बार-बार वही एक चेहरा तलाशतीं। कभी गली में किसी पीतल के दीये के सामने, कभी गंगा की सीढ़ियों पर किताब हाथ में लिए, कभी किसी गुंबद के नीचे छाँव में बैठी हुई—समीरा उसकी लेंस का अनजाना केन्द्र बन गई थी। आरव ने यह महसूस किया कि वह अब फोटोग्राफी से आगे निकल चुका है, मानो कैमरा बस एक बहाना है और असली तस्वीर उसके दिल में बन रही है। एक शाम वह समीरा के रियाज़ पर पहुँचा। उसकी गुरु माँ ने उसे शिष्यों के बीच बैठकर गाते सुना और पहली बार समझा कि समीरा की आवाज़ में कितना दर्द छिपा है। आरव दूर बैठा सुन रहा था। जब समीरा ने राग भैरवी में आलाप लिया तो आरव की आँखें भर आईं। उसे लगा जैसे वह किसी की आत्मा की पुकार सुन रहा हो। रियाज़ के बाद जब सब चले गए तो आरव ने कहा—“तुम्हारी आवाज़ में जादू है, पर उसमें उदासी क्यों है?” समीरा ने पहली बार अपने दिल की गाँठ खोलते हुए कहा—“क्योंकि मेरे सुर आज़ाद हैं लेकिन मेरी ज़िंदगी नहीं। परिवार चाहता है कि जल्द ही मेरी शादी तय कर दे। और मुझे लगता है कि सपनों से पहले ही मुझे अलविदा कहना पड़ेगा।” आरव ने चुपचाप उसकी बात सुनी, फिर धीरे से बोला—“कला कभी अलविदा नहीं कहती। जो कलाकार अपने सपनों से समझौता कर लेता है, वह खुद को खो देता है।” समीरा ने उसकी ओर देखा और उस क्षण उसे महसूस हुआ कि यह अजनबी उसकी कमजोरी नहीं, बल्कि शायद उसका साहस बन सकता है। लेकिन उसी समय उसके भीतर डर भी जागा—क्या यह सब किसी क्षणिक आकर्षण से ज़्यादा है? आरव ने गंगा किनारे उसे अगली शाम मिलने को कहा। समीरा झिझकते हुए मान गई। उस रात उसने खिड़की से बाहर देखा तो आधा चाँद गंगा पर चमक रहा था। उसकी धड़कनें तेज़ थीं। उसे लगा जैसे चाँद भी उसकी बेचैनी बाँट रहा हो। दूसरी तरफ आरव उसी चाँद की तस्वीर उतार रहा था लेकिन उसने शटर दबाने के बाद महसूस किया कि असली तस्वीर तो कल बनेगी, जब समीरा उसके साथ होगी।
अगली शाम गंगा का किनारा और भी रहस्यमयी लग रहा था। सूरज ढलते ही आकाश में हल्की बैंगनी आभा फैल गई थी और हवा में घुली चंदन की महक ने पूरे वातावरण को एक अलग गहराई दे दी थी। समीरा धीरे-धीरे घाट की सीढ़ियाँ उतर रही थी, उसके हाथों में हल्का सा कंपन था मानो वह खुद से ही पूछ रही हो कि यहाँ आकर वह कोई गलती तो नहीं कर रही। लेकिन जैसे ही उसने आरव को देखा, उसके चेहरे पर अनजाने सुकून की परछाई उतर आई। आरव ने हाथ हिलाकर इशारा किया, और समीरा उसके पास आकर खड़ी हो गई। दोनों कुछ देर चुप रहे, बस लहरों की आवाज़ और मंदिर की घंटियाँ सुनाई देती रहीं। आखिरकार आरव ने कहा—“जानती हो, जब पहली बार तुम्हें देखा था तो लगा कि मेरे कैमरे ने तस्वीर नहीं, बल्कि एक राग कैद किया है।” समीरा ने हल्की मुस्कान दी—“और जब मैंने तुम्हारी तस्वीर देखी थी तो पहली बार खुद को किसी और की आँखों से समझा।” यह संवाद दोनों के बीच एक पुल बन गया। वे घाट की सीढ़ियों पर बैठ गए और देर तक बातें करते रहे। आरव ने उसे अपने बचपन की कहानियाँ सुनाईं, कैसे वह अकेलेपन से भागने के लिए कैमरे का सहारा लेता रहा। समीरा ने उसे बताया कि संगीत उसके लिए सिर्फ़ पेशा नहीं, बल्कि सांस लेने जैसा है। पर हर सांस अब परिवार की उम्मीदों और समाज की परंपराओं से भारी लगती है। आरव ने उसकी ओर देखते हुए कहा—“अगर कला को जीना है तो तुम्हें खुद को आज़ाद करना होगा। वरना तुम्हारे सुर हमेशा अधूरे रहेंगे।” समीरा चुप रही लेकिन उसकी आँखों में नमी उतर आई। उसे लगा जैसे कोई उसके भीतर छिपे डर को बिना कहे पढ़ रहा है। अचानक एक नाव वाले ने आवाज़ लगाई—“सैर करोगे? आज चाँद खास खूबसूरत है।” दोनों ने एक-दूसरे की ओर देखा और नाव में बैठ गए। नाव धीरे-धीरे गंगा की लहरों पर तैर रही थी। ऊपर आकाश में आधा चाँद झिलमिला रहा था और नीचे उसका प्रतिबिंब लहरों में काँप रहा था। हवा में ठंडक थी लेकिन दोनों के दिलों में अजीब-सी गर्माहट थी। समीरा ने पहली बार अपने मन की दीवार ढहने दी और बोली—“कभी-कभी लगता है कि मैं सुरों से भाग रही हूँ, जैसे किसी ने मेरी आवाज़ को कैद कर लिया हो।” आरव ने उसका हाथ हल्के से छुआ—“अगर तुम्हें भागना है तो बंधनों से भागो, अपने संगीत से नहीं।” उस छुअन में कोई वासना नहीं थी, सिर्फ़ भरोसा था। नाव आगे बढ़ती रही और गंगा के बीच में पहुँचकर जैसे सब कुछ थम गया। सिर्फ़ चाँद, पानी और दो दिलों की धड़कनें थीं। समीरा ने उस क्षण महसूस किया कि वह अब अकेली नहीं है। शायद यही शुरुआत थी—एक नई तान, एक नया सुर, जो आधी रात के चाँद की तरह चमक रहा था।
नाव की सैर के बाद समीरा का मन पूरी तरह बदल चुका था। वह जानती थी कि आरव के साथ बिताए गए वे पल किसी जादू से कम नहीं थे। गंगा की लहरों पर आधा चाँद जैसे उनकी नज़रों के बीच कोई राज़ लिख रहा था, और वह राज़ अब समीरा के दिल की धड़कनों में गूंजने लगा था। अगले दिन जब उसने रियाज़ किया तो उसकी आवाज़ में एक नई मिठास थी, एक आत्मविश्वास जो पहले कभी नहीं था। उसकी गुरु माँ ने आश्चर्य से कहा—“आज तेरे सुर में जान है, क्या बात है?” समीरा बस मुस्कुरा दी लेकिन भीतर से समझ चुकी थी कि अब उसके सुरों को दिशा मिल गई है। दूसरी ओर आरव ने अपने कैमरे में ढेरों तस्वीरें कैद कीं, लेकिन हर तस्वीर में उसे वही चेहरा नज़र आता। उसे महसूस हुआ कि बनारस की गलियाँ, घाट और आकाश सब उसी एक चेहरे के इर्द-गिर्द घूमने लगे हैं। शाम को जब दोनों फिर घाट पर मिले तो समीरा ने पहली बार अपने दिल की दीवारें खोल दीं। उसने कहा—“तुम्हें लगता है कि सपने सच हो सकते हैं? जब दुनिया तुम्हें रोकने पर तुली हो, तब भी?” आरव ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा—“सपने तभी सच होते हैं जब तुम उनसे डरना छोड़ दो। डर ही सबसे बड़ा बंधन है।” समीरा की आँखों में आँसू भर आए, उसने अपने जीवन में पहली बार किसी से इतना सच्चा भरोसा महसूस किया। उसी पल उसने तय किया कि चाहे परिवार का दबाव कितना भी क्यों न हो, वह संगीत को नहीं छोड़ेगी। पर उसी रात घर लौटते ही उसे सुनना पड़ा—“अगले महीने तुम्हारे रिश्ते की बात पक्की करेंगे।” उसके पिता की बात सुनकर उसका दिल धक् से रह गया। उसने विरोध करना चाहा लेकिन शब्द गले में अटक गए। उसके भीतर एक डर था कि अगर उसने आवाज़ उठाई तो परिवार उससे नाता तोड़ लेगा। रातभर करवटें बदलती रही और खिड़की से झाँकते चाँद को देखती रही। अचानक उसे आरव की बातें याद आईं—“डर ही सबसे बड़ा बंधन है।” अगली सुबह वह घाट पर पहुँची और आरव से सब कुछ कह डाला। आरव ने कुछ देर चुप रहकर उसकी ओर देखा, फिर दृढ़ स्वर में बोला—“तो अब फैसला तुम्हें करना है। या तो तुम अपने सपनों को चुनोगी या उन जंजीरों को, जिनसे तुम्हारी आत्मा घुटती है।” समीरा काँप उठी, पर उसकी आँखों में पहली बार दृढ़ता की चमक थी। शायद अब उसकी जिंदगी की सबसे बड़ी परीक्षा शुरू होने वाली थी।
समीरा उस सुबह घर लौटी तो उसकी आँखों में रातभर की बेचैनी साफ़ झलक रही थी। माँ ने पूछा, “क्या हुआ? रियाज़ नहीं किया क्या?” वह बस सिर झुका कर चुप रही। मन में तूफ़ान उमड़ रहा था, पर शब्द अब भी कैद थे। पिता अपने कमरे से निकलते हुए बोले—“अगले हफ़्ते रिश्तेदार आ रहे हैं, लड़केवालों से मिलना है।” यह सुनते ही समीरा के भीतर एक भारी सन्नाटा उतर गया। वह चाहकर भी कुछ कह न पाई। कमरे में जाकर तानपुरा खोला, पर उँगलियाँ तारों पर फिसल ही नहीं रही थीं। उसके सुर जैसे बंध गए थे। देर शाम वह गंगा किनारे आरव से मिलने गई। उसकी आँखों में आँसू थे और स्वर काँप रहा था—“मुझसे नहीं होगा, मैं सब खो दूँगी।” आरव ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा—“तुम्हें खोना ही है, तो डर खो दो, अपनी आवाज़ नहीं। देखो समीरा, मैं तुम्हारे लिए फैसला नहीं ले सकता, लेकिन तुम्हें खुद अपने लिए खड़ा होना होगा। तुम्हारी आवाज़ लाखों को छू सकती है, क्या तुम उसे चुप कर दोगी?” समीरा चुप रही लेकिन उसके भीतर कहीं साहस की एक चिंगारी जल उठी। उस रात उसने खिड़की से बाहर देखा तो आधा चाँद बादलों के पीछे छिपकर झाँक रहा था, जैसे कह रहा हो—‘अपना चेहरा दिखाने से मत डर।’ अगली सुबह उसने गुरु माँ को सब कुछ बताया। गुरु माँ ने गंभीर स्वर में कहा—“अगर तू अपने सुर से धोखा करेगी तो तेरा संगीत कभी नहीं फलेगा। कलाकार वही होता है जो सच्चाई से जीता है, चाहे दुनिया कुछ भी कहे।” यह शब्द समीरा के भीतर गूंजते रहे। उसी दिन आरव उसे लेकर एक छोटे से स्टूडियो पहुँचा। वहाँ उसने कहा—“यहाँ गा कर देखो, अपनी आवाज़ को कैद करो, ताकि खुद सुन सको कि तुम्हारे भीतर कितनी ताक़त है।” समीरा ने आँखें बंद कीं और राग यमन गाना शुरू किया। उसकी आवाज़ कमरे की दीवारों से टकराकर लौट रही थी, जैसे उसका अपना दिल उसे जवाब दे रहा हो। गाना ख़त्म होते ही उसकी आँखों से आँसू बह निकले। आरव मुस्कुराया—“देखा, यही तुम्हारा असली रूप है। इसे किसी के आगे झुकने मत देना।” उस पल समीरा ने तय कर लिया कि अब वह चुप नहीं रहेगी। लेकिन उसके भीतर यह डर भी था कि परिवार को सच बताने के बाद क्या वह सब कुछ खो देगी। गंगा की लहरें उसके मन की तरह ही बेकाबू हो रही थीं। और आधा चाँद उस रात कुछ और गहरा, कुछ और निकट लग रहा था, मानो उसकी परीक्षा अब और कठिन होने वाली हो।
उस रात समीरा ने पहली बार ठान लिया कि अब वह खामोश नहीं रहेगी। अगले दिन घर में जब पिता ने शादी की तैयारियों की बातें शुरू कीं तो समीरा ने काँपती आवाज़ में कहा—“पापा, मैं अभी शादी नहीं करना चाहती। मेरा सपना है कि मैं संगीत में अपना नाम बनाऊँ।” घर में अचानक सन्नाटा छा गया। पिता की भौंहें तनीं, माँ घबरा गईं—“ये क्या कह रही है तू? समाज क्या कहेगा?” समीरा ने आँखों में नमी लिए दोहराया—“मुझे गाना है, बस यही मेरी ज़िंदगी है।” पिता गुस्से से कमरे से बाहर चले गए। माँ ने आहत होकर कहा—“तू हमें शर्मिंदा करेगी?” समीरा का दिल टूट रहा था लेकिन उसके भीतर एक दृढ़ स्वर गूंज रहा था—आरव और गुरु माँ की बातें। उसी शाम वह आरव से मिलने घाट पर गई। आँसुओं से भरी आँखों से बोली—“कह दिया मैंने, अब घर वाले मुझसे बात तक नहीं कर रहे।” आरव ने उसका हाथ थामा और कहा—“तुमने सही किया। कलाकार बनने का पहला कदम यही है कि वह अपने दिल की सुने।” समीरा ने सिर उसके कंधे पर रख दिया, और उस क्षण उसे लगा कि सारा बोझ हल्का हो गया है। गंगा किनारे हवा बह रही थी और लहरों पर चाँद की परछाई काँप रही थी। धीरे-धीरे उनके बीच की दूरी मिटने लगी। आरव ने धीरे से कहा—“समीरा, मैं नहीं जानता हमारा रिश्ता किस नाम से पहचाना जाएगा, लेकिन मैं इतना जानता हूँ कि तुम्हारी आवाज़ दुनिया तक पहुँचे, यही मेरी चाहत है।” समीरा ने उसकी ओर देखा और पहली बार उसकी आँखों में वह विश्वास पाया जो उसने अपने घरवालों की आँखों में भी नहीं देखा था। कुछ देर दोनों चुपचाप बैठे रहे। उस खामोशी में जैसे उनके दिल एक-दूसरे से बातें कर रहे हों। अचानक समीरा ने कहा—“अगर मैंने यह रास्ता चुना तो मुझे सब कुछ खोना पड़ सकता है।” आरव ने जवाब दिया—“शायद, लेकिन तुम्हें खुद को पाना भी तो है।” ये शब्द समीरा के दिल में गहराई तक उतर गए। उसी रात उसने खिड़की से बाहर झाँकते चाँद को देखा और महसूस किया कि अब वह चाँद उसकी राह का साथी बन चुका है। यह चाँद अब डर नहीं, बल्कि उम्मीद का प्रतीक था। और समीरा ने मन ही मन तय कर लिया कि चाहे जो भी हो, वह अपने सुरों को कैद नहीं होने देगी।
घर का माहौल अब और भारी हो चुका था। पिता उससे बात नहीं करते थे, माँ की आँखों में निराशा और तानों की बरसात थी। समीरा चुपचाप अपने कमरे में रियाज़ करती, लेकिन हर सुर के साथ उसे लगता कि दीवारें और भी कसकर उसे घेर रही हैं। कई बार उसका मन डगमगाने लगता, सोचती—शायद पापा सही कहते हैं, शायद यह सब छोड़कर सामान्य जीवन जीना ही आसान है। लेकिन जैसे ही वह आरव की बातें याद करती, उसकी आँखों में साहस लौट आता। उसी दौरान आरव ने उसे शहर के एक छोटे संगीत कार्यक्रम में भाग लेने के लिए कहा। शुरुआत में समीरा ने मना कर दिया, डरते हुए बोली—“अगर घरवालों को पता चला तो?” आरव ने गंभीरता से कहा—“अगर तुम पहली बार मंच पर नहीं उतरीं तो कभी उड़ना नहीं सीखोगी। डर हमेशा पीछा करेगा।” इन शब्दों ने उसके भीतर सोई हुई ताक़त को जगा दिया। उसने हामी भर दी। कार्यक्रम की रात समीरा ने साड़ी पहनी, हाथों में हल्का कंपन था, दिल जैसे बाहर निकल आना चाहता था। मंच पर जाते ही रोशनी उसकी आँखों पर पड़ी और सामने बैठे दर्शकों की भीड़ उसे धुंधली-सी दिखने लगी। उसने आँखें बंद कीं और राग दरबारी का आलाप लिया। सुर जैसे गंगा की लहरों की तरह बहने लगे। उसकी आवाज़ में ऐसी गहराई थी कि पूरा हॉल शांत हो गया। हर शब्द, हर तान सीधे लोगों के दिल को छू रही थी। गाना ख़त्म होते ही तालियों की गड़गड़ाहट से हॉल गूंज उठा। समीरा की आँखों से आँसू निकल पड़े, यह खुशी और डर दोनों का मेल था। पीछे खड़ा आरव मुस्कुरा रहा था, उसकी आँखों में गर्व था। पहली बार समीरा ने महसूस किया कि उसके सपनों के पंख खुल चुके हैं। लेकिन घर लौटते ही तूफ़ान इंतज़ार कर रहा था। पिता ने कड़क आवाज़ में कहा—“तू हमारे नाम पर धब्बा बना रही है। अब यह सब और नहीं चलेगा।” माँ भी रो पड़ीं। समीरा ने काँपते हुए जवाब दिया—“मैं किसी का अपमान नहीं करना चाहती, लेकिन संगीत के बिना जीना मेरे लिए मौत जैसा है।” पिता ने गुस्से से दरवाज़ा बंद कर दिया। उस रात समीरा खिड़की पर बैठी रही, आँखों से आँसू बहते रहे लेकिन दिल में एक नई शक्ति थी। गंगा पर चाँद की परछाई जैसे कह रही थी—“अब पीछे मत हटना।”
समीरा के भीतर अब डर और साहस की लड़ाई खुलकर छिड़ गई थी। पिता का गुस्सा, माँ की आँसू भरी डाँट और समाज की तानेबाज़ी—सब उसकी राह में दीवार बनकर खड़े थे, लेकिन उसी दीवार में कहीं एक खिड़की भी थी जहाँ से उम्मीद की रोशनी आती थी। वह खिड़की थी आरव की मौजूदगी और उसका विश्वास। समीरा ने सोचा कि अब और चुप रहना आसान नहीं, उसे अपने रास्ते पर आगे बढ़ना ही होगा। अगले दिन आरव उसे लेकर शहर के बड़े संगीत संस्थान पहुँचा जहाँ नए कलाकारों के लिए ऑडिशन हो रहा था। समीरा के भीतर घबराहट थी, लेकिन आरव ने उसके हाथों को कसकर पकड़ते हुए कहा—“अगर तुम अपनी आवाज़ पर भरोसा करोगी तो दुनिया भी तुम पर भरोसा करेगी।” समीरा ने आँखें बंद कीं और गाना शुरू किया। उसकी आवाज़ जैसे कमरे की हर दीवार को छू रही थी, हर कोने में गूंज रही थी। जजों की आँखों में चमक उतर आई, उन्होंने कहा—“तुम्हारी आवाज़ अनोखी है, तुम्हें मंच चाहिए।” यह सुनते ही समीरा की आँखों से आँसू बह निकले। उसे लगा मानो उसने पहला कदम जीत लिया हो। पर उसी शाम जब यह खबर घर पहुँची तो सब कुछ और बिगड़ गया। पिता ने साफ़ कह दिया—“अगर तूने यह रास्ता चुना तो इस घर में तेरी कोई जगह नहीं।” माँ ने भी चुपचाप सिर झुका लिया। समीरा का दिल टूट गया, लेकिन इस बार उसने सिर झुकाया नहीं। उसने धीमे स्वर में कहा—“अगर मेरे सुर आपको स्वीकार नहीं तो मुझे माफ़ कीजिए, मैं अपने सुर नहीं छोड़ सकती।” यह कहते हुए वह कमरे से बाहर चली गई। बाहर गली में आरव इंतज़ार कर रहा था। उसकी आँखों में चिंता थी लेकिन जब उसने समीरा की आँखों में दृढ़ता देखी तो वह समझ गया कि यह वही पल है जब एक लड़की अपनी दुनिया खुद बनाने का फैसला करती है। दोनों घाट की ओर चले। गंगा का पानी लहरों में काँप रहा था, और ऊपर आसमान में आधा चाँद जैसे उनका साथी बन गया था। समीरा ने धीरे से कहा—“मैंने सब कुछ छोड़ दिया, अब सिर्फ़ संगीत और तुम हो।” आरव ने उसकी ओर देखा और कहा—“यही तो असली शुरुआत है।” उस रात समीरा ने महसूस किया कि जीवन अब एक नया राग लिखने जा रहा है, जिसमें डर की कोई जगह नहीं होगी।
उस रात घाट की सीढ़ियों पर बैठी समीरा ने पहली बार महसूस किया कि उसके भीतर की खामोशी टूट चुकी है। वह अब सिर्फ़ किसी की बेटी या किसी की जिम्मेदारी नहीं थी, वह खुद अपनी पहचान थी—एक कलाकार, एक गायिका, जिसके सुरों में उसकी आत्मा बसती थी। आरव उसके पास बैठा चुपचाप उसे देख रहा था। दोनों के बीच शब्दों की ज़रूरत नहीं थी, हवा में बहती ठंडक और लहरों की आवाज़ सब कुछ कह रही थी। अचानक समीरा ने धीरे से कहा—“डर खत्म हो गया है आरव, अब बस सुर बचे हैं।” आरव मुस्कुराया और उसकी आँखों में पहली बार राहत की चमक थी। अगले हफ्ते शहर के बड़े मंच पर समीरा ने अपनी पहली आधिकारिक प्रस्तुति दी। हॉल खचाखच भरा था, हर चेहरा उत्सुकता से उसकी ओर देख रहा था। जब उसने आलाप शुरू किया तो पूरा वातावरण बदल गया, जैसे गंगा की लहरें उसी स्वर में बह रही हों, जैसे आसमान का चाँद उसकी आवाज़ में घुल गया हो। तालियों की गड़गड़ाहट गूँज उठी और समीरा की आँखों में आँसू छलक पड़े। वह मंच पर खड़ी थी लेकिन भीतर जानती थी कि यह सिर्फ़ उसकी जीत नहीं थी, बल्कि हर उस लड़की की जीत थी जो सपनों और परंपराओं के बीच जूझती रही है। घर में पिता ने भी चुपचाप टीवी पर उसका कार्यक्रम देखा। उनके चेहरे पर कठोरता अब भी थी, लेकिन आँखों में कहीं न कहीं गर्व की परछाई उभर आई थी। माँ ने आँचल से आँसू पोंछते हुए कहा—“यह हमारी बेटी है।” समीरा को इन सबका पता नहीं था, वह तो अपने सुरों में खोई थी, पर उसके भीतर शांति उतर आई थी। प्रस्तुति के बाद जब वह बाहर आई तो आरव ने उसे गले से लगा लिया। समीरा ने महसूस किया कि उसके सपनों के सफर में वह अकेली नहीं है। दोनों घाट की ओर लौटे। चाँद आज पूरा था, आसमान में चमक रहा था और उसकी रोशनी गंगा पर बिछी थी। समीरा ने गहरी साँस लेकर कहा—“लगता है अब मेरी आवाज़ सचमुच आज़ाद हो गई है।” आरव ने उसके हाथों को थामते हुए कहा—“और यह चाँद तुम्हारे हर राग का साक्षी बनेगा।” उस रात आधी रात का चाँद अब अधूरा नहीं था, वह पूर्ण था—ठीक वैसे ही जैसे समीरा का सपना, उसकी पहचान और उसका प्यार।
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