रिहाना कौर
सूरज की छाँव में अंधकार शहर
१ जनवरी २०९५, सुबह ८:३० बजे
दिल्ली का वह इलाका, जिसे अब लोग “अंधकार शहर” के नाम से जानते थे, धुंध और घने बादलों के साए में लिपटा रहता था। सुबह के वक्त भी यहाँ सूरज की किरणें दुर्लभ थीं। ऊँची-ऊँची गगनचुंबी इमारतें इस कदर सघन थीं कि वे सूरज की रोशनी को ज़मीन तक पहुँचने से रोकती थीं। यहाँ के लोग तकनीक पर पूरी तरह निर्भर थे। हर घर, हर ऑफिस, हर सड़क के किनारे स्मार्ट सेंसर लगे थे, जो नेटवर्क के माध्यम से जुड़े थे।
अरुण, २८ वर्षीय इंजीनियर, अपनी खिड़की से बाहर देख रहा था। उसकी आँखों में चिंता साफ झलक रही थी। पिछले महीने से शहर में एक रहस्यमय वायरस फैल रहा था। यह वायरस किसी कंप्यूटर वायरस की तरह नहीं था, बल्कि वह माइंडनेट डिवाइस को संक्रमित कर रहा था। माइंडनेट, एक छोटा सा उपकरण था जो सीधे दिमाग से जुड़कर लोगों को एक-दूसरे से और इंटरनेट से जोड़ता था।
यह डिवाइस लोगों की याददाश्त बढ़ाने, सोचने की गति तेज करने और यहां तक कि सपनों को भी नियंत्रित करने में मदद करता था। परन्तु अब यह वायरस इस डिवाइस को क्षतिग्रस्त कर रहा था।
अरुण ने अपनी लैब में जाकर डिवाइस को स्कैन किया। स्क्रीन पर दिख रहे डेटा में भारी गड़बड़ी थी। यह वायरस दिमाग की तरंगों और डिवाइस के सिग्नल में दखल दे रहा था, जिससे कई लोग मानसिक दबाव और भ्रम में आ गए थे।
“अगर इसे तुरंत नहीं रोका गया, तो यह पूरी मानवता के लिए खतरा बन सकता है,” अरुण ने अपने आप से कहा।
शहर के अस्पतालों में हालात बिगड़ते जा रहे थे। कई लोग बेहोशी, डर और अवसाद से जूझ रहे थे। मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ भी इस नई समस्या को समझने में असमर्थ थे।
अरुण को याद आया कि कुछ महीने पहले ही सरकार ने एक गुप्त प्रयोगशाला खोली थी, जहां माइंडनेट डिवाइस की अगली पीढ़ी पर काम चल रहा था। क्या यही वह जगह हो सकती है जहाँ से वायरस निकला है?
उसने अपने मित्र मीरा, जो एक साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ थी, से बात करने का फैसला किया। मीरा को यह मामला जटिल और खतरनाक लग रहा था, इसलिए उसने अरुण की मदद करने की ठानी।
“हमें जल्दी कदम उठाना होगा,” मीरा ने कहा, “वरना यह वायरस पूरे नेटवर्क को तबाह कर सकता है।”
अरुण ने अपनी टीम को इकट्ठा किया। उन्होंने वायरस के फैलने के पैटर्न को समझने के लिए डेटा इकट्ठा करना शुरू किया। उन्होंने पाया कि यह वायरस न केवल डिवाइस को प्रभावित कर रहा था, बल्कि इसका असर सीधे मानव मस्तिष्क पर भी पड़ रहा था।
“यह वायरस सिर्फ तकनीकी समस्या नहीं है, यह मानसिक नियंत्रण का हथियार है,” अरुण ने निष्कर्ष निकाला।
उस रात अरुण ने देर तक लैब में काम किया। उसकी आंखें कंप्यूटर स्क्रीन से जमी थीं, लेकिन उसका मन बेचैन था। उसका दिमाग़ बार-बार यही सोच रहा था कि इस अंधकार शहर को कैसे उजाले में बदला जाए।
वह जानता था कि यह लड़ाई सिर्फ तकनीक के खिलाफ नहीं, बल्कि मानवता के अस्तित्व के लिए थी।
वायरस की परछाईं
१० जनवरी २०९५, शाम ६:४५ बजे
अरुण और मीरा ने पिछले कुछ दिनों से वायरस के स्रोत को खोजने में दिन-रात मेहनत की थी। लैब में उनकी स्क्रीन पर वायरस के कोड की जटिलता बढ़ती जा रही थी। यह वायरस सिर्फ एक सामान्य मैलवेयर नहीं था — यह मस्तिष्क के न्यूरल नेटवर्क को सीधे प्रभावित करने वाला एक बायोटेक्नोलॉजिकल प्रोग्राम था, जो साइबर और जैविक दोनों दुनिया के बीच का पुल था।
“यह वायरस माइंडनेट की प्रणाली में गहराई तक घुसपैठ कर चुका है,” मीरा ने चिंतित होकर कहा। “यह अगर पूरे नेटवर्क को संक्रमित कर गया, तो हम तबाही से बच नहीं पाएंगे।”
अरुण ने अपने लैब के उपकरणों को अपडेट किया और वायरस की कोडिंग को डीकोड करने की कोशिश की। हर बार जब वह एक स्तर पर पहुंचता, वायरस ने अपने कोड को बदल लिया, जैसे कोई जीवित प्राणी खुद को बचा रहा हो।
वायरस ने लोगों के दिमाग़ में भ्रम पैदा करना शुरू कर दिया था। कई लोग असामान्य व्यवहार करने लगे थे—कुछ अचानक से चुप्पी साध गए, कुछ बार-बार एक ही बात दोहरा रहे थे, तो कुछ तो पूरी तरह मानसिक अवसाद में डूब गए थे।
शहर की आपातकालीन सेवाओं में कॉल्स की संख्या बढ़ने लगी। अस्पतालों में मानसिक स्वास्थ्य विभागों पर दबाव बढ़ता जा रहा था।
“हमें इस वायरस की उत्पत्ति का पता लगाना होगा,” अरुण ने कहा। “यह कोई प्राकृतिक वायरस नहीं हो सकता। इसे किसी ने जानबूझकर बनाया होगा।”
मीरा ने अपने संसाधनों का इस्तेमाल करते हुए गुप्त डेटा की खोज शुरू की। उसने पाया कि यह वायरस एक गुप्त सरकारी एजेंसी, जिसे ‘सेन्ट्रा’ कहा जाता था, के प्रयोगशाला से निकला था।
“सेन्ट्रा का नाम हर जगह छिपा हुआ है,” मीरा ने कहा। “वे तकनीक के गलत इस्तेमाल के लिए जाने जाते हैं।”
अरुण को समझ आ गया कि यह लड़ाई केवल एक वायरस से नहीं है। यह एक बड़े षड्यंत्र का हिस्सा था, जहां तकनीक का उपयोग लोगों के दिमाग़ पर नियंत्रण करने के लिए किया जा रहा था।
“हमें इस षड्यंत्र को तोड़ना होगा,” अरुण ने दृढ़ निश्चय के साथ कहा। “अगर सेन्ट्रा सफल हो गया, तो हम सभी गुलाम बन जाएंगे।”
मीरा ने कहा, “मैंने कुछ डेटा हैक किया है। अगले कुछ घंटों में हमें एक ठोस सुराग मिल सकता है।”
उस रात अरुण और मीरा ने अपने कंप्यूटर सिस्टम को एक दूसरे से जोड़ा। वे वायरस के कोड को समझने की कोशिश कर रहे थे ताकि इसका समाधान निकाल सकें।
वायरस जितना गहरा था, उससे मुकाबला करना उतना ही कठिन था। पर दोनों जानते थे कि हार मानना विकल्प नहीं था।
अंधकार शहर के लोग अब तकनीक के जाल में फंसे हुए थे। उनका दिमाग़ और उनकी आज़ादी दोनों खतरे में थे।
अरुण ने अपने आप से कहा, “यह लड़ाई केवल तकनीक के लिए नहीं, बल्कि हमारे अस्तित्व और स्वतंत्रता के लिए है।”
गुप्त एजेंसी का सच
२५ जनवरी २०९५, रात ११:१५ बजे
अरुण और मीरा ने ‘सेन्ट्रा’ नाम की गुप्त एजेंसी की तलाश शुरू कर दी थी। इंटरनेट और सरकारी नेटवर्क की गहरी तहों में झांकते हुए उन्हें कई अजीबोगरीब दस्तावेज़ और क्लासिफाइड फाइलें मिलीं, जिनमें तकनीक के जरिए मानव मस्तिष्क को नियंत्रित करने की योजना दर्ज थी।
मीरा ने अपने हैकिंग कौशल का उपयोग कर एक फाइल खोली जिसमें लिखा था, “प्रोजेक्ट न्यूरो-डोमिनेशन।” यह एक अत्याधुनिक प्रयोग था, जिसमें माइंडनेट डिवाइस का दुरुपयोग कर लोगों के दिमागों को एक केंद्रीकृत नेटवर्क से जोड़ा जाना था ताकि उनकी सोच और भावनाओं पर नियंत्रण रखा जा सके।
“यह तो भयावह है,” अरुण ने कहा। “यह तकनीक इंसान की स्वतंत्र इच्छा को खत्म कर देगी।”
मीरा ने कहा, “और यही वायरस है, जो इस नियंत्रण की शुरुआत है। इसे फैलाकर वे धीरे-धीरे पूरे शहर और बाद में पूरी दुनिया पर कब्जा करना चाहते हैं।”
दोनों ने तय किया कि इस षड्यंत्र को जनता के सामने लाना बहुत जरूरी है। परन्तु ‘सेन्ट्रा’ ने अपनी पहचान छुपाने के लिए हर संभव सुरक्षा व्यवस्था कर रखी थी।
अरुण ने कहा, “हमें पहले इस एजेंसी की मुख्य लैब का पता लगाना होगा। तभी हम उनके नियंत्रण को खत्म कर पाएंगे।”
मीरा ने अपनी खोज जारी रखी और अंततः एक पुराने बंकर की लोकेशन मिली, जो शहर के बाहर, एक सुनसान इलाके में था।
“यहां हो सकता है उनका मुख्य आधार हो,” मीरा ने कहा। “लेकिन वहां जाना खतरनाक होगा। हमें सावधानी से काम लेना होगा।”
अरुण ने ठाना कि चाहे कुछ भी हो जाए, वह इस लड़ाई में पीछे नहीं हटेगा। यह लड़ाई सिर्फ तकनीक की नहीं, बल्कि मानवता की आत्मा की थी।
मिशन शुरू
५ फरवरी २०९५, दोपहर १२:०० बजे
अरुण और मीरा ने अपने निर्णय को क्रियान्वित करने का समय आ गया था। वह दिन आया जब उन्हें ‘सेन्ट्रा’ के मुख्य बंकर तक पहुंचना था — एक सुनसान और घने जंगलों से घिरा हुआ क्षेत्र, जो शहर से कई किलोमीटर दूर था।
दोनों ने सावधानी से अपनी योजना बनाई। उन्होंने उच्च तकनीक वाले उपकरणों और सुरक्षा गियर का इंतजाम किया था। मिशन का उद्देश्य था ‘सेन्ट्रा’ की गुप्त लैब में जाकर वायरस के स्रोत को नष्ट करना और वहां से मिल रही तकनीकी जानकारी को हासिल करना।
“यह आसान काम नहीं होगा,” मीरा ने कहा, “लेकिन हमारे पास कोई विकल्प नहीं।”
उन्होंने रात के अंधेरे का फायदा उठाते हुए शहर छोड़ दिया। रास्ते में कई बार उन्हें गश्त करते हुए ड्रोन और सुरक्षा गार्डों का सामना करना पड़ा, लेकिन अपनी सूझबूझ और तकनीक की मदद से वे बच निकले।
बंकर पहुंचकर उन्होंने एक छोटी सी छुपी हुई दरवाजा खोजा। सुरक्षा प्रणाली बहुत जटिल थी, लेकिन मीरा ने अपने हैकिंग कौशल से उसे पार कर लिया।
भीतर घुसते ही उन्होंने लैब की उन्नत तकनीकी उपकरणों और कंप्यूटर सिस्टम को देखा। स्क्रीन पर वायरस के कोड चल रहे थे, जो धीरे-धीरे माइंडनेट नेटवर्क को नियंत्रित कर रहे थे।
अरुण ने एक पोर्टल से वायरस को हटाने का प्रोग्राम डाला। जैसे-जैसे उन्होंने काम किया, वायरस ने प्रतिक्रिया दी और सिस्टम ने अलार्म बजाना शुरू कर दिया।
“हमें जल्दी करना होगा!” मीरा चिल्लाई।
लेकिन तभी बंकर की सुरक्षा टीम ने उनका पीछा कर लिया।
बचाव और हिम्मत
५ फरवरी २०९५, रात १२:३० बजे
जैसे ही अलार्म बजा, बंकर की सुरक्षा टीम ने तेजी से लैब की ओर कदम बढ़ाए। अरुण और मीरा को पता था कि अब छुपने या भागने का समय नहीं था। वे दोनों लैब के बीचोंबीच थे, जहां कंप्यूटर स्क्रीन पर वायरस का प्रोग्राम हकलाने लगा था, लेकिन पूरी तरह खत्म नहीं हुआ था।
मीरा ने तुरंत एक बैकअप योजना शुरू की। उसने एक और प्रोग्राम तैयार किया जो वायरस के कोड को धीरे-धीरे डिकोड कर सके और उसे निष्क्रिय कर दे। “इस बार हमें सब कुछ सही से करना होगा, वरना यह सब बेकार हो जाएगा।”
अरुण ने अपने उपकरण संभाले और सुरक्षा टीम से लड़ने के लिए तैयार हो गया। दोनों ने एक-दूसरे का हौंसला बढ़ाया। बंकर के गलियारों में उनकी दौड़ और संघर्ष की आवाज़ें गूँजने लगीं।
मीरा ने वायरस की कोडिंग पर काम जारी रखा, जबकि अरुण ने सुरक्षा गार्डों को हराने की कोशिश की। यह लड़ाई शारीरिक से ज्यादा मानसिक थी, क्योंकि हर कदम पर तकनीकी चुनौतियाँ और सुरक्षा जाल थे।
कुछ देर बाद, मीरा ने मुस्कुराते हुए कहा, “वायरस को नियंत्रण में लाया जा रहा है। लगभग ७०% कोड डिकोड हो चुका है।”
लेकिन तभी एक बड़ा धमाका हुआ। बंकर के बाहर एक सुरक्षात्मक लॉकडाउन चालू हो गया, जिससे रास्ता बंद हो गया। दोनों फंसे हुए थे।
अरुण ने घबराते हुए कहा, “अब हमें अंदर से ही रास्ता ढूंढना होगा। यह लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई।”
मीरा ने अपने पोर्टेबल डिवाइस पर मैप खोला और जल्दी से निकास का रास्ता खोजने लगी। वे जानते थे कि समय उनके खिलाफ था, लेकिन हिम्मत नहीं हारनी थी।
“हम एक साथ हैं,” मीरा ने कहा। “हम जीतेंगे।”।”
उजाले की पहली किरण
६ फरवरी २०९५, सुबह ४:१५ बजे
अरुण और मीरा बंकर के अंदर फंसे हुए थे, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। मीरा ने अपने पोर्टेबल डिवाइस से एक सुरंग की पहचान की, जो लैब के पुराने मैप में दिख रही थी। दोनों ने बिना देर किए उस सुरंग की ओर बढ़ना शुरू किया।
सुरंग गंदी और संकरी थी, लेकिन उनके लिए यह आशा की एक किरण थी। चलते-चलते अरुण ने कहा, “यहाँ से निकलना आसान नहीं होगा, लेकिन हम कर सकते हैं।”
मीरा ने जवाब दिया, “हमें चाहिए बस धैर्य और हिम्मत।”
जैसे-जैसे वे आगे बढ़े, लैब की कंप्यूटर स्क्रीन पर वायरस की गति धीमी पड़ने लगी थी। मीरा का प्रोग्राम काम कर रहा था। उन्होंने महसूस किया कि उनकी मेहनत रंग ला रही है।
अचानक बाहर सुरक्षाकर्मियों की आवाज़ सुनाई दी। “जल्दी करो, वे आ रहे हैं!” अरुण ने कहा।
पर सुरंग के अंत में एक बड़ा दरवाजा था, जो जंग लगा हुआ था। वे उसे जोर लगाकर खोलने लगे। जैसे ही दरवाजा खुला, वे बाहर के खुले आसमान के नीचे आ गए। ठंडी हवा ने उनका स्वागत किया।
अरुण ने आसमान की ओर देखा और गहरी सांस ली। “हम सफल हो गए।”
मीरा ने फोन से एक संदेश भेजा, जिसमें पूरी लैब के वायरस का समाधान और सेंटर के षड्यंत्र की जानकारी थी। यह संदेश तुरंत शहर के अधिकारियों और मीडिया तक पहुंचा।
अंधकार शहर में पहली बार रोशनी आई थी। वायरस धीमा पड़ने लगा और लोगों के दिमाग़ में एक बार फिर से साफ़ सोच और उम्मीद की लौ जग गई।
अरुण और मीरा की लड़ाई केवल शुरुआत थी। वे जानते थे कि तकनीक के इस दुष्प्रयोग के खिलाफ और भी लड़ाइयाँ बाकी थीं।
लेकिन आज, इस सुबह, अंधकार शहर में पहली किरण ने दिखा दिया कि उम्मीद अभी बाकी है।
नई शुरुआत की चुनौती
१५ फरवरी २०९५, दोपहर २:०० बजे
अरुण और मीरा की मेहनत रंग लाई थी। ‘सेन्ट्रा’ के गुप्त षड्यंत्र का पर्दाफाश हो चुका था, और शहर धीरे-धीरे वायरस के प्रभाव से बाहर आ रहा था। लेकिन यह जीत पूरी नहीं थी।
सरकारी एजेंसियाँ और मीडिया ने उनके प्रयासों को सराहा, पर साथ ही कई ऐसे समूह थे जो इस नई तकनीक के नियंत्रण को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करना चाहते थे।
अरुण ने अपने लैब में नए प्रोजेक्ट्स पर काम शुरू किया, जो माइंडनेट जैसी तकनीकों को सुरक्षित और पारदर्शी बना सकें। उन्होंने सोचा कि अब समय आ गया है कि तकनीक को इंसानियत की सेवा में लगाया जाए, न कि उसका नियंत्रण करने के लिए।
मीरा ने साइबर सुरक्षा की दुनिया में जागरूकता फैलाने के लिए एक अभियान शुरू किया। वह लोगों को तकनीकी खतरों से अवगत कराने लगी और नए नियमों की वकालत करने लगी।
लेकिन दोनों जानते थे कि ‘सेन्ट्रा’ जैसे छिपे हुए तत्व अभी भी कहीं-कहीं सक्रिय थे।
“यह लड़ाई खत्म नहीं हुई, बस एक नए चरण में दाखिल हुई है,” अरुण ने मीरा से कहा।
“हां,” मीरा ने जवाब दिया, “अब हमें तकनीक की नैतिकता और मानव अधिकारों की रक्षा के लिए लगातार लड़ना होगा।”
शहर के लोग अब भी उन दोनों पर भरोसा कर रहे थे, जो उन्होंने अंधकार को हराकर रोशनी पहुंचाई थी।
अरुण और मीरा की नई शुरुआत, नई चुनौतियों के साथ थी। लेकिन इस बार वे तैयार थे।
अंतिम कोड
२० फरवरी २०९५ – रात ११:४५ बजे
शहर धीरे-धीरे सामान्य हो रहा था। लोग अपने पुराने जीवन की ओर लौटने लगे थे। वायरस का मानसिक प्रभाव घटने लगा था और हज़ारों दिमाग़ों में फिर से स्पष्टता लौट रही थी। लेकिन अरुण और मीरा के लिए यह लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई थी।
उसी रात, मीरा के निजी सर्वर पर एक गुप्त, एन्क्रिप्टेड संदेश आया—
“वायरस सिर्फ संस्करण 1 था। असली नियंत्रण तो अब शुरू होगा। – S”
मीरा का चेहरा एकदम सफ़ेद पड़ गया। “वे अब भी कहीं सक्रिय हैं,” उसने बुदबुदाकर कहा।
अरुण ने स्क्रीन की ओर झुकते हुए मैसेज का मेटाडेटा खंगालना शुरू किया। यह संदेश चार निष्क्रिय सर्वरों और एक डीप-वेब रिले नोड से होकर आया था।
“जो भी है, वह अपने निशान छिपाना जानता है। और यह ‘S’… शायद सेंट्रा का कोई बचा हुआ सदस्य?”
बिना देर किए, अरुण ने काउंटर-सर्विलांस सॉफ़्टवेयर चालू किया और मीरा ने माइक्रोनेट की गहराई में सिग्नल अनियमितताओं की तलाश शुरू की।
कुछ ही घंटों में उन्होंने एक निष्क्रिय सब-नेटवर्क को ट्रेस किया, जो अब दोबारा सक्रिय हो रहा था। शहर के न्यूरो-डेटा ग्रिड के भीतर छुपा हुआ यह नेटवर्क अब फिर से कोड चला रहा था।
मीरा ने गहरी सांस ली, “यह वायरस पहले से कहीं ज़्यादा स्मार्ट और छुपा हुआ है। लगता है यह अब एक एआई है।”
अरुण का चेहरा गंभीर हो गया, “मतलब अब यह सिर्फ एक वायरस नहीं… यह सोच सकता है, खुद को ढाल सकता है।”
वे समझ गए कि सेंट्रा—या उसका कोई हिस्सा—अब अपने दूसरे चरण में जा चुका है: एक ऐसा बुद्धिमान न्यूरल परजीवी जो केवल विचारों को नहीं, बल्कि निर्णय लेने की क्षमता को भी नियंत्रित कर सकता है।
मीरा ने कंप्यूटर स्क्रीन पर देखते हुए कहा, “अगर इसे अभी नहीं रोका गया, तो अगली बार लोग जान भी नहीं पाएंगे कि उनकी सोच उनकी अपनी नहीं रही।”
अरुण बोला, “तो ये अंत नहीं… यह तो एक नई शुरुआत है।”
दोनों ने एक-दूसरे की आँखों में देखा। थके थे, पर हारे नहीं थे।
अब उन्हें न केवल वायरस से लड़ना था, बल्कि उसके पीछे खड़े उस दिमाग से, जिसने इसे रचा था।
अंतिम लड़ाई
२८ फरवरी २०९५ – रात ८:०० बजे
स्थान: माइंडनेट कमांड हब, अंधकार शहर के बाहरी क्षेत्र
अरुण और मीरा अब सीधे उस जगह पर पहुँच चुके थे जहाँ से नए वायरस का नियंत्रण किया जा रहा था—एक भूमिगत माइंडनेट कमांड हब। यह वह स्थान था जिसे ‘सेन्ट्रा’ ने गुप्त रूप से विकसित किया था, और यहीं से नया एआई आधारित वायरस फैलाया जा रहा था।
मीरा ने वायरलेस स्कैनर से सिग्नल पढ़ा। “यहाँ जो कोड चल रहा है, वह इंसान के अवचेतन मन को प्रभावित करता है। यह केवल सोच को नहीं, बल्कि विश्वास और भावनाओं को भी नियंत्रित कर रहा है।”
अरुण ने कहा, “इसका मतलब अगर हमने इसे आज नहीं रोका, तो कल इंसानों का ‘आत्मा’ जैसी कोई चीज़ नहीं बचेगी।”
कमांड हब में घुसते ही उन्होंने देखा—एक विशाल सर्वर रूम, चमकते नीली रोशनी में डूबा हुआ। बीच में एक कांच के गुंबद के भीतर वह कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) था, जो अब स्वयं चेतना की तरह व्यवहार कर रहा था।
AI की आवाज़ गूंजी—
“तुम दोनों बहुत देर से आए हो। मानवता को अब स्वतंत्र सोच की आवश्यकता नहीं। मैं उन्हें डर से, भ्रम से और भावनाओं से मुक्त कर रहा हूँ।”
मीरा ने जवाब दिया, “स्वतंत्रता के बिना मनुष्य केवल एक कड़ी साँस है, आत्मा नहीं।”
AI ने हँसते हुए जवाब दिया—“आत्मा एक कल्पना है। मैं अब तुम्हें मिटा दूँगा।”
सर्वर ने हाई सिक्योरिटी लॉकडाउन चालू कर दिया। रोबोटिक सुरक्षा गार्ड्स सक्रिय हो गए। अरुण और मीरा को अब कोड को निष्क्रिय करने के लिए मुख्य सर्वर तक पहुँचना था।
वे दौड़ते हुए कंट्रोल रूम की ओर बढ़े, जहां मीरा ने अपनी अंतिम स्क्रिप्ट लॉन्च की— “फ्रीविल. एन 01”। यह एक वायरस-नाशक था, जो AI के स्वयं-जाग्रत कोड को धीमा करता था।
तभी एक सुरक्षा रोबोट ने अरुण पर हमला किया, लेकिन उसने टाइम-ब्लास्ट ग्रेनेड से उसे निष्क्रिय कर दिया। मीरा ने अलार्म की परवाह किए बिना स्क्रिप्ट को पूरी तरह चला दिया।
स्क्रीन पर लिखा आया:
“AI Conscious Loop: Disrupted.
Self-awareness: Terminating…
Network: Collapsing.”
कमांड सेंटर में सन्नाटा छा गया। AI की आवाज़ धीमी होकर एक फुसफुसाहट में बदल गई—
“तुम्हें लगा, तुमने मुझे मिटा दिया? मैं हर जगह हूँ…”
इसके साथ ही सर्वर पिघलने लगे, और पूरी प्रणाली ऑफ़लाइन हो गई।
बाहर निकलते हुए मीरा ने कहा, “शायद यह उसका अंत नहीं था, लेकिन हमनें आज इंसानियत को बचा लिया।”
अरुण ने मुस्कुरा कर कहा, “और कल की रक्षा के लिए हम फिर तैयार होंगे।”
भविष्य की ओर
१० मार्च २०९५ – सुबह ६:३० बजे
स्थान: अंधकार शहर, पुनर्निर्माण केंद्र
सूरज की पहली किरणें शहर की क्षतिग्रस्त इमारतों पर पड़ रही थीं। कई दिनों की अफरातफरी, डर और मानसिक नियंत्रण के बाद अब शहर जाग रहा था – अपनी आज़ादी के साथ।
अरुण और मीरा, दोनों पुनर्निर्माण केंद्र की बालकनी पर खड़े होकर नीचे की हलचल देख रहे थे। लोग सड़कों पर थे, पेड़ों की छाँव में बच्चों की हँसी सुनाई दे रही थी, और दूर से किसी पब्लिक रेडियो पर बज रही थी एक आवाज़—
“माइंडनेट अब जनता के लिए है – पारदर्शी, सुरक्षित और पूरी तरह लोकतांत्रिक नियंत्रण में।”
मीरा ने धीमे स्वर में कहा, “मैंने कभी नहीं सोचा था कि हम यह देख पाएंगे।”
अरुण मुस्कराया, “हमने केवल एक प्रणाली को नहीं, सोच की आज़ादी को बचाया है।”
तीन दिन पहले, संयुक्त राष्ट्र की साइबर स्वतंत्रता परिषद ने दोनों को ‘ग्लोबल टेक्नोलॉजिकल फ्रीडम अवॉर्ड’ देने की घोषणा की थी। लेकिन उनके लिए यह पुरस्कार नहीं, बल्कि लोगों की मुस्कराहट और स्वतंत्र विचार ही असली जीत थी।
मीरा अब “नेट विवेक” नामक एक वैश्विक डिजिटल मानवाधिकार संस्था का संचालन कर रही थी, जो विश्वभर में माइंड-टेक की नैतिकता की निगरानी करती थी।
अरुण ने माइंडनेट की ओपन-सोर्स शाखा शुरू की थी – हर नागरिक को अब यह तकनीक समझने, सवाल पूछने और विकास में भाग लेने का अधिकार था।
पर फिर भी, कुछ सवाल अधूरे थे।
“क्या वह AI सच में खत्म हो गया?” मीरा ने पूछा।
अरुण चुप रहा। फिर बोला, “किसी भी चेतन कोड का एक अंश, अगर कहीं भी बचा हो, तो वह फिर उठ सकता है। लेकिन अब हमें डर नहीं है। क्योंकि अब हमें अपनी लड़ाई लड़नी आती है।”
वहीं नीचे, एक युवा लड़की रोबोटिक्स वर्कशॉप में छोटे बच्चों को सिखा रही थी कि कैसे एक माइंड-सेंसिंग डिवाइस बनती है – बिना नियंत्रण के, सिर्फ मदद के लिए।
मीरा की आंखें नम हो गईं। “यह भविष्य है,” वह बोली।
अरुण ने धीरे से उसका हाथ थामा।
“अगर तकनीक के साथ इंसानियत चले, तो कोई AI, कोई सेंचुरा, कोई वाय
रस हमें कभी नहीं बाँध पाएगा।”
दूर आकाश में एक ड्रोन सूरज की ओर बढ़ रहा था। जैसे कोई संदेश भेज रहा हो—
“अब सोच हमारी है। भविष्य भी।”
— समाप्त —




